Novel Girl (Last Part) in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | उपन्यास वाली लड़की (अंतिम भाग)

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उपन्यास वाली लड़की (अंतिम भाग)

"अरे आप तो भीग गई।" सलवार कुर्ता भीगकर उसके गोरे बदन से चिपक गया था।भीगे कपड़ो में उसके शरीर के उभार साफ नजर आ रहे थे।
"बरसात से अपने को बचाने की कोशिश तो बहुत की लेकिन
"बैठ जाइए"वह युवती स्टूल पर बैठ गई।जयराम चाय लेकर लौट आया था।वह दो कप मेज पर रख गया।मैं एक कप उसकी तरफ बढ़ाते हुये बोला,"गरमा गरम चाय पीजिये।"
"आप पीजिये।"
"मैं भी पिऊंगा।"
उसने चाय का कप उठा लिया।मैं भी चाय पीने लगा।चाय पीते हुए मैं अपने सामने बैठी युवती को निहार रहा था।वह मझले कद की सुंदर युवती थी।चाय पीकर उसने रसीद और पैसे दिए थे।जयराम ने उसका बेग निकालकर दिया था।वह जाने से पहले बोली,"चाय के लिए थैंक्स।"
"वेलकम,"
और दिलकश मुस्कराहट के साथ वह चली गई।
घड़ी की सुई धीरे धीरे खिसक रही थी।नौ बजे प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन में इंजन आकर लग गया।इंजन का शोर वातावरण में गूंजने लगा।काफ़ी देर से हो रही बरसात अचानक रुक गई थी।बरसात रुकते ही मुसाफिर खाने में जमा लोग जाने लगे।
मेरे सामने मुसाफिरखाने के दूसरे छोर पर बुकिंग विंडो थी।टिकट खिड़की से कुछ दूरी पर लाल रंग के सलवार कुर्ते में एक युवती खड़ी थी।उसके कंधो पर हरे रंग की चुन्नी झूल रही थी।मैं उस लड़की को देखने लगा।वह लड़की कभी दांये कभी बांये कभी सामने इस तरह देखने लगती।मानो किसी की राह देख रही हो।कुछ देर बाद धीरे धीरे चलकर वह क्लोक रम के सामने आ खड़ी हुई।
मैं कुर्सी से उठकर क्लोक रूम के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। वह मेरे से कुछ दूर खड़ी थी।लम्बे कद,गोरा रंग और तीखे नेंन नक्श की वह सूंदर युवती थी।वह मेरे सामने से होते हुए प्लेटफार्म पर चली गई।ज्यो ज्यो ट्रेन जाने का समय करीब आ रहा था।हलचल बढ़ती जा रही थी।यात्रियों के आने का सिलसिला जारी था।और ज्यो ही घड़ी ने दस बजाए ट्रेन रवाना हो गई।इस प्लेटफार्म से जानेवाली यह आज की अंतिम ट्रेन थी।ट्रेन जाने के कुछ देर बाद प्लेटफार्म खाली और सुनसान हो गया था।
"सर् ट्रेन गई क्या?"अचानक निशान्त मेरे सामने आ खड़ा हुआ।
"हां"
"बरसात में ऐसा फसा की----वह रसीद और पैसे मुझे देते हुए बोला,"अब होटल तलाशना होगा"।
जयराम ने निशान्त का सुटकेश निकालकर दिया था।वह अपना सुटकेश लेकर चला गया था।
"मैं भी जाऊं?"
जयराम की ड्यूटी खत्म हो गई थी।वह चला गया।मैने रजिस्टर में चार्ज लिखा और फिर कुर्सी पर बैठकर रिलीवर सिंह के आने का इन्तजार करने लगा।सिंह के आने पर मैने उसे चार्ज दिया और घर के लिए चल दिया।मैं प्लेटफार्म पर चलकर पुल के पाश आया था।पुल के पीछे अंधेरे में दो मानव आकृतियां खड़ी हुई नजर आयी।मैं ठिठककर एक तरफ खड़ा हो गया।
"हजार रुपये यह तो बहुत ज्यादा है।"मर्द की आवाज कान में पड़ी थी।
"इससे कम नही लेती।वेसे भी ज्यादा नही है।किसी होटल में रुकोगे तो पांच सात सौ से कम मेरूम नही मिलेगा"अंधेरे में नारी स्वर उभरा था,"मेरे साथ घर मे रहोगे।घर से आराम और भोगने के लिए जवान नारी जिस्म--बुरा नही है
कुछ देर के लिए मर्द औरत के बीच मौन पसर गया।कुछ देर की खामोशी के बाद मर्द का स्वर उभरा था,"रात तो काटनी ही है।तुम्हारे साथ तुम्हारे घर मे ही सही"
और दोनों आकृतियां अंधेरे से निकलकर गेट की तरफ बढ़ने लगी।उजाले में आते ही उनको देखकर मैं चोंका था।मर्द निशान्त था और लड़की थी वो ही जो मुसाफिरखाने में घूम रही थी।
उस लडक़ी को देखकर मैं सोचने लगा।कही यह उपन्यास वाली लड़की तो नही