From the windows of memories - last love (9) in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | यादों के झरोखों से —निश्छल प्रेम (9)

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यादों के झरोखों से —निश्छल प्रेम (9)


यादों के झरोखों से निश्छल प्रेम (9)प्रस्तुत है
जब भी मोहल्ले में कोई दुखद घटना होती अम्मा को हमने हमेशा दुखी परिवार के साथ देखा था । पूरे मोहल्ले के बच्चे उन्हें अम्मा ही कहते थे।
एक दिन हम बच्चे स्कूल से आ रहे थे,तभी मोहल्ले की भीड़ के साथ अम्मा भागी हुई जा रही थी उस समय कुछ समझ नहीं आया ।


घर जाकर हमने अपने बस्ते को पटका और मॉं को बताया ।जिस को भी यह बात पता थी वहीं अम्मा के पीछे भाग रहा था ।
हमें भी जिज्ञासा थी कि सब कहॉं जा रहे है हमें भी देखना चाहिए ।


हमारे घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर रेलवे लाईन का फाटक था ।शहर से आते समय उसे पार करके आना होता था ।आये दिन वहाँ दुर्घटना हो जाती थी,चूक से कोई भी चोटिल हो जाता या प्राण पखेरू उड़ जाते ।जैसे ही मोहल्ले में पता लगता सब देखने जाते ,हमें ऐसा ही लगा कि कोई दुर्घटना होगई है जिसे सब देखने जा रहे है।



कोई घटना होने पर बच्चों को जाने पर सख़्त मनाही थी जिसने भी हमें जाते देखा,हमें घर जाने की हिदायत दी ।
हमारा मन तो उत्सुक था कि वहाँ क्या हुआ है वह देखें ।


हमारे यहाँ या आस-पड़ौस में किसी को बुख़ार भी आ जाता तो अम्मा ज़रूर जाती और दुख में आँखों में आंसू भरकर भगवान से प्रार्थना करतीं कि वह जल्दी ठीक हो जाये ।


एक बार हमारे पड़ौस में रहने वाले चाचा जी की बेटी ससुराल से आई थी ,वह छत से ही झॉक कर नीचे देखकर बात कर रही थी तभी अचानक उनका पैर फिसल जाने से वह आँगन में गिर गई।


उनके चोट अधिक नहीं लगी थी फिर भी अम्मा पूरी रात उनके पास बैठकर भगवान से दुआएँ माँगती रही।


अम्मा के पति लाला जी लकड़ी का व्यवसाय करते थे।किसी लड़की की शादी होती तो लकड़ी का फ़र्नीचर,पलंग उनके यहाँ से ही दिया जाता ।


मोहल्ले में जो व्यक्ति फ़र्नीचर ख़रीदने में असमर्थ होता उनके यहाँ वह दान स्वरूप पलंग अवश्य देते थे सभी विवाहित बेटियों के यहाँ उनके प्रतिष्ठान पर निर्मित पलंग ही शोभायमान थे ।


लाला जी अपने प्रतिष्ठान से घर वापिस आ रहे थे वह फाटक क्रासिंग पर आये तो कोई रेलगाड़ी वहॉं नहीं थी ,लेकिन फाटक बंद था ।उन्होंने देखा गाड़ी आने में समय लगेगा ।पैदल निकलने वालों के लिए छोटा रास्ता था वह उससे निकले ।लाला जी पैदल ही ज़ाया करते,किसी वाहन का प्रयोग वह नहीं करते ।सेहत भी उनकी दुरुस्त थी।


निकलते समय लाला जी ने देखा सिग्नल भी नहीं है कोई रेल आने का समय भी नहीं मैं निकल जाऊँगा ।


जैसे ही लाला जी निकले दूसरी दिशा से मालगाड़ी आती हुई दिखाई दी।हड़बड़ाहट में उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था मालगाड़ी और लाला जी की दूरी कुछ मिनिट की थी,वह पटरी के बीच में लंबाई में लेट गये ।


वह हिम्मत करके लेटे रहे और इंजन सहित अट्ठारह डिब्बे उनके ऊपर धड़धड़ाते हुए निकल गये ।जब मालगाड़ी निकल गई तो वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई ।


प्रत्यक्षदर्शियों ने सूचना अम्मा को भी दी हड़बड़ाहट में अम्मा भागे जा रहीं थी ।उनके पीछे जिसे भी पता लगा मोहल्ले के लोग भाग रहे थे।


लाला जी को देखते ही अम्मा ईश्वर को धन्यवाद देती रहीं ।लाला जी हिम्मत करके खड़े तो हो गये लेकिन घबराहट की वजह से कुछ बोल नहीं पा रहे थे । वह बिलकुल स्वस्थ थे ।आँखों से आंसू बह रहे थे और अम्मा की ऑंखें ख़ुशी से भीग रही थी ।आंसू बहाकर मोहल्ले वाले भी बुरी घड़ी के टल जाने से बहु ख़ुश थे।

किसी बुजुर्ग ने भीड़ में से कहा—परोपकार करने से बड़ी से बड़ी विपत्ति टल जाती है ।🙏🙏

आशा सारस्वत