vachan - 4 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वचन--भाग (४)

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वचन--भाग (४)

वचन--भाग(४)

प्रभाकर को देखते ही कौशल्या बोली___
तू आ गया बेटा!तूने तो कहा था कि तुझे कुछ ज्यादा दिन लग जाएंगे, सबसे मिलकर आएगा लेकिन तू इतनी जल्दी आ गया।।
हाँ,माँ! यहाँ की चिंता थी कि दुकान कैसीं चल रही होगीं और दिवाकर ठीक से पढ़ रहा होगा कि नहीं, प्रभाकर ने कौशल्या से कहा।।
कितनी चिंता करता है बेटा! तूने हम सब के लिए अपनी पढ़ाई तक छोड़ दी,तेरे जैसा बेटा भगवान सबको दे,कौशल्या प्रभाकर को आशीष देते हुए बोली।।
मेरी मेहनत तो तब सफल होगी माँ,जब मैं दिवाकर को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बना दूँगा,बस इतना आशीर्वाद दो कि बाबूजी को दिया हुआ वचन निभा पाऊँ,प्रभाकर बोला।।
भगवान!तेरी हर मनोकामना पूरी करें बेटा! कौशल्या बोली।।
और हाँ ये नालायक दिवाकर कहाँ हैं? दिख नहीं रहा, प्रभाकर ने पूछा।।
बेटा! मेरी कहाँ सुनता है, तू रहता हैं तो तेरा थोड़ा डर बना रहता,तू नहीं था तो फिर उसे काहें का डर,घूम रहा होगा कहीं आवारा बना,कौशल्या बोली।।
ठीक है मैं नहाकर आता हूँ, उसके बाद खाना खाकर आराम करूँगा, प्रभाकर बोला।।
तब तक दिवाकर भी आ गया और आते ही प्रभाकर से पूछा___
अरे,भइया!इतनी जल्दी आ गए और स्टेशन से कैसे आएं?
वो मिल गया था कोई जो इसी गाँव में आ रहा था उसी के साथ आ गया, प्रभाकर ने दिवाकर को जवाब दिया।।
ठीक है तो आप नहा लीजिए फिर खाना खाते है, दिवाकर बोला।।
कुछ देर बाद दोनों भाई खाना खाने बैठे,तभी प्रभाकर ने दिवाकर से पूछा___
क्यों रे! पढ़ाई कैसी चल रही हैं?
एकदम फर्स्टक्लास भइया! दिवाकर ने जवाब दिया।।
इम्तिहान में अच्छे अंकों से पास हो जाएगा या नहीं, प्रभाकर बोला।।
बिल्कुल भइया! दिवाकर बोला।।
अच्छा ये सब बातें बाद में करना पहले चैन से खाना खा लो,कौशल्या बोली।।
वहीं तो माँ! मैं भी तो वहीं कह रहा था कि भइया को मुझ पर जरा भी भरोसा नहीं है कि मैं पढ़ाई करता हूँ कि नहीं, दिवाकर बोला।।
नहीं रे!ऐसा नहीं हैं, मै तो ये चाहता हूँ कि तू पढ़ लिख कर अच्छा इंसान बनें,सारे गाँव में मेरा नाम हो ,मैं जहाँ से गुजरूँ तो लोग कहें कि देखो वो जा रहा है दिवाकर का भाई! प्रभाकर बोला।।
हाँ! बेटा,देवा जरूर बड़ा आदमी बनेगा, तेरा त्याग बेकार नहीं जाएगा, तूने हम सबके लिए अपनी पढ़ाई और सपनों से मुँह मोड़ा,तूने भाईचारे की एक मिसाल पेश की हैं,कौशल्या बोली।।
हाँ,भइया! माँ सच कह रही है, आपने हमलोंगों के लिए अपने सपनें दाँव पर लगा दिए,दिवाकर बोला।।
बस..बस..रहने दो,तो क्या हुआ,मेरा जज बनने का सपना अधूरा रह गया,अब मेरा सपना दिवाकर पूरा करेगा, मेरा भाई,प्रभाकर बोला।।
ले ये लड्डू तो खाकर देख, प्रभु! कैसे बनें हैं, कल ही शाम को बिन्दवासिनी दे गई थी,कौशल्या बोला।।
माँ!इस लड्डू की सबसे ज्यादा जरूरत तुम्हारे बड़े बेटे प्रभु को नहीं छोटे बेटे देवा को हैं, उसे रात रात भर पढ़ाई जो करनी हैं, दसवीं तो ये अच्छे अंकों से पास कर चुका है और ग्यारहवीं के इम्तिहान भी आने वाले हैं फिर बाहरवीं पास होते ही इसे पढ़ाई के लिए शहर भेज दूँगा, वहाँ ये भी मेरी तरह हाँस्टल में रहेगा,प्रभाकर बोला।।
ऐसे परिवार का वार्तालाप चलता रहा___
और एक रोज शाम के वक्त___
प्रभाकर ने मुनीम जी कहा कि___
मुनीम काका! मैं थोड़ा नहर तक टहलने जा रहा हूँ, आप थोड़ा दुकान सम्भालिए और अगर कोई ग्राहक ना आए तो दुकान बंद करके चाबियाँ माँ को दे दीजिएगा।।
जी बड़े भइया! मुनीम काका बोले।।
और प्रभाकर चल पड़ा नहर की ओर,पहाड़ियों मे डूबते हुए सूरज की लालिमा खेंतों को ढ़क रही थी,पंक्षी अपने कोटरों में चल पड़े थे,चरवाहें भी अपने अपने जानवरों को चराकर घर लौट रहे थे,प्रभाकर को जो भी जान पहचान का मिलता वो उसे राम...राम बोल देता।।
और ऐसे ही टहलते टहलते नहर के किनारे अपनी धुन मे मस्त चला जा रहा था,तभी उसे किसी ने पीछे से टोका__
अरे,श्रीमान! आप यहाँ कैसे?
जी आप यहाँ, प्रभाकर ने पूछा।।
जी मैं हमेशा बजने वाली सारंगी, सारंगी बोली।।
जी,देवी जी आप यहाँ क्या करने आईं हैं, प्रभाकर ने पूछा।।
जी, मछली पकड़ने ,घर में मन नहीं लग रहा था,सारंगी बोली।।
जी आप माँसाहारी हैं, प्रभाकर ने पूछा।।
जी नहीं, अपने कुत्ते शेरू के लिए सारंगी बोली।
तो चलिए फिर साथ में टहलते हैं, प्रभाकर बोला।।
लेकिन मैं अजनबियों से बात नहीं करती,मुझे तो आपका नाम भी पता नहीं हैं, सारंगी बोली।।
जी उस दिन मैं किसी बात को लेकर बहुत परेशान था इसलिए आपके साथ ऐसा सुलूक कर बैठा,मेरा नाम प्रभाकर हैं, प्रभाकर बोला।।
जी अच्छा चलिए और सारंगी,प्रभाकर के साथ टहलने निकल पड़ी__
ऐसे ही दिन बीत रहें थें, प्रभाकर दिनभर दुकान सम्भालता और रात को दिवाकर को भी पढ़ाता, लालटेन की रोशनी से उसकी आँखों में जलन होने लगती क्योंकि शहर में तो वो बल्ब की रोशनी मे पढ़ता था,लेकिन फिर भी वो दिवाकर को पढ़ाता।।
जो भी सुनता वो यही कहता कि सेठ मनीराम जी ने बहुत अच्छे कर्म किए होंगें जो ऐसा लायक बेटा पाया है, बाप को दिया हुआ वचन बखूबी निभा रहा है।।
इधर बिन्दू भी दिवाकर से ज्यादा ना मिलती,उसकी पढ़ाई की वजह से,दिवाकर तो बहुत कोशिश करता कि चल नहर के किनारे घूमने चलें,चल खेंतों में चलते हैं लेकिन बिन्दू ना मानती,वो दिनभर घर में रहकर घर के कामकाज सीखती,कभी कुछ अच्छा बनाती तो थोड़ी देर के लिए दिवाकर के घर चली आती।।
लेकिन दिवाकर के बिना उसका मन ना लगता और उसे अनमना देखकर बिन्दू की माँ ने पूछा ही लिया कि क्या बात है तू इतनी अनमनी क्यों रहती हैं, तबियत ठीक नहीं हैं तो वैद्य को बुलाऊँ।।
लेकिन बिन्दू बोली की ऐसी कोई बात नहीं हैं लेकिन इधर हीरालाल जी ने बिन्दू के लिए एक लड़का देख लिया और वे लोग नवरात्रि में बिन्दू को देखने आने वाले थे,इस बात से परेशान होकर बिन्दू ने सोचा क्यों ना ये बात कौशल्या काकी से कहूँ और वो माँ से कहेंगी कि मुझे ब्याह नहीं करना।।
बिन्दू कौशल्या के पास पहुंँचकर बोली__
काकी!बाबूजी बोले कि लड़के वाले मुझे नवरात्रि मे देखने आएंगें लेकिन मै ब्याह नहीं करना चाहती।।
क्यों बिटिया, तेरे मन में कोई और हैं क्या? कौशल्या ने पूछा।।
जी,काकी,बिन्दू बोली।।
कौन हैं वो,कौशल्या ने पूछा।।
जी वो,बिन्दू शरमा रही थी।।
तभी प्रभाकर ने अंदर आकर कहा कि मैनै सब सुन लिया हैं और शायद वो हमारा दिवाकर हैं लेकिन बिन्दू ये बात उससे अभी मत कहना नहीं तो उसका मन पढ़ाई से उचट जाएगा।।
जी भइया! मैं भी ये कभी नहीं चाहूँगी कि देवा का मन पढा़ई से भटक जाए,बिन्दू बोली।।
मैं वचन देता हूँ, बिन्दू !जिस दिन दिवाकर कुछ बन जाएगा, मैं स्वयं उससे तेरा ब्याह करूँगा, ये कहते हुए प्रभाकर ने बिन्दू के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।।
मुझे आप पर पूरा भरोसा हैं भइया, बिन्दू बोली।।
अच्छा अब तू निश्चिन्त होकर घर जा ,काका से मैं बात करूँगा कि तेरा ब्याह उस जगह ना हो,प्रभाकर बोला।।
और बिन्दू अपने घर चली गई___

क्रमशः__
सरोज वर्मा__