Village in Mobile - 11 - Enjoyed picnic in Hindi Children Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | मोबाइल में गाँव - 11 - पिकनिक में आया मजा

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मोबाइल में गाँव - 11 - पिकनिक में आया मजा



पिकनिक में आया मजा-11

दूसरे दिन सब पिकनिक के लिये तैयार हो गये । चलते हुये दादाजी ने कहा, ‘ बच्चों अपने एक-एक जोड़ी कपड़े बैग में रख लो जहाँ हम पिकनिक पर जा रहे हैं वहाँ वोटिंग और स्विमिंग भी कर सकते हैं ।’

स्विमिंग की बात सुनकर सुनयना बहुत खुश हुई । वह अच्छी स्विमिंग कर लेती थी । तभी उसे याद आया कि वह तो अपनी स्विमिंग ड्रेस लेकर ही नहीं आई है । उसने निराश स्वर में कहा,‘ दादाजी मैं अपनी स्विमिंग ड्रेस लेकर नहीं आई हूँ ।’

‘ कोई बात नहीं बेटा, हमारे स्विमिंग पूल में तुम कोई भी कपड़ा पहनकर स्विमिंग कर सकती हो ।’

‘ ओ.के. दादाजी ।’

वह अपने कमरे में गई तो देखा ममा-पापा तैयार हो रहे हैं । उसने अपनी ड्रेस ममा के बैग में डाल दी । लगभग आधे घंटे के पश्चात् दादाजी की बड़ी गाड़ी में हमारे बैठते ही, ननकू ने दो बडी टोकरी तथा एक चटाई तथा कुर्सियां गाड़ी में रख दी । हम चल पड़े । लगभग डेढ़ घंटे के पश्चात् हमारी गाड़ी एक जगह रूकी । हम सब उतरे । पापा, चाचा ने एक अच्छी सी जगह देखकर चटाई बिछा ली तथा दादीजी और दादाजी के बैठने के लिये कुर्सियाँ लगा दीं । दादीजी ने सबको बैठने का आदेश दिया । वहीं ममा और चाची टोकरी खोलकर प्लेटों में नाश्ता डालने लगीं । रोहन ने अपना क्रिकेट बैट निकाल लिया तथा उससे खेलने के लिये आग्रह करने लगा ।

‘ रोहन पहले नाश्ता, उसके बाद खेलना ।’ चाची ने कहा ।

इसके साथ ही चाची ने सुनयना और रोहन को नाश्ते की प्लेट पकड़ा दी ।

‘ यह जगह तो काफी अच्छी हो गई है, पहले तो यहाँ कुछ नहीं था ।’ पापा ने कहा ।

‘ हाँ भइया, यह सब सरकार तथा यहाँ के नागरिकों के सहयोग तथा समर्पण के कारण संभव हुआ है । इस नदी में अब गंदे नालों का पानी डालना बंद कर दिया है । मूर्ति विसर्जन भी अब नदी में नहीं उस कुण्ड में होता है । ’ चाचाजी ने एक स्थान की ओर इशारा करते हुये कहा ।

‘ यह तो बहुत अच्छी बात है, लोग अब स्वच्छता की ओर ध्यान देने लगे हैं । ’

पापा चाचा की बात सुनकर नाश्ता करते हुये उसने चारों ओर देखा तो पाया कि एक ओर नदी बह रही है... कुछ नावें नदी में चल रही हैं तथा कुछ किनारे पर खड़ी हैं । उनकी तरह कुछ लोग और भी थे ।

‘ दादी यह कौन सी नदी है ?’

‘ बेटा यह गंगा नदी है ।’

रोहन ने जल्दी-जल्दी नाश्ता कर पुनः अपना क्रिकेट बैट निकाल लिया तथा उससे खेलने के लिये आग्रह करने लगा ।

‘ बच्चो पहले वोटिंग कर लो, उसके बाद खेलना ।’

‘ ठीक है दादाजी ।’ रोहन और सुनयना ने एक साथ कहा ।

‘ दादी, आप भी चलो । ’ दादी को अपनी कुर्सी से उठते न देखकर सुनयना और रोहन ने आग्रह किया ।

‘ नहीं बेटा...तुम लोग जाओ । मैं यहीं ठीक हूँ ।’ दादी ने स्वेटर बुनते हुये कहा ।

‘ चलो बच्चो, तुम्हारी दादी नहीं जायेंगी, उन्हें वोटिंग से डर लगता है ।’ दादाजी ने उनसे कहा ।

‘ डर...।’ सुनयना ने कहा ।

‘ बेटा, तुम्हारे दादाजी ऐसे ही कह रह रहे हैं । मेरा मन नहीं है । तुम लोग जाओ...पर सेफ्टी जैकेट पहनकर जाना ।’ दादी ने स्वेटर बुनना बंद कर सेफ्टी जैकेट वाला बैग आगे करते हुये कहा ।

‘ ओह ! हम तो भूल ही गये थे । आपने याद दिलाया...थैंक यू माँ ।’ चाचाजी ने कहा ।

सबने एक-एक जैकेट निकालकर पहन ली तथा नदी की तरफ चल दिये । नदी के किनारे पहुँचकर सुनयना ने देखा कि नदी के पानी में बहुत सारे पौधे लगे हुये हैं । तभी थोड़ी दूर पर नदी के अंदर पत्थर के नीचे से एक पतला साँप निकलता हुआ दिखाई दिया । सुनयना जोर से अपनी माँ के पीछे छिपते हुये चिल्लाई, ‘ ममा, साँप ।’

‘ बेटा, डरो मत, यह नोन पोयजनस ( बिना जहर वाला ) पानी वाला साँप है ।’ चाचाजी ने कहा ।

‘ ओ.के. चाचाजी । दादाजी भी यही कह रहे थे कि पानी में रहने वाले साँप जहरीले नहीं होते ।’ कहती हुई सुनयना अपनी ममा को छोड़कर खड़ी हो गई । उसकी देखा देखी रोहन भी अपनी ममा के पल्लू को छोड़कर उसके साथ आकर खड़ा हो गया ।

‘ और ये देखो एक्वेटिक प्लांट...तुमने पढ़ा है न ।’ ममा ने कहा ।
‘ हाँ ममा ।’ उसने नदी के पानी में तैरते पौधों को देखते हुए कहा ।

‘ आइये मालिक नाव तैयार है ।’ मल्लाह ने आवाज लगाई ।

जैसे ही वे नाव में बैठे । मल्लाह ने खूँटे से बंधे रस्से को खोला तथा नाव को नदी में धक्का देखकर आगे बढ़ाया फिर स्वयं सीट पर बैठकर नाव चलाने लगा । अब नाव नदी के बीच में आ गई थी । नदी काफी गहरी थी । दादाजी ने बताया कि जो आदमी नाव चलाता है उसे मल्लाह कहते हैं तथा जिसकी सहायता से नाव आगे बढ़ती है उसे पतवार कहते हैं । मल्लाह को दोनों हाथों से पतवार की सहायता से नाव चलाते देखकर सुनयना ने पूछा…

‘ क्या मैं नाव चला सकती हूँ ?’

‘ आ जाब बिटिया, चला लेव ।’ मल्लाह ने कहा ।

मल्लाह ने थोड़ा खिसक कर उसे बैठा लिया तथा एक पतवार उसके हाथ में पकड़ा दी तथा दूसरी स्वयं चलाने लगा । उसे देखकर रोहन भी आ गया । दोनों बारी-बारी से पतवार चलाने लगे । लगभग आधे घंटे की वोटिंग के बाद वे लौटे तो बहुत खुश थे । उन दोनों ने अपनी-अपनी सेफ्टी बेल्ट उतार कर बैग में रख दी । रोहन ने क्रिकेट बैट और बॉल उठाकर कहा…

‘ दीदी अब क्रिकेट खेलें ।’

‘ ठीक है चलो...।’

‘ ठीक से खेलना, कहीं बॉल नदी में न चली जाये ।’ चाचा ने उसे समझाते हुये कहा ।

‘ ठीक है ।’

सुनयना और रोहन खेलने लगे । पापा और चाचा घूमने लगे । दादाजी अखबार पढ़ रहे थे जबकि दादीजी स्वेटर बुन रहीं थीं ।

थोड़ी देर पश्चात् दादाजी ने कहा,‘ बच्चों स्विमिंग करना है तो कर लो फिर लौटना भी है ।’

‘ ओ.के. दादाजी...पर स्विमिंग पूल कहाँ है ।’

‘ बेटा यह नदी ही हमारा स्विमिंग पूल है ।’

‘ नदी, स्विमिंग पूल...।’

‘ हाँ बेटा...अभय और अजय जाओ, बच्चों को स्विमिंग करा लाओ ।’

‘ चलो बच्चों...। ’

‘ नहीं, मैं नदी में स्विमिंग नहीं करूँगी , यह तो बहुत गहरी है । कहीं डूब गई तो...।’ सुनयना ने डर कर कहा ।

‘ यहाँ नहीं दीदी, नहाने का स्थान अलग है...वहाँ पानी कम है । चलो दीदी, खूब मजा आयेगा ।’ रोहन ने कहा।

‘ माँ आप नहाओगी नहीं...।’ चलते समय चाचाजी ने दादी से पूछा ।

‘ नहीं बेटा...।’

‘ पर क्यों ? आप तो जब आती हो तब स्नान करती हो ।’

‘ बेटा आज मन नहीं है । तुम लोग जाओ । मैं और तुम्हारे पिताजी यहीं हैं ।’ दादीजी ने स्वेटर बुनते हुये कहा ।

रोहन के कहने पर सुनयना चल दी । नदी के किनारे एक जगह पक्का स्थान था । वहाँ से नदी में जाने के लिये सीढ़ियाँ थीं । सुनयना ने देखा कि यहाँ कई लोग नहा रहे हैं तथा कुछ लोग तैर भी रहे हैं । उन सबको देखकर वे दोनों भी अपने-अपने पापा के साथ नदी में उतर गये जबकि ममा और चाची नदी के किनारे बने चबूतरे पर बनी बेंच पर बैठकर बातें करते हुए उन्हें नहाते देखने लगीं । पानी में उतरते ही सुनयना को इतना मजा आया कि अब वह निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी । सुनयना के साथ रोहन ने भी तैरने की कोशिश की ।

अचानक शोर सुनकर सुनयना और रोहन ने उस ओर देखा जिधर से आवाजें आ रहीं थीं । उन्होंने देखा कि सामने चल रही नाव उलट गई है जिससे उसमें सवार लोग पानी में गिर गये हैं । दो लोग जिन्हें तैरना आता था वे तो किनारे की तरफ बढ़ रहे हैं वहीं अन्य लोग बचाओ...बचाओ कहते हुये चिल्ला रहे हैं । पापा और चाचा ने उनकी आवाज सुनकर, ममा और चाची को आवाज लगाकर उन्हें संभालने के लिये कहा तथा वे डूबते लोगों को बचाने के लिये पानी में कूद पड़े । पापा और चाचा को देखकर कुछ अन्य लोग भी जिन्हें तैरना आता था, नदी में कूद पड़े । यह देखकर सुनयना और रोहन रोने लगे । ममा और चाची उन दोनों को समझाते हुये, मंदिर के पिछवाड़े ले गईं तथा उनके कपड़े बदलवाने लगीं ।

कपड़े बदलकर जब वे बाहर आये तो देखा नाव पर सवार सभी लोगों को बाहर निकाल लिया गया है । बाहर निकाले छह लोग तो ठीक हैं किन्तु दो लोगों कि हालत खराब है, वे बेहोश हो गए हैं । एक को पापा तथा दूसरे को चाचा जमीन पर पेट के बल लिटाकर उसकी पीठ को दबाकर पानी निकाल रहे हैं । थोड़ी देर पश्चात उन्हें सीधा लिटाकर वे बेहोश व्यक्ति के मुँह पर अपना मुँह रखकर फूँकने लगे तथा बीच-बीच में उसके सीने को हाथ से दबा भी रहे हैं ।

‘ ममा, यह क्या कर रहे हैं ?’ सुनयना ने पापा और चाचा को ऐसा करते देखकर पूछा ।

‘ लगता है पानी में डूबने के कारण उस व्यक्ति के पेट और फेफड़ों में पानी भर गया है । पानी को उसके सीने को दबाकर निकालने के पश्चात् अब उसे कृत्रिम श्वास दे रहे हैं जिससे उसकी श्वास ठीक तरह से चल सके तथा उन व्यक्तियों के सीने को दबाकर उनके दिल की गति को सामान्य करने का प्रयास कर रहे हैं । ’ ममा ने उत्तर दिया ।

थोड़ी ही देर में उन दोनों व्यक्तियों को होश आ गया । उन्हें होश में आया देखकर सभी बेहद प्रसन्न हुए । इसके पश्चात हम सब भी उस स्थान पर लौट आये जहाँ दादा-दादी बैठे थे ।

‘ कैसा लगा हमारा स्विमिंग पूल...।’ उनके लौटते ही दादाजी ने सुनयना से पूछा ।

‘ दादाजी आज पापाजी और चाचाजी ने दो लोगों की जान बचाई ।’ सुनयना ने दादाजी की बात का कोई उत्तर न देते हुए कहा । उसके मनमस्तिष्क में अभी भी वह दृश्य तैर रहा था ।
‘ जान बचाई...क्या कह रही है सुनयना ? ’ दादाजी ने पापा और चाचाजी की ओर देखकर पूछा ।

चाचाजी ने सारी घटना दादा जी को बताई तो वह बोले, ‘ ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है सब बच गये ।’

सुधा आदेश

क्रमशः