loc - love oppose crime - 14 in Hindi Crime Stories by jignasha patel books and stories PDF | एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 14

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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 14

अध्याय -14

मां और पिताजी के बाहर जाते ही नंदिनी दीपक के कमरे में पहुंच गई । उसके पीछे -पीछे रीनी भी वहां आ गई । नंदिनी को देखकर दीपक ख़ुश हो गया । उसके चहेरे पर चमक आ गई ।
" छोटू, उस वक़्त बात पूरी नहीं हो पाई । अब बताओ बच्चा । "
" दीदी, वो पप्पू उस दिन एक चिठ्ठी लेकर आया, जो कि मम्मी ने ले ली । पप्पू बता रहा था कि कुछ दिनों से नव्या दीदी गायब हैं । कुछ लोगोँ ने उन्हें अगवा कर गायब कर दिया है । "
" क्या ? नव्या गायब हो गई? " अचंबित स्वर में नंदिनी लगभग चिल्ला पड़ी । रीनी भी स्तब्ध हो गई थी ।
" हां दीदी! और पापा ने बोला था कि यह बात मैं किसी को न बताऊ वर्ना वो मुझे बहुत मारेंगे । पर दीदी मुझे मार कि परवाह नहीं बस आप पर कोई मुसीबत ना आये ।"
नंदिनी अपने मासूम भाई को अपलक नजरो से देखती रही । उसे अपने अशक्त भाई का बहन प्रति प्रेम और बुद्धिमानी देख उस पर बेहद गर्व हो रहा था ।परिस्थितियों का यह अजीब विधान है कि कही एक आदमी हारता है तो कहीं जीत भी जाता है । एक हाथ से गवाता है तो दूसरे हाथ से बहुत कुछ पा भी लेता है । एक पांव कमजोर हो जाता है तो दूसरे पांव में दुगुनी शक्ति आ जाती है । नंदिनी ने उठकर भाई को गले से लगाते हुए कहा कि, " बच्चा तुम बिल्कुल भी न डरो । कोई तुम्हरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । तुम्हारी दीदी तुम्हारे साथ है बच्चे । "
* * * * *
रात अँधेरी थी । आकाश में बादल छाए हुए थे । अंदर से लैंपपोस्ट की हल्की रोशनी आ रही थी । ऐसी रोशनी, जो लोगोंको राह दिखा भी दे ओर अँधेरे का साथ भी दे । इस रात ने नंदिनी और रीनी की उलझने बढ़ा दी थी ।
" चलो टैरेस पर चलकर बैठते हैँ । " रीनी ने कहा ।
" हम्म । " नंदिनी बस इतना ही बोलकर टैरेस की तरफ चलने लगी । रीनी ने उसका अनुसरण किया ।
" रीनी! यह सब क्या हो रहा है? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है । " नंदिनी ने झूले पर बैठते हुए कहा ।
" बात तो सही है नंदिनी । "
"रीनी, आखिर कहां गायब हो गई नव्या? उसके गायब होने में किसका फायदा है? अचानक नंदिनी की आँखो की पुतलियाँ सिकुड़ गई । " रीनी... कही इस मामले में वॉर्डेन ओर मेरे पिताजी का तो हाथ नहीं है! लावण्या के बताने के अनुसार नव्या जिस दिन गायब हुई उसके एक दिन पहले उसका वार्डन के साथ खूब झगड़ा हुआ था । झगड़े के दौरान नव्या को यह कहते सुना गया कि ' चुप बैठो, ज्यादा चींचीं की तो मै तुम्हारा राज खोल दूंगी ।' वॉर्डन का कौन सा राज नव्या के पास था? शायद अपना भेद खुलने के डर से वार्डेन ने पिताजी के मिलकर नव्या को गायब करवा दिया हो ! पर कौन सा भेद? " नंदिनी एक सांस में ही सब बोल गई ।
" हां नंदिनी! मैं भी नहीं समझ पाई कि नव्या वार्डन का कौन सा राज जान गई थी? जिसके खुलनेके डर से उसे अगवा करवा दिया? जो बात लावण्या ने बताई वही नव्या जानती थी या उससे भी ज्यादा और भी कुछ? यह मामला सुलझने की बजाय उलझता जा रहा है । अचानक अभी गायब हो गया! पप्पू का एक्सीडेंट संदेहजनक पपरिस्थितियों में हुआ! मां -पिताजी ने छोटू से जबरजस्ती चिठ्ठी ले ली । पिताजी और उस वार्डन का गढजोड़ और अब नव्या भी गायब है । मुझे लगता है कि ये सारी कड़िया एक दूसरे से जुड़ी है । "
" ऐसा संभव है रीनी. "
" लेकिन पहले ये तो सोचो कि हम नव्या को कैसे खोजें? "
" रीनी, हम पता लगाएंगे नव्या का । एक मिनिट रुको! मेरे मनमें एक विचार आया है। कही ऐसा तो नहीं कि अभिनव को भी कुछ बातें पता चली होंगी और अभिनव भी नव्या को खोजने गया हो । " नंदिनी की आँखे किसी सूत्र को पकड़ने के भरोसे से चमकने लगी थी ।
" हां नंदिनी, ऐसा हो सकता है । संभवतः तुम्हारा अनुमान सच हो। "
" हां यही हुआ है रीनी । यही हुआ है । वर्ना अभिनव मुझे धोखा नहीं दे सकता। मेरे विचार से वो नव्या का पता लगाने के चक्कर में ही गायब हुआ है । जरूर वो किसी बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है । " यह कहते हुए नंदिनी के चेहरे पर डर के भाव झिलमिलाने लगे ।
अचानक नंदिनी के फोन घंटी बजी । फोन अस्पताल से था ।सुचना बेहद दुःखद थी -" सॉरी मैडम काफ़ी कोशिश के बाद भी पप्पू को बचा नहीं पाए । "
नंदिनी के लिए यह एक भारी झटका था। उसे पप्पू से कुछ सूत्र मिलने की आशा थी । इस आशा का दिया भी बुझ गया ।अभिनव ने पप्पू को जो भी बताया था, वह पप्पू की मौत के साथ चला गया । अब पप्पू सब राज अपने साथ लिए इस दुनिया से विदा हो चूका था । नंदिनी की चिंताएं और बढ़ गई ।
* * * * *
नंदिनी ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठी थी । गमगीन और चिंतातुर । उसके मां और पिताजी बाहर से आ चुके थे । नंदिनी के पिता मां के साथ दूसरे सोफे पर बैठकर कॉफी पी रहे थे कि उनके फोन की घंटी बजी । उन्होंने फोन रिसीव किया -' जी बत्रा साहब', ' जी बोलिये ','जी ठीक है । हो जायेगा । जैसी आपकी रिक्वायरमेंट है वैसा ही।',' जी कोई चिंता न करे ।','अरे नहीं बतरा साहब! मुझ पर भरोसा कीजिए ।',' ठीक है । आप मैनेजर को भेज दीजिए ।,'ओके बाय ।'
इस वार्तालाप को मां -बेटी ने ध्यान से सुना । इस दौरान दोनों चुपचाप एक- दूसरे को देखती रही । ऐसा लगता था कि दोनों बातचीत में छुपे संकेतो को पकड़ने की कोशिश कर रही हैं ।
फोन काटने के बाद पिताजी नंदिनी की तरफ मुख़ातिब हुवे, " नंदिनी यह प्रोजेक्ट बहुत इम्पोटेंट है। काफ़ी समय से मै बतरा साहब के टच मै हूं । आख़िरकार उनकी कम्पनी की एड का शूट हमें मिला है। कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए । उनके मैनेजर अभी यहां आ रहे हैं । कल सुबह बतरा साहब भी इंडिया पहुंच जायेंगे । शाम को उनसे मीटिंग है । बतरा साहब एड तथा प्रमोशन वर्ल्ड के बेताज बादशाह हैं । उनका काम परफेक्ट होना चाहिए । "
नंदिनी को गुस्सा तो बहुत आया पर उसने गुस्से को पी लिया । वह सिर्फ सिर हिलाकर रह गई । पिताजी ने इसे नंदिनी की हां के रूप में लिया । नंदिनी ने मां की तरफ देखा, उनकी आँखों में मजबूरी झलक रही थी । मानो मां की आंखे विनती कर रही थी कि ' हां कर दो बेटा ।'
बतरा साहब के मैनेजर्स प्रोजेक्ट की डिटेल्स लेकर तय समय पर आ गए । उसकी फाइल को नंदिनी गौर से देख रही थी । इस समय नंदिनी एक साधारण -सी साड़ी पहनी थी और हल्का मेकअप किए थी । एवं होंठों पर लिपस्टिक की हल्की सी परत । हालांकि वो इतनी सुन्दर थी कि उसे दोनों की -मेकअप या लिपस्टिक की - कोई जरूरत नहीं थी ।अत्याधुनिक फर्नीचर से सुसज्जित, हल्की दूधिया रोशनी से जगमगाते ड्राइंगरूम में उस व्यक्तित्व पारदर्शी और तरल बन गया था । ऐसी तरलता जिस पर न तो किसी की दृष्टी ठहरती है और न किसी की पकड़ में आ सकती है । एक यही चीज जैसे उसके व्यक्तित्व को सादर बना रही थी । इसके आवरण के निचे उसकी चिंताएं, उलझनें व दुख छिप सा गया था ।
नंदिनी को पहली नजर में प्रोजेक्ट अच्छा लगा था । फाईल के पन्ने जैसे -जैसे वह पलट रही थी, वैसे - वैसे उसके चेहरे पर शांति आ रही थी । नंदिनी को इस रूप में देखकर रीनी की आंखों को बेहद सुकून मिल रहा था । रीनी की राय में नंदिनी एक आधुनिक सुसंस्वृत युवती थी, अपने करियर ओर उसमे कामयाबी के लिए आवश्यक अपनी पूंजी सौन्दर्य के प्रति संयत ।
नंदिनी ने फाईल नजरें ऊपर उठाई । उसने मुस्कुराते हुए बहुत ही सधे पर मधुर कंठ से कहा, " ओके ।" और कॉन्ट्रैक्ट पर साइन कर दिया ।
जैसे ही मैनेजर्स बाहर गए, वैसे ही नंदिनी अपने पुराने रूप में लौट आई -गमगीन और चिंतातुर । उसे अभिनव और नव्या का पता लगाना था । पर उसकी हर उम्मीद टूटती हुई नजर आ रही थी। जो घटनाएं हो रही थी,वो सब समझ के परे थी ।
* * * * *
लाइट्स... केमेरा... एक्शन...।
पहले वाले प्रोजेक्ट की शूटिंग थी । मन न होते हुऐ भी नंदिनी लोकेशन पर पहुंची । मेकअप किया और स्क्रिप्ट लेकर बैठ गई । शूट होने के पहले उसने अपना फोन रीनी को सौंप दिया ।
" मैडम शॉट रेडी है । "
" ओके । "
डाइरेक्टर के ' एक्शन ' बोलने पर नंदिनी ने अपना डायलॉग बोलना शुरू किया । वह सही से डायलॉग डिलीवरी कर नहीं पाई । सीन कट हुआ । फिर से नंदिनी एक्शन में आई, पर नंदिनी ने फिर मिस्टेक की । सीन कट करना पड़ा । ऐसा पहली बार हो रहा था । अपने काम में एकदम प्रोफेशनल नंदिनी दो बार गलती कर चुकी थी । दरअसल, नंदिनी का ध्यान शूट में बिल्कुल नहीं लग रहा था । उसके दिमाग़ में अभीनव और नव्या की गुमशुदगी गूंज रही थी । बहरहाल, जैसे -तैसे करके नंदिनी ने सीन ख़त्म किया और वैनिटी वैन चली गई ।
वैन में पहुंचकर नंदिनी ने ज्यूस मंगाया । जो लड़का खाली ग्लास लेने आया, उसे देखकर नंदिनी चौंक गई ।उसने पूछा, " अरे तुम! तुम तो पप्पू के दोस्त हो ना? "
वो लड़का थोड़ा सहम सा गया । " हां मैडम, साथ ही रहते थे हम दोनों । एक ही रूम में । पप्पू का एक्सीडेंट होने के बाद मैंने वो रूम छोड़ दिया और इस नौकरी पर आ गया । मेरा चहेरा भाई मोहित यहीं पर स्पॉट बॉय है न ।"
" ओके! आओ, इधर बैठो! मुझे तुमसे कुछ पूछना है । "
"क्या बताऊं मैडम! मेरी मां और बहन गांव में रहती हैं । पिताजी 5 साल पहले गुजर गए । उन दोनों की जिम्मेदारी मुझ पर है । मेरी कमाई पर ही घर चलता है ।"
" ठीक है, पर ये बताओ कि तुमने पप्पू को क्यों छोड़ दिया? " नंदिनी की आवाज थोड़ी सख्त हो गई ।
नंदिनी की सख्ती देख वो हतप्रथ रह गया । शायद उसे अंदाज नहीं कि मैडम सख्त हो जाएंगी । इसलिये क्षणभर के लिए वह डर सा गया । किसी तरह हिम्मत जुटाकर उसने कहनां शुरू किया -
" मुझे हर महीने गांव पैसे भेजने पड़ते है मैडम । इसलिये मैंने दूसरी नौकरी खोज ली । "
" पप्पू का एक्सीडेंट होते ही...। ऐसा क्यों किया । तुझे पता भी है कि नहीं कि पप्पू मर चूका है । "
इस सवाल पर लड़केने आंखे चुराना शुरू कर दिया - " मैडम मुझे मालूम नहीं । कुछ भी नहीं पता । "
" अरे, मैंने तो कुछ पूछा भी नहीं और तुम बोल रहे हो कि तुम्हे कुछ नहीं मालूम । इसका मतलब यह है कि तुम्हे सब पता है ।"नंदिनी के स्वर में फिर से सख्ती आ गई । इसे महसूस कर वह लड़का हताश, निष्प्राण और कर्तव्यविमूढ़ सा बन गया । कुर्सी पर वह पहलू बदलने लगा । उसकी वह खामोशी नंदिनी को भयावह लगी थी । उसके चेहरे पर उग आई रेखाओं से उसके गहन संताप और चिंतित होने का पता चल रहा था । साथ ही उसके चेहरे पर यह भी भाव थे कि उसे बहुत सारी बातें पता है । फिर भी उसने कोशिश की -
" नहीं मैडम । सच में मुझे कुछ नहीं पता । मुझे किसी झमेले में नहीं पड़ता । मुझे माफ करो मैडम । "
" देखो, मुझे मत बताओ । मेरे लिए कुछ मत करो । पर अपने दोस्त पप्पू के लिए तो कुछ बोलो । क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे दोस्त के कातिल को सजा मिले । " नंदिनी ने इमोशनल हथियार का प्रयोग किया ।
फिर निशाने पर लगा । लड़का कुछ सोचने पर मजबूर हुआ । कुछ देर चुप रहते के बाद उसने कहा -
" मैडम । मैं सब कुछ बताऊंगा । पर मेरा नाम सामने नहीं आना चाहिए । "
" दैट्स लाइक ए गुड बॉय । चिंता न करो । तुम्हरा नाम सामने नहीं आएगा ।" नंदिनी ने उसे आश्वाशन दिया ।
" मैडम, उस दिन अभिनव सर जी आए थे दुकान पर । उनकी पप्पू के साथ बात हुई थी । उनके जाने के बाद पप्पू ने मुझे बताया कि नव्या मैडम को पकिया नामक गुंडा परेशान कर रहा है । बस इतना ही मुझे मालूम है । उसके बाद पप्पू का एक्सीडेंट हो गया ।मैं बहुत डर गया । फिर भी मैं हॉस्पिटल गया था । वहां भी एक गुंडे जैसा आदमी पप्पू की बेड के पास बैठा था । पप्पू थोड़ा थोड़ा होश में था । वो व्यक्ति, फोन पर बात कर रहा था कि -" हां भाई, काम हो जायेगा । मैंने नर्स से बात कर ली है । उसे पैसे दे दिए हैं । किसी को पता नहीं चलेगा ।", " नहीं...नहीं... चिंता की कोई बात नहीं ।100% काम हो जायेगा भाई । यह सुनकर मैं बहुत डर गया । फिर वहां ज्यादा रुकनेकी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी । मैडम प्लीज...। मेरा नाम किसी से मत लेना । वे बहुत खतरनाक लोग हैं । मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे । " इतना कहकर लड़का वहां से चला गया ।
यह सुनकर अवाक् हो गई । बेचैनी बढ़कर उसका हाल बेहाल कर रही थी । बीतते समय के साथ नंदिनी को यथार्थ स्थिति का बोध होना शुरू हो गया ।उसके गुरूजी ठीक ही कहते थे कि प्रतिकूल परिस्थितियों में ही किसी व्यक्ति का तेज उभरता है और उसके जीवन मूल्य उस तेज के सहायक बनते हैं । उसके अनुसार विकट परिस्थितियों में वही टिक पाते हैं जो संस्कारवान होते है और जिनके पास कोई समर्थ जीवनमूल्य होता है । एवं वो लोग अक्सर भटक जाते हैं जिनके पास न तो धीरज होता है और न कोई जीवन दृष्टि ।
भ्रम के हटने से अब सब कुछ नंदिनी को साफ -साफ और स्पष्ट दिखने लगा था । उसका शक सही था । जरूर कोई बहुत बड़ी साजिश चल रही है । कुछ बातें उसकी समझ में आ गई थी ।
उन क्षणों में नंदिनी को अपनी मौसी से सुनी हर लोककथा भी याद आ गई । एक भूखा नरभक्षी राक्षस एक गांव के पास कही से आ गया था । वह सभी ग्रामवासियों को एक ही साथ मार डालना चाहता था । लेकिन ग्रामवासियो ने युक्ति से उसके आहार के रूप में प्रतिदिन एक ग्रामवासी को भेजनें की शर्त गांववालों ने स्वीकार करवा ली थी । इस क्रम में एकबार एक ऐसे युवक की बारी आई, जिसकी शादी होने जा रही थी । इस स्तिथि उसकी बूढी मां के अंर्तमन का तूफान कोई समझ नहीं पाता था । वह रोती भी थी और हंसती भी थी । आंगन में जाती थी तो अपने बेटे की शादी को यादकर उसके होठों पर अनायास ही मंगल और सगुन के गीत आ जाते थे और जब दरवाजे पर आती थी तो उसकी आनेवाली मृत्यु को स्मरण कर फूट -फुटकर रो उठती थी । मन ही मन नंदिनी ने तथ्यों की कड़ियों को जोड़ना शुरू कर दिया । इतने में वहां रीनी आई । नंदिनी ने रीनी को सारी बातें बताई । उन्हें सुनकर रीनी ने पूछा -
" कौन है ये पकिया? उसने ऐसा क्यों किया? "
* * * * *