----उपन्यास
भाग—एक
अन्गयारी आँधी
--आर. एन. सुनगरया,
मैं सहन शक्ति सिंह का हमराज हूँ। तभी तो वह मुझे यारानावश हेमराज कहता है। कदाचित सभी ने मेरा नाम हेमराज ही रख दिया, इसी नाम से सहन शक्तिसिंह का हनुमान कहलाने लगा। मुझे भी सहन शक्तिसिंह के स्थान पर शक्ति पुकारना अच्छा लगता है।
शक्ति विचलित, बैचेन, जसमंजस व व्याकुल सा महसूस हुआ। मैंने उसे टोंकना चाहा, मगर रूक गया। कुछ देर अन्दरूनी हलचल को विस्तार से परखने लगा। आखिर चल क्या रहा होगा, शक्ति के दिल-दिमाग में? लेकिन कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। कुछ तो है, जिसे वह पचा नहीं पा रहा है। सहन नहीं कर पा रहा है। कोई टीस, कोई घाव कोई नासूर.......या कुछ और......।
उसकी दशा देखकर व मनोदशा महसूस करके, मेरा साहस नहीं हुआ कि मैं उसे कुछ कहूँ अथवा उसके सम्मुख आऊॅं! छुपकर ही देखता हूँ, आगे......
वह क्रोध में अकड़े शरीर को घसीटता हुआ, शायद कुछ ढूंढ़ने लगा। कौने से उसने लम्बा सा तलवार नुमा छुरा उठाया। ऐसा लगता है, जैसे पहले कभी उसने सहज कर रखा था। धार भी चमचमा रही थी, यानि धार भी ताजी-ताजी की हुई लगती है। असल में वह औजार लॉन का बढ़ा हुआ घॉंस छॉंटने के काम में उपयोग किया जाता है।
इतनी रात गये घांस काटने का प्रश्न ही नहीं, परन्तु उसके इरादे, मंशा और बॉडी लंग्गेज देखकर तो बहुत ही घातक व खतरनाक विचार उभर रहे हैं। तत्काल हस्तेक्षेप करना होगा, जो भी हो देखा जायेगा। मगर कुछ तय नहीं कर पा रहा हूँ। इस अभूतपूर्व स्थिति को कैसे डील करूँ। क्रोध अन्धा कर देता है, विवेक चाट जाता है। पूर्णत: क्रोध का नियन््त्रण होने के कारण कुछ भी अप्रिय घटना अवश्यभावी होती है।
हेमराज ने धैर्य पूर्वक सारे क्रियाकलाप को गम्भीरता और बारीकी से जॉंचना-परखना ही उचित समझा। आखिर शक्ति करना क्या चाहता है। क्या करेगा। हेमराज चौकन्ना हो गया। जैसे ही हमलावर होगा, तत्काल रोकने का भरपूर, निडरतापूर्वक प्रयास करेगा। नजरें गढ़ाकर प्रतीक्षा करने लगा।
कुछ ही क्षणों में निढाल होकर जमीन पर लुड़कने लगा निर्जीव सा। तुरन्त हेमराज ने अपनी बाहों का सहारा देकर सोफे तक लाकर बैठा दिया।
फौरन ठण्डे पानी की बाटल का ढक्कन ,खोलकर शक्ति को देने लगा तथा कुछ बँदें चुल्लू में भरकर उसके चेहरे पर छिड़कने लगा।
शक्ति ने एक घूँट पानी गटका। कुछ चेतना लौटी।
सामान्य स्थ्िाति होने में काफी समय लगा। तब तक खामोशी छाई रही। समय सामान्य समझ हेंमराज ने पूछ ही लिया,
‘’ कुछ प्राबलम ?’’
शक्ति ने कुछ क्षण बाद लम्बी बल्कि बहुत लम्बी सॉंस खींचकर ऑंखें बन्द कर लीं।
हेमराज ने आगे कुरेदना उचित नहीं समझा। मगर उसके अन्तर्मन में जिज्ञासा ने जन्म ले लिया। कुलबुलाहट, आतुरता व व्यकुलता स्पष्ट महसूस होने लगी, बैचेनी से होने लगी।
हेमराज और शक्ति बिजनेस में एक दूसरे के पूरक थे। काम के सिलसिले में अनेकों मर्तबा हेमराज, शक्ति के आवास रूकता रहा है। मगर आज तो एक नये ही अप्रत्यासित, अद्भुत पहलू से रू-ब-रू हुआ। शक्ति का एकदम नया रूप देखने को मिला।
हेमराज के दिमाग के सम्पूर्ण तंतु-स्नायु झन-झना उठे। उसे शक्ति के अज्ञात रहस्य के अन्धकार में आाशा की किरण ढूंढ़ने हेतु विवश कर दिया।
घौर गंभीर विचार मंथन के अध्याय का प्रारम्भ हो गया। यह स्थिति कोई अल्प समय में निर्मित नहीं हो सकती ना जाने कितने पीछे अतीत में सोच के घौड़े दौड़ाने होंगे......तब जाकर कुछ ओर-छोर पकड़ में आ सकेगा!
मानसिक रूप से हेमराज काफी थका हुआ महसूस करने लगा। राहत पाने की गरज से, उसने ऑंखें बन्द की एवं कटी पतंग की तरह डोलने लगा।....अतीत के बादलों में भटकने लगा, इतने तीव्र भावावेश में शक्ति........
........कार में साथ बैठे शक्ति को हेमराज कनखियों से निहार लेता है। चुप्पी धारण किये हुये। कार फर्राटे भरती दौड़ रही थी, सुनसान सड़क पर। ऊँचे-ऊँचे हरे-भरे घने वृक्षों को पीछे छोड़ते हुये। वे एक तालाब के निकट हिचकोले झेलते हुये रूक गये।
चारों ओर आहिस्ता-आहिस्ता मनमोहक प्राकृतिक दृश्य अपनी ऑंखों में सहेजते जा रहे हैं। रंग-विरंगे फूल-पत्तियॉं, शॉंत समीर में मचल-मचल कर अटखेलियॉं कर रहीं हैं। विशुद्ध प्राणवायु ने उन्हें पूर्णत: तरोताजा कर दिया है। सम्पूर्ण शरीर की रग-रग नई नवेली सी कली की भॉंति खिली-खिली महसूस हो रही है। ग्रन्थों में वर्णित स्वर्ग समान अनुभूति का आभास हो रहा है। दिल-दिमाग पर अविश्मर्णिय मादकता छाने लगी है। प्राकृतिक छटा मनमोहनी की तरह उन्हें मोहित कर रही है शक्ति व हेमराज समग्र सजीव कुदरत की आगोश में समाते जा रहे हैं। दुनियादारी के झंझावतों से कोसों दूर एक अभूतपूर्व अनुभूति में एकाकार हो रहे हैं। ये चमकते चंचल झरने, नई-नई ताजगी व वास्तविक रंग लिये हुये नाजुक-नाजुक, नरम-नरम पंखडि़यॉं, जिनके स्पर्श मात्र से नवजात शिशु के छुअन की अनुभूति का एहसास हो रहा है। कितनी पवित्र, कितनी निश्चल, साफ स्वच्छ जल राशि से लबालव सरोवर चॉंदी सा झिलमिलाता अपनी सम्पन्नता को दर्शा रहा है। विभिन्न पशु-पक्षियों की संयुक्त स्वरलहरी, चहचहाट, कुहुक्क, कॉंव-कॉंव पूरे वातावरण को मिठास से गुंजायमान कर रहा है।
‘’ये कौन से लोक में आ गये, हेमराज!’’ शक्ति के स्वर फूट पड़े।
‘’प्राकृतिक वरदान महसूस कर लो शक्ति!’’ हेमराज ने सोचे वगैर सलाह दी, ‘’भरपूर! अमूल्य सम्पदा की तरह!’’
खामोशी लम्बी महसूस करके शक्ति की ओर हेमराज ने देखा, तो बदले हुये परिदृश्य ने आश्चर्य चकित कर दिया। शक्ति के मुखमंडल पर क्रोध की लालिमा उभर रही थी। हाथों की मुट्ठियॉं कसती जा रही थीं। वह गुस्से की तीव्रता के बढ़ने से कॉंपने लगा था। पल भर में स्वर्ग सा सपना चूर-चूर होकर विखर गया।
‘’क्या हुआ?’’ हेमराज ने विस्मय व्यक्त किया।
‘’वह देखो।‘’ शक्ति ने बामुस्किल इशारा किया। तालाब के उस पार, कोई पुरूष महिला को बेरहमी से पीट रहा था।
‘’हॉं तो!’’
‘’मुझे उस पुरूष पर बहुत क्रोध आ रहा है।
हेमराज चुप ही रहा। कातर नजरों से शक्ति को देखते हुये, कुछ समझने की कौशिश में विचारमग्न हो गया।..........
‘’.....हेमराज!’’ शक्ति चिल्लाया।
....चौंककर हेमराज वर्तमान से आ जुड़ा।
आफिस पहुँच गये शक्ति व हेमराज एक-दम चुप्पी साधे हुये।
हेमराज सोचता रहा कि शक्ति महिनों बाद पुन: भयंकर क्रोधित हुआ।
क्या इसकी प्रवृति ही ऐसी है कि किसी पर अत्याचार होता देखकर शक्ति का खून खोलने लगता है.....कुछ भी सोचे बगैर हमले हेतु आतुर हो जाता है। लेकिन फिलहाल पिछले कुछ दिनों से तो ऐसा कोई कारण ज्ञात नहीं है। मगर ऐसा कुछ हुआ जरूर होगा, मालूम करना होगा। कुछ तो मसला है।
अगर क्रोध का कुछ भी प्रभाव होगा, तो आफिस कार्य सम्पादन में जरूर महसूस होगा। देखते हैं।
आफिसियल वर्क समुद्र की तरह विशाल होता है, अनन्त काल से चला आ रहा है एवं निरन्तर चलता रहेगा......कर लो जिसमें जितनी योग्यता हो, ऊर्जा हो.......
शक्ति अपने काम में लगातार संलग्न है। कहीं कोई आलस नहीं कोई झुंझलाहट नहीं, कोई बाधा नहीं, कोई बहानेबाजी नहीं, कोई चिड़चिड़ाहट नहीं, कोई कठिनाई नहीं......फाईल पर फाईल निबटाये जा रहा है। तनिक भी आभास नहीं हुआ कि वह इतने बड़े बबन्डर, भावावेश से गुजरा है चन्द घण्टों पहले। लेशमात्र भी उसकी कार्य पद्धिति पर असर नहीं। ऐसा लगता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। सब कुछ सामान्य रहा हो। उत्साहित प्रफुल्लतापूर्ण्। ताज्जुब है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि शक्ति सब कुछ समाज से छुपाना चाहता हो। किसी को कोई भनक ना लगने देना चाहता हो। कुछ ऐसा कारण होगा! कि उससे जगहंसाई हो सकती होगी। अपनी समस्या अपने तक ही रखना चाहता हो। किसी से श्येर करना उसे उचित ना लगता हो। सामाजिक प्रतिष्ठा पर ऑंच ना आने देना चाहता हो!......
......कुछ भी हो, मगर हेमराज के दिमाग में फंसी फॉंस टीस रही है। एक बैचेनी अकुलाहट पर उसका नियन्त्रण नहीं हो पा रहा है।......
न्न्न्न्न्
----क्रमश:--2
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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