vachan - 8 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वचन--भाग (८)

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वचन--भाग (८)

वचन--भाग(८)

प्रभाकर का अब कहीं भी मन नहीं लग रहा था,ना ही दुकानदारी में और ना ही घर में उसे तो दिवाकर की चिंता थी कि कहीं वो ऐसे रास्ते पर ना चल पड़े कि वहाँ से लौटना उसके लिए मुश्किल हो जाए,उसके सिवाय अब कोई था भी तो नहीं उसका,आखिर जो वो भी हो ,खून का रिश्ता जो था उससे,वो उसका भाई हैं वो भी सगा,अब प्रभाकर ने शहर जाने का मन बनाया,उसने सोचा कैसे भी हो वो अपने भाई को वापस लाकर रहेगा,नहीं तो जो उसने बाबू जी को वचन दिया था उसका क्या होगा?
वो दुकान और घर पर ताला लगा कर ,चाबी देने बिन्दवासिनी के घर जा पहुँचा, बिन्दवासिनी के बाबूजी उस समय घर पर नहीं थे,केवल माँ थी और उसने पूछा कि___
कहाँ जा रहे हो? बेटा!
बस काकी! अब और नहीं रह सकता भाई के बिना उसे लेने शहर जा रहा हूँ,जल्द ही लौटूँगा,प्रभाकर बोला।।
लेकिन बड़े भइया,देवा ने आने से इनकार कर दिया तो,बिन्दवासिनी ने पूछा।।
वो कुछ भी कहें, मुझे चाहें जितना भी बुरा भला कह लें,उसे मैं अपने साथ लाकर ही रहूँगा,प्रभाकर बोला।।
हाँ,बड़े भइया! काश ऐसा हो जाए,बिन्दू बोली।।
हाँ!ऐसा ही होगा,वो इस बार जरूर आएगा और इतना कहकर प्रभाकर ने काकी के पैर छुए और निकल पड़ा शहर की ओर,वहाँ पहुँचकर उसने हाँस्टल से दिवाकर के बारें में सारी जानकारी इकट्ठी की और जा पहुँचा, आफ़रीन के घर,उसने दरवाज़े की घंटी बजाई,नौकरानी ने दरवाजा खोलते ही प्रभाकर से पूछा____
जी! आप कौन?
मैं प्रभाकर हूँ और तुम्हारी मालकिन से मिलना चाहता हूँ, उनसे बहुत ही जुरूरी काम हैं, प्रभाकर ने कहा।।
जी,आप यहीं इन्तज़ार करें,मैं अभी उन्हें बुलाती हूँ, नौकरानी बोली।।
नौकरानी के जाते ही प्रभाकर ने आफ़रीन के घर की ओर नज़र दौड़ाई,घर बहुत बड़ा और सुन्दर था,सामने फूल ,फलों से लदा बगीचा था,बगीचे में झूला और लैम्पपोस्ट भी लगे थें,घर के साथ लगा हुआ गैराज था,गैराज में दो मोटरें खड़ी थीं, आफ़रीन बहुत ही रईस मालूम होती थीं,वो सब देख ही रहा कि तभी आफ़रीन हाजिर हुई और उसने पूछा।।
जी!कहें,मैं क्या खिद़मत कर सकती हूँ आपकी?
जी! आपका ही नाम आफ़रीन है, प्रभाकर ने पूछा।
जी! मैं ही आफ़रीन हूँ, आफ़रीन बोली।।
जी! दिवाकर आपके यहाँ रहता है, प्रभाकर ने पूछा।।
जी!रहता है लेकिन आपको इससे क्या? आफ़रीन ने पूछा।।
जी! मैं तो बस ऐसे ही जानकारी ले रहा था,प्रभाकर बोला।।
जी! ये मेरा ज्याती मामला हैं और आप कौन होते हैं मेरे ज्याती मामले में दख़ल देने वाले,आफ़रीन ने पूछा।।
जी!क्योंकि दिवाकर मेरा छोटा भाई है, मैं उसका बड़ा भाई प्रभाकर, प्रभाकर ने जवाब दिया।।
जी! आप बाहर क्यों खड़े हैं, अन्दर आइए,आफ़रीन बोली।।
जी! नहीं,मैं यहीँ ठीक हूँ, बस मुझे आपसे कुछ बात करनी थी,प्रभाकर बोला।।
जी! अन्दर आइए,फिर आराम से बैठकर बातें कीजिए,आफ़रीन बोली।।
जी! आप इतना कह रहीं हैं तो ठीक है चलिए अन्दर चलकर बात करते हैं, प्रभाकर बोला।।
आफ़रीन ने प्रभाकर को बैठक में ले जाकर कहा,आप बैठिए मैं आपके लिए चाय लेकर आती हूँ।।
जी!नहीं, इसकी कोई जुरूरत नहीं हैं, बस आप मेरी बात सुन लीजिए, प्रभाकर बोला।।
अच्छा! ठीक है कहिए,जो कहना चाहते हैं, आफ़रीन बोली।।
जी! मैं ये कह रहा था कि आप मेरी बहन के समान है, कृपा करके मेरे भाई का पीछा छोड़ दीजिए, उसकी जिन्द़गी मत खराब कीजिए, नहीं तो मैं दुनिया वालों को मुँह ना दिखा सकूँगा, प्रभाकर इतना कहते कहते रो पड़ा।।
लेकिन इसका इल्ज़ाम आप मुझ पर क्यों लगा रहे हैं, वो मेरे पास आया था,मैं नहीं गई थी उसके पास,आफ़रीन बोली।।
जो भी हो बहन ! लेकिन मैं उसे ऐसे बरबाद होते हुए नहीं देख सकता,वो अगर बरबाद हो गया तो मेरे माँ बाप की आत्मा को शाँति नहीं मिलेगी, प्रभाकर बोला।।
तो आप मुझसे क्या चाहते है? आफ़रीन ने पूछा।।
जी! उसकी जिन्द़गी से दूर हो जाइए,आप उसे आसरा नहीं देंगीं तो शायद ठोकर खाकर उसका मन बदल जाए,वो अपने रास्ते से भटक गया,उसे उसकी मंजिल तक पहुँचाना है और अगर मेरा साथ देंगीं तो मैं अपने मरें हुए बाप को दिया हुआ वचन निभा पाऊँगा,प्रभाकर बोला।।
आपने मुझे बहन कहा है और आज तक किसी ने भी मुझे ऐसे अल्फाज़ नहीं बोले,सबने केवल गलत नज़रों से ही देखा है ,मैं पक्का वादा तो नहीं कर सकती लेकिन कोशिश जुरूर करूँगी कि आपका भाई सही रास्ते पर आ जाएं, आफ़रीन बोली।।
शुक्रिया बहन! मैं आपका ये एहसान जिन्द़गी भर नहीं भूलूँगा, प्रभाकर बोला।।
इसमें एहसान की क्या बात है, भाईजान! मेरी सोहबत में रहकर ही दिवाकर का ये हाल हुआ है,अगर मेरी ही वज़ह से वो सही रास्ते पर आ सकता है तो मेरे लिए तो ये खुशी की बात होगी,आफ़रीन बोली।।
अच्छा बहन! अब मैं चलता हूँ, हमेशा खुश रहों और दिवाकर ,आफ़रीन के सिर पर हाथ फेरकर जाने लगा तभी आफ़रीन बोली____
माफ कीजिएगा, भाईजान! आप कहाँ ठहरे हैं?
जी नारायण मंदिर के बगल में एक धर्मशाला है वहाँ ठहरा हूँ और जब तक दिवाकर सही रास्ते पर नहीं आ जाता ,मैं वहीं पर रहूँगा, प्रभाकर बोला।।
जी ,ठीक है,भाईजान! मैं इसलिए पूछ रहीं थीं कि कभी आपको कोई पैग़ाम देना हो तो कहाँ मिलूँ, आफ़रीन बोली।।
कोई बात नहीं बहन! अच्छा किया जो पूछ लिया,अच्छा अब मैं चलता हूँ, इतना कहकर प्रभाकर आफ़रीन के घर से चला आया।।
आफ़रीन अंदर आ गई और बिस्तर पर लेटकर दिवाकर के बारें में सोचने लगी कि क्या कहेंगी दिवाकर से और कैसे कहेंगी कि मेरी जिन्द़गी से दूर हो जाओ क्योंकि वो भी तो चाहने लगी हैं दिवाकर को,इतने दिनों बाद कोई मिला था जो उसे सच्ची मौहब्बत करता था और ऐसे कैसे वो दिवाकर को ख़फा कर सकती है, ये तो दिवाकर की पाक़ मौहब्बत की तौहीन होगा..... याह...ख़ुदा! तू ही कोई रास्ता सुझा,आफ़रीन ने मन में कहा।।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी,आफ़रीन ने अपनी नौकरानी समशाद को आवाज़ देकर कहा कि देखना तो दरवाजे पर कौन हैं, समशाद ने दरवाज़ा खोला तो सामने शिशिर था।।
अन्दर से आफ़रीन ने फिर से समशाद से पूछा कि कौन हैं? समशाद!
जी,शिशिर साहब आएं है और कह रहे हैं कि आपसे मुलाकात करना चाहते हैं, समशाद बोली।।
आफ़रीन ने सोचा,चलो रास्ता मिल गया,अगर मैं शिशिर से मेल बढ़ा लूँ तो दिवाकर खुद ही मुझसे दूरियाँ बना लेगा और ये सोचकर आफ़रीन न समशाद से कहा कि उन्हें भीतर आने दो।।
शिशिर भीतर आकर बोला____
सलाम कु़बूल करें,आफ़रीन जान!
जी कहिए,क्या काम है? बहुत दिनों बाद तशरीफ़ लाएं,आप तो जैसे हमें भूल ही गए हैं हुजूर! आफ़रीन बोली।।
क्या बात है? आफ़रीन जान! आज तो आपकी बातों से शहद टपक रहा है, वरना हम तो आपके कद़मो पर अपना दिल बिछाए रहते हैं और सिवाय नफरत के कुछ भी नहीं मिलता हमें,शिशिर बोला।।
आपको कोई गलत़फ़हमी हो रही है हुजूर! ऐसा कुछ नहीं है, आफ़रीन बोली।।
क्या हुआ,मन भर गया क्या आपका दिवाकर से,शिशिर ने आफ़रीन से पूछा।।
उसके पास हैं ही क्या? ना दौलत ना शौहरत और ऐसे लोगों से आफ़रीन दूर ही रहती हैं, दौलत के लिए ही तो मौहब्बत का नाटक किया था उससे,उसकी दौलत खत्म तो हमारी मौहब्बत खत्म,आफ़रीन बोली।।
अच्छा तो ये बात है, शिशिर बोला।।
और क्या? उसमे ऐसे कौन से हीरे जवाहरात जड़े हैं जो उससे मौहब्बत की जाएं,वो इस लायक हैं ही नहीं, आफ़रीन बोली।।
मैनें तो पहले ही कहा था कि उसे एक भी अकल नहीं है और जो भी उसे आता है, वो सब मेरा सिखाया हुआ है, गाँव से आया था तो एकदम देहाती गँवार था,मेरी संगत मे रहकर ही उस पर शहर का रंग चढ़ा था और मुझे ही आँखें दिखाने लगा,शिशिर ने कहा।।
उसमे वो बात कहाँ जो आप में हैं,अच्छा ये सब छोड़िए ये बताइए कि क्या ख़िदमत करूँ आपकी,क्या लेंगे ? एक एक ज़ाम हो जाए,आफ़रीन ने पूछा
नेकी और पूछ पूछ,शिशिर बोला।।
तो चलिए आज आपको अपने हाथों से जा़म बनाकर पिलाते हैं, आफ़रीन बोली।।
इसी तरह आफ़रीन और शिशिर की बातें चल रहीं थीं कि दरवाज़े की घंटी बजी__

क्रमशः___
सरोज वर्मा___