pawan karan ka kavita sangrah-is tarah mai in Hindi Book Reviews by राज बोहरे books and stories PDF | पवनकरण का ‘काव्य संग्रह‘ इस तरह मैं

Featured Books
Categories
Share

पवनकरण का ‘काव्य संग्रह‘ इस तरह मैं

पवनकरण का ‘काव्य संग्रह‘ इस तरह मैं

पुस्तक समीक्षा-

सहज और उम्दा कविताऐंः इस तरह मैं

राजनारायण बोहरे

पुस्तक-इस तरह मैं ‘काव्य संग्रह‘

कवि-पवनकरण

प्रकाशक-मेघा बुक्स दिल्ली

साहित्य दरअसल दुनिया को अपने तरीके से जानते, पहचानने और परिभाषित करने का सबसे उत्कृष्ट रूप है। इस रूपंकर के सृजेता का मन और उसमें बसी छवियां ही कविता या किसी अन्य विधा के रूप में साकार होती हैं, इस तरह इस रूप में रचना नहीं रचनाकार खास होता है। वर्तमान युग में जब तमाम विधाओं का एक-सा स्वरूप मौजूद है और रचनाकार की पहचान मुश्किल हो रही हो, तो ऐसे में अमूर्त बिम्बों और बोझल लफ्फाजी से लदी कविता परम्परा से दूर रहकर अपनी विशिष्ट कविता से पाठकों का ध्यान आकृष्ट करने वाले कुछ कवियों के नाम मन को सुकुन देते है। ऐसे कवियों में बद्रीनारायण, अष्टभुजा शुक्ल कुमार अम्बुज, लीलाधर मंडलोई है। तो पवनकरण, हरिओम राजौरिया और अनिल करमेले जैसे युवा कवियों से खूब आशायें है। ये कवि खूब होमवर्क के साथ कविता की दुनिया में आयें है।

पवनकरण का पहला कविता संग्रह ‘इस तरह मैं’ पिछले दिनों मेधा बुक्स दिल्ली से छपकर आया है, जिसमें उनकी बावन कवितायें संग्रहित है। संख्या में कम होने के बावजूद बामन-अवतार की तरह विराट दृष्टि अपने में समेटे यह कवितायें कवि की सहज अभिव्यक्ति को प्रगट करती है। पवन की कवितायें बड़ी सहज और सरल हैं, जो हर पाठक की समझ में आती हैं, और उसे खूब आश्वस्त करती है।

यद्यपि पवन का अपना रचना संसार हैं और अपनी अलग दृष्टि हैं, अपना अलग आत्मविश्वास है। प्राचीन कवि का कथन ‘लोक छोड़ तीनहिं चले सायर, सिंह सपूत‘ की बात को सिद्व करते ‘पिता का मकान‘ कविता में वे लिखते हैं-

पिता का मकान मुझे/ अपने मकान की तरह नहीं लगता,

जो अपनी जिंदगी में/अपने हाथों एक बार,

अपना घांेसला जरूर बनाता है/ मैं उस पक्षी की तरह हूूूं।

हमारे आसपास मौजूद छोटी-छोटी सी चीजों में हमारे विश्वास और आस्था को पवन पुनर्स्थापित करते हैं ‘ताला‘ से जुड़ें उनके भाव देखिये-

विश्वास से भी पक्की/ जो भरोसेमंद चीजें

हमारे पास मौजूद हैं/ ये उनमें से एक हैं

ये राजदार हमारा/अनुपस्थिति में हमारी

कभी झुकता नहीं/ टूट भले जाए।

या फिर ‘बैल गाड़ी‘ से जुड़ी उनकी कविता लें-

किसान की कमर में बंधी/ रूपयों से भारी

धोती की गांठ और/बैलों के गले में बजतीं

घंटियां ही नहीं लौटी/ करके मण्ड़ी।

बैलगाड़ी भी बदली-सी जान पड़ती।

आवाज भी लौटी है/शहर से बेचकर धान।

अपने युग की चिन्ताओं वास्तविकताओं से कवि विमुख नहीं हैं, वह कम शब्दों में अपनी बात नये तरीके से कहते है। ‘राम‘ शीर्षक चार कविताओं में दूसरी कविता देखिये-

मगर वह जो सवार था/ उस रथ पर वह तो

सारे रास्ते कहता रहा सबसे

ये रथ रामरथ हैं

इस रथ में जो पेट्रोल भरा है।

उसके दाम राम ने चुकाये हैं।

इसी क्रम में चौथी कविता की अंतिम पंक्ति देखें।

राम

इन नारेबाजों में

तुम कैसे आ फंसें

‘ड़ालर‘ के प्रति कवि की एक कविता की पहली पंक्ति दुनिया के हर हिस्से बो नोच रही हैं, इसकी गिद्व दृष्टि कितनी मार्मिक है। ‘कलारी‘ अर्थात् ‘मधुशाला‘ पवन की कविता में किसी दार्शनिकता के साथ नहीं आती बल्कि जीवन की विड़म्बना और एक सामान्य सी दुकान के रूप में कलारी पवनकरण के मन में बाल्य स्मृति के रूप में बैठी मिलती है। इस श्रृंखला में पहली कविता देखिये-

खेल का मैदान नहीं था मोहल्ले में

शराब से लबालब कलारी जरूर थी

बच्चों के खेलने लायक

मैदान बराबर जगह में बनी।

इसी तरह तीसरी कविता में देखें-

मोहल्ले के बच्चों को वर्णमाला की तरह

रह गये शराबियों के चेहरे

कलारी में झगड़तें शराबियों से

बच्चों ने कई तरह की गांिलयां सीखी।

बाल्य स्मृति की चर्चा चलते पनवकरण की कविता ‘संदेश‘ याद आती हैं-

धरती के कानों में/ बीज फुसफुसाए/ पानी

पेड़ों के कान में/ धरती बोली/ पानी

पक्षियों के कान में पेड़ों ने कहा/ पानी

आसमान के कानों में/ पक्षी चिल्लाए/पानी

संदेश कानोंकान पहुंचा

पानी दौड़ा-दौड़ा आया।

भले ही यह बरसात तुलसी के ‘मांगे वारिद देहि जल‘ सी हो पर पवन के यहां पानी का यह संदेश सिर्फ पानी का बनकर नहीं रह जाता। बल्कि बीज और धरती के प्रतीक से बाहर आकर व्यापक रूप में प्रकट होता।

छोटे-छोटे मुद्दों और जरा-जरा सी घटनाओं मेंं श्रम की महत्ता देखते पवन की कविता ‘अमरूद‘, ‘मधु पंक्खियां‘ बाघ आदि प्रमुख है। पवन की अन्य उल्लेखनीय कविताओं में ‘हुसैन के घोडे‘ बिजली के खंभे‘ त्यौहार मनाने घर जाता आदमी ‘भरोसा‘, ‘देहरी‘, ‘पिता‘, ‘संग्रहालय‘ शामिल हैं, जिनमें पवन अपनी इयत्ता के साथ प्रगट होते है। इस संग्रह में यू ंतो कुछ गैर जरूरी व अर्थहीन कविताऐं भी शामिल हैं, जैसे ‘बीजने‘, ‘नजरबट्टू‘, ‘उन्नीस सौ चौसठ‘, ‘जुआरी‘, ‘काठप्रेम‘, ‘चाकू‘ आदि पर इस युवा कविता को समग्र रूप से देखने की दृष्टि से इन्हें शामिल करना ठीक ही रहा।

फुटकर रूप से छपने के दिनों में पवनकरण की स्त्री केन्द्रित कविताऐं ज्यादा देखने में आती थी, पर इस संग्रह में स्त्री केन्द्रित कवितायें बेहद कम है।

पवन की इन कविताओं पर समकालीन कविता के वे आरोप नहीं लगाये जा सकते जो प्रायः नये कविताओं पर चस्पा होते हैं, जैसे उबाउपन, विचारधारा का आतंक, गूढ़ व कठिन कथ्य आदि, आदि।

भाषा की ताजगी, विषयों का चयन, सीधी सच्चीबात के लिये पवन की ये कवितायें काव्य जगत में खूब पढ़ी जायेगी और सराही जायेंगी, पर मात्र इस संग्रह से उन्हें श्रंेष्ठ और सर्वोत्तम कहा जाना सम्भव नहीं है। नये कवि का कच्चा पन उनमें अभी मौजूद हैं, जिन्हें शायद समय ही परिपक्व करेगा।