Ram - from the window of history in Hindi Spiritual Stories by Alok Mishra books and stories PDF | राम- इतिहास के झरोखे से

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राम- इतिहास के झरोखे से








मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम हमारी आस्था और विश्वास के प्रतीक हैं । वे नर के रुप में नारायण है जो इस धरती पर पापों का अंत और धर्म की स्थापना करने हेतु अवतरित हुए थे । राजा राम के ऐतिहासिक परिदृश्य को पूरा समझने के लिए यह जीवन भी कम पड़ सकता है । आईए हम लघु रुप में कुछ तथ्यों को समझने का प्रयास करते है ।

सबसे पहला प्रश्न यह है कि राम का काल क्या था ? राम के जन्म से आसान कृष्ण के जन्म काल की गणना करना है । श्री कृष्ण वैवस्वत् मन्वन्तर के 28 वें द्वापर के अंत में अर्थात् इस कलियुग के प्रारम्भ के पूर्व अवतरित हुए । उनका जन्म 3210 ईसा पूर्व हुआ और उन्होंने 108 वर्ष की आयु में 3102 ईसा पूर्व लीला समाप्त की । इस दौरान 3138 ईसा पूर्व में महाभारत हुआ । भगवान राम वैवस्वत् मन्वन्तर के चार युगों के 24वें त्रेता और द्वापर के संधिकाल में जन्मे या अवतरित हुए थे । ड़ाॅ. वेदप्रकाश आर्य की गणना के अनुसार कम से कम कर के भी गणना की जावे तो भी यह काल 133×9576 वर्ष पूर्व आता है । उनके अनुसार 1,81,37,099 वर्ष पूर्व राम का होना प्रतिपादित होता है । वे स्वयम् इस गणना में 900 वर्षों की त्रुटी का होना स्वीकार करते है । चेन्नई के भारत ज्ञान नामक संस्था के द्वारा प्लेनेटरी साफ्टवेयर के द्वारा की गई नक्षत्र गणना के अनुसार राम का जन्म 7122 ईसा पूर्व होने की बात कही है । ड़ाॅ. कृष्ण नारायण पाण्ड़ेय और ड़ाॅ. राम अवतार शर्मा ने राम का काल 9,64,000 वर्ष पूर्व होना बताया हैं। रामायण के मुस्लिम विद्वान हयातुल्ला चतुर्वेदी के अनुसार भगवान राम का काल 23 लाख वर्ष पूर्व था ।

राम के काल की गणना में मतभेद होते हुए भी अविश्वसनीय रुप से ड़ाॅ. वेदप्रकाश आर्य का मत ही सही प्रतीत होता है क्योंकि रामायण और अन्य प्राचीन ग्रंथों में वर्णित भौगोलिक स्थितियाॅं हजारों नहीं लाखों वर्षों में ही सम्भव दिखाई देती है । मत्स्य पुराण के अनुसार मेरु पर्वत जलोत्प्लावन के समय भी दिखाई देता था । उस समय हिमालय का जन्म नही हुआ था । राम के काल में हिमालय नवजात अवस्था में था । मेरु पर्वत तब भी सबसे बड़ा था जो वर्तमान में पामीर है । इससे राम की प्राचीनतम कालगणना को आधार ही मिलता है । भौगोलिक प्रमाणों में नदियों का मार्ग बदलना भी शामिल है । राम के काल से सरयू नदी आज 40 कि.मी. उत्तर दिशा की ओर है । गंगा ने दक्षिण की ओर मार्ग बदला है तथा उस काल में गंगा की तीन धाराऐं समुद्र में मिलती थी जिनमे से आज केवल एक ही शेष है। गंगा और सरयू का संगम तब से 100 कि.मी. आगे की ओर खिसक गया है । पहले सोनभद्र और गंगा के बीच की दूरी अधिक थी जो आज बहुत कम है । इतने बड़े भौगोलिक परिर्वतनों को लाखों वर्ष लगते है इन तथ्यों के आधार पर राम की प्राचीनता संदेहास्पद नहीं रह जाती है ।

अब राम के काल के ऐतिहासिक प्रमाणों के न मिलने पर भी चर्चा कर लें । हमारे यहाॅं सुश्रुत ज्ञान की परंपरा रही है । फिर भी कुछ विद्वान साधु , संत और ऋषियों ने इतिहास को अपने स्तर पर छन्दबद्ध रुप में लिपीबद्ध किया । वे मानते थे कि हम उसे ही इतिहास मानेंगे । आज प्रमाणवादी संस्कृति में हम उनके लिखे का भी प्रमाण मांगते है । ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे आपके चार या पांच पीढी पहले के पूर्वज का आपसे कोई प्रमाण मांगे ।

राम पर पुरातात्विक शोध की प्रथम गंभीर प्रयास प्रो.बी.बी. लाल द्वारा की गई । उन्होने अयोध्या और नंदीग्राम के आस-पास प्राकृतिक से दिखने वाले टीलों की खुदाई की जिसमें उन्हें ईसा से 7000 वर्ष पूर्व के साम्राज्यों के प्रमाण ही मिल सके । वे इस निष्कर्ष पर पहुॅंचे कि राम के काल में ईट,पत्थर और धातु सम्बन्धी कार्य सम्भवतः नहीं होते थे। कच्ची मिट्टी और लकड़ी से लाखों वर्ष बाद प्रमाण प्राप्त करने की क्षमता शायद विज्ञान के पास न हो । रामसेतु की यदि गंभीरता से जाॅंच की जाए और अयोध्या के विवादित स्थल को यदि शोध हेतु दे दिया जाय तो राम के होने और ऐतिहासिकता के प्रमाण जुटा सकना सम्भव हो सकता है ।राम अपने वनवास के दौरान और अन्य यात्राओं में जहाॅ-जहाॅं गए वहाॅं आज मंदिरों की परंपरा पाई जाती है । ऐसे मंदिर राम के विषय में ऐतिहासिक प्रमाण जुटाने में सहायक हो सकते है परन्तु यहाॅं ज्ञान और आस्था में टकराव पैदा हो जाता है । ऐसे मंदिरों में भी अवशेषों के क्षतिग्रस्त होने पर विसर्जन और मंदिरों के जीर्णोद्धार के कारण भी प्रमाण नष्ट तो हुए ही होंगे ।

राम के वनगमन मार्ग को खोजने हेतु अत्यन्त ही गंभीर और प्रथम प्रयास ड़ाॅ. राम अवतार शर्मा ने मानव संसाधन मंत्रालय और राम सांस्कृतिक शोध संस्थान के साथ मिलकर किया । उन्होने अपने जीवन के 15 वर्ष उस कार्य में लगाए एवम् 196 ऐसे स्थानों को चिन्हित किया जहाॅं राम गए थे । ये सभी स्थान आज भी पूज्य है । कोई भी नहीं कह सकता कि राम किस पगड़ंड़ी पर चले होंगे या किस पेड़ के नीचे बैठ कर उन्होने विश्राम किया होगा लेकिन प्राचीन सुश्रुत परम्परा ने उनके मार्ग को आज भी जीवित रखा है । ऐसे अनेक स्थान है जहाॅं राम रुके थे वहाॅं आज मंदिर है । कुछ स्थान ऐसे है जिन्हे वर्णन के अनुसार पहचाना जा सकता है ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में यदि देखा जाए तो राम की खोज को यदि गहनता से लिया जाता है तो यह विश्व में मानव इतिहास की सबसे पुरातन घटना की खोज साबित हो सकती है । अब राम का इतिहास कोई खोजे या न खोजे और मिले या न मिले भगवान राम तो हमारे दिलों में रहते है ।

आलोक मिश्रा मनमौजी