Sholagarh @ 34 Kilometer - 16 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 16

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 16

शोलागढ़


इंस्पेक्टर सोहराब ने मेकअप रूम में ही कॉफी पी और फिर एक किताब पढ़ने लगा। यह किताब स्पेन के प्रसिद्ध चित्रकार पाब्लो पिकासो की प्रेमिका रही सिलवेट डेविड के बारे में थी। यह वही किताब थी, जिसे कुछ दिन पहले उसने शेयाली के प्रेमी पेंटर विक्रम खान के हाथों में देखा था। सोहराब तकरीबन चार घंटे उस किताब को पढ़ता रहा। उसके बाद वह आराम कुर्सी पर ही सो गया।

दो घंटे की नींद के बाद वह उठा और वहां से सीधे अपने बेडरूम में आया और फिर वाशरूम में नहाने के लिए चला गया। शावर लेने के बाद गाउन पहना और फिर वापस मेकअप रूम में आ गया।

आधे घंटे के मेकअप के बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने खुद को एक मजदूर के गेटअप में ढाल लिया था। अभी भी कुछ काम बचा था। उसने नारियल के तेल में जिंक पाउडर घोला और उनसे बालों की कुछ लटें सफेद कर लीं। अब वह कुछ उम्र दराज सा लगने लगा था। एक डिब्बे को खोल कर उसमें से बड़ा सा मसा उठाकर बाएं गाल के ऊपर चिपका लिया। इस काले मसे में एक बाल भी निकला हुआ था। अब उसका हुलिया एकदम बदल गया था।

मेकअप रूम के वार्डरोब से उसने काफी पुराने और साफ कपड़े निकाले और उसे पहन लिए। रिवाल्वर पैंट की दाहिनी जेब में डाल ली। कुछ गोलियां बाईं जेब में रखीं। गोलियों के ऊपर बीड़ी का बंडल और एक माचिस भी रख ली। बाएं हाथ की बीच वाली उंगली में लोहे का एक छल्ला डाल लिया।

एक ड्रार खोल कर पुराना फीचर मोबाइल निकाला और उसमें स्मार्टफोन का सिम निकाल कर डाल लिया। इसके बाद फोन आन करके जेब के हवाले कर दिया। पैरों में पुरानी सैंडल डालकर एक कुर्सी पर बैठकर सिगार सुलगा ली।

सिगार खत्म करते ही वह कोठी से बाहर आ गया। कोठी से मेन रोड तक का लंबा रास्ता तय करते हुए वह गेट से बाहर निकल आया और पैदल ही एक तरफ चल दिया।

कोठी से तकरीबन तीन किलोमीटर पैदल चलते हुए वह टैक्सी स्टैंड पहुंचा और एक टैक्सी वाले से शोलागढ़ चलने को कहा।

“साहब, वहीं रुक जाएं या वापस आएं, लेकिन किराया दोनों तरफ का ही लगेगा... क्योंकि वहां से खाली वापस आना पड़ेगा।” टैक्सी ड्राइवर ने कहा।

“मुझे मालूम है।” सोहराब ने संक्षिप्त उत्तर दिया और टैक्सी के पीछे का दरवाजा खोलकर बैठ गया। टैक्सी रवाना हो गई।

इस वक्त रात के आठ बजे थे। शोलागढ़ यहां से तकरीबन तीन सौ किलोमीटर दूर था। सोहराब को उम्मीद थी कि वह छह से सात घंटे में वहां आसानी से पहुंच जाएगा।


जोंक


शेयाली की चीख सुनकर सलीम तेजी से उसकी तरफ पलटा था। “चीख क्यों रही हो?”

“मेरे पैर में किसी चीज ने काट लिया है!” श्रेया ने कहा।

“रुको मैं देखता हूं।” सलीम उसका पैर पानी से निकाल कर अंधेरे में टटोल कर चेक करने लगा। पैर में एक बड़ी सी जोंक चिपकी हुई थी। सलीम ने जोंक पर जोर से चिकोटी काटी और उसने श्रेया का पैर छोड़ दिया। सलीम ने उसे पीछे रास्ते पर फेंक दिया।

“अगर ज्यादा देर हो जाती तो जोंक तुम्हारी खाल के साथ ही बाहर निकलती। तुम्हें कुछ देर हल्का दर्द रहेगा अभी।” सलीम ने कहा, “चलो अब आगे बढ़ते हैं।”

“तुम बहुत अच्छे हो। अगर तुम नहीं होते तो मैं इस गुफा में ही मर जाती। या फिर वह जंगली मुझे मार देते।” श्रेया ने जज्बाती होते हुए कहा। उसकी आंखें नम हो गई थीं।

गुफा के अंदर बह रही उस उथली नदी में दोनों आधे घंटे से ज्यादा यूं ही चलते रहे। कभी-कभी पानी कमर तक आ जाता तो श्रेया की चीख निकल जाती। सलीम को इस बात का अंदाजा था कि आगे कहीं न कहीं रास्ता जरूर होगा। जहां यह सोता बाहर निकला होगा। इस उम्मीद की एक वजह यह भी थी कि उन्हें सांस लेने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। वैसे भी वह हार मानने वालों में से नहीं था।

अब पानी की रफ्तार तेज हो गई थी। यानी आगे ढलान थी। सलीम पथरीली दीवार पर हाथ जमा कर चल रहा था, ताकि फिसलने न पाए। उसके पैरों में स्पोर्ट्स शूज अभी भी थे। जंगलियों ने जूतों को बख्श दिया था। जूतों के तले में मजबूत ग्रिप थी। श्रेया ने सलीम के शाने को मजबूती से पकड़ लिया था। उसे डर लग रहा था, साथ ही यह यकीन भी था कि सलीम सब संभाल लेगा। अब तक उसने यही महसूस किया था।

सलीम का अंदाजा सही निकला। वह अब पहाड़ी गुफा के मुहाने पर खड़े थे। रात का अंधेरा हर तरफ फैला हुआ था। सलीम को इस बात का अंदाजा भी नहीं हुआ था कि उसने रात के बाद एक पूरा दिन गुफा से बाहर आने की कोशिश में गुजार दिया है। वह समझ रहा था कि यह वही रात है जब वह गुफा के अंदर फंसा था। हकीकत में यह दूसरी रात थी। चांदनी रात होने की वजह से सब कुछ धुंधला सा नजर आ रहा था। चांद नीचे उतर रहा था। ऐसा लगता था कि वह भी थक गया है।

सलीम और श्रेया जहां पर खड़े थे उसके नीचे नदी बह रही थी। ऊपर का पानी भी उसी में गिर रहा था। नदी का कलकल करता शोर उन्हें साफ सुनाई दे रहा था। वह दोनों उस नदी से तकरीबन दस फिट की ऊंचाई पर थे। ठंडी हवा सलीम को काफी भली लगी। उसने कई लंबी-लंबी सांसें लीं। इससे उसे ताजगी का एहसास हुआ और शरीर में नई जान आ गई। वरना सारा बदन थक कर चूर हो रहा था।

मौजूदा हालात सलीम के लिए परेशानकुन थे। उसका दिल कह रहा था कि वह उन्हीं जंगलियों के पास लौट जाए। किसी दिन मुनासिब मौका देखकर वहां से शेयाली और श्रेया को लेकर निकल जाए। दिमाग कहता था कि वह इतने घने जंगल में उन दोनों को लेकर जाएगा कहां। जंगली तो उसे लगातार निगरानी में रख रहे थे। उसने आसपास का इलाका भी नहीं देखा था। उसने दिमाग की सुनी और आगे बढ़ते जाने का फैसला किया।

वह शेयाली को जंगल से अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन सब कुछ उलट-पुलट गया था। अब उसकी कोशिश थी कि वह इस पूरे इलाके को समझ सके, ताकि सोहराब के साथ वापस लौट कर शेयाली को जंगलियों से आजाद करा सके। उसे इस बात की खुशी थी कि शेयाली जिंदा थी। अगर वह उसे अपने साथ ले जा पाता तो सोहराब बहुत खुश होता।

अलबत्ता उसे इस बात का सुकून था कि वह श्रेया को सुरक्षित उसके घर तक पहुंचा सकेगा। तफरीह के चक्कर में उसी ने श्रेया को इतनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया था।

श्रेया उसे पकड़े खड़ी थी और आसपास की सभी चीजों को आंखें फाड़-फाड़ कर देख रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब सलीम क्या करेगा। वह कुछ देर यूं ही खड़ी रही, फिर उसने पूछ ही लिया, “अब क्या करना है?”

सलीम ने नीचे देखते हुए संक्षिप्त उत्तर दिया, “देखते हैं।”

नीचे बहती नदी और ठंडी हवा सब कुछ काफी पुरसुकून था। हालांकि सलीम को सुकून नहीं था, क्योंकि अभी परेशानी खत्म नहीं हुई थी। सलीम ने चांदनी के धुंधलके में आसपास का जायजा लिया, लेकिन नीचे जाने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आया। गुफा के मुहाने के आसपास की दरारों में कुछ पेड़ जरूर नजर आ रहे थे, लेकिन उनसे भी कोई मदद नहीं मिलने वाली थी।

सलीम कुछ देर यूं ही खड़ा नीचे देखता रहा। इसके बाद उसने नदी में कूदने का फैसला कर लिया। यह फैसला खतरनाक भी हो सकता था, क्योंकि अगर पानी ज्यादा गहरा न हुआ तो हाथ-पैर टूट सकते थे।

कुछ देर वह सोचता रहा। एक मौका था कि वह दिन निकलने का इंतजार करता और फिर रास्ता तलाशता। उसे यह फैसला सही नहीं लगा। सुबह होते ही जंगली उसे तलाशना शुरू करेंगे। फिलहाल वह जंगलियों के साथ टकराव को टालना चाहता था। वह रात ही रात में यहां से दूर निकल जाना चाहता था। यही वजह थी कि उसने नदी में कूदने का फैसला ले लिया था। रिस्क उठाना ही था।

“क्या कोई हेलिकॉप्टर हमें लेने आने वाला है!” श्रेया ने हंसते हुए पूछा।

“नहीं, हमें छलांग लगानी है नदी में। पहले मैं कूदुंगा और उसके बाद तुम। डरना नहीं कूद ही जाना। मैं नीचे तुम्हें संभाल लूंगा।” सलीम ने उसे समझाते हुए कहा।

“मैं नहीं कूदूंगी। मुझे डर लग रहा है।” श्रेया ने उसके हाथों को जोर से पकड़ते हुए कहा।

“डरो नहीं, मुझ पर भरोसा रखो। हमें रात में ही यहां से दूर निकलना होगा। जंगली सुबह होते ही मुझे तलाशेंगे।” सलीम ने उसे समझाते हुए कहा।

“ठीक है।” श्रेया ने नदी को देखते हुए कहा।

“मैं कूदने जा रहा हूं। मैं नीचे से तुम्हें हाथ दिखाऊंगा उसके बाद तुम कूद जाना।” सलीम ने कहा।

“ओके।” श्रेया ने जवाब में कहा।

इसके बाद सलीम ने नीचे छलांग लगा दी।


अजनबी


इंस्पेक्टर सोहराब के जाने के बाद विक्रम खान फिर शराब पीने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि पेंटिंग के मामले में उसे क्या करना चाहिए। वह पेंटिंग को किसी भी कीमत पर अपने पास ही रखना चाहता था। उसने फिलहाल हाशना से तो छुटकारा पा लिया था, लेकिन अब एक विदेशी उस पेंटिंग को हासिल करना चाहता था। उसे सोहराब से भी इस मामले में कोई मदद नहीं मिली थी। विक्रम फिर से बैठकर शराब पीने लगा। वह काफी बेचैन था।

दो पैग पीने के बाद वह उठकर अपने बेडरूम में चला गया। वहां उसने एक बड़ी सी अलमारी खोलकर एक बड़ा सा खास तरह का बैग निकाला। बैग को उसने बेड पर रख दिया और उसकी जिप खोल दी। उसमें से विक्रम ने एक पेंटिंग निकाली। वह मुलायम कपड़े में लिपटी हुई थी। कपड़ा हटाकर वह पेंटिंग को ध्यान से देखने लगा। यह वही न्यूड पेंटिंग थी, जिसे हाशना ने उसे देखने को दिया था।

पेंटिंग बहुत खूबसूरत थी। इसमें एक विदेशी महिला बिना कपड़ों के लेटी हुई थी। उसके लंबे सुनहरे बाल उसके सीने पर बिखरे हुए थे। पेंटिंग इतनी जीवंत थी कि ऐसा लगता था कि अभी वह महिला उठ बैठेगी।

विक्रम कुछ देर तक उस पेंटिंग को देखता रहा, उसके बाद उसने उसे फिर से पैक कर दिया। बैग को उठाकर वह बेडरूम की दीवार के पास जाकर खड़ा हो गया। वहां उसने वार्डरोब खोला और फिर वार्डरोब का पूरा बैक हाथों से सरका दिया। अब वहां एक दरवाजा नजर आने लगा था। दरवाजे से लगी सीढ़ियां नीचे तक जाती थीं। अंदर एक हल्का बल्ब जल रहा था।

विक्रम पेंटिंग वाला बैग लेकर सीढ़ियां उतरने लगा। नीचे एक बड़ा सा हाल था। वहां एक छोटा सा बार भी था। वहां कई तरह की शराब की बोतलें नजर आ रही थीं। एक तरफ सोफा पड़ा हुआ था और दूसरी तरफ दो बेड रखे थे। डाइनिंग टेबल भी एक तरफ रखी हुई थी। यानी यहां भी रहने का पूरा इंतजाम था।

नीचे पहुंचने के बाद विक्रम खान ने स्विच से तेज लाइट जला दी। उसने एक तरफ रखी अलमारी को चाबी से खोल लिया। बैग को उसने अलमारी में रख कर फिर से ताला लगा दिया। उसके बाद लाइट ऑफ कर वह सीढ़ियों से फिर बेडरूम में लौट आया। वार्डरोब को फिर पहले जैसी स्थिति में कर दिया। अब उसके चेहरे पर सुकून के भाव थे। विक्रम ड्राइंग रूम में लौट आया और फिर से शराब पीने लगा।

कुछ देर बाद ही दरवाजे पर दस्तक हुई। उसने झटके से दरवाजा खोल दिया। सामने एक आदमी खड़ा उसे घूर रहा था।

*** * ***

इंस्पेक्टर सोहराब शोलागढ़ क्यों जा रहा था?
क्या सार्जेंट सलीम और श्रेया नदी से जिंदा निकल सके?
विक्रम के घर आने वाला वह शख्स कौन था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटरका अगला भाग...