याद करते हुए शिवानी का मन अतीत के गलियारों में पहुंच गया। कितनी चंचल अल्हड़ और बातूनी हुआ करती थी वो। आज से बिल्कुल अलग। घर में सबकी लाडली हरदम चिड़िया की तरह चहकती रहती और सबका मन अपनी बातों से लगाए रखती।
खूबसूरत भी कम ना थी लेकिन लड़कियों जैसी उसमें कोई बात ना। सजने सवरने से दूर हरदम खेल में ध्यान। लड़कों से कहीं बढ़कर उसके शरारतें होती थी।
बेटियां कितनी भी प्यारी हो लेकिन माता पिता को अपने कलेजे पर पत्थर रख उसे दूसरे घर भेजना ही होता है। शिवानी की पढ़ाई पूरी होते ही शिवानी माता पिता ने के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया था।
सीधा-साधा सरल स्वभाव का दिनेश शिवानी के पिता व भाई को एक ही नजर में भा गया था। उसे देखते ही उन्होंने रिश्ते के लिए आगे बात बढ़ाई।
दिनेश के परिवार वालों ने अगले हफ्ते शिवानी को देखने के लिए रजामंदी दे दी।
शिवानी को जब पता चला तो उसने यह कहते हुए पूरा घर सर पर उठा लिया कि उसे शादी नहीं करनी। तब उसकी मां उसे समझाते हुए बोली "बेटा अभी वह बस देखने आ रहे हैं!शादी करने नहीं! लड़का बहुत ही लायक है और परिवार भी काफी अच्छा इसलिए देखने दिखाने में तो कोई बुराई नहीं ना इसलिए शांत रहें और सुन! उनके सामने अपनी कैंची जैसे जुबान को बंद रखना। समझी! लड़के वालों को ज्यादा बोलने वाली लड़कियां पसंद नहीं आती।"
अपनी मां की बात सुन शिवानी मन ही मन मुस्कुरा दी। उसने सोच लिया था कि उसे क्या करना है जिस दिन दिनेश अपनी मां के साथ उसे देखने आया। उस दिन वह बहुत ही साधारण तरीके से तैयार हुई।
दिनेश की मां ने उसे अपने पास बिठाया और प्यार से उससे बातें करने लगी। वह एक बात पूछती, शिवानी उसके दो जवाब देती है ।उसकी कैंची की तरह चलती जुबान देख, उसके मां बाप ने अपना माथा पीट लिया। उन्हें यकीन हो गया था कि लड़के वाले यह सब देख कर ना ही करेंगे।
लेकिन यह क्या उम्मीद के विपरीत
दोनों मां बेटों को उसमें क्या नजर आया कि दोनों ने हीं रिश्ते के लिए रजामंदी दे दी।
दिनेश की मां तो खुश होते हुए बोली "हमें लड़की पसंद है। लड़की दिल की बहुत ही साफ है ।जो मन में है वही बोलती है। ऐसी ही लड़की चाहिए थी मुझे अपने बेटे के लिए। सच मेरे घर में तो रौनक लग जाएगी इसके आने से।"
सुनकर जहां उसके घर वालों की खुशी का ठिकाना ना था, वहां उसने दिनेश की मां के विचार सुन अपना माथा पीट लिया।
आज भी याद है उसे। दिनेश का नीची नजर से बार-बार कनखियों में से उसे देखना। दिनेश का यह अंदाज उसके दिल में भी एक अजीब सी हलचल मचा रहा था।
दिनेश के परिवार में माता पिता के अलावा एक बड़ी बहन थी। जिसकी शादी उससे पहले ही हो गई थी। गांव में उनकी अच्छी खेती बाड़ी थी। जिसे उसके पिता संभालते थे और वह शहर में नौकरी करता था।
कुछ ही महीनों बाद शिवानी, दिनेश की दुल्हन बन अपनी ससुराल आ गई।
मुंह दिखाई के लिए आई सभी पड़ोसन शिवानी की खूबसूरती की तारीफ करते ना थकती। उसकी सास व ननद
भी उसकी हर जरूरत का ध्यान रख रही थी। शिवानी को
लग ही नही रहा था कि वह ससुराल में है। सभी से इतना अपनापन पाकर वह अभिभूत थी।
अपने प्रथम मिलन की याद कर शिवानी के आंसू निकल आए। आज भी महसूस कर सकती है वह दिनेश के होंठों का वह प्रथम स्पर्श। जब उसने शिवानी का माथा चूमते हुए वादा किया था कि वह हमेशा उसका बनकर रहेगा और अपने दिल की हर बात उससे साझा करेगा। उसके गले में बांहें डालते हुए कितने प्यार से उसने कहा था कि तुम ही मेरा पहला व आखिरी प्रेम हो। तुम्हारे अलावा इस जीवन में कभी और कोई नहीं आएगा।
उसके विचार सुन शिवानी अपनी किस्मत पर झूम उठी थी।
सच ही तो था सब। दीवानों की तरह प्यार करता था वह उसे !
शादी के कुछ दिनों बाद वह उसके साथ शहर आ गई।
शहर में अच्छा खासा दो मंजिला मकान था उसका। ऊपर वह रहते और नीचे किराएदार रहते थे।
दिनेश पिछले 5 साल से यहां रह रहा था। सभी मोहल्ले में उसे जानते थे। अपने मिलनसार स्वभाव के कारण कुछ ही समय बाद ही शिवानी भी सबसे घुलमिल गई।
दिनेश बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था। ज्यादा शौक नहीं थे उसके । बस नौकरी पर जाना और घर आकर शिवानी के साथ समय बिताना यही काम था उसका। ज्यादा यार दोस्त भी नहीं बनाए थे उसने। जो 1-2 थे ,वह
भी बस ऑफिस तक ही सीमित थे। यहां तक कि पैसों का हिसाब किताब भी शिवानी ही रखती थी।
शादी के 1 साल बाद ही रिया का जन्म हुआ घर में खुशियां छा गई। शिवानी व उसकी सास तो चाहती थी कि डिलीवरी गांव में ही हो लेकिन दिनेश ने यह कहते हुए मना कर दिया कि तुम गांव में चली जाओगी तो मेरा मन कैसे लगेगा। मैं दीदी व मां को यही बुला लूंगा।
शिवानी की सास लगभग 6 महीने उसके साथ ही रही। इससे शिवानी को बहुत सहायता मिल गई थी। वह तो शिवानी को कुछ समय के लिए अपने साथ ही ले जाना चाहती थी लेकिन दिनेश ने यह कहते हुए कि " मां यहां
मेरे लिए खाने पीने की दिक्कत हो जाएगी।" मना कर दिया।
शिवानी का भी कहा दिनेश से दूर रहकर मन लगता था। अपने मायके भी वह एक-दो दिन के लिए ही जाती थी। उनकी गृहस्थी की गाड़ी आपसी समझ से बहुत ही प्रेम पूर्वक चल रही थी। धीरे-धीरे करते दोनों की शादी को 4 साल हो गए थे।
शिवानी फिर से गर्भवती थी। इस बार उसकी तबीयत ज्यादा सही ना रहती । हमेशा ही पैरों में दर्द व थकावट रहती थी।
दिनेश ने डॉक्टर से इस बारे में जब बात की तो उनका कहना था कि गर्भावस्था की शुरुआत में यह सब होना एक आम बात है। जैसे जैसे समय निकलेगा, यह समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी।
शिवानी के यहां एक नव दंपत्ति कुमार व किरण किराएदार के तौर पर रहने आए। दोनों ही पति पत्नी काफी चुप चुप रहते थे। अकेले में भी शिवानी ने उन्हें कभी बोलते नहीं सुना। बड़ा अजीब लगता था कि नया जोड़ा चुपचाप कैसे रह सकता है।
अरे, इनके तो अभी प्यार करने दिन है और यह कैसे खिंचे खिंचे रहते हैं। उसने कई बार कुमार को अपनी पत्नी पर चिल्लाते भी सुना था। यह सब सुनती तो वह मन ही मन सोचती कि जब पसंद नहीं था तो एक दूसरे से शादी क्यों की।
उसके मन में उथल-पुथल चलती रहती । उसने दिनेश से जब इस बारे में बात की तो वह बोला "अरे भई, सबका स्वभाव हमारी तरह थोड़ी ना होता है कि जो तुम्हारी हर बात सिर झुका कर मान लेते हैं। सभी हमारे जैसे पत्नी भक्त भी नहीं हो सकते।"
"अच्छा जी ! आप बहुत सीधे-साधे हो और मैं तुम्हें अब बातूनी नजर आती हूं ।
वाह भई वाह! अपने मुंह मियां मिट्ठू तो कोई इनसे बनाना सीखे।"
"अरे इसमें मुंह मियां मिट्ठू की क्या बात है। मैं तो सच्चाई कह रहा हूं। अच्छा छोड़ो इन बातों को। वह पति पत्नी है। प्यार करे या लड़े हमें क्या। तुम उनके जीवन में तांक-झांक करने की बजाय, अपनी सेहत पर ध्यान दो। समय से खाओ पियो और मस्त रहो। तभी तुम और हमारा बच्चा स्वस्थ रहेंगे। वह सुना नहीं तुमने ऐसे समय में जैसा हम देखते और सुनते हैं बच्चे पर उसका ही असर पड़ता है इसलिए अच्छा सुनो, अच्छा खाओ पियो और अच्छा देखो।
शिवानी बड़ी अदा से हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर बोली।
दिनेश कितना हंसा था और उसे हंसता देखकर वह भी तो खिलखिला कर हंस पड़ी थी।
उसे याद करते हुए बरबस ही शिवानी के होठों पर मुस्कान तैर गई।