तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
खोजता था मैं अभी तक आंधियों में शांति के क्षण,
जिन्दगी से हार मांगे मौत से दो मधुर चुम्बन।
अमा के तम में अमर आलोक की बस कल्पना ही,
वह भ्रला आलोक क्याा जो मुस्कराये चार उडगण।
तुम अगर आओ लगत को ज्योति का आधार दूंगा॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा॥
बंधनों के स्वर्ग को जिसने नियति का भार जाना,
मदिर उन्मादी दृगों को कैद कर समझे बहाना।
वह गगन का मुक्त पंछी दूर से ही हंस रहा जो
कौन सा विस्मय उसे यदि धरा पर भाये न आना।
तुम न ठुकराना इसे मैं माधवी उपहार दूंगा ॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
चार पल अभिसार कर लूं साध यह मन की पुरानी
रूठ जायेगबी कभी भी स्वयं इठलाती जवानी।
अधूरी आदि विस्म़ृत अंत भी अज्ञात जिसका
सुन सको तो कह चलूं मैं सिसकियों की ही कहानी।
सांझ जब रोने लगी मै भी रूदन का भार लूंगा॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
मान मत कर शशि तिमिर से ही सजी मुस्कान तेरी,
मोद तुमको दे रही है आंसुओं की तान मेरी।
देखना ही यदि तुम्हे प्रिय स्वप्न के जग का उजड़ना
फूंक दो जीवन शिखा रह जाय यह दुनियां अंधेरी।
जीत तुम ले लो प्रथम बस मैं तुम्हारी हार लूंगा ॥
तुम मुझे स्वर दो तुम्हें मैं गीत का उपहार दूंगा
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के बी एल पांडेय के गीत
नदी जन्म भर
भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।
अभी तो बहुत देर है जबकि तम चीर सूरज धरा पर उजाला करेगा,
अभी तो बहुत देर है जबकि शशि दीप नभ में सितारों के बाला करेगा ॥
प्रिया के कपोलों पे संदेश प्रिय का सिंदूरी शरम जबकि ढाला करेगा,
पिपासित अधर के चसक में किसी का विचुम्बन मधुर मत्त हाला करेगा॥
मगर प्रात उन्मन हुई सांझ जोगन मिलन से सुखद प्राण का साश चिंतन,
क्षितिज पर रहो निष्करूण पर तुम्हें देख जी लूं मुझे एक अरमार दे दो॥
भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।
दया के लुटाते रहे मेघ जैसे नदी जन्म भर बस तुम्हारी रहेगी
तुम्हे क्या खबर तोड़ विश्वास के तट जगत से प्रणय की कहानी कहेगी।
बड़ी क्षुद्र सरिता जवानी मिली तो नियंत्रण किसी का भला क्यों सहेगी।
हंसेगे सभी न्याय पर चोट होगी अगर तप्त मरभूमि प्यासी रहेगी।
बहें निम्नगाएं तुम्हे भी रिझायें नहीं है यहां द्वेष तुमको बतायें।
सभी के रहो किंतु मैं भी तुम्हे प्राण अपना कहूं एक अभिमान दे दो॥
भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।
मुझे याद चुपचाप मैंने तुम्हारी सरल मूर्ति के संग भांवर रचाई
मुझे देख स्वच्छंद नाराज थे तुम इसी से प्रथम स्वप्न में दी जुदाई।
बहुत सह चुकी हूं तुम्ही तो कहो सच किसी और से इस तरह की रूखाई
न जिसके पगों में कभी शूल कसके चुभेगी उसे खाक पीरा पराई।
कहूं क्या रंगीले जनम के हठीले लुटे जा रहे स्वप्न मेरे सजीले
मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए बस स्वयं से जुडी एक पहचान दे दो॥
भले रूठ कर शाप देते रहो प्रिय, मगर शाप सहने का वरदान दे दो।
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