असत्यम्। अशिवम् ।। असुन्दरम् ।।। - 26 in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 26

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 26

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भेार भई । मुर्गे ने बांग दी । मुद्दे अब कहॉं, मगर मुर्गो की क्या कमी । राजनीति से लगाकर साहित्य, संस्कृति, कला, पत्रकारिता, टीवी चैनल सब जगह मुर्गे बांग दे रहे है । राजनीति में मुर्गे मुद्दे तलाश रहे है । बुद्धिजीवी धूरे पर जाकर दाने तलाश रहे है । दाना मिला खाया फिर कूडे के ढेर में दाना तलाशने लग गये । फिर बांग देने लग गये ।

मुर्गे कभी अकेले बांग नहीं देते । वे मुर्गियों केा भी साथ रखते है । मुर्गियां अण्डे भी देती है और मुर्गे के साथ बांग भी देती है । बांग देना और भोंकना भारतीयता की निशानी है । जो ये सब नहीं करता उसे अन्यत्र जगह तलाशनी चाहिये ।

भोर भई । दूधवाले, अखबार वाले, कामवाली बाईया सब काम पर आने लगे । कालोनी में जाग हो गई ।

माध्ुारी विश्वविधालय की स्थायी कुलपति के आवास पर काम वाली बाई धुसी तो कुत्ता जोर से भोंका । काम वाली बाई ने कुत्ते को एक भद्दी अश्लील अकम्पोजनीय गाली दी और धंटी बजाई । अन्दर से कोई आवाज नहीं आई । माधुरी मेमसाहब धोडे बेचकर सो रही थी । धर पर एक नौकरानी और थी, उसने धीरे धीरे आकर दरवाजा खोला । कामवाली बाई ने बिना कुछ बोले अपना काम-काज सम्भाल लिया । सबसे पहले उसने फ्रिज से दूध निकाला और खुद के लिए चाय बनाई,नौकरानी को भी चाय का आधा कप दिया । चाय पीकर उसने पल्ला कमर में खौंसा और साफ सफाई में लग गई । बाहर लॉन में कुत्ता फिर भोंका मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया ।

माध्ुारी इस कुत्ते की आवाज से जाग गई । उसने एक जिमहाई ली । अंगडाई तोडी और बाथरूम में धुस गई । उसे तभी याद आया कि आज ष्शहर के नामी गिरामी परिवारों की महिलाओं की एक किट्टी पार्टी उसके आवास पर है । उसने बाथरूम से ही चिल्लाकर आवाज दी ।

‘ अरे सुगनी । सुन । आज मेरी किट्टी है । डाईंग रूम खूब अच्छे से साफ करना । ’

‘ जी बीबी जी । ’

ओर सुन । किचन में देख ले करीब दस महिलाएॅं खाना खायेगी ।

‘ क्या बनेगा बीबी जी । ’

‘ अरे वही जो हर किट्टी में बनता है । एक मिठाई, नमकीन, पूरी सब्जी, दाल, चावल, रायता बस ओर क्या ?’

‘ और आते ही ’’

‘ हां आते ही कोल्ड डिक ।’

माधुरी बाथरूम से बाहर आई । सधःस्नाता माधुरी अभी भी आकर्पक थी । लम्बे गाउन में उसका गदराया बदन गजब ढा रहा था । उसने स्वयं को आईने में देखा ओर खुद से बोली -

माधुरी इस उमर में इतना सुन्दर दिखने का तुम्हे कोई अधिकार नहीं है । स्वयं को बचाकर रखो । ये पूंजी ज्यादा दिनो तक नहीं रहेगी । वो खुद ही शरमा गई । उसने चाय पी । स्वयं को संवारा । कपड़े बदले । धीरे धीरे ग्यारह बज गये । किट्टी की सदस्याओं का आना ष्शरू हो गया ।

सर्व प्रथम माधुरी की पुरानी साथिन श्री मती ष्शुक्ला आ गई । एड एजेन्सी की मालकिन भी पहॅंच गई ।

हिन्दी के विभागाध्यक्ष की पत्नी भी जल्दी ही आ गई । उसे काम काज में हाथ बंटाना था । विश्वविधालय के मुख्य लेखाधिकारी जी की पत्नी, एस.पी. साहब की पत्नी और जिलाधीश की पत्नी पूरे रोब दाब के साथ सरकारी लाल बत्ती की गाड़ी में आई । माधुरी ने सबको अपनी विशाल बैठक में बिठाया ।

ठीक बारह बजे किट्टी पार्टी की ष्शुरूआत हो गई । ये सभी सौभाग्यशाली महिलाएॅं थी । सभी सुन्दर, स्वस्थ, सॅभ्रान्त और प्रभावशाली थी । सब अपने अपने पति के पद, प्रतिप्ठा को समझती थी ओर भुनाती रहती थी । कुछ महिलाएं व्यापारिक घरानों से बात चीत ष्शुरू करती थी । शेयर मार्केट, मनीमार्केट, कारेाबार पर चर्चा करते करते फिल्म,टेलीविजन के धारावाहिक पर उतर आती थी । उन्हें कौन किस का पति है और कौन कब नई ष्शादी करने वाला है जैसे वर्णनों में बड़ा मजा आता था । इन महिलाओं का ज्यादा तर समय सौन्दर्य प्रसाधनो पर चर्चा में बीतता था । दिन उगने के साथ ही वे स्वयं को सजाने संवारने में लग जाती थी । इन्हें काम की जरूरत नहीं थी मगर समय काटने के लिए समाज सेवा, स्वयं सेवी संस्था आदि में धुसपैठ करती रहती थी । ये महिलाएं देशी अंग्रेेजी लेखकों के उपन्यास अपने पर्स में रखती थी ओर बिना पढ़े ही उस पर चर्चा करने की सामर्थ्य रखती थी । अधिकांश के पतियों के पास गांव में भी एक पुरानी पत्नी थी मगर वो सोसायटी के लायक नहीं थी सो उन्होंने इनसे ष्शदी कर ली । कुछ महिलाएं उम्र में कम थी मगर व्यापक अनुभवों के संसार में विचरण कर चुकी थी । एक-दो ने छोटी मोटी विदेश यात्राएं भी करली थी और गाहे व गाहे अपना विदेशी - बाजा बजाती रहती थी । अन्य महिलाएं इन कइ बार सुने जा चुके किस्सों को मुंह बनाकर सुनती थी । वे सब समझती थी । कुछ महिलाओं का ष्शगाल ही ष्शापिंग था । कौन से मॉल में नया माल आया है इसकी पूरी जानकारी उन्हें हर समय रहती थी । वे डायमण्ड, कुन्दन, पुखराज, ज्यूलरी और ब्यूटी पार्लर का अभिन्न हिस्सा थीं । वे ब्यूटी पार्लर में ही खपजाने को तैयार रहती थी । समय मिलने पर किसी गरीब को खाना भी खिला देती थी । कभी किसी गरीब बच्चे के स्कूल की फीस या उसे डेस या कापी किताबे भी दिला देती थी और ये सब करते हुए के फोटो वे अखबार के तीसरे या किसी भी पेज पर छपवाने की ताकत रखती थी । वे पत्रकारो की सेवाएं लेने की भी विशेपज्ञ थी ।

ये स्त्रियॉं स्त्री-मुक्ति, स्त्री विमर्श, स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री के ष्शोपण और इसी तरह की सेमिनारों में अक्सर पाई जाती थी ।

किट्टी ष्शुरू हो चुकी थी । ठण्डे पेय को पिया जा चुका था । पेट में कुछ जाते ही इन की वाचालता मुखर होने लगी थी । उच्चतम पद के कारण श्री मती जिलाधीश बौस थी मगर मेजबान और एक विश्वविधालय की कुलपति होने के कारण माधुरी स्वयं को सर्वेसर्वा समझ रही थी । और थी भी ।

‘ ताश की बाजी जम चुकी थी । नाश्ते की टे लेकर नौकरानियां इधर - उधर दौड़ रही थी । तभी पत्ता फेंकते हुए माधुरी बोल पड़ी -

‘ इस देश का क्या होगा ? हम कहॉं जा रहे हैं । देश में छापों का डर विदेशों में एडस का डर । आखिर हम औरते कहॉं जाये । क्या करे ? ’

डरने की क्या बात है ? एडस के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं है । हमारे देश में ही एडस बिखरा पड़ा है । जिलाधीश पत्नी बोल पड़ी ।

लेकिन आखिर पुरूप चाहता क्या है ? वो कभी ये क्यों नहीं सोचता की स्त्री क्या चाहती है ? उसने आगे कहा

‘ वे फिर बोली ।

‘ पुरूप का सोच कभी भी नारी के सोच के समकक्ष नहीं आ सकता है । नारी का सोच विस्तृत और अनुभव सिद्ध होता है । ’

‘ मगर पुरूप प्रधान समाज में नारी को पूछता कौन है । श्री मती हिन्दी विभागाध्यक्ष बोल पड़ी ।

‘ क्यों ? क्यों ? कौन नहीं पूछता । सब पूछते है और पूजतें है, पुजवाने बाला चाहिये । एड एजेन्सी की मालकिन ने ष्शीतल पेय का घ्ंाूट भरते हुए कहां ।

‘ इतना आसान कहां है भई । ठण्डे स्वर में माधुरी बोल पड़ी ।

 

 

‘ तुम्हारी बात अलग है । हम सब अपनी अपनी नियति से बंधे है । खूंटा और गाय का सम्बन्ध है हमारा इस समाज में । ’ श्री मती शुक्ला ने अपने अनुभवों का निचोड़ प्रस्तुत किया ।

लेकिन हमारा मूल प्रश्न यथावत है । हम क्या चाहते है और पुरूप क्या चाहता है । आज यही बहस का विपय है । श्री मती ष्शुक्ला ने पत्ता फंकते हुए कहा ।

देखिये मेडम इस विपय पर हजारों बारा सोचा-विचारा जा चुका है । अन्तिम निर्णय न कभी आया है और न कभी आयेगा ।आखिर ज्यादातर पुरूप क्यों नहीं समझते की स्त्री क्या चाहती है । वे कहते है कि स्त्रियां उन्हे गुमराह कर देती है । महिलाओं को समझना मुश्किल ही नही नामुमकिन है । यह बहस अनन्त है । इसका कोई अन्तिम परिणाम नहीं आ सकता है । मुझे मेरे मित्रों ने बताया है कि यदि महिलाएं ये बता दे कि वो वास्तव में क्या चाहती है तो जीवन सुखी, संतुप्ट और आनन्दमय हो सकता है, मगर पुरूप के अनुसार स्त्री स्वयं नहीं जानती की वो पुरूप से आखिर चाहती क्या है ?

‘ और इसका उल्टा भी सत्य है कि पुरूप नही जानते कि स्त्री उनसे क्या चाहती है यदि पुरूप बतादे कि वे वास्तव में क्या चाहते है तो पारिवारिक जीवन स्वर्ग हो जाये । ’

‘ हां ओर परिवार के सदस्य स्वर्गवासी । ’

सबने मिल कर अट्टहास किया ।

बात को अब तक हवा में उड़ जाना चाहिये था । मगर श्री मती ष्शुक्ला हाल में पढ़ी एक पुस्तक से अपना ज्ञान बधारना चाहती थी सो बोल पड़ी

स्त्री को खुश करना आसान है । उसे समझना कठिन ।

इसलिए सभी पुरूप स्त्री को खुश रखने के आसान रास्ते ढूढते रहते है । और भटक जाते है ।

‘ भटकाव के बाद भी ष्शाम को या रात के वापस धर ही आते है । ’

‘ और कहां जायेगा बेचारा खूंटे और गाय और बैल के सम्बन्ध जो है हमारे । कभी कभी महिला झूठ भी सुनना पसन्द करती है, उसे केवल ष्शरीर नहीं समझ भी चाहिये । परपुरूप की प्रशन्सा किसी भी पुरूप को अच्छी नहीं लगती ओर पर स्त्री की प्रशन्सा किसी भी स्त्री को अच्छी नहीं लगती । प्यार के आगे -पीछे भी जीवन है जिसे जीने की तमन्ना हर स्त्री-पुरूप की रहती है । ‘ जिलाधीश पत्नी ने आत्रेय अनुशासन दिया ।

‘ लेकिन जब पति शाम को थका, हारा धर आता है तो उसे भी तो शिकायतों का पुलिन्दा नहीं चाहिये।

‘ तो फिर किसे सुनाये दिन भर की रामायण ।

ल्ेाकन रामायण सुनाने के लिए महाभारत की क्या जरूरत है ।

ये आप नहीं समझेंगी, अकेली जो रहती है ।

‘ चलो छोड़ो ये सब । चलते है । खाना खाते है । खाने के बाद काफी पर फिर चर्चा करेंगे ।

खाने की मेज पर सबसे खाने के विभिन्न व्यजनों के साथ खूब न्याय किया । खूब तारीफ हुई माधुरी की पाक-कला की । घर के सुगढ़ नौकरों की ।

कॉफी के समय माधुरी ने फिर कहा -

‘ अगली दीपावली पर क्या कार्य क्रम है ।

कर्यक्रमो का क्या है । दीपावली मिलन। चाहो तो कुछ और कार्यक्रम रख लो ।

‘ सुनो एक आइडिया आया है ?

क्या

हम अगली दीपावली पर इस लेडीज क्लब में पति प्रदर्शनी प्रतियोगिता करेंगे । सब अपने अपने पतियों को नहला -धुला कर तैयार कर के लाये जिसका पति सबसे अच्छा दिखेगा उसे पुरस्कार दिया जायेगा । एड एजेन्सी की स्वामिनी बोल पड़ी

‘ वाह क्या आइड़िया हे मजा आजायेगा । और जिसके पति नही है वो क्या करे ।

‘ करे क्या चाहे तो प्रियतम, प्रेमी, मित्र किसी को भी धो, पोंछ,मांझ, तैयार करके ले आये हम क्या मना करते है । बूट - प्रणाली भी चलाई जा सकती है । मुस्कुराते हुए जिलाधीश पत्नी बोली ।

‘ भई वाह ! इस कार्यक्रम में तो मजा आ जायेगा, मगर क्या हमारे पति मान जायेंगे ।

‘ अगर तुम इतना भी नहीं कर सकती तो किस मुंह से पति को उगलियों पर नचाने की बात करती हो ं सीधे मर्म पर चोट की गई थी । कैसे बर्दास्त किया जाता । सो सब मान गई । मगर ये विचार पतियों ने सिरे से खारिज कर दिया ।

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दीपावली आई चली गई, मौसम बदले । हवा बदली । फिजा बदली । फूल मुस्कुराये । इसी बीच एक दिन माधुरी के पुराने स्कूल में एक अघटनीय धटना धट गई । माधुरी के स्कूल की प्राचार्या ने अध्यापक अभिभावक उपवेशन आहूत किया । इसमे सभी अध्यापकों, अध्यापिकाओं, अभिभावकों का आना आवश्यक था । स्कूल के कुछ बाबू भी काम में लगे थे । एक बड़े हाल में सब व्यवस्थाऐं की गई थी । लम्बा चौडा़ पाण्डाल लगा था, अभिभवको के साथ उनके बच्चे भी थे । चाय-पानी-बिस्कुट की माकूल व्यवस्था थी, मगर अघ्यापकों, कर्मचारियों को निर्देश थे कि उन्हे खाना नही केवल खिलाना था मनुहार करनी थी । कार्यक्रम सुचारू रूप से चल रहा था, कि दुर्धटना धट गई । एक बाबू ने अपने एक परिचित के साथ चाय ले ली । प्राचार्य ने देख लिया । बाबू से पहले से ही नाराज थी । ये अवसर अनुकूल था । उन्होने बाबू से कुछ नहीं कहा अनुशासन हीनता की रिपोर्ट बनाकर माधुरी से अनुमोदित कराकर बाबू को निलम्बित कर दिया । बाबू और अन्य कर्मचारी बेचारे सकपका गये । स्तब्ध रह गये । बाबू को गलती तो समझ में आ गई, मगर इस गलती का परिमार्जन समझ में नही आ रहा था । प्राचार्य तथा माधुरी ने बाबू से मिलने से मना कर दिया था । निजि स्कूलो में कर्मचारी संगठन या तो होते ही नही या फिर कमजोर या प्रबन्धन के अनुकूल ं निलम्बित बाबू संगठन की सेवा में गया । मगर संगठन क्या करता । एक कप चाय पीने की इतनी बड़ी सजा । जो पत्र उसे दिया गया था उसमें कई तरह के आरोप लगाये गये थे । कुछ प्रमुख आरोप इस प्रकार थे -

1 . आप समय पर नही आते ।

2. समय समाप्त होने से पहले ही चले जाते है ।

3. कार्यलय में आप का कार्य संतोप प्रद नही है ।

4. आपने लेखाशाखा, प्रतिप्ठापनशाखा तथा गोपनीयशाखा का काम ठीक से नही किया ।

और अन्त में एक गम्भीर आथर््िक आरोप लगाया गया था, जिसका कारण बाबू की समझ में नही आया था । बाबू आधे वेतन के लिए भी भटक रहा था । अचानक संगठन के अध्यक्ष ने उसे बुलाया और प्राचार्य के कक्ष में ले गये ।

बाबू के नमस्कार का कोई प्रत्युतर प्राचार्य ने नही दिया । कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष ने कहा -

‘ मेडम बाबू ने आरोप पत्र का जवाब देते हुए आप से रहम की भीख मांगी है ।

‘ रहम ! किस बात का रहम । ये काम चोर, मक्कार, आदमी है, कोई काम ठीक से नही करता ।

‘ मगर मेडम ये अपनी जाति का है । अपन ब्राहमण, मैं भी ब्राहमण ये भी ब्राहमण । ब्रहमहत्या का पाप अपने सिर पर क्यों लेती है आप ।

‘ देखो ज्यादा से जादा ये कर सकती हूं कि इसे बरखास्त करने के बजाय इसका त्यागपत्र मंजूर करवा दूं ।

‘ बरखास्त होने पर तो ये बेचारा मर ही जायगा । इसे प्रबन्धन से कुछ भी नही मिलेगा ।

‘ वही तो मैं कह रही हूं । ये सेवा से त्यागपत्र दे दे ।

‘ लेकिन मेडम अभी तो मेरी काफी सर्विस बाकी है । बच्चे छोटे छोटे है ।

‘ तो मैं क्या करू ?

कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष ने उसे समझाया । बाहर लाया और त्यागपत्र के लिए राजी किया । मरता क्या नही करता । बाबू ने अपने पैसे प्रबन्धन से लिए और सदगति पाई ।