Village in Mobile - 14 - Naming Treat in Hindi Children Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | मोबाइल में गाँव - 14 - नामकरण की दावत

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मोबाइल में गाँव - 14 - नामकरण की दावत



नामकरण की दावत-14

दोपहर को वे सब मास्टरजी के घर गए । उनकी गाड़ी के रुकते ही मास्टरजी बाहर गेट तक आ गए तथा उन्हें अंदर लेकर गए । वहाँ कई लोग थे । घर भी छोटा था । दादाजी, पापा और चाचाजी बाहर बरामदे में बैठ गए जबकि दादीजी, चाचीजी, मम्मी, वह और रोहन अंदर चले गए ।

कमरे के अंदर से गाने की आवाज आ रही थी । उनको कमरे में आते देखकर वहाँ उपस्थित सभी आंटियों ने दादी का अभिवादन किया । दादी ने उनके अभिवादन का उत्तर दिया । इसी बीच एक महिला उठकर आईं तथा उन्होने उन्हें बैठने के लिए कहा । सुनयना ने देखा कि अंदर कमरे में एक आंटी अपनी गोद में छोटे बच्चे को लेकर बैठी हैं । दादीजी ने आगे बढ़कर उसे गोद में उठाया तथा उसे एक लिफाफा दिया । दादीजी ने उसे अपने पास खड़ा देखकर उसे बच्चे को दिखाया । बच्चा बहुत ही प्यारा लग रहा था । दादीजी वहीं रखी एक कुर्सी पर बैठ गईं तथा वे सब जमीन पर बिछी चादर पर बैठ गए ।

उसे ढोलक की ओर देखते देखकर दादी ने कहा,’ बेटा यह ढोलक है । ‘

‘ मुझे पता है दादीजी मूवी में मैंने देखा है । ‘ सुनयना ने कहा ।

सुनयना ने देखा कि वहाँ उपस्थित सभी आंटियाँ गाना गा रही हैं तथा एक आंटी ढोलक बजा रही है । एक आंटी ढोलक पर चम्मच से ठक-ठक कर रही है पर उसकी आवाज भी मधुर ध्वनि पैदा कर रही है । जैसे ही एक गाना समाप्त होता दूसरा प्रारम्भ हो जाता किन्तु गाने के बोल वह चाहकर भी समझ नहीं पा रही थी बस इतना समझ में आ रहा था कि गाने माँ बच्चे के लिए गाये जा रहे हैं । अभी गाने चल ही रहे थे कि एक आदमी ने आकर कहा,’ खाना तैयार है । ‘

जिन आंटी ने उन्हें अंदर बिठाया था वे ही उन्हें बाहर लेकर गईं । उनके साथ कुछ और आंटियाँ भी आईं । उसने देखा कि बाहर लंबाई में एक चादर बिछी है । उसी में सबको बैठने के लिए कहा । दादीजी, चाची और ममा के उस बिछी चादर पर बैठते ही वह भी बैठ गई । थोड़ी ही देर में उनके सामने पत्तों की प्लेट तथा एक मिट्टी के बर्तन में पीने के लिए पानी रख दिया गया । अब दो आदमी खाना परोसने लगे । खाने में सब्जी, राइता, पूरी, कचौड़ी, पापड़ तथा खीर थी । सुनयना ने नीचे बैठकर कभी नहीं खाया था इसलिए बड़ा अजीब लग रहा था पर सबको खाते देखकर वह भी खाने लगी । खाना उसे ठीक ही लगा ।

' आकाश बेटा,गर्मी हो रही है । यहाँ टेबिल फैन लगा दे ।'

' ठीक है पिताजी ।'

टेबिल फैन की ठंडी हवा लगते ही दादाजी के पास बैठे एक आदमी ने कहा, ' मालिक आपके कारण हमारे गांव के हर घर में बिजली आ गई है ।'

' सच कहते हो भाई, आज मालिक के प्रयासों से इस गाँव में बिजली आई वरन घर -घर में शौचालय बन जाने के कारण हमारी बहू, बेटियों को आराम हो गया है ।' दूसरे अंकल ने कहा ।

' सच कह रहे हो । अजय भइया के कारण खेती के नए उपाय अपनाने के कारण हम सबके जीवन में भी सुधार आया है । ' पहले अंकल ने कहा ।

' इसी वजह से हमारा गाँव आदर्श गाँवों में नामांकित हुआ है...शायद चुन भी लिया जाये ।' एक अन्य अंकल ने कहा ।

' भाइयों मैं तो निमित्त मात्र हूँ ।मेहनत तो आपने की है । फल भी आपको ही मिलना है ।' दादाजी ने विनम्रता से कहा ।

घर लौटते हुए सुनयना के मन में कई प्रश्न थे अतः उसने घर आकर दादी जी से पूछा, ' दादी जी यह शौचालय क्या होता है ?'

' बेटा, टॉयलेट को ही शौचालय कहते हैं ।'

' क्या गाँव में पहले टॉयलेट नहीं होते थे ?'

' हाँ बेटा ।'

' फिर लोग कहाँ जाते थे ?'

' खेतों में ...।'

' ओह नो...।'

' दादी आपसे एक प्रश्न और पूछूं ।' सुनयना ने पुनः कहा ।

' पूछो...।'

‘ दादीजी, वे आंटियाँ क्या गा रहीं थीं । मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था । ‘

‘ बेटा, ये लोकगीत हैं जो हम गाँव वाले खुशी में गाते हैं । मास्टरजी के पोता हुआ है अतः सब महिलाएं मिलकर बधाई गीत गा रहीं थीं । ‘

‘ दादीजी, लोकगीत किसे कहते हैं ?’

‘ बेटा, लोकगीत, लोगों के गीत होते हैं जिन्हें बिना सीखे कोई भी गा सकता है । इन्हें गाने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता । ‘

‘ मुझे थोड़ा-थोड़ा समझ में तो आया पर सब नहीं आया । यह कौन सी भाषा है ? ‘

‘ बेटा, यह यहाँ की स्थानीय भाषा है । लोकगीत स्थानीय भाषा में ही गाये जाते हैं क्योंकि यह गाँव के लोगों के अपने गीत होते हैं । कोई भी त्योहार हो, घर में बच्चों का जन्म, मुंडन , विवाह जैसा कोई भी उत्सव हो, पहले समय में गाँव वाले अपनी खुशी प्रकट करने के लिए अपनी बोली में अपने गाने बनाते, गाते और नाचते थे । इनको बिना बाजों के सिर्फ ढोलक, ताली या थाली, चम्मच बजाकर भी गाया जा सकता है क्योंकि ये स्थानीय भाषा में होते हैं, सबकी समझ में आसानी से आ जाते हैं इसलिए इन गीतों को लोकगीत कहते हैं । ‘

‘ दादीजी, स्थानीय भाषा का अर्थ....। ‘

‘ हमारा भारत बहुत बड़ा देश है । तुम महाराष्ट्र में रहती हो वहाँ के लोग मराठी बोलते हैं । गुजरात के लोग गुजराती, राजस्थान के लोग राजस्थानी, पंजाब के लोग पंजाबी, पहाड़ी लोग पहाड़ी इत्यादि । ‘

‘ दादीजी तो क्या मराठी, पंजाबी, गुजराती स्थानीय भाषायें हैं ?‘

‘ हाँ बेटा…किन्तु हमारे देश की अधिकतर आबादी गाँव में रहती है । गाँव में रहने वालों की बोली शहरी लोगों से अलग होती है अतः लोकगीत वह होते हैं जो बड़े-बड़े शहरों से दूर गाँव में रहने वाले बोलते हैं । तुमने सुना होगा ननकू को बोलते हुए...जैसे आवा बिटिया । तोय दादाजी बुलवात हैं । वह तो हम लोगों के साथ रहकर अब हिन्दी भी ठीक से बोलने लगा है वरना ऐसे ही बोलता था ।‘
‘ दीदी, आप यहाँ क्या कर रही हो ? चलो न मेरे साथ । ताऊजी और पापा कैरम खेलने बुला रहे हैं । ‘

' तुम चलो, मैं दादीजी से बात कर रही हूँ ।'

' दादीजी से बाद में बात कर लेना । अब चलो भी । ताऊजी और पापा हमारा इंतजार कर रहे हैं ।' कहते हुए वह सुनयना का हाथ पकड़कर ले गया ।

सुनयना को रोहन के साथ बेमन से जाते देखकर दादी सोच रही थीं कि बच्चों के सामने सोच समझकर बातें करनी चाहिए क्योंकि वे सब बातें बड़े ध्यान से सुनते हैं । इसके साथ ही उनके बाल मन में उमड़ते घुमड़ते प्रश्नों का उत्तर गोल-मोल ढंग से देने की जबाव देने की बजाय उचित उत्तर देना चाहिए क्योंकि इस उम्र में वे जो देखते समझते हैं उसका प्रभाव उनके मानसिक विकास में सहायक होता है ।
सुधा आदेश

क्रमशः