jiwansathi in Hindi Short Stories by Kumar Kishan Kirti books and stories PDF | जीवनसाथी

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जीवनसाथी



"मैं शादी करना नहीं चाहता हूँ इस बात को आपलोग समझते क्यो नहीं है?"आनंद गुस्से से अपनी बात रखते हुए बोला आनंद की बातें सुनकर उसकी माँ सविता देवी बोली"लेकिन बेटा, आखिर इसकी वजह क्या है?तुम बताते क्यो नहीं हो?हो सकता है, मैं और तुम्हारे पिता इस समस्या का निदान कर दे"सविता देवी अपने पुत्र आनंद को समझाते हुए बोली अपनी माँ की बातों को सुनकर आनंद कुछ पल शांत रहा,फिर अपने पिता जानकीनाथ की तरफ देखकर बोला"पापा,मैंने इससे पहले शादी के लिए हाँ कहा था, लेकिन क्या नतीजा निकला?बताइए ना?जो भी लड़की यह सुनती हैं की मेरा एक पैर डैमेज है अर्थात, मैं एक विकलांग युवक हूँ, मुझसे शादी करने से इंकार कर देती हैं मैं अपनी जिंदगी को तमाशा बनाना नहीं चाहता हूँ, और वैसे भी मैं अकेला हूँ फिर भी,खुश हूँ"
आनंद इतना कहकर रुआँसा हो गया उसकी बातों को सुनकर जानकीनाथ और सविता देवी का दिल भर आया,लेकिन वे चुप रहे क्योंकि, आनंद की बातों में सच्चाई थी,खैर उसके बाद दोनों दंपति ने फिर आनंद से विवाह के बारे में बातें नहीं किए इसका कारण यह था की वे दोनों अपने पुत्र को सोचने का वक्त देना चाहते थे हो सकता है की कही उसका विचार बदल जाए
एक दिन की बात है सुबह का समय था आनंद के पिता जानकीनाथ अपने द्वार पर बैठकर चाय पी रहे थे ठंढी-ठंढी हवाएं चल रही थी मौसम बड़ा ही सुहावना था तभी एक बड़ी ही खूबसूरत और गुलाब सी कोमल लड़की वहाँ आई और उनका पैर छूकर प्रणाम की उसे देखकर जानकीनाथ चौके तथा बोले"अरे बेटी!कौन हो तुम और मुझे इस प्रकार से प्रणाम क्यों कर रही हो मैं तो तुमको जानता भी नहीं हूँ!"
" लेकिन, मैं आपको जानती हूँ आप मि0 आनंद साहब के पिताजी है ना!"वह लड़की जानकीनाथ की बातों को सुनकर बोली यह सुनकर जानकीनाथ को और आश्चर्य हुआ,लेकिन उन्होंने फिर उस लड़की से हैरानी के साथ पूछा"वो सब तो ठीक है, लेकिन बेटी तुम आनंद को कैसे जानती हो!और तुम्हारा नाम क्या है?अपने बारे में विस्तार से बताओ"यह सब सुनकर वह लड़की पास ही रखी गई कुर्सी पर बैठकर बोली"मेरा नाम खुशी है और मैं श्री दीनदयाल जी की पुत्री हूँ आनंद साहब की बहुत बड़ी प्रसंशक हूँ उनकी हर शायरी,और गजलों को पढ़ती हूँ आनंद में अगर कमी है तो इसमें उनकी क्या गलती है?हर इंसान में कोई ना कोई कमी है तो फिर,सम्पूर्ण कौन है?मैं तो खुशनसीब लड़की हूँ की मैं उस इंसान से विवाह करना चाहती हूँ जिन्हें मैं पढ़ती हूँ, और वैसे भी आनंद एक प्रतिभावान लेखक के साथ एक अच्छे इंसान भी है"
"लेकिन बेटी,एक बार अपने पिताजी से पूछ तो लो,कही उन्हें यह रिश्ता पसंद ना हो तो?"जानकीनाथ थोड़ा हिचकिचाहट के साथ खुशी की तरफ देखकर बोले उनकी बातों को सुनकर खुशी बोली"आप,इसके बारे में बिल्कुल चिंता मत कीजिए, क्योंकि मैं अपनी मम्मी-पापा को मनाकर ही तो यहाँ आई हूँ, और वैसे भी जब आनंद के साथ रहने में मुझे कोई परेशानी नहीं है तो मम्मी-पापा को क्यो होगा?"
इतना सुनते ही जानकीनाथ को लगा की वास्तव में इस दुनिया में अच्छी और विचारवान लड़की की कमी नहीं है
हो सकता है आनंद की किस्मत में खुशी का प्यार लिखा हो"यह सोचकर उन्होंने खुशी के माथे पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा की"मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है और आज तुमने मुझे चिंताओ की दुष्चक्र से आजाद करा दिया"
:कुमार किशन कीर्ति,युवा लेखक