Thor-bethor in Hindi Moral Stories by Deepak sharma books and stories PDF | ठौर-बेठौर

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जिन डॉ. वशिष्ठ के पास मैं पत्नी को लेकर गया, वह शहर के सब से बड़े सरकारी अस्पताल में चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष रह चुके थे और अब एक प्रमुख नर्सिंग होम में रोगियों को भारी भरकम फीस लेकर देखा करते थे|

पत्नी की बारी आने पर डॉ. वशिष्ठ ने उसे रोगियों के लिए पृथक रखी गयी एक कुर्सी पर बैठने को कहा और पूछा, ‘क्या कष्ट है?’

‘मैं गहरी तकलीफ़ में हूँ’ पत्नी रुआंसी हो आयी, ‘मेरे दिल में कोई एक हूक बार बार उठती है, मेरे शरीर को दिन भर झुरझुराती है, जिस पर मेरा कलेजा मुँह को आ जाता है, साँस गले में अटक जाती है और दम घुटने लगता है.....|

डॉ. वशिष्ठ ने अगले बीस मिनट पत्नी का विस्तार पूर्वक निरीक्षण करने में बिताए| पत्नी का रक्तचाप मापा, उसकी नब्ज़ देखी, ई.सी.जी. मशीन पर उसके हृदय की गति लिपिबद्ध की उसकी आँखों, को उसके पेट को, उसकी पीठ को, उसकी जिह्वा को विभिन्न उपकरणों से जांचा, परन्तु उन्हें पत्नी के शरीर में किसी भी विकार के लक्षण दिखाई नहीं दिए|

‘आपकी पत्नी सौ फीसदी स्वस्थ तथा निरोग हैं’ डॉ. वशिष्ठ हँसे ‘मेरे विचार में इन्हें कोई बीमारी नहीं है|’

‘नहीं डॉक्टर साहब’ पत्नी का ज़र्द चेहरा सफेद पड़ गया, ‘मैं बहुत बीमार हूँ| आप का कोई यन्त्र अवश्य ही खराब होगा जो मेरी बीमारी आपकी पकड़ में नहीं आ रही| लेकिन मैं सच कहती हूँ, मैं बहुत बीमार हूँ.....|’

‘नहीं’ डॉ. वशिष्ठ फिर हँसे, ‘आप हैं तो बिल्कुल ठीक लेकिन आप के संतोष की खातिर मैं यहाँ कुछ जांचें लिख देता हूँ, अपना खून और पेशाब कल सुबह बिना कुछ खाए पिए यहीं इस नर्सिंग होम में पहुँचवा दीजिएगा| रिपोर्टें जब आप को मिल जाएँ तभी मेरे पास फिर आकर मुझे दिखाना.....|’

‘आप मुझे इस नर्सिंग होम में दाखिल कर लीजिए,’ पत्नी की आँखों में आँसू आ प्रकट हुए, ‘मैं सच कहती हूँ, मैं बहुत बीमार हूँ| यहीं से सुबह मैं अपना खून और पेशाब जांच के लिए दे दूँगी.....|’

‘किस वर्ग का मरीज़ बना कर हम आप का कमरा बुक करेंगे’ डॉ. वशिष्ठ अप्रतिम हो उठे, ‘आप अपने पति पर दया कीजिए और उन्हें यों मुश्किल में मत डालिए.....|’

‘चलो’ मैंने पत्नी से कहा ‘उधर माँ बेचारी अपनी सांस रोके हमारी राह देख रही है और फिर सुबह से मैंने कुछ नहीं खाया है|’

‘मैं वहां नहीं जाऊँगी’ पत्नी रोने लगी, ‘मुझे वहां कोई सुख नहीं| मेरा वहां मन ही नहीं लगता|’

“आप के बच्चे’ डॉ. वशिष्ठ मेरी ओर देखने लगे|

‘पांच बार मैं गर्भवती हुई’ पत्नी की रुलाई बढ़ ली ‘और पांचों बार मेरा पुलक मेरा शरीर तज कर मुझ से दूर चला गया.....|’

‘आपको अपना पुलक जरूर मिलेगा,’ डॉ. वशिष्ठ ने पत्नी का कंधा थपथपाया, ‘मैं अभी शहर की सब से बड़ी महिला डॉक्टर के नाम आपको पत्र लिख देता हूँ| वह आप का पुलक आप को जरूर दिल देंगी| उन्होंने कई निसन्तान व बांझ स्त्रियों को माँ बनाने में सफलता पाई हैं| वह आपको जरूर सही सलाह देंगी और आपका सही इलाज करेंगी.....|’

उनकी सलाह से कुछ न होगा जब तक मेरे पति अपना अधिकांश समय अपने स्टूडियो को देते रहेंगे|

‘कैसा स्टूडियो?’ डॉ. वशिष्ठ मेरी ओर मुड़े|

‘मैं एक फोटोग्राफर हूँ’ मैंने कहा| ‘फोटो निर्मित करने में उभारने में समय तो देना ही पड़ता है| फोटोग्राफी मेरा व्यवसाय ही नहीं शौक भी है| व्यापक प्रकृति के धुँधले और उजले रंग मुझे बचपन से ही अपने पास बुलाते रहे हैं| उन्मुक्त फूलों की, छायेदार वृक्षों की, विराट बादलों की निर्बाध हवाओं में विचर रहे पक्षियों की मधुर आकृतियों को मैं देर तक निहारता हूँ और फिर अपने कैमरे में उन्हें कैद कर उनकी प्रतिलिपियाँ तैयार करने में घंटों लगा रहता हूँ| पत्नी ने जब कि आते ही मेरा तथा मेरे कैमरे का मनोबल बार बार खंडित किया था| उसके स्वभाव की उग्रता मेरी हर सृजनात्मक क्रिया के धाराप्रवाह पर विराम लगाती प्रतीत होती है और आठ वर्ष के अन्दर स्थिति इतनी बिगड़ गयी है कि अब विवाहित जीवन के प्रति मेरे अन्दर एक अविलोपनीय उदासीनता आ बसी है पत्नी का संसर्ग मुझे केवल झुंझलाहट ही से भरता है तथा सन्तोष अथवा हर्ष कभी भी मेरे हाथ नहीं लगता|’

‘आप अपने पति से अन्याय कर रही हैं’ डॉ. वशिष्ठ ने पत्नी से कहा, ‘पुरुष अपने व्यवसाय के साथ प्रतिबद्धता रखते हैं| उस प्रतिबद्धता में आप भी सम्मिलित हो जाइए, उस में रूचि दिखाइए.....’

‘मनुष्य की पहली प्रतिबद्धता मानवीयता के साथ होनी चाहिए’ पत्नी बिफर ली, ‘मेरे पति मेरे प्रति अमानवीय, अरुचि तथा रूखापन दिखाते हैं और.....’

‘मुझे अभी बहुत से और मरीज भी देखने हैं’ डॉ. वशिष्ठ ने सिर हिलाया, ‘आपकी समस्या पैथोलॉजी से, रोग विज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं रखती| मुझे अफ़सोस है मैं और मेरी विशेषित उपाधि आपको कोई हल नहीं दे सकती| आप किसी मनोवैज्ञानिक मनोचिकित्सक के पास जाइए.....’

‘चलो’ मेरे माथे की त्यौरियाँ गहरा उठीं, ‘डॉ. साहब का समय बरबाद न करो.....’

‘नहीं, मुझे आपके साथ अब कहीं नहीं जाना,’ पत्नी कुर्सी पर जमी रही, वहां मुझे हर पल समवेत चीत्कार की ध्वनि आती है सामूहिक रुदन सुनाई देता है|’

आप इन्हें घर ले जाइए डॉ. वशिष्ठ ने कागज़ पर कुछ दवाओं के नाम लिखने शुरू कर दिए, ‘यह गोली इन्हें खिला कर सो जाने दीजिए.....’

‘चलो’ मैंने पत्नी की कुहनी दबाई| इस समय यदि मैं घर पर होता तो पत्नी की बोलती कब की बन्द हो गयी होती|

‘मैं घर नहीं जाना चाहती’ पत्नी दरवाज़ा खोल कर बाहर खड़ी स्त्रियों को सम्बोधित करने लगी, ‘मेरी सास का सरोकार ढोंग से भरा है और मेरी देवरानी अपने दोनों छोकरों को लेकर इतना इतराती है कि मुझ से अब वहां सांस नहीं ली जाती|’

‘बहन मैं भी अपने घर नहीं जाना चाहती’ तभी निरानन्दित चेहरे वाली एक स्त्री आगे बढ़ आयी ‘वहां एक राक्षस नित्य नए स्वांग रचाता है और मुझे सताता है|’

‘मुझे भी अपने घर नहीं लौटना है, बहन’ निःस्वप्न आँखों वाली एक युवती ने पत्नी का हाथ पकड़ लिया, ‘मेरी सौतेली माँ मुझे कोल्हू के बैल की तरह दिन भर हांकती रहती हैं|

‘मेरी बहू चुड़ैल है’ तभी एक और स्त्री उन्मुक्त होकर चीखने लगी, ‘बात बात पर हो हल्ला करती है और धींगा धोंगी करने कराने में बेजोड़ ताकत रखती है| मैं भी घर नहीं जाऊँगी|’

‘मेरी बहू भी अच्छी नहीं’ एक  और वृद्धा बुदबुदाई ‘मुझे भूखा रखती है मेरे बेटे को मेरे विरुद्ध भड़काती है, मेरे पोते पोतियों को मेरा अपमान करने के लिए उकसाती है| मुझे भी अपना घर तनिक नहीं भाता|’

तभी एक निनादिनी ने स्वयं को उस बढ़ रहे समूह के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत करना चाहा, ‘हम घर नहीं जायेंगी| हम चीखेंगी, हमारे घर में भूख है, अपमान है, अवमानना है, दुःख है, क्लेश है, अशांति है, रंजिश है, अत्याचार है, हिंसा है, घोर निराशा है और हमें अब वहां बंद नहीं रहना है.....|’

डॉ. वशिष्ठ के सभी कर्मचारी शोरगुल सुन कर इकट्ठे हो लिए| स्त्रियों के उस उग्र तथा क्रुद्ध समूह को देख कर सभी पुरुष भी एक दूसरे की ओर अप्रतिम व कौतुक भरी निगाहों से देखने लगे| मेरी तरह शायद उनके लिए भी यह खलबली अप्रत्याशित थी|