Sulochana - 10 - The Last Part in Hindi Fiction Stories by Jyotsana Singh books and stories PDF | सुलोचना - 10 - अंतिम भाग

Featured Books
  • પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 11

    “ હા ડો.અવની મલ્હોત્રા “ ખુશી બોલી .“ ઓકે , શાયદ ડો.મલ્હોત્ર...

  • આઈ વોન્ટ ટુ ટોક

    આઈ વોન્ટ ટુ ટોક- રાકેશ ઠક્કરઅભિષેક બચ્ચન પિતા અમિતાભનો અભિનય...

  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

Categories
Share

सुलोचना - 10 - अंतिम भाग

भाग-१०

उपसंहार-

सराहना जीवन का अभिन्न अंग है।ये सच है की निंदक नियरे रखना चाहिए किंतु ऐसा भी न हो कि निंदा उपेक्षा में बदल जाए।

ऐसा जब भी होता है तो या तो विद्रोह होता है या गुमराह हो कर व्यक्ति भटक जाता है।या फिर कभी वह आत्महत्या तो कभी कोई एम.के.जैसा कोई कदम उठ जाते हैं।

जैसे स्वाति की एक बूँद के लिए चातक टकटकी लगाए रहता है वैसे ही मतवाली नारी भी अपने प्रिय से प्रशंसा सुनने को आतुर रहती है।

यही तो था सुलोचना के जीवन का सत्य।

अभाव में कटा जीवन का एक लम्बा वक्त जब धन-धान्य से परिपूर्ण हो कर खिला तब उसके साज शृगारं को सराहने में मणि ने कोताही कर दी और सासू माँ ने उसके नारी सुलभ मन का हाल न समझते हुए उसके आँचलिक स्वरूप की अवहेलना करी।

और उसी रूप सौंदर्य को जब एम.के.ने सराहा तो वह एक बूँद उसे अपने सम्मान का सागर लगा किंतु जैसे ही सुलोचना को समझ आया कि सागर का जल निर्मल न हो कर खारा होता है।

वैसे ही वह अपने जलाशय के पास वापस उमड़ पड़ी भले ही उसका जलाशय अपनी ही सोच की भँवर में फँस कर अपनी निर्मल धारा को देख नही पा रहा था।

एम.के.का सुलोचना के प्रति पनपे खिंचाव को भले मणि न समझ पाया पर वह यह समझ गया था कि सुलोचना भले आधुनिक नहीं पर सुंदरी है। और जैसे ही यह बांध टूटा दोनो की जीवन नैया प्रेम की नदी में हिचकोले खाने लगी।

एम.के.की चाह तो भारतीयता में रची बसी नार की ही थी पर ये वह लोग होते हैं जो घर में तो सुलोचना और बाहर सुनंदा को पसंद करते हैं और अपना उल्लू सीधा करने के लिए क्रिशटीना को भी संगनी बना लेते हैं।

कुसुम मुखर्जी सास के साथ आख़िर माँ भी हैं उन्हें सुलोचना के आधुनिक हो जाने की आशा मात्र से प्रसन्नता है।

शशिधर बाबू को सुलोचना हर रूप में पसंद है।

————————————————————————

समाप्त

ज्योत्सना सिंह—-लखनऊ