Karmaa - 8 - last part in Hindi Adventure Stories by Sushma Tiwari books and stories PDF | कर्मा - 8 - (फाइनल) - जो दिया है वही वापस आएगा

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कर्मा - 8 - (फाइनल) - जो दिया है वही वापस आएगा

जो दिया है वो वापस आएगा...
(अंतिम भाग)


सिद्धार्थ का फोन फिर बजता है... वह देखता है मां का फोन है.. शायद मां को मामा ने सब कुछ बता दिया है... मैं मां से क्या बात करूं? उन्हें क्या जवाब दूं? सिद्धार्थ फोन कट कर देता है।

थोड़ी देर में फिर से उसी अननोन नंबर से कॉल आता है
" दस मिनट में बिग बॉस बादशाह से मिलने के कॉलेज पहुंच जाएंगे.. सुन हम तेरी इतनी मदद कर सकते हैं कि हमने उनको तेरे घर का एड्रेस नहीं दिया और ना ही तेरे बारे में कुछ पता है तू खुद उनसे मिल और पैसे की बात कर ले.. यह बिग बॉस के मूड पर डिपेंड करता है वह तेरी जान लेंगे या जान छोड़ देंगे.. "

सिद्धार्थ तय कर लेता है अब इस कीचड़ में वह और नहीं उतर सकता है। शायद बिग बॉस उससे मिलकर उसकी जान बख्श भी दे तो उसके बदले इस काली दुनिया में हमेशा के लिए उतरने का मजबूर भी कर देगा। जो वह कभी नहीं करेगा। अपने जीते जी तो नहीं होने देगा। मां के सपनों को यू चकनाचूर करने से अच्छा है कि वह अपनी जान दे दे। सिद्धार्थ आंखों में आंसू चेहरे पर ग्लानि के भाव लिए हुए कॉलेज के गलियारों से होते हुए दूसरे मंजिल की छत तक पहुंच जाता है।
छत के किनारे खड़ा होकर वाह एक ही बार में अपनी पूरी जिंदगी की कहानी याद करता है। मां से माफी मांगता है। उसे दूर दिखाई देता है कि चार काली गाड़ियों में कुछ लोग कॉलेज के गेट में दाखिल हो रहे हैं। तो आ गए। सिद्धार्थ आंखें बंद करता है.. अपनी मां का चेहरा याद करता है और छत से कूद जाता है..

धड़ामsss

बेजान सा सिद्धार्थ का शरीर और खून की एक धार बह निकलती है। सारे स्टूडेंट चिल्लाने लगते हैं और एंबुलेंस को फोन किया जाता है। तभी बिग बॉस की गाड़ियों से कुछ लोग उतर के आते हैं और एक आदमी जिसे भीड़ रास्ता देती है ताकि वह सिद्धार्थ तक पहुंच सके। ये क्या जैसे ही बिग बॉस सिद्धार्थ को देखता है वह चीखते हुए उसके शरीर को उठाने लगता है

" सिद्धू.. सिद्धू.. उठ जा मेरे बच्चे क्या हुआ तुझे? क्या हो गया... अरे कोई एंबुलेंस तो बुलाओ... मेरा बच्चा..."
और गोद में सिद्धार्थ का बेजान शरीर उठाकर रोने लगता है। एंबुलेंस आती है और सिद्धार्थ को लेकर हॉस्पिटल की ओर निकल पड़ती है। हां जसपाल ही बिग बॉस था। आज उसके सामने अपने कर्मों का किया धरा खड़ा था। जिस फूल को उसने अपने हाथों से रोपा था आज उसे पता चला वह उसमें जहर की सिंचाई कर रहा था। उसका अपना ही खून अपना ही बेटा उसका शिकार बन चुका था। जाने कितने परिवारों को इसी तरह बर्बाद करते हुए उसके चेहरे पर कभी शिकन नहीं आई। जसपाल से बिगबॉस बन तो गया पर सिद्धू का बाप और पूनम का पति तो शायद 15 साल पहले ही मर चुके थे। अस्पताल की मशीन पर जिंदगी और मौत का बीच में झूलते हुए सिद्धार्थ का शरीर ऑपरेशन थिएटर में जा चुका था। पूनम बदहवास से गिरती हुई वहां पहुंची।

" मुझे महेंद्र भाई साहब ने फोन किया था इसे दस लाख चाहिए थे.. यह किन धंधों में पड़ गया था... यह किस मुसीबत में पड़ गया था... कहीं यह भी बेटिंग तो नहीं?"

जसपाल फफक के रोने लगा

" मुझे माफ कर दे पुन्नी... मैं तेरा गुनहगार हूं... आज मैंने अपने ही हाथों अपना घर उजाड़ दिया... मुझे माफ कर दे "

पूनम लगातार थप्पड़ की बरसात करते हुए जसपाल को ढकेलती हुई दीवार तक ले जाती है।

" देख खुश हो जा... मेरी परवरिश और संस्कारों पर तेरा गंदा खून भारी पड़ा.. आज तेरा बेटा भी वही कर रहा है.. जो कभी तू करता था.. "

" नहीं पूनम मेरा बेटा ऐसा नहीं है.. यह तो मेरे कर्मों का फल है जो मेरा बेटा भुगत रहा है.. पर आज मैं हिसाब किताब बराबर कर दूंगा.. आज एक खेल खत्म होगा "

" अब कौन सा खेल खत्म करेगा तू? जसपाल तूने तो मेरी दुनिया ही खत्म कर दी.. तू तो मेरी जिंदगी से कब के जा चुका था.. आज मेरा बेटा भी चला गया.. इससे अच्छा होता कि तू मेरा गला घोट के मुझे मार देता.. "

" सिद्धार्थ को कुछ नहीं होगा.. मैं तुझसे वादा करता हूं ..मैं दुनिया की सारी दौलत लगा दूँगा पर इसे कुछ नहीं होने दूंगा "

" दौलत.. कौन सी दौलत कमाई है तुमने? वह दौलत जिसके चक्कर में तू परिवार से दूर हो गया "
जसपाल निगाहें नीचे करके बाहर चला जाता है।
थोड़ी देर में डॉक्टर ऑपरेशन शुरू कर देते हैं। जसपाल रिसेप्शन पर पैसे भर देता है और डॉक्टर से कहता है कि आप चाहिए तो विदेशों से डाक्टर मँगवा लो पर लड़के को कुछ नहीं होना चाहिए। मैं करोड़ों रुपए भी देने को तैयार हूं। ब्लैंक चेक साइन करके जसपाल वहां से चला जाता है। जसपाल वहां से सीधा पुलिस स्टेशन जाता है और सरेंडर कर देता है। वह पुलिस ऑफिसर को अपनी पूरी जिंदगी के कारनामे बयां करता है। साथ ही साथ बुकीज के अपने पूरे नेटवर्क की पोल खोल देता है। तुरंत ही पूरे शहर में हड़कंप मच जाता है। चारों ओर छापे पड़ने लगते हैं और एक-एक करके सारे बुकीज.. उनके लोग सब कुछ पकड़ा जाने लगता है। जो भाग गया वह भाग गया.. जो पकड़ा गया वह मीडिया के सामने था। अस्पताल में लगे बड़े से टीवी चैनल पर पूनम देखती है कि जसपाल के हाथों में हथकड़ी है और मीडिया वाले उससे सवाल कर रहे हैं
" तो आप हैं बिग बॉस "
बड़े बड़े अक्षरों में फ़्लैश हो रहा था। वर्षों से बेटिंग का खेल चलाने वाला शातिर बिग बॉस उर्फ जसपाल पकड़ा गया है। शहर में सट्टेबाजी का जहर अब कम हो जाएगा।
पूनम आईसीयू के कांच से लाइफ सपोर्ट पर लगे सिद्धार्थ को देखती है। हां ऑपरेशन सक्सेसफुल था और डॉक्टर ने कहा था कि सिद्धार्थ की जान बच जाएगी। आज पूनम को अफसोस हो रहा था। शायद गलती उसकी भी थी काश कि उसने तभी जिद करके जसपाल को रोक लिया होता तो आज इन दोनों की यह हालत नहीं होती।
यह तो कर्मा है एक न एक दिन लौट कर सामने आना ही है।

कुछ महीनों बाद

सिद्धार्थ पहले से ठीक था। धीरे धीरे चलते हुए घर के बरामदे में आकर बैठा था। उसने देखा दरवाजे पर आरती चंदन और प्रिया खड़े थे। मां ने उन्हें अंदर बुलाया। आरती ने मां के पैर छुए और सिद्धार्थ के पास जाकर बैठ के

" तुमने मेरे लिए इतनी बड़ी मुसीबत मोल ली.. सिद्धार्थ एक बार मुझसे बताते तो सही.. शायद इतना सब कुछ नहीं होता "

तब तक पीछे से पूनम बोलती है

" जो होता है अच्छे के लिए होता है आरती.. देखो ना मुझे इतनी प्यारी सी बेटी मिल गई और शहर को सट्टेबाजी के जहर से मुक्ति मिल गई.. हां इस चक्कर में मेरा बेटा बहुत कुछ झेल गया पर जिंदगी में हर एक बुरी से बुरी घटना हमें एक अच्छा सा सबक सिखा कर ही जाती है.. आओ मैं तुम्हें किचन दिखाती हूं.. "
चंदन और प्रिया सामने बैठकर बातें करने लगते हैं।
तब तक सिद्धार्थ के फोन पर एक मैसेज फ़्लैश होता है। उसमें लिखा होता है
'विदेश से भाई तुमसे कांटेक्ट करना चाहते हैं.. बिग बॉस तो चला गया पर वह चाहते हैं उसकी जगह बादशाह दिल्ली संभाले.. वह तुम्हारे खेल से काफी प्रभावित है और उन्हें यकीन है कि तुम सत्ता के अगले दावेदार हो "

सिद्धार्थ की आंखें बड़ी हो जाती है। वह कुछ सोचने लगता है। तभी मां की पीछे से आवाज आती है

" क्या हुआ बेटा? "

" कुछ नहीं.. मैं भी पकौड़े खाऊंगा "

सिद्धार्थ कुछ टाइप करता है और टेबल पर मोबाइल रख देता है। सामने टीवी पर मैच चलता है.. वह उसे बंद करके किचन में मां के पास चला जाता है।


समाप्त

©सुषमा तिवारी