पुस्तक समीक्षा- उसके हिस्से का पुरूष- पुष्पा सक्सैना
उसके हिस्से का पुरूष कहानी संग्रह अनिधा पुस्तक योजना दिल्ली से प्रकाशित पुष्पा सक्सैना का पहला कहानी संग्रह हैं जो उन्होने पाठको के विशेष आंग्रह पर छपवाया हैं (ऐसा फ्लैप पर छापा गया है)।लेखिका का नाम हिन्दी कहानी के पाठकों को अन्जाना नहीं है। उनकी कहानियां तमाम पत्रिकाओं में प्रायः देखने को मिल जाती हैं प्रस्तुत संग्रह में उनकी आठ कहानियां संग्रहीत है। संग्रह की शीर्षक कहानी उसके हिस्से का पुरूष की कथा पति, पत्नी और वो के मूल बिंदु के इर्द-गिर्द चलती है। और जब पति मरता है तो दो-दो विधवा छोड़ता है। नायक मानस जहां अपना सेवा के दम पर सुप्रिया को पाता हैं वहीं पत्नि गंगा से ब्याह करना उसकी मजबूरी और ताउम्र हिरासत में ही जाना है। कहानी के बीच में ड़ायरी शैली से कुछ पन्ने लिखकर लेखिका नायक का पक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पाठकों तक पहुंचाती है। फिर भी कहानी में एक अत्यन्त सा अधूरापन रहता है।
बलम सुराना की मूल समस्या भी पति का अन्यत्र अनुरक्त होना है। पहले मां के साथ यह घटित होता हैं, और बाद में उसकी बेटी के साथ कहानी का मूल स्वर यह है कि बलम अर्थात् पति तो सुराना यानि तोता हैं जो हर नये चटखते फूल की ओर बढद्य सकता है। पत्नि को चाहिये कि वह तमाम हथकंडो और सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग कर उसे बांधे रहे व अपने दांपत्य के साथ-साथ खुद को भी टूटने से बचाये।
यादों के नाम नामक कहानी विदेश में बसे ऐसे व्यक्ति की कहानी हैं जो वह की एक युवती से विवाह तो कर लेता है पर अपने संस्कार नहीं छोड़ पाता और न ही छोड़ पाता है अपनी पुरानी यादें, रिश्ते और आचार-विचार। पष्चिमी देशों को देखते हुये रिश्तों दांपत्य जीनव और परिवारों का एक कच्चा चिट्ठा भी यह कहानी खोलती है।
‘शैफाली नहीं गीता हो तुम‘ नामक कहानी में किसी युवती के साथ वासना के भूखे भेड़ियों द्वारा अनाचार करने के बाद होने वाले परिवर्तन और विरक्ति को दर्शाया है। युवती गीता का मित्र प्रशांत उस घटना के वक्त गीता के साथ था और वह अपनें आपको उस घटना के लिये दोषी भी मानता हैं, क्योकि वह कोई संघर्ष नहीं कर पाया था। पता तो यह चलता हैं कि बीच में प्रशांत ने शादी करली पर अंत में स्पष्ट होता हैं कि उसकी शादी नहीं हो सकी थी। और वह आज भी गीता से शादी करने को इच्छूक है। और वी पूरे आत्मबल से जब अपनी बात गीता के पिता और सन्यासी गुरू तक पहुंचाता है तो कोई उसे रोक नहीं पाता।
अंतिम पड़ाव में एक पुत्री द्वारा अपने पिता को दी गई अप्रत्यक्ष श्रद्वांजलि का वर्णन है। पिता की मृत्यू पर अमेरिका से आई पुत्री अपने पिता की बातें, उनके विचार, उनकी महत्वाकांक्षाओं में याद होती है। दरअसल कहानी न होकर किन्ही श्रद्वावन या मोहाविष्ट क्षणों में लिखी गयी किसी का स्मृति चित्र है।
‘तुम्हारे लिये तनु सरकार‘ में भी विदेशी संस्कारों का जिक्र है। भारत में एक दुर्घटना में खत्म हो गई युवती की आखें जब भारतीय युवती तनुसरकार को लगा दी जाती है तो वर हर आदमी को इस दृष्टि से देखती है कि मुझमें कोई फर्क तो नहीं देखा जा रहा। मृत विदेशी पर्यटक लिजा का प्रेमी हेनरी जब अपनी प्रेमिका की मृत्यू का समाचार सुनकर भारत आता है और तनु को विशेष नजरों से देखता है तो वह सिहर जाती है। हेनरी धीरे-धीरे तनु की आखें ही नहीं उसके समूचे वजूद को प्यार करने लगता हैं और अंत में उसे पा भी जाता हैं जीवन भर के लिये।
‘उस एक पाल के नाम‘ में लेखिका ने उन परिस्थितयों का जिक्रकिया हैं जिसमें रहकर आदमी विकलांग होने पर भी यदि अच्छी नौकरी मिले तो विकलांग होने के लिये तैयार रहता हैं।
‘विकल्प नहीं कोई‘ कहानी में एक नन्हीं पुत्री की युवती मां स्तैम्यो जब अपनी सास की अनुमति से पुनर्विवाह करती हैं शीघ्र ही उसे पता चल जाता हैं कि नया पति उसकी बच्ची को पिता-सा प्यार या पिता का प्यार नहीं दे पायेगा। बच्ची की दादी भी उसे नहीं।