loc - love oppos crime - 3 in Hindi Crime Stories by jignasha patel books and stories PDF | एलओसी- लव अपोज क्राइम - 3

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एलओसी- लव अपोज क्राइम - 3



नंदिनी ने कभी सोचा ही नहीं था कि अभिनव उसे इस तरह छोड़कर चला जाएगा। वो अभिनव से बहुत प्यार करती थी। अभिनव पर बहुत भरोसा था उसे। अपने से ज्यादा। सूरज, चांद, तारों, प्रकृति, धरती, अम्बर, कायनात से ज्यादा भरोसा। पर उसे तनिक भी अंदाजा नहीं था कि अभिनव उससे अचानक मुंह मोड़ कर बेगाना बन जाएगा। बहुत फोन किया नंदिनी ने अभिनव को। इतनी बार किया कि उसकी उंगलियां थक गई। पर अभिनव ने कॉल रिसीव ही नहीं की। घण्टी बजती रही, बजती रही। मैसेज का भी जवाब नहीं दिया। कुछ दिन बाद "नॉट रिचेबल" हो गया उसका फोन!
अभिनव कभी ऐसा नहीं करता था। दिनभर, रातभर, उसके फोन चलते रहते थे। वह नंदिनी से हर 15 मिनट, आधे घंटे पर बात करता ही था। नंदिनी चाहे जितनी व्यस्त हो वह अभिनव के फोन का इंतजार करती रहती थी। उसके कानों में अभिनव द्वारा उसके लिए कहे गए संबोधन- ' रानी, मेरी जान, सोना, बाबू, माय लव' हमेशा मिश्री घोलते रहते। पर पिछले कई दिनों से नंदिनी के कान इन्हें सुनने को तरस गए थे।
अभिनव का नंदिनी से किया गया छल उससे भी ज्यादा था जब मीर जाफर ने बंगाल को बेचा; भारत को अंग्रेजों के हाथों दिया गया: जुड़ास का जीसस को जहर से भरा चुंबन ब्रूट्स के चाकू से भी अधिक बुरा था।काफी समय का निस्वार्थ प्रेम बेकार हो रहा था।नंदिनी की आंखों से गंगा- जमुना की धाराएं बहने लगी।
' अभिनव कभी ऐसा तो करता नहीं था?' ' वह तो मुझसे बात न हो पाने पर बेचैन हो जाता था!' ' आखिर क्या हो गया उसे?' ' इस बेरुखी की क्या वजह हो सकती है?' इन सवालों के भँवरजाल व सोच विचार के सागर में नंदिनी ने अपने अंतर्मन को खूब मथ डाला पर उसे जवाब नहीं मिला।
कुछ दिन पहले तक तो सब ठीक- ठाक था। सोने के दिन चांदी की रातें थी दोनों की। हंसी- खुशी, प्यार- मोहब्बत, चाहत- अपनापन से भरपूर दुनिया। आंखों में इश्क की रोशनी व मन में उत्कट प्रेम। सपनों में एक दूसरे का साथ। कुछ दिनों में उनकी शादी होने वाली थी। उसने और अभिनव ने तो यह भी प्लान कर लिया था कि हनीमून मनाने कहां जाना है?
स्कैंडिनेवियन देशों की प्राकृतिक सुंदरता नंदिनी को बहुत मोहित करती थी। स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड की खूबसूरती के बारे में नंदिनी ने खूब पढा व सुना था। इसलिए उसने तयः कर लिया था कि उसका हनीमून डेस्टिनेशन ओस्लो होगा। पर आज ओस्लो का नाम उसे दुश्मन की तरह लग रहा है।
' आखिर कहां चला गया अभिनव?'
जब वह शादी के सुर्ख लाल जोड़े का सपना देख रही थी, जब सुहागरात की कल्पना उसके मन में आकार ले रही थी, जब हनीमून के रोमांच के बारे में सोच सोचकर वह आनंदित हो रही थी, उसी समय अभिनव उससे दूर जाने की योजना बना रहा होगा!
अभिनव की बेवफाई से नंदिनी ऐसी भरभराई जैसे विभाजन के पहले भारत की दशा हुई थी- अविश्वास, आंसू, मायूसी और फिर हिंसा। ये सब नंदिनी से ऐसे ही टकराए, मानो उसे भविष्य की मजबूत विंडशील्ड में दरारें पड़ गईं और आगे सब कुछ धुंधला नजर आने लगा।
नंदिनी ने अभिनव को खोजने का बहुत प्रयास किया। उसके सभी दोस्तों को फोन किया। वह अभिनव के घर गई, जहां ताला लगा हुआ था। जहां जहां अभिनव के मिलने की उम्मीद थी, वहां वहां की खाक नंदिनी ने छानी, पर उसे निराशा के सिवा कुछ हाथ न लगा।
कुछ दिन पहले नंदिनी की माँ को कहीं से पता चला था कि अभिनव ने किसी अन्य लड़की से बंगलोर में शादी कर ली है। तब माँ के पूरे शरीर में बिजली की तरह सदमा दौड़ गया, वे बुरी तरह से थरथराई और मुंह ढांप कर रोने लगी। यह खबर नंदिनी के लिए निराशाजनक थी। उसे कुंअर बेचैन याद आ गए-
' प्यार पत्थर है इसकी चाह न कर,
दिल ही टूटेगा ये गुनाह न कर।'
एकदम टूट गई नंदिनी! अभी उससे बेपनाह मोहब्बत करता था। उसके साथ पूरी जिंदगी बिताने का वादा किया था। साथ जीने- मरने की कसमें खाई थी।.....फिर अचानक किसी और से शादी?
अभिनव का पता लगाने के लिए नंदिनी ने नितिन से संपर्क किया।..... नितिन अभी भी प्रयासरत है। अभिनव पता नहीं कहां गायब हो गया? उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया? नितिन अभिनव के पैतृक गांव भी गया था। वहां पर उसे सिर्फ इतना ही पता चला कि अभिनव ने बंगलोर में शादी कर ली है, पर किससे की, कब की, कहां की? यह नहीं पता चला।
निराशा, दुख, विषाद की छाया नंदिनी के चेहरे पर हमेशा दिखाई देने लगी। वह गुमसुम सी रहने लगी। रात हो दिन, वो कई कई बार अभिनव का नम्बर डायल कर मोबाइल को कान से लगाकर ऐसा दिखावा करती, मानो फोन के दूसरी ओर अभी हो, नंदिनी अपने वजूद के हर कतरे के साथ अभी को याद करती रहती।
" नंदिनी बेटा! भूल जाओ उसे। वो धोखेबाज है।" नंदिनी की हालत देखकर एक दिन माँ ने उसे समझाने की कोशिश की।
राजमल ने भी नंदिनी को सांत्वना दी- "तुम कोई चिंता न करो, नंदिनी। मैं उसे खोजकर लाऊंगा।"
मां ने कहा- " उस धोखेबाज को भूलना ही ठीक होगा नंदिनी बेटा।"
लेकिन क्या किसी को भुला पाना इतना आसान होता है? कैसे भुला दें? क्या- क्या भुलाएं? पहले प्रेम का कोमल अहसास। पहली छुअन। आंखों की दीवानगी। होंठों की तड़प। मन का दीवानापन। दिलों की बेचैनी। आत्मा की चाहत। प्रेमिल स्पर्श। वो सारे सपने। सभी कसमें वादे। वो खुशी के पल। वो प्रेम का नशा। वो इश्क के सतरंगी सपनों से सजी घड़ियां।
अभिनव से पहली बार मिलने के बाद उसका वो एसएमएस। प्यार की चाशनी से पगा। कई टुकड़ों में लिखा गया यह एसएमएस आज भी नंदिनी संजोए हुए है। इसमें अभिनव ने नंदिनी की प्रथम छवि के बारे में लिखा था-
" सफेद चिकन की सादी सी सलवार कमीज पहनी हुई थी तुम। तुमने उस पर मामूली सा बंधनी दुपट्टा डाल रखा था। तुम किसी कॉलेज गर्ल जैसी लग रही थी। कोई मेकअप नहीं, बस बालों को पीछे खींचकर एक पोनीटेल बनाया था।..... नंदिनी.. प्लीज... बुरा मत मानना। प्लीज। तुम्हारे शरीर का सबसे शानदार हिस्सा तुम्हारे उन्नत उरोज हैं। इन पर किसी का ध्यान गए बिना नहीं रहता...। विद लाट्स ऑफ लव---युवर्स अभी।"
इस एसएमएस को फिर से पढ़ते हुए नंदिनी की आंखों से आंसू टपकने लगे थे।..... इस दिल में कोई आए। भरपूर प्यार दे। शिद्दत से चाहे। जिंदगी की राहों में साथ- साथ चलने का फैसला करे और फिर एक दिन अचानक गायब हो जाए..... तो सिर्फ जान नहीं निकलती बस। बाकी सब कर्म हो जाते हैं।
अब तक टूट चुकी थी नंदिनी की उम्मीदें। फिर भी वह उसे खोजना चाहती थी। उससे रूबरू मिलकर पूछना चाहती थी- ' मुझसे ऐसी क्या खता हो गई जिसकी इतनी बड़ी सजा मुझे तुमने दी?'
झूले से उठकर नंदिनी ने उस बेल को उठाकर अपने सीने से लगा लिया। उसकी रुलाई फूट पड़ी। वह रोती रही, रोती रही और खुद से सवाल करती रही कि- ' किसी धोखेबाज को भुलाना क्यों आसान नहीं होता?'
रोते- रोते झूले पर ही नंदिनी कब सो गई, पता ही नहीं चला। " नंदिनी.. नंदिनी!.... यहां क्यों सो रही हो?" ये रीनी थी, जो नंदिनी को खोजते हुए टैरेस पर पहुंच गई थी उसने देखा कि नंदिनी झूले पर ही सो गई है। उसके सीने से बेल चिपकी हुई थी। नंदिनी के हाथ उस बेल को पकड़े थे। रीनी ने उसे झकझोर कर जगाया।
" चलो यहां से! ये क्या हाल बनाकर रखा है?"
" अरे, कुछ नहीं, रीनी! बस यूं ही नींद लग गई।" नंदिनी अपनी आंखों को मींचते हुए बोली।
" फिर से रोई हो तुम! कब तक ऐसे रोती रहोगी उस धोखेबाज के लिए?"
नंदिनी चुप रही। वह भावशून्य आंखों से रीनी को देख रही थी।
" नंदिनी, तुम उसे भूल क्यों नहीं जाती? आखिर क्यों खुद को सजा दे रही हो?"
नंदिनी कुछ न बोली।
" पागल हो क्या तुम! तुम समझती क्यों नहीं कि अभिनव ने तुम्हें धोखा दिया? ...नंदिनी.. अभिनव तुम्हें छोड़कर चला गया है.....तुम कब तक उस क्रूर, कठोर....पत्थरदिल के लिए रोती रहोगी?"
".........."
" अब उठो! चलो यहां से। अपने कमरे में चलो। मैं तुम्हें इस हालत में नहीं देख सकती।" रीनी ने नंदिनी का हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले जाने का उपक्रम किया।
" तुम जाओ रीनी! मुझे अकेला छोड़ दो।" नंदिनी ने अपना हाथ छुड़ा लिया।
" अकेली छोड़ दूं? जब मेरे पास अपना कोई नहीं था तब तुमने मुझे सहारा दिया और तुम कह रही हो कि मैं तुम्हें अकेला छोड़ दूं?....... ये मुमकिन नहीं है। चलो यहां से।"
शांत और आवेगहीन स्वर में कही गई बातों की अपनी कीमत होती है।
रीनी नंदिनी को लेकर उसके कमरे में गई, उसे बेड पर लिटाया, कंबल ओढ़ाया और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली- " नंदिनी, सो जाओ अब! जो होना था सो हो गया। अब अपने आपको संभालो।"
नंदिनी मानो बुदबुदाई- " जो होना था हो गया? यह बोलो कि जो नहीं होना था वह हो गया।"
" हां, बाबा, तुम्हारी बात सही है। पर अब तुम सो जाओ।" यह कहकर रीनी कमरे से बाहर चली गई।
नंदिनी ने सोने की कोशिश की, पर उसकी देह, आँखों के साथ मन से भी नींद उड़नछू हो चुकी थी। वैसे, वह पिछले कुछ दिनों से सो नहीं पाई थी। अभी की याद हमेशा आती रहती। उसकी यादों ने दिलोदिमाग के हर कोने पर कब्जा कर लिया था। अभी को वो जितना भुलाने की कोशिश करती, अभी उतनी शिद्दत से याद आता। उसकी बातें, उसका प्यार, कसमें वादे नंदिनी को सताती रहती।
नंदिनी ने कंबल हटाया और उठकर बिस्तर पर बैठ गई। तभी दीवार पर टँगी तस्वीर पर उसकी नजर पड़ी। यह अभी ने ही उसे दी थी। वे जब आउटिंग के लिए लोनावला गए थे। सीएलडी होटल के बाहर एक फोटो वाले कि दुकान थी। क्या नाम था उसका? अरे हां, याद आया- 'एसटी फोटो फ्रेम्स'। इस दुकान के सामने पहुंचते ही अभी ठिठककर खड़ा हो गया- " नंदिनी, देखो वो कितना सुंदर फोटो है।" उसने नंदिनी से कहा। नंदिनी का फोटो पर ध्यान गया और वह भी मोहित हो गई।
कलाकार ने बड़ी खूबसूरती से एक ग्रामीण बाला की छवि अपनी कूँची से उकेरी थी। इस कलाकृति के सामने राजा रवि वर्मा की पेंटिंग व रघु राय की फोटो फीका पड़ जाए।
"वाऊ"! "मारबलस"!! नंदिनी के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा।
अभी ने उस फोटो को गोल्डन फ्रेम में करवाकर नंदिनी को दे दिया। दोनों को इस तस्वीर से काफी लगाव था। जब बाहर से थकहारकर नंदिनी आती, उसकी नजर इस तस्वीर पर पड़ते ही उसकी थकान छूमंतर हो जाती थी।
अभी आता तो इसी कमरे में बैठता। इस कमरे की सजावट उसकी पसंद से की गई थी। टीवी जहां पर रखा है, उस पर का मेजपोश अभी की पसंद का था। दूसरे कोने में छोटी सी अलमारी, जिसका सामने का हिस्सा कांच का है, उसे अभी ही लाया था। इस अलमारी में स्टील का एक डिनर सेट, नंदिनी की एक फोटो, सरस्वती की एक मूर्ति, लकड़ी के आधारों पर जड़े पीतल के दो ओम रखे हैं।
अभी के आने पर नंदिनी बेड पर दीवार और तकिए के सहारे बैठती थी और नंदिनी की गोद में सिर रखकर अभिनव। फिर अभी कभी नंदिनी को तो कभी उस तस्वीर को देखकर तारीफ के पुल बांधता था। अभी व नंदिनी के बीच के रिश्तों का गवाह यही कमरा था। यही सोचकर नंदिनी दुखी हो रही थी। उन यादों की टीस में वह पिस रही थी। कभी अभी पर तो कभी उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था।
नंदिनी के मन में अचानक पता नहीं क्या आया कि वह उठकर खड़ी हो गई। उसने दीवार से तस्वीर निकाली और उसे फर्श पर फेंक दिया।
छनाक......छनाक... टूटे हुए कांच की आवाज कमरे में दब कर रह गई। पर उसके दिल की आवाज... अभिनव...अभिनव.... अभिनव..... अभिनव किसी भी तरह से नहीं दब रही है।
'आशियाँ जब भी किया तामीर,
झुक के बिजली ने खैरियत पूछी।'
उसके हंसते खेलते प्यार को पता नहीं किसकी नजर लग गई थी? तस्वीर को तो कुछ नहीं हुआ, पर उसकी सबसे बड़ी शोभा कांच के हजारों टुकड़े हो गए थे। इसी तरह, नंदिनी का शरीर तो यथावत था पर उसके अंदर का दिल लाखों टुकड़ों में बांटकर अभिनव की बेवफाई पर जार-जार रो रहा था।
पूरा घर गहरी नींद में सो रहा था। पर नंदिनी नींद से कोसों दूर थी। किसे फिक्र थी कि नंदिनी सो रही है या जाग रही है? किसे नंदिनी के रोते दिल की परवाह थी? नंदिनी के आंसू, तड़प व दर्द उसके अपने थे। अकेलेपन का अहसास नंदिनी को पल-पल तड़पा रहा था।
पर उसी समय नंदिनी को यह महसूस हुआ कि दो और आंखें उसके दुख से व्यथित हैं। उसके टूटे हुए दिल की पीड़ा से एक और दिल चकनाचूर हो रहा है। नंदिनी की पीड़ादायक सिसकियां दीवार पार कर उसके कानों तक भी पहुंच रही हैं।

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