360 degree love - 30 in Hindi Love Stories by Raj Gopal S Verma books and stories PDF | 360 डिग्री वाला प्रेम - 30

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360 डिग्री वाला प्रेम - 30

३०.

प्रयास… और दूरियां

उर्मिला जी की अवहेलना और कटुता के बावजूद भी आरिणी समझती थी कि आरव की बेहतरी के लिए घर का वातावरण खुशनुमा रखना आवश्यक है, इसलिए अब बेवजह भी मुस्कुरा देती थी. आरव की मेडिसिन्स का भी ख्याल खुद ही रखती. आज से उन दोनों ने कैंट के कस्तूरबा पार्क में मॉर्निंग वाक के लिए जाना भी आरंभ कर दिया था. उनके घर से डेढ़ किलोमीटर पर था वह खूबसूरत पार्क. वे दोनों जॉगिंग करते, सेंट्रल फाउंटेन की फुहारों की कणिकाओं में झूमते, और खिलखिलाते, आसपास के लोगों से बेपरवाह.

विवाह के सपने सब देखते हैं, पर वह पूरे किस रूप में होने हैं. कह नहीं सकते. विवाह पति-पत्नी की मैत्री और साझेदारी है. वैदिक युग से यह विश्वास प्रचलित है कि पत्नी पुरूष का आधा अंश है, पुरूष तब तक अधूरा रहता है, जब तक वह पत्नी प्राप्त करके संतान नहीं उत्पन्न कर लेता. पुरुष प्रकृति के बिना और शिव शक्ति के बिना अधूरा है. यह सभी जानते हैं. और आरिणी कृतसंकल्प थी, आरव को बेहतर स्थिति में लाने के लिए.

 

आज छठा दिन था साइकैट्री डिपार्टमेंट में दिखाए हुए. जो लेबोरेटरी टेस्ट रिपोर्ट्स उन्होंने सुझाई थी, वह करा ली थी, और उनके रिजल्ट्स फाइल में टैग कर लिए थे. आज ओ पी डी में फिर से उनको दिखाना था.

 

डॉ विनय का मैसेज पहले ही था वहां, इसलिए उन्हें जल्दी ही बुला लिया डॉ मलय ने. पेशेंट्स की भीड़ वैसे भी कम नहीं थी… और सब ऐसे लोग थे वह, जो शायद नाउम्मीद से होते हैं, तब इस तरह के डॉक्टर्स के पास आते हैं, जैसे किसी चमत्कार की आशा हो उन्हें यहाँ से.

 

कोई विशेष चिंता की बात नहीं है… यह इतना भी बिगड़ा हुआ केस नहीं है… न ही इंटेंसिटी ज्यादा है",

 

डॉ मलय ने रिपोर्ट्स पर निगाह डालते हुए बोला. उन्होंने कुछ मेडिसिन्स चेंज की, और काउंसलिंग के लिए दूसरे डॉक्टर के पास रेफर किया.

 

डॉ श्रीनिवासन मेडिकल काउन्सलर और क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट थे. अपेक्षाकृत अधिक सौम्य और व्यवहारकुशल. उन्होंने सारी केस हिस्ट्री समझ कर आरव को मेडिसिन के साथ लाइफ स्टाइल में बदलाव का भी सुझाव दिया. फिर भोजन का तरीका, सोने के नियम, सवेरे उठने का तरीका और कुछ व्यायाम भी बताये. कितना पानी पीना है, और क्या नहीं करना है, उसको भी साफ़-साफ़ लिखा.

 

धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य-सा हो रहा था. डॉक्टर्स ने बोला भी कि यदि नियमित दवाएं लेते रहें और सुझाई गई दिनचर्या का पालन करते रहें, तो ऐसी भी बीमारी नहीं है यह कि आप सामान्य जीवन न बिता सकें, या अपने करियर पर ध्यान न दे पायें. उनका यह भी कहना था कि इसमें दवाओं से अधिक भूमिका आपके व्यवहार, दिनचर्या, ध्यान और लगन की है. फिर, सकारात्मक भाव होने से रिकवरी और भी अधिक शीघ्रता से होती है. मात्र रासायनिक अनुपात का घालमेल और तंतुओं का उलझना ही है यह, और किसी भी अच्छे-भले इंसान भी अच्छे भले इंसान को हो सकता है.

 

डॉ श्रीनिवासन ने बताया था कि,

 

“जैसे कभी भी बुखार आता है, या रक्तचाप अनियंत्रित होता है, बस ऐसा ही है यह भी. दरअसल, यह शरीर के सिग्नल्स हैं… जो आपको बताते हैं कि आपको स्वयं में सुधार लाने की जरूरत है. और फिर से आप ठीक हो जायेंगे. हाँ… प्रसन्नचित्त रहना हमेशा. भूल जाओ कि आप बीमार हो.”

 

अब चूँकि आरव बेहतर स्थिति में था तो आरिणी चाहती थी कि वह होंडा कार कंपनी का ऑफर स्वीकार कर ले. फिर आगे इतना अच्छा मौका मिले, या न मिले. यूँ भी जितना समय बीतता जायेगा अवसर कम होते जायेंगे. आरव भी तैयार था. यह वादा भी किया उसने कि अपना ध्यान रखेगा. अभी घर में बात करने का साहस दोनों ही नहीं जुटा पाए थे.

 

इन्हीं दिनों में रामदीन को अचानक अपने गाँव जाना पड़ गया. रामदीन ही किचन सम्भालता था और घर-बाहर के और काम भी बिना किसी असुविधा के निपटाने में माहिर था. अब इस सब बदली हुई परिस्थिति का प्रभाव मम्मी जी के अलावा किस पर पड़ना था.

 

आरिणी कम हिम्मती नहीं थी, पर मौसमी वायरल-से निढाल थी. बीमारी पर उसका कोई वश नहीं था. और इस बात को लेकर वह बहुत परेशान भी थी. निस्सहाय… बिस्तर पर ही सीमित थी. आरव और वर्तिका उसके आस-पास रहते थे.

 

ऐसे में वह हिम्मत कर नीचे उतरी भी, पर जब मम्मी की बातें कानों में पड़ीं तो दुःख हुआ. मन किया कि लौट जाए वापिस अपने कमरे में और एक बार खूब देर तक रोये. मम्मी जी मिलने आई हुई चाची से कह रही थी,

 

“अब क्या कहें… नाजुक बना कर कब तक रखेगी अपने आप को, हमें तो साल में दो बार वायरल आता है, पर मजाल हमारे काम में कोई कमी रह जाए. जो रुटीन है, वही चलता रहता है… पर अब, इन महारानी जी की भी सेवा करो. बेटे की पसंद है… तो निभाना तो पड़ेगा ही.”

 

चाची सहमति में गर्दन हिलाते हुए बोल रही थी,

 

“जमाना खराब है जीजी… हम तो अभी से चिंता करते हैं, न जाने कैसी मिल जाए… और चरित्तर भर के पड़ी रहे, सेवा भी हमसे कराये. वक्त का….”,

 

वाक्य अधूरा छोड़ना पडा उन्हें, क्यूंकि चाची का मुंह उसी ओर था जिस ओर से आरिणी जीने से उतर रही थी. और उसने आरिणी को देख लिया था. जोर से बोली,

 

“आओ बेटा… तुमने क्यों कष्ट किया, बुला लिया होता.

 

आरिणी थोड़ा मुस्कुराई, पर चाची जी की झेंप दूर नहीं हुई थी. उन्होंने उसके हाथ से वह वाटर बाटल लेनी चाही, जिसमें पानी भरने के लिए आरिणी रेफ्रीजिरेटर के पास आई थी. आरिणी ने विनम्रता से संकेत कर मना कर दिया.

००००