loc - love oppose crime - 13 in Hindi Crime Stories by jignasha patel books and stories PDF | एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 13

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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 13

अध्याय -13

"क्या? आपको सब पता था? यह आप कह रही हो मां...? " नंदिनी की आँखोमे में आंसू आ गये । उसने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया । " हे भगवान, में यह क्या सुन रही हूँ । "वो बोल उठी ।
" हाँ बेटा! मुझे मालूम हैं । पर मैं मजबूर हूँ । " मां की आँखों मैं भी आंसू झिलमिला रहे थे ।
"यह क्या बोल रही हो मां? ऐसी सी मजबूरी, कि आप इतनी बड़ी बात पर चुप रही!"
" क्या बताऊं बेटा! यह सब अभी से नहीं बल्कि सालों से चल रहा है । "
"क्या? सालों से? "लगभग चिल्लाते हुवे स्वर में नंदिनी ने कहा ।
" हाँ बेटा! मेरी मजबूरी का फायदा उठाकर तुम्हारे पिता ने मेरी जबान बंद कर दी, सब जानते हुवे भी मजबूरी में चुप रहना पड़ा । "
मजबूरी! कैसी मजबूरी मां? मेरे पिता तो बहुत हैँ ना जाने कैसे इन चक्करो में पड़ गये, पर आपको कौन सी मजबूरी? "
मां चुप रही।
"मां आप जवाब दो! पिता ने हमेशा मुझसे कहा कि बेटा तुम्हारा जो मन हो वही करो । पर आप तो मुझे एक्ट्रेस बनवाने पर तुली हुई थी । मां मेरा मन ही नहीं था । बिल्कुल भी नहीं । पर आप कि जबरजस्ती थी । वो आपको पता हैँ कि मै डांस क्लास नहीं जाना चाहती थी तो आप कितना भड़क जाती थी मुझ पर ।"
मां अनुतर रही ।
" मां मै कुछ और बनना चाहती थी । मै डॉक्टर बनना चाहती थी । लोगो कि सेवा करना चाहती थी । पर आपकी वजह से मै एक्ट्रेस बन गईं । यह बात सही हैँ कि आज मेरे पास दो -चार सीरियल हैँ । पर अभी असली सफलता तो आनी हैँ ना! पर जो भी हो मेरा डॉक्टर बनने का सपना तो टूट गया । "
" इस पेशे में क्या बुराई है?" मां कि जुबान फूट पड़ी ।
" मां, बात बुराई की नहीं है । बात अपनी -अपनी पसंद की है । मेरे भविष्य के साथ आपने जबरजस्ती की मां । पता नहीं कोनसी मजबूरी के चलते आपने मेरे सपनो के साथ खिलवाड़ किया । " नंदिनी रोने लगी ।
" तुम मेरी मजबूरी समझ नहीं पाओगी? मै क्या कर सकती थी! कुछ भी तो नहीं.....। क्या अपने बच्चों को मरने देती? या खुद मरकर बच्चों को अनाथ कर देती? "
" क्या कह रही हो मां? " फिर नंदिनी रीनी की ओर देखते हुऐ बोली " रीनी, रीनी .... देखो तो मां क्या बोल रही है? "
" नंदिनी प्लीज.... अब तुम शांत हो जाओ । "
"कैसे शांत हो जाऊ रीनी?" फिर वो मां कि तरफ मुड़ी -" मां तुम मुझे पूरी बात बताओ । "
" हां बेटा, अब समय आ चूका है कि तुम भी पूरी बात जानो । "
" हां मां! बताओ मुझे । " नंदिनी ने मां के आँसू पोछते हुए कहा ।
पहले अभीनव के चले जाने के दुख और अब इतने बड़े मामले का पता चलना नंदिनी की चिंता अचानक दुगनी कर दी । उसे देखकर ऐसा लगता था कि दुनिया की सबसे बड़ी विपत्ति उसके ऊपर टूट पड़ी हो । नंदिनी और ज्यादा पीड़ित और दुखी नजर आने लगी । उसके चेहरे की रंगत उड़ गईं । उदासी का अंतहीन सिलसिला शुरू हो गया । ऐसा प्रतीत होता कि जैसे किसी गंभीर बीमारी ने उन्हें दबोच लिया हो ।
नंदिनी की मां कुछ बताये उसके पहले दरवाज़े पर दस्तक हुई । तीनो चौंक गए । रीनी ने जाकर दरवाजा खोला । घर का नौकर था ।- " मैडम, साहब का फोन है । "
नंदिनी की मां ने जाकर फ़ोन रिसीव किया । उनके पीछे नंदिनी और रीनी भी खड़ी थी । रीनी नंदिनी को निहारते हुई एक पंक्ति याद आई ।- 'कैसा गुबार चश्मे मोहब्बत मै आ गया, सारी बहार हुस्न की मिट्टी में मिल गईं ।'आज की नंदिनी और कुछ साल पहले की नंदिनी में जमीन -आसमान का फर्क आ गया था ।यही नंदिनी अभिनव से प्रेम होने पर कितनी खिल गई थी । उसके व्यक्तित्व में बहुत परिवर्तन हो गया था । असल में जब से अभी से उन्हें प्रेम हुआ था, उनके स्वाभाव में तब्दीलियां शुरू हो गई थी । वो बहुत प्रफुल्लित जान पड़ने लगी थी -गुलाब की खिली पंखुड़ियों की तरह तरो -ताज़ा और भरी -भरी । एकांत उन्हें अच्छा लगने लगा था। प्रकृति के सानिध्य मे रहना उसे सुकून प्रतीत कराता था । चांदनी रातों मे चुपके से बाल्कनी में चले जाना फिर चाँद और तारों को देर तक निहारते रहती नंदिनी आज दुख के सागर में डूब गई थी । यही तो किस्मत का खेल हैं ।
फोन पर आती आवाजों से रीनी की सोच का क्रम टूटा...। नंदिनी के पिता उसकी मां से कह रहे थे,
" वो तैयार रहे । जल्दी से बाहर जाना है । "
" ठीक है " कहकर मां ने फोन रख दिया । ऐसा लगा कि इसी के साथ उन्होंने नंदिनी के मन में उठ रहे तमाम सवालों को भी उठाकर अलग रख दिया हो ।
रीनी ने नंदिनी की तरफ देखा । उसकी आंसू भरी आँखो में प्रश्न मंडरा रहा था ।-
" क्या हुआ था मां की जिंदगी में? "
* * * * *