s.r. harnot-darosh tatha any kajaniyan in Hindi Book Reviews by राज बोहरे books and stories PDF | एस.आर. हरनोट-दारोश तथा अन्य कहानियां

Featured Books
  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

  • ખજાનો - 85

    પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ...

Categories
Share

एस.आर. हरनोट-दारोश तथा अन्य कहानियां

पुस्तक समीक्षा-

दारोश तथा अन्य कहानियां-एस.आर.हरनोट

लेखकों मे कुछ लोग अपने कोई पेन नेम या दुख सुख से जुडें नाम नही रखते, ऐसे लोगों का यह कदम उनके साफ दिल और बुलंद व्यक्त्वि के परिचायक होता हैं। जब ऐसे लोगों की रचनायें पढ़ते हैं तो लगभग अवाक सा रह जाना पड़ता है। ऐसे रचनाकारों में पुन्नी सिंह, भगवानदास पोरवाल, देवेन्द्र, एस.आर. हरनोट जैसे बहुत प्रतिभाशाली लेखकों के नाम लिये जा सकते है।

ग्राम चनाबग जिला शिमला हिमाचल प्रदेश में जन्में और वहीं निवासरत एस.आर.हरनोट की कहानियां पढ़कर पाठक को सर्जनात्मक श्रम, किस्सा गो जैसी उत्सुक स्थिति और बड़े अचीन्हे से कथानक दिखाई देते हैं।

सन् 1955 और उसके आस पास जन्मे कहानी लेखकों की सूची पर जब हम नजर डालें तो पायेंगे कि इस उम्र के लेखकों की जमात पर्याप्त होमवर्क और विशेषज्ञता के साथ कला लेखन में सक्रिय हुये है। इन कथा लेखकों में राजेन्द्र दानी, ए.असफल, राजेन्द्र लहरिया, शशांक, हरि भटनागर, महेश कटारे, देवेंद्र, लवलीन, सुरेश कांटक, महेश अनध आदि के साथ एस.आर.हरनोट का नाम भी शामिल है। देश में संविधान लागू होने और पहले आम चुनाव होने के समय आपका शैशव बिताने वाले इन कथाकारों ने मोहभंग का समय अपनी किशोरावस्था में देखा तो आपातकाल के समय यह फसल पक कर पूरी तरह तैयार थी। इस कारण इन्हे विविध वर्णी अनुभव मिले है जो इनकी कहानियों में मौजूद मिलते है।

दारोश तथा अन्य कहानियां के नाम से हरनोट का चौथा संग्रह अभी-अभी छपकर आया है। संग्रह की पहली कहानी ‘बिल्लियां बतियाती है‘ में ममता का सागर लुटाती गांव में अकेली रहती अम्माँं है, उनका बेटा शहर में बस गया है। अम्मांँ तो बिल्लीयों, परिन्दों और पशुओं से बतियाती है। सारा गांँव उसका बेटा है। एक दिन बेटा गांव आता है और अम्मांँ से कहता है कि उसे बच्चे के एडमीसन के लिये तीस हजार रूपये जमा करना है। अम्माँं कहती है कि आयन्दा जो खाना-खर्च के लिये रूपये भेजता था वह मत भेजना। पर वह कुछ और कहना चाहता है कह नहीं पाता। रात को नींद नहीं आती तो छिपकर मांँ के कमरे में झांकता है। वहां अममां बैठी हुई बिल्लीयों से बतिया रही है। वह बिना आवाज घूमते बेटे का द्वंद्व जान जाती है और बेटे को निश्चिंत होकर सो जाने का कहती है, साथ ही बेटा देखता है कि तकिये के नीचे उसके द्वारा दो वर्ष से भेजा जा रहा रूपया एक मुश्त रखा है।

’’बीस फुट के बापू जी’’ बेटे द्वारा भुला दिये गये एक घोड़े वाले बुजुर्ग चाचू की कहानी है। चाचू पहाड़ी शहर में रहता है, और पर्यटकों के बच्चों को अपने घोडे पर बिठा कर घुमाता है। चाचू को गांधीजी के बुत के बड़ी श्रद्वा है। गांधीजी की यह प्रतिमा पत्रकारों और पुलिसवालों से लेकर बच्चों तक के कोई न कोई काम आती है। जब कोई प्रतिमा के साथ अपमान जनक हरकत करता है, चाचू भड़क उठता है। चाचू घोडे़वालों की समस्याओं के लिये जूझता रहता है। शहर प्रशासन द्वारा बापू (गांघीजी) की प्रतिमा बीस फुट ऊंची उठा दी जाती है तो चाचू खुश होता है। अचानक फिल्मी संयोग की तरह चाचू का बेटा अपनी पत्नि और बच्चे के साथ घूमने आता है और बह बच्चा चाचू के घोड़े पर ही बैठता है। साहब बने बेटे को आवाज के सहारे चाचू पहचान लेता है और बच्चे को अपनी मजदूरी वापस कर वहां से चल देता है। बेटा भी पिता को पहचान कर विवश खड़ा रह जाता है।

’’माफिया’’ एक बच्चे चुम्मी द्वारा अनुभूत अपने आसपास की कहानी है। चुन्मी का पिता वन विभाग के अधिकारियों पर वन्य पशुओं की खाल के सौदागरों से मिला हुआ है। इलाकें का विधायक जंगलमंत्री बनता है प्रथम आगमन पर वनविभाग वाले कुछ खास जल्सा कुछ खस भोजन कराने का सोचते है। चुम्मी के प्राणप्रिय मोर-मोरनी में से मोर को उसका पिता मार डालता है और जंगलमंत्री को खिलाता है। चुन्मी पिता और उनके साथयों से उसी तरह नाराज हो जाता है जैसा वह चिड़ियों से है। चिड़ियों से इस कारण कि चुम्मी की दादी ने एक कहानी सूनाई थाी कि चिड़िया ने मेले मे जाने हेतु मारे के संुदर पांव मांग लिये थे और अपने बदसूरत पैर मोर को दे दिये थे, फिर उसने मोर के पांव ही नही लौटाये।

’’लाल होता दरख्व’’ गांव के एक गरीब किसान की कहानी है जिसके दो बेटियां है, और घर के दो दरख्तों यानी कि तुलसी और पीपल को भी वह संतान ही मानता है। बड़ी बेटी और आंगन के तुलसीघरे में विराजी तुलसी की शादी वह अपने दो खेत गिरवी रख के बड़ी धूमधाम से कर चुका है अब एक मात्र खेत है पर उसे दो कारज निपटाने है। पहला अपनी पुत्री मुची के ब्याह का दूसरा खेत में उसे पीपल के ब्याह का। इस के लिये वह अपने खेत का सौदा कर लेता है। मुनी कों यह अच्छा नहीं लगता । वह अपने मंगेतर के यहां से आये कपड़ें पहनकर पीपल से शादी कर लेती है। और उसके मां बाप हतप्रभ रह जाते है। बड़ी महीन बुनावट, शानदार शैली और कथा के सूत्रों की रोचक प्रस्तुति के कारण यह कथा संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कथा है।

”हिरख” मे गांव की बदलती नेतागिरी, सरपंच की गुंड़ागिर्दी, सामुदायिक विद्वेष की कहानी कही गई है। इसमे दादा जैसा उदास और विचारवान पात्र लिया गया है जो अपने पोते को अपने संस्कार सौंप रहा है।

”दारोंश” को शीर्षक कथा भी कहा जा सकता है। इसमे युवा लड़की को उठा कर उसके साथ बलात्कार करके शादी करने की पहाड़ी क्षेत्र की प्रथा का जिक्र है। कानम इस प्रथा का विरोध करती हैं और इस कारण अपने बड़े पिता के तक खिलाफ खड़ी हो जाती है।

”मुठ्ठी मे गांव भी” स्त्री जागरूक की कहानी है। मराली का पति जर्सी गाय के लिये ऋण निकालकर गाय लेने ग्राम प्रधान के साथ शहर गया हैं, पर वह खाली हत्थ लौट आता हैं, बताता है कि गाय तो प्रधान ने रख ली। मंगली भढ़क उठती हैं, और प्रधान के घर जाकर बलपूर्व अपनी गाय अपने घर ले आती है। सारा गांव उसकी सराहना करता है। अन्य कहानियों मे कथा भाषा मे कौआ की भाषा जानने वाली दादी की कथा है ंतो ”बच्छिया बोली” हैं, मे गाय बछिया को गाथिन कराने वाले एक लपट प्रौढ़ का जिक्र हैं, तो गाय पर कम गाय वालें घर की बहू बेटियों पर ज्यादा दृष्टि ड़ालता है। ”मिस्त्री” कहानी खेतों, मकानों मे काम करने वाले एक गुणी मिस्त्री की कथा है, जिसके सीधे पन के कारण लोग उसे ड़ाटतें उपटते है। पर वह अपने हुनर के कारण काम मे चमत्कार दिखाता है।

इस संग्रह को पढ़ चुकने के बाद बहुत देर तक पाठक इसके प्रभाव मे बना रहता है। पहाड़ी जीवन की नयी और अंजानी बातों की तमाम जानकारी इन कहानियों के पढ़ने से पाठक को होती है। बहुपति प्रथा, पत्नि अपहरण, हर गांव मे देवता की व्यवस्था समिति, हर किसान का खेत मे अलग मकान (दोघर) होना, पीपल का ब्याह जैसी तमाम प्रथायें जानकर पाठक की जानकारी मे बढ़ोत्तरी होती है। संग्रह की हरेक कथा लेखक मे खूब फुरसत से लिखी है जो खींचती और बांधती तो है ही पाठक हिल मे उलझ भी जाती है।

आज के युग की पठनीयता से दूर होती जा रही कहानियों के जमाने मे ऐसी पठनीय और रोचक कथायें लिखकर एस.आर.हरनोट पाठकों को फिर से कहानी की ओर मोड़ रहें है। हर कथा मे किस्सा गोई जैसा रस और वृतांत कथा जैसी औत्सुक पैदा करती ये कहानियां लेखक सराहना प्रदान करेंगी। यद्यपि हरनोट की कथाओं के पात्र काल्पनिक नहीं लगते पर कुछेक पात्र विलक्षण लगते है। पात्रों के वार्तालाप जहां-जहां आते हैं मन को भले लगते है। इन कथाओं की कुछ बातें बड़ी अजीब और विलक्षण लगती हैं, पर लेखक ने उन्हें विश्वसनीय ढंग से कहा हैं, अतःपाठक सहज सपने उन्हें पचा जाता है। जैसे कि ”कागभाषा” की अम्मा का कौओं की भाषा जानना तथा अम्मा का अचानक गायब हो जाना।

भाषा की दृष्टि से इस संग्रह की खूब चर्चा होनी चाहियें। प्रचलित शब्दों का मूल्य घटने, उनके मुर्दा हो जाने से चिंतित आलोचक इस संग्रह मे नया शब्द सरोवर पायेंगे। क्योंकि यह तो सच ही हैं कि हिन्दी को सशक्त और दीर्घजीवी बनाने के काम मे बोलियों का प्रचुर योगदान है। इस योगदान को और बढ़ाना चाहियें। संग्रह मे पहाड़ी क्षेत्र की बोली के सैकड़ो शब्द अनायास आ गये है जो हिन्दी की शब्द निधि बनेंगे, ठीक वैसे ही जैसे देवेन्द्र की कहानी मे बनारस और लखीमपुर खीरी के शब्द, हरिभटनागर मे अवधी तथा महेश कटारे मे चम्बल की भदावरी-ब्रज मिश्रित बोली के शब्द आये है, और हिन्दी ने उन्हें सहर्ष अपनाया है। विषय वैविध्य और शैली भिन्नता के कारण ये कहानियंा पठनीय और संग्रहणीय कही जा सकती है।

----------