जगह : आठवें राजकुमार का महल।
उसने घूंघट उठाया। " अभी दो महीने ही हुए है मुझे यहां आए हुए, और अब मे शादीशुदा हूं। ये कैसी किस्मत है मेरी। अब इस शादी को तो मे बदल नहीं सकती। पर सुहागरात तो मे अपनी मर्जी से मनाऊंगी। में भी देखती हूं कौन आता है मुझे छूने। मौली जाओ जल्दी से एक ठंडे पानी से भरा हुआ बर्तन एक पतली सी रस्सी जो किसी की नजर मे ना आए ऐसी और एक लकडे का डंडा इतना बड़ा लेकर आओ। जाओ।" उसने हाथो से इशारा कर मौली को दिखाया कि उसे कितने आकार के चीज़ों की जरूरत है।
" राजकुमारी।" मौली आगे कुछ कहे उस से पहले समायरा ने उसे आंखे दिखाई। "फिर कहो।"
" मेरा मतलब समायरा। देखो ऐसा कुछ मत करना की आठवें राजकुमार हमे रातो रात महल से निकाल बाहर करे।" मौली की आवाज मे चिन्ता साफ झलक रही थी।
" यकीन करो। सिर्फ इतना करूंगी की वो ये कमरा छोड़ कर चला जाएगा। अब जाओ भी जल्दी।" उसने एक मासूम सी शक्ल बनाते हुए अपने एक हाथ से अपने गले को छू कर कसम ली।
" पता नहीं तुम पर भरोसा करना चाहिए या नहीं।" ये सोचते हुए मौली समान इकठ्ठा करने चली गई।
यहां एक तरफ शादी के जश्न से बड़े राजकुमार के गायब होने की खबर मिलते ही आठवें राजकुमार रिहान के साथ सीधे राजकुमारी के कमरे की तरफ निकल पड़े।
"सब तैयारियां हो गई है। अब बस राजकुमार का इंतेज़ार है।" उसने अपने आप पर गर्व महसूस करते हुए मौली से कहा।
" समायरा राजकुमार नाराज हो सकते है ऐसी शरारतों से। समझने की कोशिश करो।" मौली के चेहरे पर फिक्र साफ दिखाई दे रही थी। लेकिन राजकुमारी शायरा उर्फ हमारी समायरा के चेहरे पर शिकंज भी नहीं थी। तभी बाहर से किसी के कदमों को आवाज आई। " वो आ गया क्या?" समायरा ने पूछा।
" जल्दी अपना घूंघट ठीक कीजिए इस वक्त दुल्हन के कमरे में बस दूल्हा ही आता है। जल्दी यहां बैठिए। हाथ ठीक से रखिए।" मौलीने उसे अच्छे तरीके से एक शर्माती हुई दुल्हन की तरह बिठा दिया।
कमरे के बाहर बड़े राजकुमार अमन सिंग वर्मा राजकुमारी के कमरे की तरफ आगे बढ़ रहे थे। तभी एक भाला अचानक कहीं से आकर उनके सामने की जमीन मे गढ़ गया। वो अपने कदम वहीं रोक लेते है। कुछ ही देर में आठवे राजकुमार वहा पोहोच जाते है।
" अच्छा हुआ आप यही रुक गए भाई। हम अपने शादी वाले दिन कोई खून खराबा नहीं करना चाहेंगे। इस भाले को आप अपनी सीमा समझये। आज के बाद आप अपने और राजकुमारी के बीच हमेशा हमे पाएंगे।" उसने बड़े राजकुमार को सावधानी बरतने को कहा।
पर अमन को इस से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। उसके चेहरे पर अभी भी हसी थी। " प्यार कि कोई हद नहीं होती भाई। पता नहीं क्या तुम्हे? कैसे पता होगा ? क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया ?" उसने हसते हुए आठवें राजकुमार को देखा। " ये कोई राजनीति को दाव नहीं है। जहा हम राज्य अलग कर सीमाएं खीच दे। मे अपना हक़ और अपना प्यार दोनो जीत कर तुम्हारे सामने से ले जाऊंगा याद रखना मेरी बातो को। आज यहां में बस शायरा को देखने आया था। जल्द उसे अपने साथ ले जाऊंगा।"
कमरे के अंदर
" ये इतना वक्त क्यो लगा रहा है। मे कब से इंतेजार कर रही हूं।" उसने फिर घूंघट उठा कर दरवाजे की तरफ देखा।
" मौली तुम लोगो मे पति को क्या कह कर बुलाते है ?" अब उसकी नजरे मौली पर रुक गई थी।
" ह । यहां ज्यादा तर औरते अपने पति को स्वामी बुलाती है। आप उन्हे राजकुमार कह सकती है। राजकुमार, स्वामी, महाराज। ऐसा कुछ।" मौली ने उसे समझाया।
" समझ गई।" उसने अपनी नजरे फिर दरवाजे की तरफ की और जोर से आवाज लगाई " स्वामी। मेरे राजकुमार। कहा है आप ? आपकी राजकुमारी सुहागरात के लिए आपका इंतज़ार कर रही है। हनी। कब ..." वो आगे कुछ बोले उस से पहले मौली ने उसका मू अपने हाथों से ढक लिया। " ये क्या कर रही है आप?" उसने अपने मुंह से मौली का हाथ हटाया " क्या हुआ ? तुम्हीं ने तो कहा स्वामी बुलाओ।"
वहीं कमरे के बाहर।
राजकुमारी की आवाज बाहर तक पोहोच चुकी थी। आठवें राजकुमार ने एक विजयी मुस्कान के साथ कहा,
" अब शायद आप जान चुके होंगे। प्यार किस के हिस्से मे है और रही हक़ की बात तो वो हम भी नहीं छोड़ने वाले।"