Write letters to you ... in Hindi Love Stories by निशा शर्मा books and stories PDF | लिखे जो खत तुझे...

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लिखे जो खत तुझे...

वाओ समर !! तुम्हारी मम्मा तो कितना अच्छा और कितने तरह का खाना बना लेती हैं! काश कि आज मेरी मम्मा भी होतीं तो शायद वो भी मेरे लिए ऐंसा ही खाना बनातीं मगर मेरी मम्मा को तो मैंने बचपन में ही खो दिया था,कहते कहते एकता की आंखें नम हो गयीं।

एकता क्या मेरी मम्मा तुम्हारी मम्मा नहीं हैं,कहते हुए समर ने एकता को अपनी बाहों में भर लिया और बड़े ही प्यार से उसनें एकता को ब्रेकफास्ट टेबल से टिकी कुर्सी सरकाकर उसपर बिठाया। दोनों लोग अब मिसेज़ राजपूत यानी कि समर की माँ के हाथ का बना हुआ ब्रेकफास्ट इंज्वॉय कर रहे थे और डाइनिंग टेबल के ठीक सामने खुली हुई खिड़की से एकता बड़े ही ध्यान से मिसेज़ राजपूत को देख रही थी, जो अपने आँगन में खड़े हुए गुड़हल के पेड़ को बड़े ही प्यार से देखकर मुस्कुरा रहीं थीं और ऐंसा लग रहा था मानो उसपर लदे गुड़हल के फूलों से कुछ बात भी कर रही हों।

एकता समर से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही समर बोल पड़ा। मैं जानता हूँ कि तुम क्या सोच रही हो! तुम्हें याद है कि तुमनें मुझसे एक बार पूछा था कि मेरे घर की तीन मंजिल बन जाने पर भी मैंने ये गुड़हल का पेड़ क्यों नहीं कटवाया? आज मैं तुम्हारे उस सवाल का जवाब देना चाहता हूँ बाकी मैं ये भी चाहता हूँ कि मुझे पूरी तरह से अपनाने से पहले तुम मेरे साथ साथ मेरे परिवार को भी पूरी तरह से जान लो।

देखो एकता अगले महीने हमारी शादी है और माँ इस वक्त यही बात मेरे पापा से शेयर कर रही हैं।

पापा! समर लेकिन तुम्हारे पापा तो!

हाँ मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं बल्कि मैंने तो जबसे होश सम्भाला है तबसे ही वो मेरी जिंदगी में नही हैं लेकिन मेरी माँ की यादों में और उनके जेहन में मैंने उन्हें हमेशा जिंदा देखा है। तुम ये जो सामने मेरे आँगन में खड़ा गुड़हल का पेड़ देख रही हो न, ये सिर्फ एक पेड़ नहीं है बल्कि मेरी माँ के जीने का सहारा है। तुम हमेशा पूछती हो न कि मेरी माँ हमेशा इतनी पॉजिटिव और एनर्जेटिक कैसे रहती हैं तो उसका कारण भी है,

ये पेड़ और उसपर फूल बनकर लटकते हुए ये मेरे पापा के जवाब!!

जवाब ! कैसे जवाब?

हाँ एकता, जवाब ! मेरी माँ बीते कई सालों से सिलसिलेवार मेरे पापा को खत लिख रही हैं, जब भी उन्हें पापा से अपनी कोई भी खुशी या गम,अपनी कोई भी बात शेयर करनी होती है तो बस वो कागज कलम उठाती हैं और उसमें अपना सारा हाल लिखकर खत पर पापा का नाम लिखकर इसी गुड़हल के पेड़ के नीचे मिट्टी में दबा देती हैं और फिर एक नये फूल के खिलने का इंतज़ार जो होता है मेरी माँ के मेरे पापा को लिखे हुए खत का जवाब ! एकता मेरे पापा आर्मी में थे और मेरी माँ उन्हें जान से भी ज्यादा चाहती थीं, दरअसल मेरे माँ पापा की लव मैरिज थी बिल्कुल हमारी ही तरह और मेरी माँ मेरे दादा जी के स्वर्गवास के बाद मेरी दादी के पास ही रुक गयीं और पापा ड्यूटी पर चले गए। माँ की बातें अब पापा से खतों के जरिये ही होने लगीं। वो सिलसिला कुछ ऐंसा चला कि पापा के जाने के बाद भी माँ ने उसे ही अपने जीने का सहारा बना लिया।

ये गुड़हल का पेड़ पापा ने ही माँ के लिए उपहार स्वरूप अपनी शादी की सालगिरह पर लगाया था। दादी कहती थीं कि माँ और पापा दोनों को ही गुड़हल के फूल बहुत पसंद थे।

अब तुम इसे हमारी फैमिली का फितूर कहो या, कहते कहते समर की आवाज़ कांपने लगी।

समर अब तुम्हारी फैमिली मेरी भी फैमिली है और ये फितूर नहीं तुम्हारी माँ का तुम्हारे पापा के प्रति सच्चा प्रेम और श्रद्धा है,कहते कहते एकता समर के सीने से लग गयी और बाहर आँगन से आती हुई मिसेज़ राजपूत के फोन की रिंगटोन की आवाज़,लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हज़ारों रंग के नजारे बन गए! माहौल में एक अलग ही महक थी न जाने गुड़हल के फूलों की या मिसेज़ राजपूत के लिखे हुए खतों में महकते उनके सच्चे प्रेम और तपस्या की!!

निशा शर्मा...