vachan - 2 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | वचन--भाग (२)

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वचन--भाग (२)

वचन--भाग(२)

उधर शहर में प्रभाकर अपना सामान बाँधने में लगा था तभी उसके मित्र कैलाश ने आकर पूछा___
कहीं जा रहे हो मित्र!
हाँ! रात की गाड़ी से निकलूँगा, गाँव जा रहा हूँ, इम्तिहान जो हो गए हैं और अभी नतीजे आने में वक्त हैं तो यहाँ भी रहकर क्या करूँगा? प्रभाकर बोला।।
और सुनैना का क्या?वो तुम्हारे बिन रह पाएंगी, कैलाश ने पूछा।।
हाँ! भाई यही तो कसौटी है, कभी कभी अपनोँ की खातिर बहुत कुछ त्यागना पड़ता है और अगर उसे मुझसे सच्चा प्रेम है तो मेरा इंतज़ार जरूर कर पाएंगी, नहीं तो इसका मतलब उसकी मौहब्बत में खोट हैं, प्रभाकर बोला।।
सुनैना को बताया कि तुम गाँव जा रहे हो,कैलाश ने पूछा।।
हाँ,शाम को उसके घर जाकर बता दूँगा, प्रभाकर बोला।।
अच्छा मित्र! चलता हूँ, कुछ जरूरी काम है और इतना कहकर कैलाश चला गया।।
सुनैना, शहर के सबसे बड़े नामीगिरामी डाक्टर राजीव सिंघानिया की बेटी है, सिंघानिया साहब राजे रजवाड़ों के खानदान से ताल्लुक रखते हैं, वो प्रभाकर को इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वो पढ़ाई में बहुत अच्छा है और हमेशा अव्वल आता है, वकालत की पढ़ाई पढ़ रहा है, उस का इरादा जज बनने का है, सुनैना भी प्रभाकर के साथ काँलेज में है और साथ पढ़ते पढ़ते एक दूसरे को पसंद करने लगे,सिंघानिया साहब को जब ये बात पता चली तो उन्हें कोई भी आपत्ति ना हुई,उन्होंने भी मन में सोचा कि प्रभाकर जैसा होनहार लड़का उन्हें कहाँ मिलेगा।
शाम को प्रभाकर सुनैना के घर पहुँचा और अपने गाँव जाने की खबर दी___
जाओ! मैं तुमसे नहीं बोलती,सुनैना बोली।।
पर क्यों देवी जी! प्रभाकर ने पूछा।।
पहले तुम इसलिए नहीं मिलते थे कि कहते थे कि इम्तिहान हैं, वक्त नहीं है,अब सोचा था कि तुम और मैं अब मिलकर कुछ बातें किया करेंगे तो तुम घर जा रहे हो,सुनैना बोली।।
लेकिन कितने दिनों से घर भी तो नहीं गया,मैं घर का बड़ा बेटा हूँ तो परिवार वालों के प्रति भी मेरा कोई फर्ज बनता हैं कि नहीं, प्रभाकर बोला।।
अच्छा, ठीक है, कब तक गाँव से लौटोगे, सुनैना ने पूछा।।
बस,नतीजे आने के पहले लौट आऊँगा, प्रभाकर बोला।।
और उस शाम प्रभाकर, सुनैना से मिलकर रात की गाड़ी से अपने गाँव चला आया।।
दोपहर तक गाड़ी स्टेशन पहुँच गई, दिवाकर पहले से ही पूरन ताँगेवाले के साथ स्टेशन पहुँच गया था,प्रभाकर गाड़ी से अपना सामान लेकर जैसे ही उतरा दिवाकर ने फौरऩ उसके चरण स्पर्श किए और प्रभाकर ने दिवाकर से कहा___
बस..बस. रहने दो और उसे गले लगाकर पूछा,कैसा है तू?
मैं ठीक हूँ भइया! और आप कैसे हैं?दिवाकर ने पूछा।।
मैं भी ठीक हूँ रे!प्रभाकर ने जवाब दिया।।
और दोनों भाई ताँगें में सामान लादकर निकल पड़े गाँव की ओर ,चैत का महीना चल रहा था,हवाओं में गर्माहट हो आई थीं,जहाँ तहाँ गेहूँ के खेंत सुनहरे दिख रहे थे क्योंकि फसल पक चुकी थीं, तालाब पोखरों में भैंसे नहाती हुई दिख जातीं और बेसरम के गुलाबी फूल हर तालाब और पोखर की सतह पर तैरते हुए दिख रहें थे,प्रभाकर को ये सब देखकर बहुत आनंद आ रहा था।।
घर पहुँचे, प्रभाकर ने माँ बाबूजी के चरण स्पर्श किए और बोला___
माँ! बहुत भूख लगी है, खाने में क्या क्या हैं?
सब तेरी पसंद का बनाया हैं, कटहल की सब्जी,भरवाँ करेले,अरहर की दाल,कच्चे आम की चटनी ,चावल,रोटी और मीठे में बेसन का हलवाँ,जैसा तुझे पसंद हैं, कौशल्या बोली।।
अब तो मेरी भूख और भी बढ़ गई, मै बस झट से कुएंँ पर से नहाकर आता हूँ फिर सब साथ बैठकर खाना खाएंगें।।
और सबने साथ बैठकर खाना खाया,फिर प्रभाकर बाबूजी के साथ बैठकर बातें करने लगा।।
सेठ मनीराम ने बताया कि दिवाकर कुछ भी नहीं पढ़ता लिखता,दिनभर आवारा बना घूमा करता है और उसके साथ वो हीरालाल की बिटिया बिन्दू भी दिनभर घूमती है, वो तो लड़की है, घर गृहस्थी के दो चार काम सीख जाएंगी तो उसकी तो शादी हो जाएंगी लेकिन अगर ये देवा निखट्टू का निखट्टू रह गया तो कौन भला आदमी इसे अपनी लड़की देंगा, तू दिनरात सपनें देखता हैं कि तेरी तरह तेरा भाई भी पढ़ाई में होशियार हो लेकिन इसे तो बिल्कुल शरम नहीं आती,ये तो बिलकुल चिकना घड़ा हो चुका है बेशरम कहीं का,कितना भी समझाओं लेकिन इसके कान में जूँ तक नहीं रेंगती।।
ठीक है बाबू जी अब मैं यहाँ आ गया हूँ तो इतने दिन यहाँ रहकर दिवाकर की पढा़ई देखूँगा और ये जानने की कोशिश करूँगा कि ये पढा़ई से इतना जी क्यों चुराता हैं
अब प्रभाकर ने दिवाकर पर नजर रखना शुरु कर दिया और दिवाकर का चंचल मन तो हमेशा बिन्दू में ही रमा रहता,ये बात प्रभाकर को भी समझ में आती थी और वो दिवाकर को समझाता कि पढ़ाई कितनी जरूरी हैं, जब तो पढ़ लिख बड़ा आदमी बन जाएगा तो बिन्दू को तुझ पर कितना फ़क्र होगा।।
अब तू बिन्दू से केवल शाम को ही मिला करेंगा, दिनभर आवारागर्दी करने की कोई जरुरत नहीं है,पढ़ाई पर ध्यान दें,बारहवीं पास करने के बाद तुझे भी मैं अपने साथ शहर ले जाऊँगा।।
दिवाकर को भी प्रभाकर की बातें समझ आ गई और ये सब बातें बिन्दू भी अपने घर के आँगन में खड़े होकर सुन रही थीं,उसने मन में सोचा,सच ही तो कह रहें हैं बड़े भइया, अब मैं देवा को ज्यादा परेशान नहीं करूँगी।।
और उस दिन के बाद बिन्दू भी समझ चुकी थी कि दिवाकर की पढ़ाई लिखाई कितनी जरूरी है।।
गाँव पहुँच कर प्रभाकर बहुत खुश था,लगभग डेढ़ महीने ही बीते होगें कि सेठ मनीराम की बहुत तबियत खराब हो गई, शहर के डाँक्टर को भी बुलाया गया लेकिन कोई असर ना हुआ,प्रभाकर बहुत परेशान सा रहने लगा,उधर इम्तिहान के नतीजे आने का वक्त हो गया था और बाबूजी की तबियत में कोई सुधार दिखाई नहीं दे रहा था,कौशल्या भी बहुत परेशान थीं, क्या करें बेचारी अब उसको अपना परिवार बिखरता हुआ नजर आ रहा था,सबका रो रोकर बुरा हाल था।।
और फिर एक रोज सेठ मनीराम ने प्रभाकर को अपने पास बुलाकर कहा____
लगता हैं बेटा! मेरे जाने का वक्त आ गया है, अब से इस घर की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर हैं, भला ! दुनिया ऊँगली ना उठा पाएं कि बड़े बेटे ने अपने कर्तव्य का निर्वहन ठीक से नहीं किया, दुकान की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी और श्रद्धा के साथ निभाना,बूढ़ी माँ का ख्याल रखना और छोटे भाई को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाना,इतना काबिल बनाना कि वो एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनें,दुनिया उसे सलाम करें, बोल बेटा रखेगा ना ! अपने पिता की बात का मान,निभाएगा ना अपना कर्तव्य, वचन दे मुझे.... वचन दे मुझे..!!
हाँ.... बाबूजी मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं कभी भी अपने कर्तव्य से मुँह ना मोड़ूगा,प्रभाकर बोला।।
और इतना सुनकर सेठ मनीराम जी के प्राणपखेरू उड़ गए।।
और घर में रोना धोना मच गया___
मनीराम जी की तेहरवीं हो चुकी थीं, प्रभाकर अपनी माँ से बोला___
माँ! सोचता हूँ कि शहर जाकर अपना सामान उठा लाऊँ और सबको बता आऊँ कि अब मैं हमेशा के लिए गाँव में जाकर बस रहा हूँ।।
लेकिन बेटा ! तेरी पढ़ाई, कौशल्या बोली।।
माँ! बाबूजी को वचन जो दिया था कि मैं अबसे घर और उनकी दुकान सम्भालूँगा और दिवाकर को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाऊँगा, अब मुझे अपना वचन निभाने का समय आ गया है, प्रभाकर बोला।।
ठीक है बेटा!जो तू ठीक समझें,कौशल्या बोली।।
और प्रभाकर अपना और भी सामान लेने शहर पहुँचा, प्रिन्सिपल से मिलकर बोला कि अब वो पढ़ाई छोड़ रहा हैं__
लेकिन क्यों बेटा! इम्तिहान के नतीजे भी आ गए हैं, तुम अव्वल आए हो फिर भी पढ़ाई छोड़ना चाहते हो,प्रिन्सिपल ने पूछा।।
हाँ,सर! बाबूजी नहीं रहें और घर का बड़ा बेटा होने के नाते,घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई हैं, मरते समय बाबू जी को वचन दे चुका हूँ कि अब से मैं गाँव में रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाऊँगा, प्रभाकर बोला।।
ठीक है बेटा,अब मैं क्या कहूँ लेकिन हमारे काँलेज ने एक अच्छा छात्र खो दिया, प्रिन्सिपल बोले।।
और प्रभाकर,सुनैना से भी मिलने पहुँचा___
मैं पढा़ई छोड़कर गाँव में रहूँगा, हमेशा के लिए, प्रभाकर ने सुनैना से कहा।।
लेकिन क्यों? सुनैना ने पूछा।।
अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए, प्रभाकर बोला।।
और हमारा ब्याह,सुनैना ने पूछा।।
अगर ,गाँव में रह सकतीं हो तो चलो अभी ब्याह करके गाँव ले चलता हूँ, प्रभाकर बोला।।
नहीं!प्रभाकर ,मुझे तुमसे ये आशा नहीं थी,मुझे लगा कि तुम जज बनकर बड़े आदमी बनोगे और तब मुझसे ब्याह करोगें, सुनैना बोली।।
इसका मतलब तुम्हारी मौहब्बत सिर्फ़ दिखावे की थी,बनावटी थीं, तुमने सिर्फ़ मेरी शौहरत से मौहब्बत की हैं, प्रभाकर बोला।।
तुम्हें जो समझना हैं समझ लो,सुनैना बोली।।
मैं सब समझ गया और इतना कहकर प्रभाकर सुनैना के घर से वापस आ गया।।
प्रभाकर का मन आज बहुत ही दुखी था,वो रास्ते में चलते जा रहा था,उसकी आँखों से पल पल में इक्का दुक्का आँसू भी टपक जाते,जिसे वो अपने कुर्ते की बाँह से पोंछ लेता, आज उसे एहसास हो रहा था कि ये दुनिया सिर्फ़ स्वार्थ से बनी हैं, वो दुखी मन से हाँस्टल पहुँचा,सामान बाँधकर ,मित्रों से विदा ली और स्टेशन जा पहुँचा।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा__