Corona - A Love Story - 10 - The Last Part in Hindi Love Stories by Neha Sharma books and stories PDF | कोरोना - एक प्रेम कहानी - 10 - अंतिम भाग

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कोरोना - एक प्रेम कहानी - 10 - अंतिम भाग

भाग-- 10

"शेखर बाबू अभी हॉस्पिटल से फोन आया था लिली की कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आई है। वह कुछ देर में घर आती ही होगी।" कंचन दरवाजे के पीछे से ही शेखर कुमार को बताती है।

"हाँ कंचन लिली का कमरा साफ कर देना। उसके जरूरत का सामान उसके आने से पहले ही कमरे में रख दो। मेरी तरह डॉक्टर ने उसे भी सात दिन के सेल्फ आइसोलेशन के लिए कहा होगा इसीलिए।"  - शेखर कुमार अंदर से ही बोलते है।

"जी शेखर बाबू वैसे तो मैंने उसके जरूरत का सामान रख दिया है, लेकिन एक बार फिर से चेक कर लेती हूँ ।"  - कहते हुए माँ कंचन लिली के कमरे की तरफ बढ़ती है।

कुछ ही देर में लिली मास्क पहने घर के अंदर प्रवेश करती है, तो सोफे पर बैठी दादी लिली को देखते ही सोफे से उठ खड़ी होती है। और कंचन को आवाज लगाती है-

"कंचन देख हमारे लिली आ गई।"

यह सुनते ही माँ कंचन झट से कमरे से बाहर आती है।

 

लिली माँ कंचन को देखते ही बोल पड़ती है- "मम्मा मुझे डॉक्टर ने सेल्फ आइसोलेशन के लिए कहा है। इसीलिए मैं अपने कमरे में जाती हूँ।और मम्मा मुझे बहुत भूख लगी है। आप मेरा खाना प्लीज कमरे में ही पहुंचा देना।"

"अच्छा बच्चे तू अपने कमरे में जा। मैं खाना लेकर आती हूँ।" - माँ कंचन लिली से कहती है।

लिली कमरे में जाती है, तो उसे सभी चीजें बिल्कुल व्यवस्थित दिखती है। वह मन ही मन सोचती है कि माँ कंचन को उसके कितनी फिक्र है, वह उससे कितना प्यार करती है। अपनी किस्मत पर लिली नाज करती है कि उसे इतना स्नेह करने वाला परिवार मिला है।

कोरोना से जंग जीतने के बाद सेल्फ आइसोलेशन का आखिरी दिन भी समाप्त होने को था। लिली और पिता शेखर कुमार बिल्कुल स्वस्थ हो चुके थे। और आज अपने कमरे से बाहर निकल कर दोनों परिवारवालों के साथ समय व्यतीत करने वाले थे। पिता शेखर कुमार कमरे से बाहर आते है और मंदिर में बैठी माँ के पैर छूकर आशीर्वाद लेते है, तो लिली भी पीछे- पीछे अपने कमरे से बाहर आती है और पिता शेखर कुमार के गले से लग जाती है। पिता अपनी बेटी लिली का सिर प्रेम से दुलारने लगते है। तभी दादी अपने पास रखी फूलों की माला उठाती है और शेखर कुमार और लिली की तरफ बढ़ाते हुए कहती है-  "यह लो बेटा तुम दोनों यह माला भगवान को चढ़ाओ। मैंने ईश्वर से तुम्हारे जल्दी स्वस्थ होने की मन्नत मांगी थी और उन्होंने मेरी मन्नत स्वीकार कर ली।"

तभी माँ कंचन भी किचन से बाहर आकर कहती है-  "शेखर बाबू, लिली, माजी चलिए खाना तैयार है। आजकाफी दिनों बाद सभी को एक साथ खाना खाने का मौका मिल रहा है। आप लोगों की तबीयत खराब होने के बाद से तो माजी और मेरे गले से एक निवाला भी नीचे नहीं उतरता था। चलिए अब।"

सभी डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ते हैं।

"अरे वाह, कंचन आज तो तुमने मेरी मनपसंद आलू गोभी की सब्जी बनाई है। आज तो खाना खाने में मजा ही आने वाला है।"  - शेखर कुमार खाने की महक लेते हुए बोल पड़ते है।

सभी अपना खाना फिनिश कर कर उठने ही वाले थे कि अचानक से दरवाजे की बेल बजती है। माँ कंचन उठने का प्रयास करती है, तो लिली माँ कंचन को बीच में ही रोक लेती है और कहती है- "मम्मा आप बैठिए दरवाजा मैं खोलती हूँ ।"

लिली दरवाजे की ओर बढ़ती है और दरवाजा खोलती है, तो सामने अनुराग और उसकी मम्मी- पापा थे। दरवाजे पर अनुराग की मम्मी पापा को देखकर लिली के मन में भय उत्पन्न होता है कि कहीं इन्हें देखकर पापा की तबीयत फिर से ना खराब हो जाए।वो तो इनको एकआंख नहीं पसंद करते है। सोचते हुए लिली अनुराग के माता- पिता के पैर छूती है।

 

तभी शेखर कुमार डाइनिंग टेबल पर से ही बोलते है- "बेटा लिली दरवाजे पर कौन है। अंदर लेकर आओ, वहाँ क्यों खड़ी हो।"

जब लिली कुछ जवाब नहीं देती है, तो शेखर कुमार स्वयं वहाँ जाते है। अनुराग और उसके माता-पिता को देखकर शेखर कुमार अपनी प्योरियाँ चढ़ा लेते है और अपना मुंह घुमाते हुए कहते है-

"बेटा लिली इनसे पूछो कि इन्हें क्या काम है। आज अचानक इतने सालों बाद यहाँ क्यों आए हैं।"

शेखर कुमार की आवाज सुनकर कंचन और दादी दरवाजे की तरफ बढ़ती हैं।

 

"बेटा शेखर क्या हुआ। इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो।"

- दादी शेखर कुमार से पूछती है।

" माँ एकबार आप वहां दरवाजे की तरफ तो देखिये आप को खुद ही पता चल जाएगा।"

"वैभव तुम यहाँ । बेटा शेखर तुम्ह इन्हें अंदर तो आने दो तभी तो पता चलेगा ये यहाँ क्यों आए हैं। वैभव बेटा तुम अंदर आओ। " - दादी उन लोगों की ओर देखते ही बोल पड़ती है।

 

"माँ इनसे पूछिये इन्हें क्या काम है। जल्दी बताएं।"  - शेखर कुमार आंखों को घुमाते हुए बोलते है।

"शेखर कुमार मैं यहाँ आना तो नहीं चाहता था, लेकिन मुझे इन बच्चों की खुशी के लिए यहाँ आना पड़ा।दरअसल शेखर कुमार लिली और अनुराग एक- दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। इसीलिए शेखर मैं यह सोचता हूँ कि हमारे आपसी मतभेद इन बच्चों के प्रेम के बीच में नहीं आने चाहिए। हमे इन बच्चों के बारे में कुछ सोचना चाहिए शेखर कुमार।" - वैभव अपनी बात शेखर कुमार के सामने रखते है।

 

"अच्छा तो वैभव कह दिया तुमने, तुम्हें जो कहना था।

अब मेरी सुनो, मुझे अच्छे से मालूम है कि मेरी बेटी के लिए क्या सही है और क्या गलत। तुम सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोचो।"  - शेखर कुमार अपनी आवाज ऊंची करते हुए बोलते है।

 

"शेखर तुम्हें नहीं पता कि तुम्हारी लिली के लिए क्या सही है, अगर तुम्हें यह मालूम ही होता, तो तुम सब कुछ जानते हुए इस तरह चोरी छुपे अचानक किसी अनजान शहर में आकर रहने नहीं लगते।"  - वैभव भी इस बार थोड़े गुस्से में बोलता है।

"ओह, तो अब तुम मुझे समझाओगे मेरी बेटी के लिए क्या सही है और क्या गलत। और रही मेरी यहाँ रहने की बात, तो मेरा ट्रांसफर हुआ है, इसीलिए मैं यहाँ हूँ । मुझे बस इसके आगे तुमसे कोई बात नहीं करनी है। माँ मैं जा रहा हूँ, अपने कमरे में।"  - कहते कि शेखर कुमार क्रोधित मुद्रा में अपने कमरे की ओर बढ़ते है।

 

"मैंने तो सोचा था शेखर कुमार बच्चों की खुशी के लिए तो मेरी बात समझेगा। लेकिन मुझे क्या पता था उसे तो अपनी बेटी की भावना की थोड़ी भी कद्र नहीं है।" -

वैभव दादी की ओर देखते हुए बोलता है।

"नहीं बेटा वैभव, ऐसा मत बोल। शेखर अपनी लिली से बहुत प्यार करता है। बस थोड़ा गुस्से में है। मैं उसे समझाती हूँ। तब तक तुम बैठो बेटा। कंचन तुम इनके लिए चाय बनाओ।"  - कहते हुए दादी शेखर के कमरे की तरफ जाती है।

अंदर कमरे में शेखर कुमार चिंतित से इधर-उधर घूम रहे थे। दादी कमरे में जाते हुए बोलती है -

" बेटा शेखर तू यह इधर-उधर क्यों चक्कर लगा रहा है। चल आ मेरे पास बैठ। मेरे बूढ़े घुटनों में इतनी जान नहीं जो तेरे पीछे- पीछे घूम सके बेटा। तू तो हमारे लिली से बहुत प्यार करता है ना। वह जो मांगती है तू उसे वो सब लाकर देता है, तो फिर बेटे इस बार तू उसके दिल की बात क्यों नहीं समझ पा रहा है। लिली अनुराग से बहुत प्रेम करती है और अनुराग भी उससे बहुत प्यार करता है। तुझे पता है अस्पताल में उसकी देखभाल भी अनुराग ने ही की है। बेटा इतना कठोर मत बन, वो बेटी है तेरी। उसकी खुशी में हम सब की खुशी है।"

तभी कोई दरवाजा नॉक करता है, तो दोनों दरवाजे की ओर देखते हैं, दरवाजे पर अनुराग खड़ा था।

"शेखर अंकल आपको बुरा नहीं लगे तो क्या मैं अंदर आ सकता हूँ।"  - अनुराग शेखर कुमार से पूछता है।

"हाँ बेटा अनुराग अंदर आओ, इसमें पूछने वाली क्या बात है।" - दादी अनुराग को अंदर बुलाती है।

"अंकल मुझे आपके पर्सनल मामले में बोलना तो नहीं चाहिए। लेकिन फिर भी मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। अंकल लिली आपसे बहुत प्यार करती है और आपकी बात रखने के लिए लिली ने बीते चार वर्षों में एक बार भी मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की। अंकल आपको क्या लगता है आपने अगर लिली को मुझे भूल जाने को कहा, तो क्या वह सच में मुझे भुला देगी। नहीं अंकल उसने हमेशा आपको यह दिखाने की कोशिश की कि वह सब कुछ भूल चुकी है, लेकिन यह सब तो वह आपके चेहरे पर खुशी देखने के लिए कर रही थी। ऐसा कोई दिन नहीं गया जब उसने मुझे याद

नहीं किया हो। अंकल प्लीज कुछ ऐसा फैसला मत लीजिएगा, जिसके कारण लिली को पछताना पड़े। अंकल लिली आपकी बेटी है मुझे पूरा यकीन है, आप उसके लिए कुछ बेहतर ही सोचेंगे।"

-अनुराग यह कहकर कमरे से बाहर चला जाता है।

"बेटा शेखर सब ने अपनी बात तेरे सामने रख दी। अब तुझे ही फैसला लेना है, सब तेरा नीचे इंतजार कर रहे होंगे। तू जल्दी आ जा।" - कहते हुए दादी नीचे की ओर जाती है।

कुछ देर में ही शेखर कुमार नीचे लिविंग रूम में आते है। और सभी की ओर देखते हुए बोलते है-

"वैभव तुम सही कह रहे थे । मुझे अपनी बेटी की भावनाओं की बिल्कुल कद्र नहीं है। मैं कितना स्वार्थी हूँ, जो हमेशा अपने बारे में ही सोचता रहा, मेरी बेटी की खुशियों की जरा भी परवाह नहीं कि मैनें। मुझे माफ कर दो बेटा लिली। मेरे कारण तुम्हें इतनी परेशानी हुई। वैभव हम अपने झगड़े को बुलाकर इन बच्चों को एक मौका दे सकते है। मैं अपनी बेटी का रिश्ता तुम्हारे बेटे के साथ करना चाहूंगा। अगर तुम्हें कोई एतराज ना हो तो वैभव।"

"शेखर तुम्हें वक्त रहते सब कुछ समझ आ गया, यह तो बहुत अच्छा है। मेरी खुशी तो इन बच्चों की खुशी में ही है, तो भला मुझे इस रिश्ते से कैसे एतराज हो सकता है।"  - वैभव शेखर के कन्धे पर हाथ रखते हुए कहता है।

"बहुत-बहुत बधाई हो संगीता बहन जी। बेटा अनुराग तुम्हें भी बहुत आशीर्वाद।" - कंचन संगीता के गले लगते हुए कहती है।

"अनुराग चलो बेटा सभी का आशीर्वाद लो" - संगीता अनुराग को कहती है।

अनुराग और लिली सभी के पैर छूते हैं, तो दादी हंसते हुए बोल पड़ती है-

"आज इस कोरोना ने दो परिवारों के बीच के बैर को मिटा दिया। अगर शेखर और लिली को कोरोना नहीं होता, तो ये कभी अस्पताल नहीं जाते और ना ही अनुराग लिली से मिल पाता। आज अनुराग और लीली साथ है, तो कोरोना के कारण ही। चलो अंत भला तोसब भला।"

"माँ ठीक कहा आपने। अरे भाई कंचन सबका मुंह मीठा करवाओ।" - शेखर कुमार हंसते हुए कहते है।

"लिली अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता।अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ। हमारे प्रेम की जीत हुई लिली।" - अनुराग लिली का हाथ थामते हुए बोल पड़ता है।

 

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नेहा शर्मा