Anmol Saugat - 10 - The Last Part in Hindi Moral Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | अनमोल सौगात - 10 - अंतिम भाग

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अनमोल सौगात - 10 - अंतिम भाग

भाग १०

वर्तमान ---

"टी टी टी टी टी टी" अलार्म के बजने से नीता विचारों की निद्रा से जाग गयी। वह रात भर नहीं सो पायी थी क्योंकि उस एक रात में वह अब तक की पिछली पूरी ज़िन्दगी यादों के माध्यम से जी गयी थी। उसने पानी पीते हुए पवित्रा और अनिमेष के बारे में सोचना शुरू किया। यद्यपि यह इतना आसान नहीं था फिर भी उसने निश्चय कर लिया कि वह सबको इस विवाह के लिए मना लेगी।

नाश्ता करके पवित्रा और पुलक दोनों अपने अपने काम पर निकल गए। मुकेश चाय पीते हुए अखबार पढ़ रहा था।

नीता ने पास बैठते हुए कहा, "मुकेश मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है।"

"तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है कि मैं अखबार पढ़ रहा हूँ। चैन से चाय तो पीने दो।" मुकेश ने हमेशा की तरह चिढ़ कर कहा।

"मुकेश यह बहुत जरूरी बात है। हमारी बेटी का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है।" नीता ने उसका ध्यान अपनी बात पर खींचने का प्रयास किया।

 

"अब क्या हुआ उसे? कहीं और जॉब करना है या आगे की पढ़ाई करनी है?" मुकेश ने तेज स्वर में पूछा।

 

"नहीं! मैं उसकी शादी के बारे में बात करना चाहती हूँ।" नीता ने कहा।

 

"शादी! हाँ ये सही है। अब हमें इस बारे में सोचना चाहिये।" अब मुकेश की आवाज़ में थोड़ी नरमी थी।

 

नीता ने साहस करते हुए बात आगे बढ़ाई, "मैं ऐसा लड़का चाहती हूँ जो हमारी बेटी को खुश रख सके।"

 

"हाँ ये सब तो ठीक है लेकिन परिवार भी अच्छा होना चाहिए। हम अपनी बिरादरी की मैट्रिमोनियल सर्विस में उसका बायो डाटा डाल देते हैं। और रिश्तेदारों के कानों में भी ये बात पहुँचा देते हैं। मुकेश ने कहा।

 

"नहीं नहीं! ये सब करने की जरूरत नहीं है।" नीता ने उसे बीच में रोकते हुए कहा।

 

"क्यों?" मुकेश को कुछ समझ नहीं आया।

 

"मुकेश! प्लीज मेरी बात सुनो। तुम पवित्रा के दोस्त अनिमेष को तो जानते हो। वे एक दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं।" नीता ने अनुनय भरे स्वर में कहा।

 

मुकेश ने फिर अपनी आवाज़ ऊँची की, "ओह! तो उसने अपने लिए लड़का भी पसंद कर लिया। मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि उसे इतनी छूट मत दो। अनिमेष और हमारे पारिवारिक स्तर में कोई समानता नहीं है। अब तो उसकी जॉब भी लग गयी है इसलिए अपनी मनमानी करने के लिए स्वतंत्र है।" मुकेश ने अखबार पटकते हुए कहा।

 

"नहीं मुकेश! ऐसी बात नहीं है। वह हमारी इजाजत और आशीर्वाद चाहती है। अनिमेष एक अच्छे परिवार का समझदार लड़का है। अब तो उसकी जॉब भी लग गयी है। हमें हमारी बेटी के भविष्य और खुशियों के बारे में सोचना चाहिए।" नीता ने उसे समझाने प्रयास किया।

 

मुकेश का गुस्सा कुछ कम हो रहा था किन्तु वह फिर भी सहमत नहीं था। "मुझे थोड़ा समय चाहिए सोचने के लिए।" यह कहकर वह दुकान के लिए रवाना हो गया।

 

वैसे भी नीता को मुकेश से ज्यादा उम्मीद नहीं थी। वह इसी उधेड़बुन में थी कि तभी उसका फोन बज उठा। रवि का नाम मोबाइल स्क्रीन पर फ़्लैश हुआ।

 

"हैलो रवि। कैसे हो?" नीता ने कहा।

 

"मैं ठीक हूँ। कहीं मैंने गलत समय पर तो फोन नहीं किया ना?" रवि ने पूछा।

 

"नहीं, बस अभी फ्री हुई हूँ।" नीता ने कहा।

 

बातचीत के दौरान रवि को आभास हुआ कि नीता कुछ परेशान है। "क्या बात है नीता? सब ठीक तो है ना?" रवि ने पूछा।

 

नीता ने पूरी बात बताकर अपना मन हल्का किया। "मैं नहीं चाहती रवि कि उसे ज़िन्दगी में हमेशा समझौते करना पड़े।"

 

नीता की भावनाओं को रवि समझ रहा था। "मुझे पूरा विश्वास है कि तुम इस मामले को सुलझा लोगी और दोनों की शादी बहुत धूमधाम से होगी। अगर मेरी मदद की जरूरत हो तो जरूर बताना।" रवि से आश्वासन पाकर नीता के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी।

 

शशिकांतजी आजकल बड़ी बेटी रीता के पास रह रहे थे। बीच बीच में दोनों अहमदाबाद भी आते रहते थे। फ़िलहाल वे अहमदाबाद में ही थे इसलिए नीता उनसे मिलने उनके घर पहुँची।

 

"प्रणाम पापा!" नीता ने पैर छूते हुए कहा।

 

"खुश रहो।" शशिकांतजी ने कहा।

 

दोनों बहने आपस में गले मिली। रीता सबके लिए चाय नाश्ता लेने किचन में गयी।

 

शशिकांतजी ने उसकी ओर ध्यान से देखते हुए पूछा, "कैसी हो नीता? सब ठीक है ना?"

 

"हाँ पापा, सब ठीक है। इन सबकी आदत हो गयी है मुझे अब। आप बिलकुल चिंता मत करिये।" नीता ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा।

 

"मैं आज आपसे पवित्रा की शादी के बारे में बात करने आयी हूँ।" नीता ने बात को दूसरा मोड़ देते हुए कहा।

 

रीता चाय की ट्रे रखते हुए मजाक भरे स्वर में बोली, "अरे वाह, मैं दादी बन गयी और अब तुम भी जल्दी से नानी बन जाओगी।

 

रीता ने बात जारी रखते हुए कहा, "मेरी नज़र में एक बहुत अच्छा लड़का है। घर परिवार के बारे में तुम जानती ही हो। हमारी बेटी एक तरह से हमारे ही घर में रहेगी।"

 

नीता को कुछ समझ नहीं आया कि रीता किसके बारे में बात कर रही है।

 

"अरे मैं अपने देवर के बेटे मोहित की बात कर रही हूँ। बहुत पढ़ा लिखा लड़का है। बड़ा व्यापार है।" रीता ने शशिकांतजी और नीता को मोहित के बारे में बताया।

 

"लेकिन दीदी। पवित्रा को एक लड़का पसंद है। उसका बहुत अच्छा दोस्त है - अनिमेष मित्तल। उसी के बारे में आप लोगों से बात करने आयी हूँ।" नीता ने शशिकांतजी की और देखते हुए कहा।

 

"मित्तल, मतलब दूसरी बिरादरी का है।" नीता की बात सुनकर रीता ने कहा।

 

"हाँ दीदी, पर इससे क्या फर्क पड़ता है। लड़का अच्छा है, परिवार अच्छा है, अपने पैरों पर खड़ा है। और सबसे जरूरी बात दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं और पसंद करते हैं।" नीता ने अपनी बात रखी।

 

"हाँ वो तो है नीता पर हम अपनी बिरादरी में भी कोई और अच्छा लड़का देख सकते हैं।" रीता ने वापस बिरादरी पर जोर देते हुए कहा।

 

"क्या बिरादरी बिरादरी दीदी। आप लोग समझते क्यों नहीं ये शादी है, ज़िन्दगी भर का साथ। कुछ तथाकथित सामाजिक नियमों के लिए हम इसका असली अर्थ भूलते जा रहे हैं। शादी दो लोगों के बारे में है, जो प्यार और सम्मान के साथ एक दूसरे का साथ जीवन के हर पढ़ाव में दे। फिर इन सबमें जात बिरादरी कहाँ से आ गयी। जो चीज़ सबसे ज्यादा मायने रखती है वो है दोनों की खुशी। अगर दोनों एक दूसरे के साथ खुश नहीं रह सकते तो अपने आस पास के लोगों को, अपने परिवार और समाज को कैसे खुशी दे पाएंगे। बस पूरा जीवन समझौते करके और एक दूसरे पर उँगलियाँ उठाते हुए निकाल देंगे जैसे कि मैं -----" इतने सालों से नीता के मन में छुपा हुआ दर्द आज ज्वालामुखी बनकर फट पड़ा।

 

शशिकांतजी और रीता दोनों उसे एक टक देखे जा रहे थे। दोनों जानते तो थे कि वो किन मुश्किलों से अपना जीवन गुजार रही थी। पर आज तक उसने कभी भी खुलकर कुछ नहीं कहा था। लेकिन आज बात उसकी बेटी के भविष्य की थी और वो उसके साथ कुछ गलत नहीं होने दे सकती थी।

 

"नीता तुम सही कह रही हो। जाति बिरादरी एक हो या अलग इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हम कई बार पुरानी मान्यताओं के कारण अपने बच्चे की खुशियों को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। इसके चलते उन्हें बहुत से समझौते करने पड़ते हैं। माता पिता को अपने बच्चों की पसंद, शादी के बारे में उनके विचार, उनके मन में अपने जीवन साथी की क्या छवि है इन सब बातों को समझना चाहिए। एक दूसरे को जानने समझने का मौका और समय देना चाहिए। पवित्रा, अनिमेष को एक दो महीनों से नहीं अपितु कई सालों से जानती है। दोनों अच्छे दोस्त हैं, एक दूसरे को समझते हैं। अपने परिवार की सहमति और आशीर्वाद के साथ इस रिश्ते में आगे बढ़ना चाहते हैं। हमें उनके निर्णय में उनका साथ देना चाहिए।” शशिकांतजी ने कहा।

 

रीता और नीता उन्हें अवाक् देखती रह गयी। नीता की आँखों से खुशी के आंसू बहने लगे। शशिकांतजी ने उसके आँसू पोंछते हुए उसे गले लगा लिया।

 

नीता ने घर लौटकर देखा मुकेश और पवित्रा ड्राइंग रूम में बैठे थे।

 

नीता इसी उधेड़बन में थी कि पता नहीं मुकेश ने क्या फैसला लिया होगा तभी मुकेश ने कहा, "नीता मैं अनिमेष के परिवार से मिलने के लिए तैयार हूँ। पर एक बात का ध्यान रखना कि इसे मेरी सहमति मत समझना। उनसे मिलकर ही मैं अपना आखिरी निर्णय दूँगा।"

 

कम से कम मुकेश मिलने को तैयार हो गया यही सोचकर नीता और पवित्रा एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगी।

 

दोनों परिवार एक दूसरे से मिले। अनिमेष ने सबके दिल में अपनी जगह बना ली और उसके परिवार को भी पवित्रा बहुत पसंद आयी। सगाई और शादी की तिथि भी तय हो गयी। नीता ने मौका मिलते ही सबसे पहले रवि को यह शुभ समाचार सुनाया।

 

"बहुत बहुत बधाई हो नीता। मैं सच में पवित्रा के लिए बहुत खुश हूँ।" रवि ने प्रसन्न होकर कहा।

 

"शादी अक्षयतृतीया की तय की है। औपचारिक निमंत्रण के पहले ही मेरा पहला निमंत्रण तुम्हें है रवि।" नीता ने खुश होते हुए कहा।

 

कुछ क्षण चुप रहने के बाद रवि ने कहा, "नीता! मैं शादी में नहीं आऊंगा। मैं सच में आना चाहता हूँ और पवित्रा और अनिमेष को आशीर्वाद देना चाहता हूँ पर मैं अब तुम्हारी ज़िन्दगी में किसी तरह की हलचल नहीं चाहता। मैं भले ही वहाँ मौजूद नहीं होऊंगा लेकिन एक दूसरे की उपस्थिति हम महसूस कर सकते हैं। और हाँ, मेरी तरफ से शीघ्र ही पवित्रा के लिए एक सौगात भेजूँगा, उसे स्वीकार करना।" उत्साहित होते हुए रवि ने कहा।

 

उसकी बातें सुनकर नीता के मन में उसके प्रति सम्मान और भी बढ़ गया।

 

कुछ दिनों बाद कोरियर से नीता के पते पर एक बंडल आया। नीता ने जब उसे खोलकर देखा तो रवि की उपस्थिति को सच में महसूस किया और ईश्वर को ऐसा मित्र देने के लिए धन्यवाद दिया। उसकी तरफ से आयी हुई अनमोल सौगात थी - उसके प्रेस में छपे हुए बहुत सुन्दर आसमानी रंग के कार्ड जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था  - "पवित्रा संग अनिमेष”