MIKHAIL: A SUSPENSE - 20 in Hindi Fiction Stories by Hussain Chauhan books and stories PDF | मिखाइल: एक रहस्य - भाग २० - अतीत के कुछ पन्ने

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मिखाइल: एक रहस्य - भाग २० - अतीत के कुछ पन्ने

आई. जी. प्रभु ने अपने करियर की शुरुआत गुजरात राज्य पुलिस सर्विसेज से साल १९७९ में अहमदाबाद से की थी। करियर की शुरुआत से अंत तक उनके खाते में १२ एनकाउंटर भी जुड़ चुके थे। कहनेवालों की यदि सुनी जाए तो उनमें से ज़्यादातर एनकाउंटर फ़र्ज़ी थे। लेकिन जब तक सबूत नही तब तक कोई गुन्हेगार नही। प्रभु अपने सख्त रवैये के चलते हमेशा से ही सुर्खियों में बने रहते थे। लेकिन साल १९९९ में बनी सुर्खी ने आई.जी.प्रभु की जिंदगी को बिखेर कर रख दिया। साल १९९९ में हुए अमोल तुपिया एनकाउंटर केस में प्रभु को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। उन दिनों सुर्खियों में इस एनकाउंटर को पहले से ही फ़र्ज़ी बताया जा रहा था और सरकार पर बने दबाव के कारण उस एनकाउंटर की जांच पड़ताल करने के हेतु एक समिति का गठन किया गया जिसने ५ साल की एक लम्बी अवधि के बाद उस एनकाउंटर को फ़र्ज़ी करार दिया और साबित हो गया कि गुजरात के कुख्यात ड्रग डीलर अमोल राजपति को बचाने के लिए उससे एक मोटी रकम लेकर प्रभु ने एक मध्यम वर्गीय परिवार के आदमी जिसका नाम अमोल तुपिया था उसका एनकाउंटर कर दिया।

फिलहाल प्रभु की घूसखोरी की जमा की गई पूंजी और राजनेताओं के अवैध कार्यो को पूरा करने पर मिल रही अच्छी खासी रकम के चलते उसका गुज़ारा हो रहा था। लेकिन जो भी कहो अब तक तो आई.जी.प्रभु की आराम से कट रही थी।

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आज़ादी के १३ साल बाद दुनिया के नक्शे में ब्रिटिश इंडिया की छबि मिटाकर भारत खुद की एक अलग से पहचान बना रहा था और इस मे बॉलीवुड का एक अपूर्व कहा जानेवाला साथ-सहकार मिला था।

बम्बई का बाबू, आरती, गुमनाम वक़्त, संगम, खानदान, अनुपमा, राम और श्याम, आराधना, दो रास्ते जैसी और भी सारी फिल्मो ने भारत की प्रतिभा का डंका बजा दिया था और इसी के साथ बॉलीवुड के सुनहरे युग का आरम्भ हो चुका था। इसी आरम्भ के साथ अपनी ज़िंदगी को बेहतरीन बनाने का सपना लिए हुवे मुरली भी मुम्बई आ पहुंचा था। कुछ साल के संघर्ष के बाद "दी बॉम्बे कॉटन वर्क्स" नामक एक कपड़े की फैक्ट्री में अच्छी सी पगार के साथ उसने नौकरी हांसिल कर ली। जब राज कपूर की मेरा नाम जोकर रिलीज़ हुई तब तक तो मुरली ने अपनी कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के चलते सुपरवाइजर की जॉब हांसिल कर ली थी। लेकिन, उसे नही पता था कि जिस नौकरी को वो बेहद ही ईमानदारी से कर रहा था वही नौकरी उसे एक दिन कही का भी नही छोड़ेगी। यहां तक कि उसे देश छोड़ पलायन करना पड़ेगा।

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जो काम को करने के लिए वो चोटिला आया था वो काम उसने बड़ी ही आसानी से पूरा कर लिया था और उसकी एक वजह यह भी थी कि उस छोटे से गांव में देर रात को किसीका मिलना मुमकिन नही था और यही बात का फायदा उसने बखूबी उठाया था। लेकिन अब भी एक काम था जो शेष था और वो यह कि किसी भी तरह उसे रात को ही चोटिला से निकल जाना था। देर रात होने के कारण हाईवे पर कोई सवारी मिलना ज़रा कठिन था लेकिन १ - १:३० घंटे तक इंतेज़ार करने के बाद उसे एक ट्रक मिला जिसने उसको सुबह होने से पहले अहमदाबाद पहुंचा दिया जहां से वो अपनी आगे की मंज़िल का रास्ता तय करनेवाला था।

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