swatantr saksena ki kavitayen - 7 in Hindi Poems by बेदराम प्रजापति "मनमस्त" books and stories PDF | स्‍वतंत्र सक्‍सेना की कविताएं - 7

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स्‍वतंत्र सक्‍सेना की कविताएं - 7

स्‍वतंत्र सक्‍सेना की कविताएं

काव्‍य संग्रह

सरल नहीं था यह काम

स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

सवित्री सेवा आश्रम तहसील रोड़

डबरा (जिला-ग्‍वालियर) मध्‍यप्रदेश

9617392373

सम्‍पादकीय

स्वतंत्र कुमार की कविताओं को पढ़ते हुये

वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’

कविता स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कवि के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कवि अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है |

स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है| वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में स्वतंत्र सन्नद्ध होते हैं|

अपने कवि की सीमाओं की खुद ही पहचान करते हुए स्वतंत्र कुमार लेखनकार्य में निरंतर लगे रहें, हमारी यही कामना है| सम्‍पादक

36 सरस्‍वती लगता लक्ष्‍मी के हाथ बिकानी है

सरस्‍वती लगता लक्ष्‍मी के हाथ बिकानी है

धन्‍ना सेठों की शिक्षा पर अब निगरानी है

प्रतिमा लगन समर्पण को अब पूंछे न कोई

निर्धन नौजवान के सारे सपने ही खोए

छोड़ सुरक्षित कोटा सब असुरक्षा के मारे

लक्ष्‍मण रेखा खींच रहे हैं धन के मतवारे

प्रगति और विकास की ये बस नई कहानी है

किसने ये षडयंत्र रचा किसकी मनमानी है

पुनिया राई भराे सम्‍हाले रमसईया बोरा

पकरे हाथ डुकरिया घिसटे ले मोड़ी मौड़ा

कातिक चैत छोड़ने परतई अपने घर गोंड़ा

रेल मोटरों में न भईया भीड़ समानी है

हर बस अड्डे स्टेशन की यही कहानी है

हरिणा कश्‍यप से बापू अब रावण से भाई

रामकथा तो सुनी मगर मन में न गुन पाई

ताड़काएं धमकाती फिरती सूपनखा छलती

राजनीति में केवल खर दूषण की ही चलती

कहने में कुछ कोर कसर सुनने में खामी है

इस युग में क्‍यों प्रभाहीन हुई राम कहानी

जो गर्दन सीधी हो उसको कुछ छोटा कर दो

अपने रंग का चश्‍मा सबकी आंखों पर रखदो

फिर भी जो न समझे उनको ढंग से समझादो

राह वही जो हम बतलाते बांकी सब अनजानी है

37 कभी कभी तो मुस्‍कराईयें

इन तेवरों से अपना तो दामन छुड़ाइये

हरदम नहीं तो कभी कभी तो मुस्‍कराईयें

नाराजगी शिकायतें रूठना ये सब सही

ये दूरियां कुछ कम करें नजदीक आइये

बांसती हवा सा भी थोड़ा गुनगुनाइए

कब तक हम से आप यूं नजरें चुराएंगे

अपने ही दिल में झांकिये और हम को पाइए

इस जंग खोर दुनिया में राहत के चार पल

कुछ मेरे दिल की सुनिए कुछ अपनी सुनाइए

होंठों से दिल की बात को रोकेंगे कब तलक

खोलेंगी आंखें राज कहां तक छिपाइए

कैसे भी चाहे प्‍यास बुझा लीजिए अपनी

सागर को जब भी पाइए लबरेज पाइए

38 भैया बस रोटी की बातें

अच्‍छी लगती मुझको केवल भैया बस रोटी की बातें

बाकी लगती मुझको केवल खोटी खोटी खोटी बातें

भूखे प्‍यासे नंगे बच्‍चे

मन के सच्‍चे अकल के कच्‍चे

अनपढ़ मूरख भूखे नंगे

मिल कर जब करते दंगे

समझाने पर भी जब उनकी

नहीं अकल में कुछ घुस पाती

बड़ी बड़ी तब हो जाती है

उनकी छोटी छोटी बातें

वह होटल में खटता कल्‍लू

सुबह शाम को पिसता कल्‍लू

घर के आगे नीम तले वह

भूरे पिल्‍ले में कर पाए

पूंछ पकड़ कर झूमा झटकी

कान खींच कर मीठी बातें

लिये बाल्‍टी धूम रही है

कब से देखो धनिया बाई

हैंडपम्‍प खाली चिल्‍लाएं(

नल ने बून्‍द नहीं टपकाई

सूखा कंठ व जलती आंखें

धीरज छोड़ रही है सांसें

पुनिया की वह खींचे चोटी

लखना को दे मारे लाते

वे जाने कब कर पाएंगे

दूर ये छोटी छोटी बातें

चन्‍दन चर्चित भारी चेहरे

पीत रेशमी वस्‍त्र सुनहरे

धर्म और दर्शन की प्रतिदिन

करे व्‍याख्‍या पैठे गहरे

भाग्‍य जन्‍म व कर्म नियंता

धर्म और मुक्ति की चिंता

स्‍वर्ग और देवों की बातें

भारी भारी पोथे खोले

कैसी मीठी मीठी बातें

ऐसे मैं भद्दी लगती है

पानी व रोटी की बातें

बिन रोटी झूठी आजादी

लाती वह केवल बदबादी

आडंबर व पहिने खादी

हर बस्‍ती में नेहरू गांधी

जाने क्यों झूठी लगती है

उनकी मीठी मीठी बातें

39 सूखी नदिया

सूखी नदियां जब वर्षा में योवन फिर से यौवन पाती है

तेज तेज बहने लगती है भूल किनारे जाती है

पीपल बरगद आम नीम सब बौने लगने लगते हैं

जिसको भी वह छू देती है साथ बहा ले जाती है

भारी उछल कूंद करती है हरदम शोर मचाती है

गर्जन तर्जन कितना करती लगता है धमकाती है

चांदी की पाजेंब पहिन कर कभी चांदनी रातों में

बीणा के तारों पर जैसे मधुरिम गीत सुनाती है

पुल सड़कें मंदिर चौबारे सभी समा वह लेती है

कभी दिखाती कभी छुपाती कैसे खेल खिलाती है

सहमी सहमी सूखी नदियां बच्‍चे खेला करते हैं

दो बूंदों के पड़ते ही अब कैसी तो इतराती है

हर ऑंगन को गीत सुनाती हर सांकल खड़काती है

पिया के घर जाती बेटी सी सबसे मिलकर जाती है

40घन घन बोल टेलीफोन

घन घन बोला टेलीफोन

मैं हूं लोरी बोलो कौन

अच्‍छा बोल रहे हैं पापा

मत खोए अब अपना आपा

सो रही है शैतान चकोरी

मॉं के दूध की बड़़ी चटोरी

अभी मचा देगी वह हल्‍ला

मम्‍मा पड़ेगी मुझ पर चिल्‍ला

बना रही है किचिन में खाना

मुझको भी स्‍कूल है जाना

कभी बाद में करना फोन

आप अभी तो साधो मौन

घन घन बोल टेलीफोन