360 degree love - 41 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 41

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360 डिग्री वाला प्रेम - 41

४१.

कुछ उदासी… थोड़ी ख़ुशी

और यूँ ही यह दिन भी बीत गया. अनुभव सिंह सहारनपुर के लिए वापिस लौट चले, बिना किसी नतीजे के. संबंधों की कटुता राजेश सिंह के परिवार की ओर से थोड़ा अधिक थी पर कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या रुख अपनाया जाए. दोनों ओर कुछ अलिखित सीमाओं का निर्धारण हो चुका था. उन सीमाओं को राजेश लांघना नहीं चाहते थे, और अनुभव सिंह की लांघने की हिम्मत नहीं थी… कहीं कोई गलत सन्देश न चला जाए शायद, मात्र इसलिए.

दिन बीतते रहे, पर सम्बन्धों की उष्णता का ह्रास होता गया. आरिणी को गये हुए धीरे-धीरे दो महीने बीत गये. एक महीने बाद वह लौटने वाली थी. उसने अपनी ट्रेनिंग में “उत्कृष्ट” योग्यता पाई थी, यह वह बताती थी. बावजूद इसके कि पारिवारिक परिस्थितियाँ उसके लिए नासूर की तरह बन गई थीं, वह आगे बढती जा रही थी. इस से अनुभव और माधुरी अतीव प्रसन्नता को महसूस करते… पर कहीं कसक रहती अवश्य कि काश बेटी घर पर भी उतनी ही सुखमय रहती जितना कि वह अपने कार्यस्थल पर है, लेकिन हर किसी को हर ख़ुशी मिले, यह भी तो जरूरी नहीं !

राजेश जी या उर्मिला जी की कोई कॉल नहीं आनी थी, सो नहीं आई. रहा सहा समय भी पूरा हो गया. आज आरिणी की वापसी की फ्लाइट थी. अनुभव और माधुरी बेटी से मिलने दिल्ली के इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-३ पर भोर की इस बेला में पुष्प गुच्छ लिए खड़े थे.

“मां…!”,

 

कहकर अरु माधुरी से चिपट गई. पिता ने भी स्नेह से आशीर्वाद दिया. बहुत प्रसन्न थी वह. तीनों ग्रेटर नॉएडा की जगह सहारनपुर के लिए रवाना हुए. उसने तीन दिन की मोहलत पहले ही मांग ली थी. वह यह तीन दिन मां-पिता के साथ बिताना चाहती थी.

 

“आप लोगों को गर्व होगा कि आपकी बेटी ने ट्रेनिंग में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है. स्वयं कंपनी के चेयरमैन की ओर से ट्राफी दी गई है मुझे !”,

 

आरिणी ने प्रसन्न होते हुए कहा.

 

“हमें तो पूरा यकीन था…”,

 

अनुभव सिंह बोले.

 

“बेटी किसकी है भला…”,

 

यह माधुरी थी.

 

और आरिणी खिलखिलाकर हंस पडी.

 

रास्ते भर जब तक नींद नहीं आई आरिणी कंपनी और जापान की बातें बताती रही. आखिरी दो दिनों में उनको साईट सीइंग के लिए भी ले जाया गया था. वह दिन भी उसके यादगार रहे. इम्पीरियल पैलेस, सेंसोजी टेम्पल, नेशनल म्यूजियम ऑफ़ नेचर एंड साइंस, टोक्यो के हृदयस्थल में स्थित उएनो पार्क… जो शहर के फेफड़े की भूमिका निभाता है, का आँखों देखा हाल भी सुनाया आरिणी ने !

 

और होंडा प्लांट तो आरिणी के शब्दों में…

 

“बस मानिए कि यांत्रिकी की स्वर्णिम इकाई हो जैसे. काफी काम तो रोबोट से ही संचालित होता है. फिर उनकी आर एंड डी यूनिट भविष्य की गाड़ियों पर जो काम कर रही है, वह भी बेहतरीन है.”

 

थोड़ी देर में ही थकी-मांदी अरु मां की नर्म गोद में गहरी नींद में सो गई. नींद उसकी तब खुली जब वह सहारनपुर में अपने मकान के अहाते में प्रविष्ट हो गये. रास्ते में मेरठ के पास माधुरी का चाय पीने का मन हुआ, पर अरु तब भी नींद में ही सुकूं पा रही थी.

 

देर शाम को आरिणी सो कर उठी तो फ्रेश महसूस कर पाई. फिर से बातों का सिलसिला आरम्भ हुआ. छह महीने घर से दूर रहना क्या कम है. कहना था आरिणी का,

 

“सजा थी यह… कई बार लगा, पर दूसरे ही पल सज़ा भी खूबसूरत महसूस होती थी और लगता था ऐसी सजा बार-बार मिले.”

 

फिर जिक्र चला आरव का… और उर्मिला जी का. एकबारगी आरिणी के चेहरे पर उदासियों का बसेरा छा गया. उसने अपनी मां से पूछा

 

“आप बोलो… मन से बताओ कि मेरी गलती कहाँ है.. क्या नहीं किया मैंने, या क्या और करना था मुझे जिससे सबका मन जीतती मैं. कितने समय तक चुपचाप घर बैठी रही. बीमार रहना… या न रहना तो मेरे हाथ में नहीं था. फिर जो काम मैं नहीं भी जानती थी, तुमने किचेन में कभी जाने भी नहीं दिया मुझे, वह भी मैंने अच्छे से किया न वहाँ?”

 

“यूँ शिकायत भी कोई नहीं, पर फिर भी शिकायत. अब अगर आरव करियर नहीं बनाना चाहता, या उसकी हेल्थ अलाऊ नहीं करती तो क्या यह भी मेरा दोष है मां ?”,

 

अरु ने कहा, पर माधुरी क्या जवाब दे.

 

वह जानती थी कि आरिणी पूरी तरह सही है, पर फिर भी वह सुखी नहीं, यह बात कितनी कचोटती थी, यह सिर्फ उस की आत्मा जानती थी, यहाँ तक कि अरु भी नहीं समझ सकती थी.

 

“कोई नहीं… हिम्मत से काम लेना बेटा… हम चट्टान की तरह तेरे साथ हैं, यह हमेशा ध्यान रखना. दुनिया में कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका रास्ता न निकल सकता हो… और यह तो मात्र दो विवाहित लोगों की गलतफहमियाँ हैं. और कुछ भी नहीं”,

 

कहकर माधुरी ने बेटी को ढाढस बंधाया.

 

तब तक अनुभव भी आ गये थे. बेटी को गम्भीर देखा तो समझ गये. बोले,

 

“तुम अपना मन अपने जॉब में लगाओ… और विश्वास रखो, रास्ता अवश्य निकलेगा, और बेहतर निकलेगा.”

 

बेटी मुस्कुरा कर रह गई. अभिनव ने भी मन के दुःख को छिपा कर मुस्कुराहट के भाव बिखेरे, क्यूंकि भीतर से वह भी अरु की हालत देख दुखी थे. हालांकि इस घर के तीनों प्राणी एक दूसरे की व्यथा समझते थे, पर अभी तीनों ही लाचार बन गये थे. मुस्कुराहटें स्वतः नहीं आ पाती थी, यह क्या कम दुःख था.

 

और तीन दिन बाद आरिणी चली गई. फिर से अपने जॉब पर… एक नई स्फूर्ति और उमंग के साथ. पर इस बार जाते समय उसकी आँखों में आंसू थे. इस बार कुछ अलग-सा था. वह विवाहित होकर भी विवाह सुख से वंचित तो थी ही, इस मोर्चे पर कुछ अलग किस्म की जटिलताओं और कोर्ट-कचहरी की बातों को सुनकर अधिक ही असहज हो उठती थी.

 

अनुभव उसे छोड़ने नॉएडा जाना चाहते थे, पर अरु ने ही मना कर दिया. वह उन्हें अनावश्यक दौडाना नहीं चाहती थी. कुछ ही घंटों की सीधे दिल्ली और फिर एक घंटे ग्रेटर नॉएडा की यात्रा. बस इतना ही तो सफर था.

 

आज कंपनी में आरिणी के सहकर्मी उसे घेर कर खड़े हो गये. वह एक शानदार पार्टी का आश्वासन चाहते थे. जब आरिणी ने हाँ कहकर अगले वीकेंड का दिन तय किया, तभी सब माने.

 

पर, एक दिक्कत थी. वीकेंड के बाद यानि सोमवार को ही कोर्ट केस की सुनवाई थी लखनऊ में. आरिणी ने शनिवार को पार्टी देनी तय की ताकि रविवार की रात को वह लखनऊ के लिए चली जाए. पिता ने अपना और बेटी का रिजर्वेशन करा लिया था. रविवार की रात नई दिल से लखनऊ के लिए लखनऊ मेल में बर्थ आरक्षित हो गई थी. अनुभव सिंह को सीधे सहारनपुर से स्टेशन पहुंचना था, और आरिणी को कैब पकड़कर ग्रेटर नॉएडा से.

००००