अध्याय -20
" कहां है नव्या? " नंदिनी का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा था । उसने राजमल की शर्ट पकडकर पूछा । " बोलो कहा है नव्या? " हिस्टिरिया के मरीज जैसी हालत हो गई उसकी । उसका सिर बड़ी तेजी से घूमने लगा और बेहोश हो गई । बतरा साहब और रीनी को यह बात घर के नौकर से पता चली ।
"कहां है नंदिनी अभी?" रीनी ने पूछा ।
" ऊपर वाले कमरे में! डॉक्टर आए हुए है । " नौकर ने बताया ।
रीनी और बतरा साहब झटपट ऊपर वाले कमरे में पहुंचे । नंदिनी बिस्तर पर लेटी थी । डॉक्टर उसका चेकअप कर रहे थे । नंदिनी की मां ममता सिरहाने बैठी थी । तभी एक चमत्कार सा हुआ । बतरा साहब को कमरे में प्रवेश करना और नंदिनी का आखें खोलना एक साथ ही हुआ । नंदिनी के चेहरे पर खुशी के भाव आए । उसकी मां धीरज को देखकर भावुक हो गई । वे उठी उन्होंने बतरा साहब के पैर छू लिए । बतरा साहबने उन्हें गले से लगा लिया । आज ममता की आखों में ख़ुशी के आंसू थे । नंदिनी और रीनी को बतरा साहब और मां का आलिंगन अत्यंत मोहक, प्यार और ह्रदय ग्राही लगा । रीनी को ऐसा प्रतीत हुआ की मानो धरती और आकाश एक दूसरे से मिल रहे हो । नंदिनी को भी यह स्वरूप सौंदर्य व समर्पण की मिशाल प्रतीत हुआ -अनुपम, अप्रितम, अद्वितीय । सम्भवतः ऐसे ही स्वरूप की प्रेरणा से अजंता, एलोरा एवं खजुराहो की मूर्तिओ का मिलाप हुआ होगा ।
डॉक्टर भी भोचक्का होकर इस प्रगाढ मिलन को देख रहा था । प्रेम की तीव्रता में लोकमर्यादा का भी ध्यान नहीं रहता । प्रेम इस तरह बेसुध बना देता है कि लौकिक चेतनता जाती रहती है ।
पांच मिनट के बाद धीरज बतरा व नंदिनी की मां एक दूसरे से अलग हुए । मां एकदम से शरमा गई । बतरा साहब हंस पड़े । नंदिनी की ओर मुडे - "कैसी तबियत है बेटा?"
"ठीक हूं पापा ।"नंदिनी ने कहा ।
"पापा!" इन दो शब्दों नें धीरज बतरा को फिर इमोशनल कर दिया । उन्होंने प्यार से नंदिनी के बालों में उंगलियां फेरी । उसके गाल पर स्नेहासिक्त चुम्बन अंकित किया ।
इतने में भारी बुटों की खटखट की आवाज़ हुई । बतरा साहब के निवेदन पर पुलिस की स्पेशल ब्रांच की टीम आ गई थी । राजमल को पकड़ने । पर तब तक राजमल फरार हो चूका था । स्पेशल ब्रांच की एक टुकड़ी उसे पकड़ने के अभियान पर तैनत की जा चुकी थी ।
" जयहिंद बतरा साहब । "
" आओ सूर्यभान! वेलकम! क्या खबर है? "बतरा साहब ने सूर्यभान का स्वागत व प्रश्न एक साथ किया ।
" ठीक है सर! हम जल्दी ही राजमल को पकड़ लेंगे । हमारे यहां पहुंचने से पहले ही वो फरार हो चूका है । पर चिंता न कीजिए । शहर की सारी सीमाएं सील कर दी गई है । बचकर कहां जाएगा । " सूर्यभान ने बताया । उसके बाद सूर्यभान नंदिनी की और मुख़ातिब हुआ ।
" नंदिनी जी वो आपका इंस्पेक्टर दोस्त तो काफ़ी चालाक निकला । वो राजमल से मिल चूका था । सारी इनफार्मेशन पहले उन्हें देता था, फिर आपको बताता था । "
" ओह् । " नंदिनी के चेहरे पर निराशा के भाव आए ।
" डोंटवरी ।जल्द ही गुनहगार क़ानून के सिकंजे में होगा । रघु और राजमल जल्दी ही सलाखों के पीछे होंगे । " सूर्यभान नें भरोसा दिलाया ।
" थैंक यू । " नंदिनी नें संतुष्टिपूर्ण लहजे में सूर्यभान का शुक्रिया अदा किया ।
सूर्यभान के फोन की घंटी बजी ।'हेलो '-सूर्यभान ने फोन उठाया । दूसरी तरफ उसका एक खबरी था - मुन्ना । " हां, बोलो मुन्ना । " "सर, रघु के एक गुप्त अड्डे की मुझे अभी खबर -मिली है । जे पी रोड, सलमा अपार्टमेंट के पीछे । गोडाउन । लाल रंग का गेट ।"
सूर्यभान की टीम गोडाउन पहुंची । अंदर जाने पर उन्हें कोई नहीं मिलता । वैसे वहां की हालत यही बताती है कि कुछ देर पहले यह अड्डा गुलजार था । चारों ओर पानी की खाली बोतल, बियर -दारू की खाली बोतले, बीड़ी -सिगरेट के टुकड़े । ग्लास, चाय के कप आदि बिखरे पड़े थे । वातावरण में निकोटीन की गंध को सुंघा सूर्यभान नें, तुरंत उन्होंने चारों तरफ नजर घुमाई । इस बीच किसी के कराहने जैसी आवाज सूर्यभान के कानों में पड़ी ।
चौंक गए सूर्यभान । आवाज दाई तरफ के किसी कमरे से आई थी । उन्होंने टीम को इसारा किया । एक इंस्पेक्टर उस कमरे के दरवाजो पर पहुंचा जहां से आवाज आने का अंदेशा था । इंस्पेक्टर ने दरवाज़े को धक्का दिया, दरवाजा खुल गया । अंदर एक कुर्सीमें बंधी हुई हालत में नव्या मिली ।
"नव्या... बच्चा! " नंदिनी दौड़कर उसके पास आई ।
नव्या अपनी आंख खोलती है । नंदिनी, रीनी आदि को देखकर उसके चेहरे पर सुकून आया ।
सूर्यभान नव्या की रस्सीयां खोलते हुए उससे पूछा, " बेटा घबराओ नहीं । हम सब स्पेशल ब्रांच से है । जो भी बात है । बताओ । "
नव्या रोने लगी । रोते -रोते उसने कहा - "सर मेरे भाई को बचा लो । वो लोग उसे मार डालेंगे ।"
सूर्यभान उसे सांत्वना देतें हुए कहा "कुछ नहीं होगा तुम चिंता न करो।"
नंदिनी पूछा , " नव्या बच्चा, किसने किया ये सब? "
"रघु के लोग । वे यहां से थोड़ी देर पहले मेरे भाई को लेकर गए हैं?"
"कहां गए है? तुम्हे कुछ पता है क्या?" सूर्यभान ने सवाल किया ।
" नहीं! मुझे नहीं मालूम । पर शायद वे लोग अभिनव को रघु के नए अड्डे पर लेकर गए है । "
"नया अड्डा? ये कहां है?"
" सर मुझे नहीं पता । "
" ओके! मैं पता करवाता हूं । "यह कहकर सूर्यभान ने अपनी टीम के एक इंस्पेक्टर को हिदायत दी कि जल्दी अपने सारे खबरीओ को सक्रिय करो । हमें रघु के नए अड्डे की खबर फटाफट चाहिए ।
" ओके सर । " उस इंस्पेक्टर ने कहा ।
फिर सूर्यभान नव्या की और मुख़ातिब हुए । उन्हें इस मामले की कई बातें नव्या से पूछनी थी। "तुम यहां कैसे पहुंची नव्या?"
सिसकियां लेते हुए नव्या ने कहा, "हॉस्टल में एक रात वार्डन मेरे रूम में आई । मेरी रूटीन खैरियत पूछने के बाद उसने कहा कि " नव्या बधाई हो । अब तुम्हारे आर्ट के पब्लिक परफॉरमेंस मौका आ गया है । " मैंने खुश होकर पूछा, "वो कैसे मैडम?"
"मुझे एक इवेंट आर्गेनाइजर कल मिला था । उससे मैंने तुम्हारे बारे में बताया । वो बहुत ख़ुश हुआ । वो अगले महीने पुकार हॉल में एक शो करने वाला है । तुम्हें जरूर मौका देगा ।
"थैंक यू मैडम ।"मैंने कहा ।
"वो कल सुबह तुमसे मिलना चाहता है । सुबह 10 बजे गेलेक्सी रेस्टोरेंट पर ।
"ओ के मैडम । आप साथ रहेंगी न?"
"हां नव्या । मैं साथ रहूंगी ।" मैडम ने कहा ।
उन्होंने मुझे 9 बजे तैयार रहने को कहा ।
मैं बहुत ख़ुश हो गई । मुझे सिंगिंग में दिलचस्पी है । जो भी मेरा गाना सुनता है, सराहना करता है । पर मुझे स्टेज प्रफार्मेशन का मौका नहीं मिला था । हालांकि मैंने खूब हाथ -पांव मारे पर वही कामयाबी नहीं मिली थी । वार्डन मैम की बात में मुझे आशा की किरण दिखी । मारे ख़ुशी के उस रात मुझे ठीक से नींद भी नहीं आई ।
सुबह ठीक 10 बजे वे मुझे अपने साथ गैलेक्सी रेस्टोरेंट ले गई । वहां इवेंट आर्गेनाइज़र की बजाय नंदिनी के पापा मिले । मैडम ने कहा कि वें अभी थोड़ी देर में आ जाएंगे । ट्रैफिक में फ़स गए है । तब तक तुम राजमल जी से बात करो । नंदिनी के पापा की मैं बहुत इज्जत करती थी । पर उन्होंने मेरे सामने एक गंदा प्रस्ताव रख दिया । " इतना कहकर नव्या फूट-फूट कर रोने लगी ।
" कैसा प्रस्ताव? " सूर्यभान ने पूछा ।
" सर प्लीज! मत पूछिए उसके बारे में । मैं बता नहीं पाउंगी । बस इतना समझ लीजिए कि इज्जत का सौदा करने के स्थान पर मैं अपनी जान देना ज्यादा पसंद करूंगी । "नव्या ने कहा ।
"ओ के... आगे बताओ ।"
नव्या ने आगे बताना शुरु किया -"मैंने नंदिनी के पापा को कड़ी फटकार लगाई "आप मेरे पिता के समान है ।आपको यह कहते शर्म नहीं आती क्या? मेरी बात सुनकर नंदिनी के पापा का चेहरा लटक गया । मैं वापस हॉस्टल लौट आई ।
मैंने तो समझा था कि इससे बात ख़तम हो जायेगी । पर ऐसा सोचना मेरी गलतफहमी थी । उस दिन से वार्डन मैडम मेरे पीछे पड़ गई । वे विभिन्न बहानों से मुझे परेशान करने लगी । एक दिन तो उन्होंने साफ -साफ बोल दिया -"नव्या, ज्यादा बनो नहीं । राजमल जी का प्रस्ताव मान लो । फायदे में रहोगी । नहीं तो तुम्हे बहुत कुछ भोगना पड़ेगा ।"
मैं समझ गई कि अब ज्यादा सहन करने की बजाय कुछ करना पड़ेगा । वार्डन और नंदिनी के पापा के नापाक इरादों का पर्दाफाश करना ही होगा । इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है । इसलिए मैंने अपने भाई को फोन करके हॉस्टल बुलाया ।
जिस समय भाई को आना था उसके पंद्रह मिनट पहले मुझे वार्डन ने अपने कमरे में तलब किया । मैं वहां जाकर हैरान रह गई । वार्डन अपने हमेशा वाले रंग में थी । क्रूर के साथ सिर से पैर तक बनावटी । आखों में पत्थर जैसी छवि । हॉस्टल की एक लड़की रचना भी कमरे में थी । रचना डरी सहमी लग रही थी । उसकी आंखों में कपटता के भाव थे ।रचना के बगल में एक खूंखार सा आदमी बैठा था जो रचना को खा जाने वाली निगाह से देख रहा था । उसके सामने मेज पर शराब की बोतल, ग्लास, काजू नमकीन की प्लेट, सिगरेट का पैकेट थे । यह सब देखकर मैं डर गई । मैं वापस जाने के लिए घूमी कि वार्डन ने उस आदमी को कहा - 'ओम प्रकाश, पकड़ो इस साली को भागने न पाए ।'
उस आदमी ने मेरे मुंह पर कपड़ा बांधकर एक कुर्सी पर बिठा दिया । मेरे हाथ बांध दिए गए । मेरा फोन छीन लिया गया । थोड़ी देर मे मेरा भाई हॉस्टल पहुंचा तो उससे कहा गया कि मैं किसी काम से अचानक बाहर चली गई हूं । मायूस होकर भाई लौट गया ।
उस रात नंदिनी के पापा हॉस्टल आए । दिन में वार्डन और ओम प्रकाश नामक उस व्यक्ति ने मुझे खूब टॉर्चर किया था । वार्डन ने धमकी दी थी कि,'हमारी बात मान लो । लाखों में खेलोगी ।तुझे करना क्या है -राजमल जी के साथ साथ कुछ नेता और बड़े बिजनेसमेन को ख़ुश रखना है बस । ताकि राजमल जी का ड्रग्स का व्यापार भी जोर से चले । और हा बात नहीं मानोगी तो तुम्हारे भाई को मार डालेंगे । तुम्हारा जो ये खूबसूरत चेहरा है न उस पर तेजाब डाल देंगे ।'
उसी वक़्त नंदिनी के पापा का फोन आया । उन्होंने बड़ी बेशर्मी से मुझसे कहा -"ए लड़की । तुम हमें नहीं जानती । मैं दिखने में जितना सीधा दिखता हूं अंदर से उतना ही बदमाश हूं । हम जो कहे, वो तुम्हे करना ही होगा । तुम बच नहीं सकती । "
मुझे पता चल चूका था की नंदिनी के पापा और वार्डन मिलकर एयाशी के लिए लड़कियां सप्लाई करते थे । अमीरों के घर, गेस्ट हॉउस, नेताओं के फार्म हॉउस, होटल में लड़कियां भेजी जाती थी ।जिंदा गोश्त के इस अनैतिक व्यापार में इस हॉस्टल के अलावा शहर के अन्य हॉस्टल एवं फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री की कुछ अभिनेत्रीयां भी सहभागी थी । नंदिनी के पापा इस धंधे के चीफ थे । इसके अलावा यंगस्टर को ड्रग सप्लाई करवाना ड्रग्स की लत लगाना भी यही गैंग करता था । वे पुलिस को नियमित हफ्ता देते थे । शहर के ऐस. पी, एमएलऐ, एम.पी व मंत्रियों को लड़कियां सप्लाई करके बिज़नेसमेन के कई प्रोजेक्ट पास करवाए जाते थे । नंदिनी के पापा, ओमप्रकाश और वार्डन की बातों से यह भी लगा की उनके पास बड़े -बड़े अधिकारीयों मंत्रियों की एयासी के सबूत के वीडियो और फोटो उनके पास है और वे इसके जरिए ब्लेकमेलिंग भी करते है ।
मैंने वार्डन के आगे झुकने से इंकार कर दिया । जब उसने कहा कि आज की रात तुम्हे सेठ अमीरचंद के बंगले में बितानी है तो मैं भड़क गई । मैंने कहा कि मैं तुम सबके कुकृतयों की दास्तान पुलिस, प्रेस, मीडिया को बताउंगी । नंदिनी को भी बताउंगी । इस पर उन लोगों ने दो दिनों तक मुझे बांधकर रखा । खाना -पीना भी नहीं दिया ।
फिर मैंने सोचा कि इस तरह तो मैं एक दिन मर जाऊंगा । इन दरिंदो की हैवानियत की खबर किसी को पता भी नहीं चलेगी इसलिए मुझे कूटनीति से काम लिया और दिखावटी तौर पर मैंने उनके सामने हथियार डालने का फैसला कर लिया । "
वहां उपस्थित सभी लोगों - धीरज, सूर्यभान, नंदिनी, रीनी आदि को नव्या की बातों में दुखों का पहाड़ महसूस हुआ ।नव्या की आंतर यातना में तेजाब की सिसकारी थी और शब्दों के वेग में पीड़ाओ की बौछार। उसकी बातों सभी के कानों में पत्थर के चुरे की तरह गिर रही थी ।
नंदिनी को अपने पिता -अपनी मां के पति -राजमल की हरकतों से बेहद घृणा हो रही थी । नव्या के संघर्षो के बीच,'कूटनीति ' नामक शब्द सुनकर वह थोड़ा संभली । असल में अन्याय सहने वाले आदमी के प्रति हमारी सहानुभूति जरूर रहती है, लेकिन जब वह अन्याय का प्रतिकार करता है तब वह हमारी श्रद्धा का पात्र बन जाता है । दोनों रूपों में हम उससे जुड़े रहते है, लेकिन इसका जुड़ाव ज्यादा जिवंत और उत्साह होता है ।
थोड़े विश्राम के बाद नव्या ने फिर से कहना शुरू किया ।-
" फिर उन लोगों ने मेरे बंधन खोल दिए । मुझे खाना -पीना देना शुरू कर दिया । वार्डन संतुष्ट नजर आने लगी । उसे लगा की चिड़िया अब जाल में फ़स गई है । वह मेरी तरफ से थोड़ा निश्चित रहने लगी ।
कुछ दिन बाद वार्डन ने मुझे तैयार होने को कहा । मुझे एक मेहमान की दिल जोई के लिए होटल भेजा जाना था । मैंने उसकी बात मानी । तीन लोग आए, वे मुझे लेकर एक होटल गए - होटल का नाम मुझे याद है -अल्फ़ा इंटरनेशनल । होटल के गलियारे में मुझे थोड़ा मौका मिला, कुछ आदमियों को देखकर मैं चिल्ला उठी -"बचाओ...प्लीज... बचाओ...। " तभी मेरे साथ के आदमी ने मेरे सिर पर फ्लावर पॉट दे मारा । मेरी चेतना लुप्त हो गई । "
जब मुझे होश आया तो मैंने अपने को इस कमरे मे पाया । मुझे फिर से बांध दिया गया । मुझ पर फिरसे से जुल्म ढाया जाने लगा । एक दिन एक गुंडे के फोन से, जब वह फोन कुर्सी पर भूलकर बाहर गया हुआ था, अपने भाई को फोन करके उसे सारी बात बताई । भाई ने पूछा -तुम्हे जिस जगह रखा गया है, वो कौन सी जगह है? मुझे पता नहीं था की यह कौन सा इलाका या जगह है । मैंने भाई से कहा कि यहां पर मुझे ट्रेन के आने जाने की आवाज के आलावा मस्जिद से अजान सुनाई देती है । भाई ने कहा -ओ के, मोबाइल से लोकेशन भेजो ।मैंने लोकेशन भेजा । तभी वो गुंडा वापस आ गया । उसे कुछ शंका हो गई थी, पर वो मुझसे कुछ बोला नहीं, अपना फोन उठाकर चला गया । "
कुछ समय बाद देखती हूं कि वो गुंडे मेरे भाई को पकडकर लेकर आया । फोन कॉल के आधार पर गुंडे ने मेरे भाई से सम्पर्क कर उसे अपने जाल में फसा लिया । भाई ने मुझे सारी बात बताई । मेरा भाई वैसे भी मेरी गुमशुदगी से परेशान था । उसने राजमल गैंग के एक गुंडे से डरा धमकाकर सारी सच्चाई जानी थी और मेरी की तलाश में जी जान से लगा था कि राजमल के अन्य गुंडे उसके पीछे लग गए । अभिनव की जान पर बन आई । फिर उसने पुलिस की मदद लेना सही समझा ।उन्होंने इंस्पेक्टर नितिन को फ़ोन किया। उसने अभिनव से कहा, "आप चिंता मत कीजिए । आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा । बस आप सिटी सेंटर मॉल के चौथे माले पर स्थित गुड़िया क्रिएशन पर आ जाओ ।"फिर नंदिनी का ध्यान आते ही फोन करना चाहा पर तब तक मोबाइल स्विच ऑफ़ हो चूका था । सिटी सेंटर जाते जाते वह पप्पू की दुकान से होता हुआ गया । उसके जरिए नंदिनी को संदेश भेजा । और सिटी सेंटर की राह पकड़ी । पर नितिन भी राजमल गैंग में मिला हुआ था ।उसने गुड़िया क्रिएशन पर राजमल के गुंडों को भी बुला लिया था - मेरे भाई को वही से सबने किडनेप करके गोडाउन में लाकर बंद कर दिया । आज उसे किसी दूसरी जगह ले गए ।" इसके बाद नव्या रोने लगी... उसने सूर्यभान से कहा -
" सर मैंने आपको सारी बात सच -सच बता दी । आप प्लीज मेरे भाई को बचा लो । "
"तुम कोई चिंता न करो ।" उसे सूर्यभान ने सांत्वना दी ।
उसी वक़्त नंदिनी का फोन बजा । नंदिनी ने फोन उठाया । कोई अननोन नंबर था । "हलो ।"
" हलो... नंदू...। "
नंदिनी ने साफ पहचान लिया । अभिनव की आवाज को । " अभी! हां अभी । बोलो । " कई दिनों बाद उसने अभी की आवाज़ सुनी थी ।
" अभी... तुम ठीक तो हो न? कहां हो तुम? बताओ अभी... बोलो ।"नंदिनी घबराहट भरी आवाज़ में बोली । उसकी आखों से आंसू बहने लगे । फोन समेत वो जमीन पर बैठ गई ।
* * *