Unexpected in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | अप्रत्याशित

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अप्रत्याशित

"आप राजेश बोल रहे है?"मोबाइल कान पर लगाते ही फिर वो ही आवाज सुनाई पड़ी थी।इस आवाज को वह पिछले कई दिनों से सुनता आ रहा था।
"हां"राजेश बोला,"आप प्रगति बोल रही है?"
"तो आपने मुझे पहचान लिया।सर् हमारी कंपनी ने तीन प्लान लांच किए है।अगर आप पांच मिनट का समय दे तो मैं आपको तीनो प्लान समझा दू।"
प्रगति के पिछले कई दिनों से फोन आ रहे थे।वह अपनी बीमा कंपनी के प्लान समझाने के लिए उससे मिलना चाहती थी।राजेश कोई न कोई बहाना बनाकर उसे टाल देता था।लेकिन आज आफिस की छुट्टी थी।उसने ज्यादा अनुनय विनय की तो राजेश ने उसे घर बुला लिया था।
"मैं प्रगति ---"मझले कद, गोरे रंग की सुंदर युवती ने राजेश के घर आते ही अपना परिचय दिया था।
"आइये,"राजेश,प्रगति को ड्राइंगरूम में ले आया।
"इतने बड़े मकान में आप अकेले रहते है?"प्रगति ने कुर्सी पर बैठते ही प्रश्न किया था।
"फिलहाल तो इस मकान में ही नही दुनिया मे भी अकेला ही हूँ।"
"क्या मतलब?"राजेश की बात सुनकर प्रगति विस्मय से बोली।
"अनाथ हूँ।अनाथालय में पला हूँ।खूब पढ़ा लिखा हूं।इसलिए सरकारी नौकरी लग गई।अनाथ हूं इसलिए माँ बाप का नाम, जाति का कोई पता नही है--राजेश ने अपना परिचय प्रगति को दिया था।
"सर्, हमारी कम्पनी ने तीन प्लान निकाले है--प्रगति ने राजेश को अपनी कम्पनी के तीनों प्लान के बारे में बताया था।
,सुनने में प्लान बहुत अच्छे है।लेकिन कंपनी नई है।नई कम्पनी में पैसा लगाना जोखिम भरा होता है।मैं सरकारी कम्पनी में ही पैसा लगाना उचित समझता हूँ।"
"सर् ,हमारी कंपनी नई जरूर है लेकिन---प्रगति बार बार राजेश से बीमा कराने के लिए अनुरोध करने लगी।उसकी बात सुनकर राजेश बोला,"देखो मैं तुम्हारी कंपनी में पैसा हरगिज नही लगाउंगा,"राजेश उसे समझाते हुए बोला,"तुम इस नौकरी को छोड़कर कोई अच्छी सी नौकरी क्यो नही कर लेती।"
"मैं भी अच्छी सी नौकरी करना चाहती थी।लेकिन मैंने पाया कि सब जगह सम्मान नौकरी कर पाना संभव नही है।यहां युवतियों की चुनौतियां युवकों से अलग है।जब मनचाही नौकरी ढूंढते ढूंढते हुए हार गई,तो प्रतिष्ठा के साथ इस छोटी सी नौकरी से संतुष्ट हूं।"राजेश की बात सुनकर प्रगति बोली थी।
" बुरा न मानो तो एक सलाह दू।"
"क्या?"प्रगति ने प्रश्नसूचक नज़रो से देखा था।
"इस नौकरी से तय बेहतर है तुम शादी कर लो।"
"मेरी माँ भी यही चाहती थी।इसलिए मुझे खूब पढ़ाया था।लेकिन मेरी शिक्षा और सुंदरता कोई काम नही आई।माँ जहा भी मेरे रिश्ते के लिए गई।हर जगह देहज की मांग की गई।रकम छोटी रहती तो माँ शायद जैसे तैसे प्रबंध भी कर लेती।दहेज के अभाव मे मुझे दुल्हन न बना पाने के गम में बेचारी रोगसय्या पर बीमार पड़ी है।
"प्रगति मुझे तो यह लगता है कि कोई भी मर्द तुम्हे अपनी पत्नी बनाकर स्वंव को भाग्यशाली समझेगा।"
"आप मुझे बहला रहे है।भले ही लड़की कीतनी ही सुंदर,शिक्षित हो बिना मोटे दहेज के उसे कोई अपनी बनाने को तैयार नही होता।आज के समाज की हकीकत यही है।"
" ऐसा नही है।हो सकता है तुम्हारी माँ ने जितने भी लड़के देखे हो।उनमे ऐसा कोई था ही नही जो शिक्षा और सुंदरता के मोल समझे।"
राजेश इतना कहकर कुछ देर के लिए चुप हो गया।प्रगति भी मौन रही।फिर राजेश धीरे से बोला,"मुझे दहेज नही सूंदर और शिक्षित पत्नी चाहिए जो कंधे से कंधा मिलाकर मेरे साथ चल सके,"फिर झिझकते हुए बोला,"मैं तुमसे शादी के लिए तैयार हूँ।करोगी मुझसे शादी?"
"क्या?"प्रगति ,राजेश की बात सुनकर हतप्रद रह गई।
"ऐसे क्या देख रही हो।मैं सच कह रहा हूँ," राजेश बोला,"अगर मैं तुम्हे पसंद हूँ तो मैं तुम्हारा हाथ थामने के लिए तैयार हूँ।"
प्रगति राजेश का बीमा करने के लिए आयी थी।लेकिन राजेश ने उसी की जिंदगी के बीमे का प्रस्ताव रख दिया तहस।प्रगति सोच रही थी।शायद उसे भी इससे अच्छा जीवन साथी नही मिलेगा।
और प्रगति ने अपना हाथ राजेश की तरफ बढ़ा दिया था