अध्याय तीन
अगले छ: दिन सुख – शांति से बीत गये । सातवें दिन सुबह सुबह पूरा घर धोया - पोंछा गया । चादरें बदलकर नयी चादरें बिछा दी गयी । पुरानी धुलने के लिए डाल दी गयी । मुझे पहले तेल से नहलाया गया फिर दही और पानी से । नये कोरे कपङे में लपेट कर धूप में लिटा दिया गया । तब तक मुझे भूख लग आई थी । मैंने पुकारा – माँ । शायद यहाँ किसी को मेरी भाषा समझ नहीं आई । कहीं से कोई उत्तर नहीं मिला । मैंने ध्यान खींचने के लिए हाथ पैर पटके । मुट्ठी हवा में लहराई । एक दो बार मुस्कुराने की कोशिश भी की पर कोई इधर फटका ही नहीं । आखिर बेहाल होकर मैं रोने लगी ।
“ अरे अरे अरे , यह हमारी गुङिया रानी रो क्यूं रही है ? , वो भी अकेले अकेले “ ! किसी के कठोर हाथों ने मुझे गोद में उठा लिया ।
ये कौन है जिसने मुझे गोद में उठ रखा है , मैंने रोते रोते आँख खोलकर देखा । मैं एक लंबे ऊँचे सुदर्शन युवक के हाथों में थी जो झुककर मुझे प्यार से देख रहा था । उसके साथ उसी के जैसे तीन और लंबे चौङे युवक खङे थे जो प्यार और कौतुहल से मेरे ऊपर झुके हुए थे । इन्हें तो मैंने कभी नहीं देखा । डरकर मैंने आँखें बंद कर ली और पूरा जोर लगाकर रो पङी ।
अब मेरे रोने की आवाज मेरी माँ के कानों तक पहुँची । वह लगभग दौङती हुई आई । पर यह क्या ? मुझे गोद में लेने की जगह वह इन अजनबियों के गले लग रही है । सब खुश हो रहे हैं । एक दूसरे को बधाइयां दे रहे हैं ।
“ ले पकङ इसे , कैसे रो रो के लाल पीली हुई पङी है “ ।
अब माँ को मेरा ख्याल आया – “ रानी देख तेरे मामे आए हैं । ये तेरा बङा मामा धरम , ये तेरा मोहन मामा , किशन मामा और ये तेरा सबसे छोटावाला हरिमामा । मिली सबसे ? “ – माँ अपनी ही रौ में कहे जा रही है ।
मेरा पहले ही भूख के मारे बुरा हाल हो रहा है । ऊपर से न माँ ने उठाया , न पिताजी ने । दादी भी घंटेभर से पता नहीं कहाँ है । ऊपर से नाम रानी ... हूँ । गुस्से से मेरी नाक लाल हो आई । मैंने रोने के सुर और ऊँचे कर लिए ।
मोहन नामका मामा कह रहा है – “ बहना , इसे यूं अकेले छोङके न जाया करो । बच्चा अकेले में डर जाता है “ ।
माँ अपनी सफाई दे रही है – “ मैं कहाँ छोङती हूँ । दो मिनट पहले ही तो नहाने गयी थी । आज तेरह दिन हो गये हैं तो सूतक निकालना हैं । पूजा और हवन होगा । पंडित आते ही होंगे “ ।
“ आगये भाई बच्चों , जी आइयां नूं । ठीकठाक पहोँच गये न । कोई तकलीफ तो नहीं हुई । बैठो , मैं तुम लोगों के लिए दूध डाल के लाती हूँ “ । – ये दादी है जो कपङे सूखने डालके आई है । अब इन सबके लिए चारपाइयाँ टेढी कर रही है ।
“ पैरी पैना मासी । बहुत बहुत बधाइयां । हमारी चिंता मत कर । हम भी नहा धो ले । पूजा के बाद तेरे हाथ का परौंठा और हलवा रज्ज के खाएंगे । मामे आगे होके चारपाई बिछा रहे हैं ।
“ जिन्ना मरजी खा लेना बेटे । और घर में सब सुख शांति है “ ? - दादी चौके में चली गयी है । मां ने अपने भाइयों को तौलिया और साबुन , तेल थमाकर नहाने की जगह दिखा दी और मुझे लेकर कमरे में आ गयी है ।
मेरा रोना बदस्तूर जारी है । माँ मुझे कंधे से लगाकर हल्के हाथ से थपकी देती है । आँचल में छिपाकर दूध पिलाने की कोशिश कर रही है । मेरा गुस्सा घटने की जगह बढता जा रहा है । मेरी बात कोई सुनता ही नहीं । मुझे भूख लगी थी , मेरी किसी को परवाह ही नहीं । मैं रोये जा रही हूँ ।
अचानक मेरी निगाह माँ के चेहरे पर पङी । माँ घबराई हुई है । उसकी आँखों में परेशानी और चिंता है । उसे परेशान देख मैं अपना गुस्सा भूल गयी हूँ । तबतक दादी मिरचें और नमक की डली ले आई । मेरे पूरे शरीर के ऊपर से घुमाकर कुछ अस्पष्ट सा बुदबुदा रही है । मैं हैरान होकर यह कौतुक देख रही हूँ । दादी अपना टोटका करके चली गयी । छोटा मामा कहलाने वाले युवक ने अपनी जेब से काले मोतियों वाली काली डोरी निकाली और मेरी कलाइयों में बाँध दी । मैं मुस्का दी । सब खुश हो गये हैं ।
“ देखो देखो हंसी “ ।
मैं शांत होकर दूध पीने लगी हूँ । मुझे दूध पीते देख सब बाहर चले गये । दादी सबसे कह रही है – “ देखा कितनी बुरी नजर लगी थी । मिरचे वारी तब जाके नजर उतरी और रानी ने दूध पिया। कई बार अपनों की ही नजर लग जाती है “ ।
मैं अनसुना करके दूध पीने में जुटी हूँ । माँ मेरे बालों में उँगलियाँ घुमाते हुए कोई भजन गुनगुना रही है । मैं तृप्त होकर सोने लग पङी ।
माँ के आँचल की गरमाहट में मैं न जाने कबतक आराम सो सोई रहती कि अचानक किसी की अँगुलियों ने मेरा माथा छुआ । मैंने घबराकर आँखें खोली । ये पंडितजी थे जो मेरे माथे पर रोली से बिंदी लगा रहे थे ।
“ आप रहने दीजीए पंडितजी , मैं लगा देती हूँ । नींद खुल जाएगी तो रोने लगेगी । सुबह सुबह दो घंटे रोई है “ । माँ ने रोली लेकर मेरे माथे पर तिलक लगा दी है ।
पंडित जी एक प्यारी सी सफेद रंग की फ्राक पर गणेश बना रहे हैं । अब वह फ्राक सबके हाथों से छुआई गयी । अखिर में फ्राक माँ के पास आई । हिचकते डरते माँ ने फ्राक मुझे पहना दी है – “ ले पहन । यह प्राक तेरी नानी ने अपने हाथ से सिली है । इसमें सबकी असीसें मिली हैं ।
अब ये नानी कौन है – मैं माँ की ओर उत्सुकता से देखती हूँ । माँ ने अपने काजल से मुझे काला टिक्का लगा दिया । मैं पूछना चाहती हूँ – माँ बताओ न , ये नानी कौन है पर कैसे पूछूं , यहाँ तो किसी को मेरी बात समझ ही नहीं आती ।
माँ और पिताजी हवन कर रहे हैं । पंडितजी मंत्रोच्चारण कर रहे हैं । साथ साथ मेरे सभी मामा भी मंत्र बोल रहे हैं । सामग्री की महक सारे घर में भर रही है । मैं चारों ओर नजर घुमा रही हूँ । सब हाथ जोङके बैठे हैं । कुछ खुश होके , कुछ मजबूरी में । बीच बीच में आँखें बंद कर लेते हैं । थोङी देर बाद खोलकर आसपास देख लेते हैं फिर आँखें बंद कर लेते हैं । मैं भी कभी आँखें खोल लेती हूँ , कभी बंद कर लेती हूँ । हवन खत्म हुआ । आरती हुई । सबने प्रसाद पाया । सब मेरे लिए कपङे और खिलौने लाए हैं । कुछने माँ को शगुण के रुपए दिए हैं । मुकुंद चाचा ने मेरे हाथों में चाँदी के कंगण पहनाए हैं और धरम मामा ने पाँवों में पायल ।
मां ने रसोई में जाकर सबके लिए खाना परोसा । इसे रसोई चढाने की रसम कहते हैं । खाना खाकर अङोस – पङोस के लोग विदा हुए । फिर घर के सब लोगों ने खाना खाया और आखिर में माँ ने । खाना खाकर सब लोग बातों में मस्त हो गये । मुझे छोटे मामा खिलाने लगे । मुझे यह छोटे मामा बहुत पसंद आए । मैं इनके साथ खेलने लगी ।
शेष अगली कङी में ...