Love heart in Hindi Classic Stories by SWARNIM स्वर्णिम books and stories PDF | चाहत दिलकी

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चाहत दिलकी

मैं एक बंद कमरे में हूं। सामने से बालेसी पर पानी गिरने की आवाज मेरे कानों तक आ रही है और मुझे बता रही है कि बाहर बारिश हो रही है। कमरे में अंधेरा है, बिजली लंबे समय से चली गई है, आने के लिए कोई खबर नहीं है। इस अंधेरे शून्यता के बीच, बालेसी पर लगातार पानी की आवाज़ आने से मेरे आंतरिक मन पर यादों की बारिश कर रही है। जैसे-जैसे समय बीतता है, भले ही आप के उन क्षणों को महसूस करते हैं, आप महसूस करेंगे कि स्मृति का रंग गहरा और गहरा हो जाता है।

जिस तरह सभी पल यादगार नहीं बनते, वैसे ही कुछ यादें ऐसी यादें बन जाती हैं, जिन्हें यादों से ज्यादा याद रखने की जरूरत होती है, जो अब भी अौर साफ होती जा रही हैं क्योंकि हम उन्हें भूलने की कोशिश करते रहे हैं। पहली पिरिएड के बाद, दूसरी और तीसरी पिरिएड लेजर थी। शाम के पाँच बज चुके थे। अक्सर कॉलेज में पूरी अवधि का अध्ययन करने का अवसर दुर्लभ था। उसके ऊपर, शाम को कॉलेज को पूरा करना संभव नहीं था, और जैसा कि प्रकाश मेँ अंधेरे का प्रभुत्व हुई तो, छात्र का ध्यान अक्सर अध्ययन के बजाय घड़ी पर केंद्रित होता था।क्यों नहीं होगा, काठमांडू का जाम पीने के बाद समय पर घर लौटना लगभग असंभव था।

कॉलेज के गेट से निकलते ही मेरे मोबाइल फोन में अचानक भाइब्रेसन हुआ। मैंने अपनी जेब से निकाला और देखा कि संदेश आ गया था। "क्लास कब खत्म होगी? मैं ऑफिस से लौटने वाला हूँ।" मैंने सीधे संदेश का जवाब दिए बिना फोन किया।पहली घंटी पर ही कल रिसिभ हुआ जैसे कि वह 100% सुनिश्चित था कि मेरी कॉल आएगी और पहले से ही कल रिसिभ करने के लिए इंतजार कर रहा था। कल रिसिभ करनेका वाद तुरुन्त उसने प्रस्ताव किया, "चलो आज मिलते हैं।" जवाब मे मैं सीधे कॉलेज से तुमारा कार्यालय में आ रही हूँ बोलकर मैंने कल डिस्कनेक्ट किया।

कॉलेज से उसके कार्यालय की दूरी लगभग 1 किमी था। पंद्रह मिनट तक चलने के बाद, हमारे बीच की दूरी मीटरों मे सीमित हो गई ।वह अपने कार्यालय की पार्किंग के सामने अपनी बाइक पर मेरा इंतजार कर रहा था। जब मैं उसके सामने पहुँची, तो उसने मुझे बाइक के पीछे बैठने के लिए इशारा किया। लेकिन मैंने उसके इशारे को अनसुना कर दिया और पूछा, "हम कहाँ जा रहे है?" "जब हम पहुँच जाएँ तो तुमको पता चलेगा " उसने कहा। अगर मैँ ऐसी जगह जाउँ जिसे मैं नहीं जानती, तो मैं केवल पैदल ही जाउंगी"। उसने हार मान ली, जैसा कि मैं उसके चेहरेके अभिव्यक्ति पढ़ी तो वह मेरी शर्तों से सहमत लग रहा था।ऐसा नहीं है कि वह मेरी अनचाही आदत से वाकिफ नहीं था, इसीलिए वह मेरी शर्त मञ्जुरी करने के लिए मजबूर था। उसने अपनी बाइक पार्किंग में खड़ी की और मेरे शर्त के अनुसार मेरे साथ चलने को तैयार हो गया। हालाँकि वहाँ जाने के लिए मुझे कोई आईडिया नहीं थी, फिर भी उसके साथ चलने के लिए ये दिल भरोसेमंद था। ।