वचन--भाग(१४)
भीतर अनुसुइया जी,सुभद्रा और हीरालाल जी बातें कर रहे थें और बाहर चारपाई पर सारंगी और दिवाकर बातें कर रहें थें और इधर हैंडपंप के पास बिन्दू बरतन धो रही थी और बीच बीच में सारंगी की बातों का भी जवाब देती जाती,कुछ देर में बिन्दू ने बरतन धो लिए और बरतनों की डलिया उठाने को हुई तो दिवाकर बोला___
तुम रहने दो बिन्दू! मैं रख देता हूँ,काफी भारी होगी।।
ठीक है और इतना कहकर वो सारंगी के पास आकर बैठ गई,सारंगी बोली,तुम दोनों बातें करो,मै तो चली ,मुझे दफ्तर के कुछ कागजात़ का काम निपटाना है, इतना कहकर सारंगी अपने कमरें में चली गई।।
तब बिन्दू भी उठकर जाने लगी,इतने में देवा ने उसका हाथ पकड़ कर रोका___
कहाँ, जा रही हो बिन्दू! क्या अब मुझसे रूठी हुई हो।।
नहीं देवा! मैं भला तुमसे कैसे रूठ सकती हूँ, तुमसे केवल प्यार किया होता तो रूठती लेकिन मैने तो तुम्हें देवता मानकर तुम्हारी पूजा की है और देवता कोई भी परीक्षा ले ले भक्त की लेकिन भक्त कभी भी देवता से नाराज नहीं होता और मेरा प्यार इतना कमजोर नही था कि जरा सा खिचने पर टूट जाता,बिन्दू बोली।।
तो क्या तुमने मुझे माफ़ कर दिया,देवा ने बिन्दू से पूछा।।
तुम्हें माफ़ नहीं करती तो क्या करती? भला अपने प्यारे दोस्त से कब तक रूठी रहती,बिन्दू बोली।।
अब आज मैं बहुत खुश हूँ, मेरे मन का एक और बोझ कम हो गया,देवा बोला।।
देवा! लेकिन ऐसा कभी मत करना नहीं तो मैं अब की बार हमेशा के लिए तुमसे रूठकर भगवान के पास चली जाऊँगी,बिन्दू बोली।।
नहीं बिन्दू !ऐसा मत कहों, तुम मुझे कभी मत छोड़ना,मै तुमसे वादा करता हूँ कि अब ऐसा कभी नहीं करूँगा,देवा बोला।।
और दोनों ऐसे ही अपने मन के दर्द को एक दूसरे से बाँटते रहें, तभी अनुसुइया जी बाहर आकर बोलीं___
सुभद्रा मेरे कमरे मे सो जाएंगी , बिन्दू सारंगी के कमरे मे और हीरा भइया दिवाकर के कमरें में सो रहेगें।।
और सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए।।
दूसरे दिन सुबह नाश्ता करके सारंगी अपने दफ्तर निकल रही थी तभी बिन्दू बोली___
लाओ दीदी! आज मैं तुम्हारे बाल सँवार दूँ,इतने सुन्दर लम्बे घने बाल हैं तुम्हारे और तुम हो कि रोज दो सादी चोटियाँ बनाकर चल देती हो,चलो मैं आज तुम्हारे बालों का सुन्दर सा जूड़ा बना देतीं हूँ।।
अच्छा,चल तू भी अपनी इच्छा पूरी कर ले,सारंगी बोली।
कुछ देर में बिन्दू ने सारंगी के बालों का जूड़ा बना दिया,सारंगी ने अपने आपको आइने मे देखा तो बोली___
बिन्दू! आज तो तूने मेरी कायापलट कर दी,लगता है आज सूती धोती की जगह ढ़ंग की साड़ी पहननी होगी,नहीं तो तुम्हारे बनाएं जूड़े की तौहीन हो जाएंगी,सारंगी बोली।।
और सारंगी ने आज अपने लिए नई साड़ी भी निकाली और तैयार होकर चल दी दफ्तर की ओर,शाम को दफ्तर से लौटते समय वो नारायण मंदिर चली गई और इत्तेफाक से उसकी मुलाकात प्रभाकर से हो गई वो भी दुकान से लौटकर सीधे मंदिर चला आया था।।
अरे,प्रभाकर बाबू! कैसे है आप?सारंगी ने पूछा।।
मैं तो ठीक हूँ लेकिन तुम्हें क्या हुआ, प्रभाकर ने पूछा।।
क्यों? आप ऐसा क्यों कह रहें हैं, सारंगी ने पूछा।।
वो ये कि दो चोटियों की जगह जूड़ा और धोती की जगह साड़ी,आखिर बात क्या है? कहीं लड़के वाले तो देखने नहीं आ रहे,प्रभाकर ने पूछा।।
हा....हा...हा...हा...सारंगी जोर से हँसी और बोली,ऐसा कुछ नहीं हैं,वो हमारा किराएदार है ना तो उसके गाँव से उसके पड़ोसी आएं हैं, उनकी बेटी ने आज मेरे बाल बना दिए,तो सोचा साड़ी भी नई पहन लेती हूँ,घर के कामों में बहुत निपुण है और स्वभाव की बहुत अच्छी है बिन्दू, सारंगी बोली।।
क्या कहा तुमने,बिन्दू! प्रभाकर ने सारंगी से पूछा।।
हाँ,उसका नाम बिन्दू है, सारंगी बोली।।
कहीं पूरा नाम बिन्दवासिनी तो नहीं है, प्रभाकर ने पूछा।।
हाँ,बिन्दवासिनी ही है, सारंगी ने उत्तर दिया।।
माँ का नाम सुभद्रा,पिता का हीरालाल और मेरे ही चंपानगर गाँव के तो नहीं हैं, प्रभाकर बोला।।
हाँ,यही नाम है उनके और गाँव भी,सारंगी बोली।।
और तुम्हारे किराएदार का नाम क्या है? प्रभाकर ने पूछा।।
दिवाकर... दिवाकर नाम है उसका,सारंगी बोली।।
मैं अभी इसी वक्त तुम्हारे घर चलना चाहता हूँ, प्रभाकर बोला।।
लेकिन बात क्या है, कुछ तो मालूम हो,सारंगी बोली।।
पहले चलो,तुम्हें सब रास्तें में बताता हूँ, प्रभाकर बोला।।
रास्ते में चलते चलते प्रभाकर ने सबकुछ सारंगी को बता दिया,सारंगी बोली तभी दिवाकर इतना बुझा बुझा सा रहता है, उसे शायद अब अपनी गलती का एहसास हो चुका है।।
और दोनों सारंगी के घर पहुँचे,तब तक अँधेरा भी गहरा आया था,बिन्दू ने जैसे ही किवाड़ खोलें,प्रभाकर को देखकर खुशी से बोल पड़ी___
बड़े भइया! तुम और यहाँ।।
कैसी है पगली? प्रभाकर ने बिन्दू के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।।
ठीक हूँ भइया! और तुम कैसे हो? बिन्दू ने पूछा।।
मैं बिल्कुल ठीक हूँ, काका-काकी कहाँ है और इतना पूछते ही हीरालाल जी और सुभद्रा भी सामने आकर बोले__
अरे,प्रभाकर बेटा! बहुत अच्छा लगा,तुम्हें यहाँ देखकर।।
तभी दरवाज़े से दिवाकर भी आता दिखाई दिया,दिवाकर ने जैसे ही प्रभाकर को देखा तो मारे खुशी के उसकी आँखें छलछला आईं और उसने प्रभाकर के करीब जाकर उसके पैर छुए और प्रभाकर ने उसे गले से लगा लिया,दोनों भाई गले लगकर खूब रोएं और सारे गिले शिकवें आँसुओं के संग बह गए।।
उस रात अनुसुइया जी और बिन्दू ने मिलकर ढ़ेर से पकवान बनाएं और प्रभाकर ने उस रात वहीं खाना खाया,सब बहुत खुश थे उस रात।।
अब तू ये ताँगा नहीं चलाएगा,मैं प्रिन्सिपल से कहकर काँलेज में फिर से तेरा एडमिशन कराऊँगा और तू हाँस्टल में नहीं इसी घर में रहेंगा और तेरा एडमिशन होने के बाद मैं भी गाँव लौटकर दुकान सम्भालूँगा और ये काम हम परसों ही करेंगे क्योंकि कल तो रविवार है इसलिए।।
जो आप कहेंगें, मैं वैसा ही करूँगा भइया! दिवाकर बोला।।
और खाना खाकर प्रभाकर बोला तो अब मैं चलता हूँ।।
रातभर की तो बात है, यहीं रूक जाते बेटा! अनुसुइया जी बोलीं।।
नहीं माँ जी,अभी बहुत से काम निपटाने है, धर्मशाला का भाड़ा भी देना है,दूधवाले का हिसाब करना है, पेपर वाले का हिसाब करना है और दुकान पर सेठजी से भी कहना है कि मैं गाँव वापस जा रह हूँ,, प्रभाकर बोला।।
अच्छा ठीक है बेटा! अनुसुइया जी बोलीं।।
और प्रभाकर वहाँ से चला आया इधर दिवाकर ने भी जुम्मन चाचा से सारीं बातें कह सुनाई और बोला चाचा माफ करना,भइया ने कहा है कि मैं अब फिर से पढ़ाई शुरु करूँ।।
बहुत अच्छी बात है मियाँ! कि तुम सही रास्ते पर चल पड़े हो,बहुत खुशी हुई हमें ये जानकर कि तुम फिर से पढ़ाई शुरु कर रहे हो, लेकिन अपने जुम्मन चाचा को भुला मत देना,जुम्मन चाचा बोले।।
नहीं चाचा! ऐसा कभी नहीं होगा और फिर मैं इसी शहर में तो हूँ, जब जी करेगा तो मिल जाया करूँगा और इतना कहकर दिवाकर चला आया।।
अब सोमवार को दोनों भाई काँलेज पहुँचे,दिवाकर ने प्रिंसिपल से अपने बुरे बर्ताव के लिए माफ़ी माँगी और प्रभाकर की वजह से प्रिंसिपल ने दिवाकर को माफ़ कर दिया।।
दोपहर होने को आई थीं, दोनों भाई काँलेज से निकले ही थे कि शिशिर ने दोनों भाइयों को प्रिंसिपल के आँफिस से निकलते हुए देख लिया,उसने प्रिंसिपल आँफिस के चपरासी से पूछा कि ये दोनों यहाँ क्या करने आएं थे,चपरासी ने सब सच सच बता दिया,ये सुनकर शिशिर के मन में आग लग गई कि दिवाकर की जिन्द़गी सुधर जाएंगी, शिशिर ने मन में कहा कि मैं ऐसा कभी नहीं होने दूँगा, तूने आफ़रीन को मुझसे छीना है, मैं तेरी जिन्द़गी बर्बाद कर दूँगा और उस आफ़रीन को भी नहीं छोड़ूगा,अभी उससे भी बदला लेना बाक़ी है।।
और ये सोचकर शिशिर काँलेज से चला आया और अपने कमरे में आकर दिवाकर से बदला लेने की तरकीबें निकालने लगा,तभी उसे याद आया कि आफ़रीन अपने बैठक की दराज़ में हमेशा एक खाली पिस्तौल रखती है, वो इसलिए कि कोई भी आश़िक मिज़ाज अगर अपनी हद़े भूलने लगें तो केवल उसे धमकाने के लिए,वो जानबूझकर उसमें गोलियाँ नहीं डालती,वो तो केवल उसे अपनी हिफ़ाज़त के तौर पर उसका इस्तेमाल करती है।।
और उसी पिस्तौल को लेकर शिशिर ने तरकीब निकाली,दोपहर के बाद वो कहीं गया उसके बाद शाम होने तक वो दोनों भाइयों का पीछा करता रहा कि दोनों भाईं क्या क्या करतें हैं, अब रात के नौ बजने को थे,दोनों भाई अब भी साथ थे,दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे,इसलिए एक दूसरे के संग समय बिता रहे थें, तभी दिवाकर बोला___
भइया! इस जगह के समोसे बहुत अच्छे होते हैं।।
तो चलों खाते हैं समोंसे, प्रभाकर बोला।।
ठीक है तो अभी यहीं ठहरिए,मैं लेकर आता हूँ, क्योंकि दुकान में भीड़ बहुत है, दिवाकर बोला।।
नहीं तू यहीं ठहर ,मैं लेकर आता हूँ, प्रभाकर बोला।।
प्रभाकर इतना कहकर चला गया और दिवाकर सड़क के किनारे ही खड़ा रहा,शिशिर ये सब छुपकर देख रहा था ,उसने मौके का फायदा उठाया और दिवाकर के पास आकर बोला___
और कैसे हो? गायब ही हो गए,कहाँ हो आजकल।।
मैं ठीक हूँ और मैं तुमसे कोई बात नहीं करना चाहता,दिवाकर बोला।।
अरे,मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था,तुमसे माँफी चाहता हूँ और आफ़रीन ने मुझे भी अपनी जिन्द़गी से निकाल दिया है जैसे तुम्हें निकाला था,आजकल तो उसने किसी और लड़के को फँसा रखा है,मैने उससे पूछा था कि तुमने दिवाकर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया तो वो बोली,मैने तो केवल दिवाकर का इस्तेमाल किया,उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया,मैं चाहती थी कि वो इतना बदनाम हो जाएं कि दुनिया को मुँह दिखाने के काबिल ना रहें, पहले मुझे उससे रूपए मिलते थे और जब वो इस काबिल ना रहा कि मुझे रूपए दे सकें तो वो मेरे लिए बेकार हो चुका था,मैने उससे कभी भी मौहब्बत नहीं की केवल अपनी अय्याशी के लिए उसका इस्तेमाल किया।।
ये सुनकर दिवाकर का खून ख़ौल उठा और वो बोला,मैं आज ही उसके पास जाकर इन सबका फैसला कर देता हूँ,आखिर वो अपनेआप को समझती क्या हैं आज ही सारा हिसाब चुकता होगा और दिवाकर ने फौऱन एक टैक्सी पकड़ी और चल पड़ा गुस्से में आफ़रीन के घर की ओर___
उधर प्रभाकर समोसे लाया ही था कि उसने दिवाकर को टैक्सी में बैठते हुए देखा और उसने भी टैक्सी पकड़ी और वो भी दिवाकर की टैक्सी के पीछे पीछे चल पड़ा।।
दिवाकर की टैक्सी पहले पहुँच गई,उसने टैक्सी का भाड़ा दिया, गुस्से में बँगले के दरवाजे पर पहुँचा ,दरवाज़ा आफ़रीन ने ही खोला और वो आफ़रीन से बहस करने लगा,आफ़रीन बोली मेरी बात तो सुनो लेकिन वो कुछ भी सुनने को तैयार ना था ,वो गुस्से से पागल हो रहा था और उसने आफ़रीन पर हाथ भी उठा दिया,आफ़रीन को अब और कोई रास्ता ना सूझा और वो बैठक मे गई,दराज में से खाली पिस्तौल निकाली और दिवाकर पर तान दी___
दिवाकर बोला तो तुम मुझे मारोगी,इससे पहले मैं ही तुम्हें मार दूँगा और दिवाकर ने पिस्तौल छीनकर अपने हाथ मे ले ली,तभी सारे बँगले की बत्तियाँ बंद हो गई और दो बार गोली चलने की आवाज आई,गोली चलने के बाद फौऱन बँगले की बत्तियाँ जल उठीं, तब तक प्रभाकर भी भीतर पहुँच चुका था और प्रभाकर ने जो देखा वो देखकर उसके होश़ उड़ गए।।
उसने देखा कि आफ़रीन की लाश़ खून से लथपथ पड़ी है और पिस्तौल दिवाकर के हाथ में है, प्रभाकर ने आव देखा ना ता और फौऱन ही दिवाकर के हाथों से पिस्तौल छीनकर हाथों में ले ली,तब तक नौकरानी शमशाद भी आ चुकी थीं और आफ़रीन की लाश़ देखकर वो चींख पड़ी।।
पुलिस आई और प्रभाकर ने दिवाकर को निर्दोष बताते हुए आफ़रीन के खून का इल्जाम अपने सिर ले लिया,क्योंकि वो नहीं चाहता था कि दिवाकर को कुछ भी हो,उसने अपने माता पिता को वचन जो दिया था।।
दिवाकर ये देखकर रो पड़ा क्योंकि शमशाद के आने के पहले प्रभाकर अपनी कसम दे चुका था दिवाकर को कि तू किसी से भी कुछ नहीं कहेंगा,अगर किसी से कुछ भी कहा तो मेरा मरा मुँह देखेगा।।
प्रभाकर को जेल भेज दिया गया,दिवाकर और सारंगी जेल पहुँचे प्रभाकर से मिलने__
सारंगी बोली,ये केस मैं लडूँगीं,मुझे पक्का यकीन है कि प्रभाकर बाबू आप निर्दौष हैं।।
क्रमशः__
सरोज वर्मा___