Village in mobile - 16 - moment of departure in Hindi Children Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | मोबाइल में गाँव - 16 - विदा के पल

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मोबाइल में गाँव - 16 - विदा के पल



विदा के पल-16

एक हफ्ते का समय कैसे बीत गया सुनयना को पता ही नहीं चला । आखिर उनकी वापसी का समय भी आ गया । दो दिन बाद उन्हें लौटना था । एक दिन वह रोहन, पापा, चाचा के साथ क्रिकेट खेल रही थी कि किचन से आती सुगंध को सूँघकर वह किचन में गई । दादी कड़ाही में कुछ भून रहीं थीं तथा चाची और ममा खाने की तैयारी कर रही थीं ।

‘ दादी आप क्या बना रही हो ?’ सुनयना ने दादी के पास आकर पूछा ।

‘ बेटा, आपके और रोहन के लिये बेसन के लड्डू बना रही हूँ ।’

‘ बेसन के लड्डू...ये तो मुझे बहुत पसंद हैं लेकिन हम तो कल चले जायेंगे ।’ सुनयना ने उदास स्वर में कहा ।

‘ ये लड्डू मैं तुम्हारे साथ रखने के लिये ही बना रही हूँ ।’

‘ वाउ दादीजी , आप बहुत अच्छी हो ।’

‘ फिर मैं क्या खाऊँगा ? आजकल आप जो भी बनाती हो दीदी के लिये बनाती हो मेरे लिये नहीं बनातीं ।’ उसी समय सुनयना को बुलाने आये रोहन ने रूंठते हुये कहा ।

‘ बेटा, इतने सारे बना रही हूँ । सब सुनयना के साथ थोड़े ही रख दूँगी । इसमें से आधे सुनयना के लिये आधे रोहन के लिये । अब तो खुश है न ।’ दादी ने बेसन भूनते हुये कहा ।

‘ ठीक है दादी ।’ चलो दीदी तुम्हारी बैटिंग है ।’

‘ तुम चलो मैं आती हूँ ।’

रोहन चला गया । वह वहीं खड़ी दादी को बेसन भूनते देखती रही । उसे खड़े देखकर दादी ने कहा, ‘ बेटा, जब तुम छोटी थीं तब मैं और तुम्हारे दादाजी मुंबई गये थे । मैं बेसन के लड्डू लेकर गई थी । लड्डू तुमको बहुत पसंद आये थे । लौटते हुये मैंने सोचा कि तुम्हारे लिये लड्डू बनाकर रख जाऊँ । मैंने लड्डू बनाए ही थे कि उसी समय तुम्हारी ममा की कुछ सहेलियाँ मिलने आईं । तुम्हारी ममा ने उनके सामने बेसन के लड्डू रख दिये । यह देखकर तुम रोने लगीं । उस समय तुम ठीक से बोल नहीं पातीं थीं । कुछ शब्दों द्वारा अपनी बात समझा दिया करतीं थीं । रोते हुये तुम्हारे कुछ कहने के कारण उस समय हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि तुम कहना क्या चाह रही हो तथा अचानक तुमने रोना क्यों प्रारंभ कर दिया ? बाद में तुम्हारी ममा ने बताया कि तुम इसलिये रो रही थीं कि कहीं उनकी सहेलियाँ सब लड्डू खत्म न कर दें ।’

‘ ममा को कैसे समझ में आया ?’

‘ बेटा, बच्चा जब छोटा होता है तब माँ अपने बच्चे के हावभाव से बच्चे की हर बात समझ जाती है ।’

‘ सच दादी, क्या मैंने ऐसा किया था ? यह तो गलत था न...हमें अकेले नहीं वरन् सबके साथ शेयर करके खाना चाहिये ।’ सुनयना ने मायूस स्वर में कहा ।

‘ बेटा, उस समय आप छोटी थीं न...।’ दादी ने कहा ।

‘ दीदी चलो न...आप अभी भी यहाँ हैं । आपकी बैटिंग है ।’

सुनयना रोहन के साथ चली गई । दादी ने उनके साथ उसकी पसंद की मठरी, बेसन के लड्डू, अचार, आलू की चिप्स और चावल की कचरी भी रख दीं । इस बीच उसने दादाजी से बात करके ननकू के लिए गैस दिलवाने का वायदा कर लिया । सबसे अधिक खुशी तो तब हुई जब दादी ने उसे उसको उसके लिये बनाया गुलाबी स्वेटर न केवल दिया वरन् अपने हाथों से उसे पहनाया भी ।

‘ दादी आपने तो मोर पंखों को मेरे स्वेटर में बना दिया है । थैंक यू दादीजी इतने सुंदर स्वेटर के लिये । ’ स्वेटर पहनकर, अपने स्वेटर में बने नीले हरे लाल रंगों से बने मोर के पंखों की लाइन बनी देखकर सुनयना ने कहा ।

‘ बेटा, जिस दिन तूने अपने लिये स्वेटर बनाने के लिये कहा था उस दिन मैंने तुझे मोर के पंखों की कहानी सुनाई थी इसलिये मैंने तेरे स्वेटर में भी मोर पंख बना दिये हैं जिससे जब भी तुम इसे पहनो तुम्हें नाचता मोर तथा मोर पंखों वाली कहानी याद आ जाये ।’

‘ दादीजी इस बार मैं मोबाइल में गाँव लेकर जा रही हूँ । जब-जब मैं यहाँ के फोटो देखूँगी, तब मुझे आपकी दादाजी की, यहाँ की हर बात याद आयेगी । जब मन होगा मैं स्वयं भी अपना सुंदर गाँव घूमूंगी तथा अपने दोस्तों को भी घुमाऊंगी ।’ सुनयना ने दादा-दादी से कहा ।

‘ क्या कह रही है बिटिया मोबाइल में गाँव...मैं समझी नहीं...।’ दादीजी ने उसकी ओर आश्चर्य से देखते हुये कहा ।

‘ दादीजी यह देखिये...।’ उसने अपने मोबाइल की गैलरी खोलकर अपने खींचे फोटो उन्हें दिखाते हुये कहा ।

‘ सच बिटिया आज तो सारे रिश्ते नाते इस मोबाइल में सिमटकर रह गये हैं ।’ दादीजी ने फोटो देखते हुए कहा ।
‘ दादीजी आपने कुछ कहा क्या...?’ कुछ न समझ पाने के कारण सुनयना ने उनकी ओर देखते हुये पूछा ।

‘ बहुत अच्छा किया बिटिया...अब जब मन चाहे सबसे मिल लेना ।’ दादीजी ने मन में उमड़-घुमड़ रहे विचारों से बाहर निकलते हुये कहा ।

‘ हाँ दादी । अब तो मैं रोज ही आपसे वीडियो काल करके भी बात किया करूँगी । आप मेरी अच्छी वाली दादी तो हैं ही, मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी बन गई हैं न...। ’ सुनयना ने उनसे लिपटते हुये कहा ।

सुनयना का अपने प्रति प्रेम देखकर दादी की आँखों में आँसू आ गये थे । सच लड़कियाँ होती ही इतनी प्यारी हैं ।

सुधा आदेश

क्रमशः