Three friends (satire) in Hindi Comedy stories by Alok Mishra books and stories PDF | तीन दोस्‍त (व्यंग्य)

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तीन दोस्‍त (व्यंग्य)

तीन दोस्‍त
एक शहर में तीन दोस्‍त थे , तीनों बेरोजगार । उन्‍होने रोजगार पाने का बहुत प्रयास किया लेकिन हर ओर भ्रष्‍टाचार और भाई भतीजावाद के का बोल बाला था। उन्‍होंने जुगाड़ करने की कोशिश भी की । जब कोई जुगाड़ काम न आए तो उन्‍होंने सोचा कि अखिर वे परिवार और समाज के लिए नकारे है । उन्‍होंने फैसला किया कि समाज जब उनकी हालत पर तरस नहीं खाता तो ऐसे समाज की परवाह करना उचित नहीं है । उन्‍हें अपने - अपने भविष्‍य की चिन्‍ता थी और उन्‍हें अपना भविष्‍य इस शहर में सुरक्ष्‍िात नहीं लग रहा था । उन्‍होंने सोचा कहीं और जा कर भाग्‍य आजमाना चाहिए । अपने - अपने भाग्‍य पर भरोसा करके तीनों अलग- अलग दिशाओं में चल दिए ।
कई साल बाद ... एक दिन शहर में गणमान्‍य व्‍यक्‍तियों का सम्‍मान समारोह था । इस समारोह में बड़े – बड़े बड़े लोग आए , इसी समारोह के दौरान अचानक तीनों की मुलाकात हो गई । रात को शहर के आलीशान होटल में तीनों ही बैठे थे । अब तीनों ही बहुत बदल चुके थे । तीनों इस शहर के साथ ही साथ देश विदेश में जानी जाने वाली हस्‍तीयॉं थी । उनमें से एक बाबा बन गया था, दूसरा बहुत बड़ा नेता और तीसरा गुण्‍डा .. ऐसा – वैसा नही सफेदपोश गुण्‍डा । तीनों जब आपस में मिले तो पहले उन्‍होंने अपनी पुरानी परिस्‍थ्‍िातियों को याद किया और फिर बिछुड़ने के बाद क्‍या किया इस पर चर्चा प्रारम्‍भ हुई । बाबाजी ने अपने दोस्‍तों को बताया कि शहर से जाने के बाद कई दिनों तक वे भटकते रहे । फिर एक विधवा महिला के साथ कुछ दिन बिताए । उसकी मृत्‍यू के बाद उसकी हवेली में ही माता जी के आश्रम की स्‍थापना कर के उसे संत और चमत्‍कारी प्रचारित करके स्‍वयम्‍ उनके उत्तराधिकारी बन गए । पढे – लिखे तो थे ही , प्रवचन देना और परेशानीयॉं दूर करने के उपाए बताना भी चालू कर दिया । बाबाजी जानते थे की हर आदमी शार्टकट की तलाश में परेशान है और उसे धर्म की आड़ में गुमराह करना आसान काम है । इस तरह बाबाजी की दुकानदारी चल निकली । अब वे टी.व्‍ही.चैनलों पर समय लेकर विज्ञापन के रूप में प्रवचन देते है। अब वे धर्म के धंधे से कराड़ों कमाते है और बड़े – बड़े लोग उनके चरणों में झुक कर अपने आप को धन्‍य मानते है ।
नेता जी ने भी बताया कि परेशानी के दौर में जब वे पाई-पाई को मोहताज हो गए तब उन्‍होने एक मंत्री के घर ड्राइवर की नौकरी कर ली । मंत्री जी जैसे जनता में दिखते थे वैसे न थे । धीरे- धीरे मंत्रीजी उसे अपने राज़ों में राज़दार बनाने लगे । ड्राइवर पहले मंत्री का दलाल फिर पार्टी कार्यकर्ता और बाद में मंत्री जी की मेहरबानी से विधयक सांसद होते हुए बहुत ही पहॅुंचे हुए नेता बन गए । अब वे अचानक ही कराड़पति हो गए । वे राजनीति के माहिर खिलाड़ी है । वे पिछले कुछ वर्षों में अपनी सुविधा के अनुसार अनेक दलों में रह चुके है ।
सफेदपोश गुण्‍ड़े ने बताया कि उसने पाकेटमारी, राहजनी और चोरीयॉं की तब कही उसे कुछ नसीब हो पाता था । इन संघर्षों के बीच एक क्ष्‍ोत्रीय नेता को कुछ नौजवानों की आवश्‍यकता थी, सो वे नेताजी के मारूतोडू दल में शामिल हो गए । चुनाव के दौरान एक व्‍यक्‍ति की हत्‍या के आरोप में जेल की हवा खाने और बाद में नेताजी के आर्शिवाद से बाइज्‍जत बरी होने के बाद उसने इसे ही धंधे के रूप में अपना लिया । अब उसे मालूम है कि किसने किसको किसकी सुपारी दी है । उसे यह भी मालूम है कि कौन – कौन सी सड़क दुर्घटनाए राजनैतिक हत्‍या थी । किस व्‍यापारी के अपहरण के पीछे किसका हाथ है । अपने धंधे से काफी कुछ कमाने के बाद उसने कुछ फैक्‍ट्रीयॉं और कुछ व्‍यापार दिखावे के लिए चालू कर लिए । अब वो अपने आप को एक व्‍यापारी कहता है ।
तीनों ने आपस में एक दूसरे की आप बीती सुनी । उन्‍हे लगा वे पहले भी साथ थे अब फिर साथ हो जाए तो सब का फायदा ही फायदा है । उन्‍हें लगने लगा कि अब जमाने से बदला लेने का समय आ गया है । अब वे तीनों आपस में मिल गए है और जनता को लूटने , बेवकूफ बनाने और अपना उल्‍लू सीधा करने में लगे है । वे पैतरे बदलते है , मुखौटे बदलते है और काम तो बस नोचना- खसोटना ही है । अतं में… ये तीनों हमारे और आपके आस-पास ही कहीं है ,वे अपने काम में लगे है ; लेकिन आप सावधान है कि नहीं ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"