दिन बीत रहे थे। धीरे धीरे ही सही पर एक अच्छी दोस्ती की शुरुवात तो हो रही थी। मीरा की पसंद नापसंद से लेकर सारी बातो का ध्यान रखता स्वप्निल। अब उसे फिक्र है ये बात तो मीरा भी समझ गईं थीं। शाम को दोनो ऑफिस के बाद घूमते , रात का खाना खाते फिर वो मीरा को घर छोड़ता। मानो दिन कब खत्म हो जाता पता नहीं चल रहा था। रात में फिर सुबह का इंतेज़ार होता। दोस्ती कितनी ख़ूबसूरत होती है। खास कर जब वो दोस्त आपका जीवनसाथी हो।
" अब ओर क्या खरीदी करना है मीरा तुमने पूरी शॉप खरीद ली हैं। तुम्हारी सैलरी से दुगना खर्च कर दिया तुमने।" स्वप्निल ने उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा।
" अभी कुछ इंडियन कपड़े खरीद ते हैना। ये मेरी सैलरी के पैसे नहीं है। डैड की दी हुई घुस है। उनका कोई दोस्त आने वाला है इस सन्डे को ये उनसे मिलने की किम्मत है।" उसने अपने हाथो के सारे बैग स्वप्निल को दे दिए। "चलिए वहा चलते है। मुझे इंडियन कपड़े लेने है।" वो उसे खिचते हुए ले गई।
" अरे लेकिन वो शादी के कपड़ों को शॉप है।" स्वप्निल कुछ कह पाए उस से पहले वो उसे दुकान तक खीच चुकी थी।
" शॉपिंग के लिए कमाल की ताकद है हा तुम मे। क्या हुआ रुक क्यो गई?" उसने पूछा।
" जब हमारी शादी होगी ना तब में खुद हम दोनों के लिए खास कपड़े डिजाइन करूंगी। सबसे अलग सबसे महंगे।" मीरा की आंखो मे स्वप्निल को अजीब सी चमक दिख रही थी। वो मानो उनके शादी के ख्वाब देख रही हो।
" जब तक कपड़े पहनने लायक होंगे तब तक तुम्हारी डिजाइन से मुझे कोई परेशानी नहीं है। अब चले या यही खड़ा रहना है।" स्वप्निल कहीं इन बातो से वो फिर सपनो से बाहर आ गई।
कपड़ों की दुकान में स्वप्निल को उसका पुराना दोस्त शेखर और उसकी मंगेतर पूनम मिलते है।
"है। कैसा है ?" शेखर
" बिल्कुल ठीक तू भी तंदुरुस्त ही लग रहा है। शादी की तैयारियां जोरो पर है। क्यो पूनम कैसी हो?" स्वप्निल ने पूछा।
" में बिल्कुल ठीक नहीं हूं स्वप्निल। शादी मे बस डेढ़ महीना बचा है। लेकिन अब तक कपड़े भी तय नहीं हुए। कुछ समझाओ अपने दोस्त को।" पूनम मे अपने हर पर हाथ लगाते हुए कहा।
" अरे हो जाएगा इतनी फिक्र मत करो। इस से मिलो ये मीरा है। मेरी...." वो रुक गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे, वो अपनी बातो से मीरा को दुख नहीं पोहचाना चाहता।
" में मीरा पटेल। बॉस की अस्सिटेंट हू। " उसकी मुश्किल जान मीरा बीच मे बोल पड़ी।
" और मेरी बोहोत अच्छी दोस्त भी। इसकी कपड़ों मे परख अच्छी है। ये तुम्हे मदद कर सकती है।" स्वप्निल ने कहा।
" सच मे। मीरा तुम मेरी मदद करेगी प्लीज़ ।" पूनम ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
" हा क्यो नहीं जरूर करूंगी। " मीरा ने तुरंत हामी भरी।
" आप कहा जा रहे है। वो अभी पहचान कर भी मदद कर रही है। तो तू तो दोस्त है हमारा। तेरा हक़ बनता है मदद का चलो चाले।" शेखर स्वप्निल को पकड़ अपने साथ कपड़ों को दिखाने ले जाता है ।
" क्या भाई ? तेरी शादी है। तू चुन। मेरा क्या काम? और तो और तू जानता है मुझे शॉपिंग बिल्कुल पसंद नहीं खास कर कपड़ों की।" स्वप्निल ने चिढ़ते हुए कहा।
" अच्छा बेटा । अभी अपने असिसंट के साथ कोई परेशानी कुछ नहीं था। मेरे कपड़ों की बारी आई तो नखरे अच्छा है। सब समझता हू मे। तू रुक । मीरा।" शेखर ने आवाज़ लगाई।
" चुप रेह । उसे क्यो बुला रहा है।" स्वप्निल ने उसे रोकने की कोशिश किनलेकिं तब तक शेखर की आवाज मीरा के कानो तक पोहोच गई थी।
"शेखर क्या हुवा मीरा को क्यो बुला रहे हो।" मीरा के साथ आई पूनम ने सवाल किया।
"देखो ना मीरा ये मेरी मदद करने से मना कर रहा है। इसीलिए मैंने तुम्हे इसे डाटने के लिए बुलाया। दोस्ती का फ़र्ज़ जरा समझाओ इसे।" शेखर जाकर पूनम के पास खड़ा रह जाता है।
" ये बुरी बात है बॉस। आपको अपने दोस्त के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए।" मीरा
"उसकी बातो पर ध्यान मत दो मीरा। शेखर को मजाक करने की आदत है।" पूनम ने कहा।
" हा। पता है। एक बार तो मेरे मजाक की वजह से इसका और शालिनी का ब्रेक अप होते होते रह गया था। याद आया स्वप्निल।" शेखर ने पूछा।
" कुछ भी बकवास मत कर। कपड़े देखने है चल देखते है।" स्वप्निल उसे ले जाने की कोशिश करता है।
" अरे रुकिए। वहा कुछ देखने लायक नहीं है। हम इनका कपल कलेक्शन देखते है। अगर इन दोनो को पसंद आए तो उसको डिजाइन करवा लेंगे।" मीरा ने उसे रोका।
" हा इसीलिए तो हम दोनों यहां आए है।" पूनम ने उसकी हा मे हा भरी।
" ये वाला ये वाला वो वहा है वो। और वो भी ।" मीरा ने कपड़े चुने।
"उसे भी ले लो वो भी अच्छा दिख रहा है।" पूनम ने उसे कुछ और दिया।
" देख ले तुझे ये सब पहनना है।" स्वप्निल ने शेखर के पास जाकर धीरे से कहा।
" क्या मजाक है ये? एक शादी है या दस? पूनम बेबी इतने कपड़े हम कितनी शादियां कर रहे है?" शेखर ने डर के मारे पूछा। उसके पीछे खड़े रह स्वप्निल उसका मजाक उड़ा रहा था।
" देखा मीरा मैने कहा था ना । अगर तुम लोक नहीं मिलते तो आज का प्रोग्राम भी युही बर्बाद हो जाता। शक्ल देखो इसकी मानो ये कपड़े नहीं राक्षस हो जो निगल जाएंगे अभी।" पूनम ने शेखर से रूठते हुए कहा।
" ऐसी बात नहीं है यार । बट ये बोहोत ज्यादा है कोई भी पसंद कर लो मे पहन लूंगा। पर इतने सारे एक एक कर कर पहनना मतलब.."
" तुम्हे किसने कहा ये हमे पहनने है?" पूनम ने शेखर को बीच में रोक उसे कहा।
" मतलब। तुम्हारी शादी है तुम लोग नहीं तो कौन पहनेगा?" स्वप्निल ने मजाक मे पूछा।
" हम पहनेंगे।" मीरा ने कहा।
"क्या?!" शेखर और स्वप्निल ने एकसाथ पूछा। सिर्फ दोनो के भाव अलग अलग थे अब पहले के चेहरे पर खुशी थी और दूसरे के चेहरे डर।