AKHIRI JAWAB-MHESH RAHI in Hindi Book Reviews by राजनारायण बोहरे books and stories PDF | आखिरी जवाब -महेश राही

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आखिरी जवाब -महेश राही

कहानी संग्रह आखिरी जवाब महेश राही

अलग शिल्प की कहानियाँ

परिवेश विचार मंच मुरादाबाद-रामपुर ने कहानीकार महेश राही का कहानी संग्रह “आखिरी जवाब“ पिछले दिनों अपने पहले प्रकाशन के रूप् में प्रस्तुत किया है। महेश राही कहानी जगत के लिए अनजाना नात नहीं है। राहीजी की कहानियाँ सारिका के प्रकाशन समय में प्रायः पढने को मिली है। इनका नाम अक्टूबर 1978 में तब चर्चित हुआ था, जबकि उनकी कहानी “आखिरी जवाब“ के आधार पर उन्हें अश्लीलता के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था और सेवा से पृथक करके बाकायदा मुकदमा चलाने की तैयारी की जा रही थी।

प्रस्तुत संग्रह में राहीजी की पन्द्रह कहानियों ली गई है। संग्रह के पिछले हिस्से में कहानी आखिरी जवाब के सन्दर्भ में राही पर चले मुकदमे और लेख्क साथियों द्वारा यंत्र-तंत्र लिखे समर्थन लेख-टिप्पणी आदि शामिल की गई है।

संग्रह की कहानियों को यदि आज के नजरिए से देखा जाए, तो शिल्प के स्तर पर यें कहानियाँ कुछ पिछले युग की कहानी दिखती है। इन कहानियों में आज की कहानी से कसाब और शिल्प की कमी स्पष्ट दिखाई देती है।

संग्रह की प्रायः सभी कहानियाँ स्त्री-पुरूष संबंध कही पति-पत्नी रूप में हैं, कही, प्रिय-प्रेयसी के रूप में , कहीं माँ-बेटा या सास-दामाद के रूप में , आए है।

यह सभी कहानियाँ सामाजिक नातों से सरोकार रखने वाली कहानियाँ है।

इन कहानियों की एक विशेषता यह भी है कि पाठक को बांधकर चलती हैं, जो कि वर्तमान में कहानियों से गायब या होता जा रहा हैं, इस नाते महेश राही पूर्ण सफल कथाकार है।

राहीजी के पात्र समाज से सीधे आते हैं, उनमें वे सभी सामान्य गुण और अवगुण हैं, जो कि आम आदमी में पाए जाते हैं, इसलिए उनकी कहानियाँ कहीं भी कृत्रिम प्रतीत नहीं होती। कहानी लहरें की माला हो, संकल्प की प्रभा हो या आखिरी जवाब की सलौनी उनकी स्त्री पूर्ण जाग्रत और मजबूर नारी के रूप में उभर कर आई है। उनमें अन्याय सहने की ताव भी एक हद तक है, इसके बाद वे भी विफर उठती है। वे पुरूष की गुलाम बनने को तैयार नहीं हैं, हर कात अपनी मर्जी से करना चाहती हैं और आखिरी जवाब की सलौनी यही करती है।

संग्रह की पहली चारों कहानी प्रणय की कहानियाँ है। हालांकि कहानियों का तर्जे बयान कुछ पुराना दिखाई देता है और उनमें एक परदे के भीतर छिपा श्रृंगार ही झाँकता सा दिखता है। आज की कहानियों सा खुला और जनसुलभ तथाकथित जनवादी श्रृंगार इसमें मौजूद नहीं हैं, लेकिन घर-परिवार की बातें ऐसे खुलकर कहना शायद राहीजी की आदत नहीं है। हाँ यह आदत आखिरी जवाब में ही जाकर टूटती है।

शीर्षक कहानी की नायिका सलौनी का इतिहास यह है कि वह अपने पति के कहने पर अनेक लोगों की अंकशायिनी बन चुकी हैं, लेकिन औरों से व अपने पति से वह संतुष्ट नहीं है। अपनी इच्छा से वह ठेकेदार के पुत्र सलीम से देंह सम्बन्ध बनाती है और इतनी आनंदित होती है कि एक इनकहे सुख में ऊभ-चूभ होती हुई घर लौटती है। घर पर पति से सामना होने पर वह खौफ नहीं खाती उल्टी उसे करारे थप्पड़ों का जवाब देती है। नाराज पति भी उसी क्रिया को दोहराता है। पति के प्रश्नों के उत्तर में सलौनी कहती है कि यह दैहिक शोषण तब तक जारी रहेगा, जब तक हम अपनी कमाई का आधा हिस्सा ऊपर वालों को देते रहेंगे और परेशान रहेंगे आर्थिक रूप से।

संग्रह की लगभग आधी कहानियाँ सेना और सैनिक मोर्चा से सम्बन्धित है। ऐसा लगता है कि लेखक की सैनिकों के प्रति ज्यादा श्रद्धा हैं, ऐसा भी हो सकता हैं कि लेखक थोड़ा बहुत ऐसी जिंदगी और ऐसे माहौल का अनुभवी हो। वहरहाल पाठकों को देश के फ्रंट पर पूरी अनुभूति के साथ पहुँचाने में लेखक कुछ-कुछ सफल हो गया है। वहाँ के सैनिकों के भी वहीं स्त्री-पुरूष के सम्बन्धों की बातें ही इन कहानियों में आई है।

चूँकि इन कहानियों का लेखनकाल कहीं नहीं लिखा है, इसलिए यह पता तो चलता नहीं कि ये कब लिखी गई हैं, परन्तु अधिकांश में चीन-युद्ध या बंगलादेश मुक्ति युद्ध की बातें है।

ये सब तो अनेक फिल्मों और कहानियों में हिन्दी पाठक देख और पढ़ चुका हैं इसलिए ये कहानियाँ कुछ अतिरिक्त प्रभाव पाठक पर नहीं ड़ालती। अच्छा होता यदि लेखक मोर्चे का कोई नख पक्ष पाठक के समने रखता।

कुल मिलाकर यह संग्रह जहाँ राहीजी के रचना संसार से परिचय कराता है, वहीं हिंदी साहित्य कें लिए सिवाए कहानी आखिरी जवाब और उसकी कोई कार्रवाही से परिचित कराने के, कोई नया मुकाम नहीं देता।