360 degree love - 37 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 37

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360 डिग्री वाला प्रेम - 37

३७.

कुछ जटिलताएं

दिल उदास हो गया. दोपहर के भोजन का भी मन नहीं किया. क्यूं होते हैं हम लोग इतने जटिल, सोचने लगी माधुरी. और यह तो वही परिवार है न जो हर दिन आरिणी को अपनी आंखों के सामने रखता था. आरव और उसकी मम्मी की कितनी प्रशंसा करती थी आरिणी. अब न जाने ऐसा क्या हुआ है कि आरिणी उन्हें एक पल भी नहीं सुहाती. जब भी बात होती है कुछ न कुछ तनाव! और आज तो इस तनाव की पराकाष्ठा ही हो गई, सोचा उन्होंने. उनका रोने का मन हो रहा था.

इसी उधेड़बुन में शाम हो गई. आज अभिनव सिंह थोड़ा जल्दी आ गए थे, आखिर गम्भीर मामला था. अब तक वह यह भी समझते थे कि उस घर में जो भी निर्णय होता था, उसमें राजेश सिंह की भूमिका कम और उनकी पत्नी उर्मिला की भूमिका अधिक होती थी.

राजेश सिंह को कॉल किया उन्होंने. कहा,

“सिंह साहब, क्या नाराज़गी है. कुछ पता तो चले. कौन सी बात है जो बातचीत से नहीं सुलझाई जा सकती. और आपकी तो मैं पहली मुलाकात से ही बहुत कद्र करता हूँ!”.

 

राजेश सिंह ने उसी गर्मजोशी से उत्तर दिया और उन्हें आश्वस्त किया कि

 

“सब ठीक हो जाएगा, जब आरिणी एक बार आ आएगी.”

 

“वो तो ठीक है, पर स्थिति तो सामान्य हो”,

 

हंस कर कहा अभिनव सिंह ने.

 

“हां, उसका भी उतना ही हक़ है, जितना आरव का. भेजिए आप उसे”,

 

गम्भीरता से कहकर उन्होंने बात समाप्त करने का उपक्रम किया.

 

बात अभी सुलझी नहीं थी, अपितु जटिल हो गई थी. उधर आरिणी की कॉल आई तो उसको सब बातें पता चलीं. यूँ तो वह काफी धैर्यवान और सोच समझ कर निर्णय लेने के लिए जानी जाती थी, पर आज वह भी क्रोध में थी. बोली,

 

“एक सीमा होती है, सहन करने की! और कोई गलती तो हो मेरी. मुझे ही दोषी बनाएं और मेरे ही बाल पकड़ कर धक्का दिया जाए… दिन भर घर मे बैठूं, चूल्हा-चौका करूं और सुनती रहूँ! अब यह तो होने से रहा .मुझसे”

 

“नहीं… ऐसा नहीं, करेंगे बात अभी”,

 

मां ने बेटी को आश्वस्त करना चाहा.

 

“क्या बात बची अब! अपना भी कोई आत्मसम्मान है या नहीं? नहीं करनी बात अब. नही जाना है मुझे. अब बहुत हुआ टार्चर, या घुट-घुट कर जान दे दूं अपनी!”

 

छोटी सी बात लग रही थी, जब शुरू हुई थी. बढ़कर इतना विकराल रूप ले लेगी, यह अनुमान शायद किसी को न रहा हो. न आरव को, न आरिणी या उन दोनों के माता-पिता को. यह अहं की लड़ाई थी, जिसे सबने कहीं न कहीं अपने आत्मसम्मान और पारिवारिक गरिमा से सम्बद्ध कर लिया था. अब कोई भी पक्ष न युद्धविराम चाहता था न अपनी पोजीशन से एक इंच भी हटना चाहता था. अब तक के सब प्रयास न केवल विफल साबित हुए थे, बल्कि कड़वाहट और बढ़ गई थी.

 

अब आरिणी के पेरेंट्स की भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वह आरिणी को ही झुकने को कहें, या उर्मिला और राजेश से कोई नई शुरुआत की बात करें.

 

दिन यूँ ही बीतते गए, कड़वाहट बनी रही. माधुरी बेहद तनाव में थी. बेटी के भविष्य को लेकर वह अवसाद में आ गई थी, लेकिन आरिणी सब कुछ सुनती थी, पर इस विषय पर किसी सहमति का अधिकार उसने अब किसी को नहीं दिया था. उसकी अपने घर हर दिन बात होती थी, लेकिन वही कहना था उसका, कि जिस दिन मुझे अपनी गलती समझ आ जायेगी, मैं सब के पैर छू कर माफी मांग लूंगी. न जाने कितनी माफियां मांगती रही हूं अब तक… पर, अब इतना भी नहीं गिराओ मुझे कि मैं खुद से ही नजर न मिला सकूं.

 

अनुभव सिंह और माधुरी के पास कोई तर्क नहीं होता था. समय यूँ ही बीतता गया, आरिणी ने कोई कॉल नहीं किया, न आरव या उसके परिवार की कोई कॉल आई. वर्तिका भी अब कॉल नहीं कर पाती थी.

 

आरिणी ने स्वयं को काम में समर्पित कर दिया था. वह डूब जाना चाहती थी, सिर्फ काम में. उसके डिवीज़न में वह नए लोगों में शीर्ष पर स्थान बनाने में सफल हो गई थी. पिछले चार महीनों में दो अवार्ड भी मिल चुके थे उसे.

 

तीन हफ्तों से वह वीकेंड में सहारनपुर भी नहीं जा पाई थी. पूरे समय काम के बाद शरीर को ऊर्जित करने के लिए वीकेंड में आराम करके रिफ्रेश महसूस करती थी , वरना यूँ ही उनींदापन बना रहता था, फिर ग्रेटर नोएडा से सहारनपुर की यात्रा इतनी आरामदेह और कम समय की नहीं थी.

 

आज सोमवार था. आरिणी को स्वयं पता नहीं था कि आज का दिन उसके करियर में एक मील के पत्थर के रूप में याद रहने वाला है. आज डिवीजन के प्रमुख नितिन कुमार ने उसे अपने कक्ष में बुलाया. जब वह पहुंची तो उन्होने गर्मजोशी से स्वागत करते हुए कहा,

 

“बहुत-बहुत बधाई आरिणी. आपको कंपनी ने ‘इनोवेशन इन डिजिटल प्लेटफार्म इन मशीन शॉप ऑफ ऑटो सेक्टर’ के एडवांस कोर्स में प्रशिक्षण के लिए जापान स्थित अपने मुख्यालय के लिए आमंत्रित किया है. आप तैयारी कीजिये, अब से ठीक सोलहवें दिन आपको टोक्यो के लिए निकलना होगा. कंपनी पूरी दुनिया के अपने संयंत्रों के चुनींदा कर्मियों को यह अवसर देती है. इस ट्रेनिंग का एग्रीमेंट और विवरण आपको कल तक मिल जायेंगे. एक बार और बधाई स्वीकार करें, अपने बेहतर भविष्य के लिए!”

 

“थैंक यू सो मच सर… मुझे पता है सर यह सब आपके प्रयासों से संभव हुआ है. यहां और भी डिजर्विंग लोग होंगे, पर आपने मेरा नाम रिकमेंड किया, उसके लिए बहुत आभार आपका”,

 

और चकित आरिणी ने विनम्रता से अपने हाथ जोड़ दिये.

 

“नहीं आरिणी,यह सफलता आपने अपनी योग्यता से हासिल की है, किसी की कृपा से नहीं. आगे भी ऐसे ही मेहनत करती रहोगी तो सफलता लगातार आपके कदम चूमेगी”,

 

सर ने कहा और अनजाने ही नजर आरिणी के प्रफ्फुलित चेहरे पर टिका ली . आरिणी ने झेंप कर नजरें घुमा ली, लेकिन सच ही आज बहुत प्रसन्न थी आरिणी… ! उसका एक और स्वप्न मूर्त रूप लेता दिख रहा था. उसने तुरंत मां को कॉल कर सूचना दी. वह भी बेटी के सुख में सुखी थी,और बहुत खुश थी पर उन्होंने सलाह दी,

 

“एक कॉल करके आरव और उसकी मम्मी को भी यह खबर कर दो, तो बेहतर रहेगा!”.

 

“मां क्या आप चाहते हो कि इस ट्रेनिंग में भी कोई कॉम्प्लिकेशन हो जाये… या कुछ ऐसा हो कि मेरा ही मूड खराब हो जाये.”

 

माधुरी ने विषय को टालना ही उचित समझा, पर फिर भी आरिणी ने बोला,

 

“वर्तिका का फोन पिक हुआ तो उस से शेयर करूंगी. वह चाहे तो बात करा दे, वरना कोई बात नहीं.”

 

कोई गुंजाइश नहीं थी किसी और तर्क की, इसलिए माधुरी ने बेटी से संवाद को वहीं तक सीमित रखना उचित समझा.

 

उधर आरिणी को एग्रीमेंट की कॉपी मिल चुकी थी. दो वर्ष तक कंपनी को अपनी सेवाएं देने का अनुबंध वह पूर्व में ही कर चुकी थी. इस अनुबंध में उसके सफलतापूर्वक प्रशिक्षण के उपरांत भारत या अन्य किसी देश मे एक स्टेप ऊपर के पद पर आउट ऑफ टर्न प्रोन्नति की भी संभावनाएं थी. उसमें किसी अतिरिक्त अवधि तक कंपनी को अनिवार्य रूप से सेवाएं देने का जिक्र नहीं था, लेकिन अन्यथा की स्थिति में प्रशिक्षु द्वारा इस प्रशिक्षण पर भेजने में आये व्यय-- प्रशिक्षण लागत, यात्रा, रहने, भोजन आदि पर हुए खर्च का वास्तविक मूल्य अदा करने की स्वीकारोक्ति की गई थी. प्रबंधन इस वास्तविक लागत का अनुमान बताने में असमर्थ था, लेकिन पूर्व में इस सुविधा का लाभ प्राप्त अधिकारियों का कहना था कि यह राशि लगभग छह लाख रुपये तक हो सकती है.

 

पिता से भी चर्चा करने के बाद आरिणी ने एग्रीमेंट को स्वीकार कर लिया. साथ-साथ वह तैयारी भी कर रही थी. अगले सप्ताह ही वीज़ा और सम्बंधित औपचरिकताएं भी उसे पूरी करनी थी. मम्मी को उसने साथ रहने के लिए अभी से कह दिया था ताकि उन दिनों उसकी भाग-दौड़ में सुविधा रहे.

 

आज वर्तिका को फोन किया आरिणी ने, और बताया. वास्तव में प्रसन्न थी वर्तिका. घर में अब केवल वह थी, जिससे उसे सकारात्मकता की तरंगों का अहसास मिलता था. पापा भी अपना दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से नहीं रख पाते थे, न कभी उनसे इतनी बातें होने का अवसर मिला कि वह भी उसे समझ पाते. रेलवे और देश की राजनीति के अतिरिक्त उनकी रुचि शायद कभी किसी और विषय में रही हो, उसे ध्यान नहीं. फिर उनके पास न समय बचता था कभी घर के लिए, न ऊर्जा! अपनी सब जिम्मेदारियों से विमुख होकर . इसलिए वह उर्मिला जी पर अधिक निर्भर रहते थे. आरव का कोई जिक्र ही नहीं आया.

 

शायद खुद ही कॉल आये आरव की, सोचती आरिणी. बताया तो जरूर होगा सबको आरिणी ने. कहीं गया हो… तो कल आएगा उसका फोन, खुश तो वह भी बहुत होगा न… या कल वह स्वयं ही न कर लेगी एक कॉल. क्या हुआ, ज्यादा से ज्यादा हां-हूं में ही बात करेगा. अब इतना भी कुछ नहीं हुआ है कि मुझसे जिंदगी भर बात न करने की ठान कर बैठा हो.

 

पर, यह सिर्फ ख्याल थे, कुछ ऐसे ख्याल जो कभी पूरे नहीं होने थे. उसके हाथ बढ़ते थे कॉल करने के लिए, लेकिन वह ठिठक कर रुक जाती… सिर्फ इसलिए कि कहीं वह चीखने ही न लगे उस पर, और इस खुशी को अवसाद का ग्रहण लग जाये.

 

जैसे-जैसे आरिणी के जाने के दिन निकट आते गए, वैसे-वैसे आरव से बात होने की संभावनाएं धूमिल पड़ने लगी. न उसका कोई फोन आया न कोई संदेश. एक बार मां ने फोन लगाया भी उर्मिला जी को, पर पूरी रिंग के बाद भी कॉल पिक नहीं हुई, न कोई कॉल बैक हुआ!

००००