Love from the doors of memories (6) in Hindi Moral Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (6)

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (6)

मातृभारती के सभी सदस्यों और पाठकों को मेरा नमस्कार 🙏 यादों के झरोखों से —निश्छल प्रेम (1),(2),(3),(4),(5)आपने पढ़ी कैसी लगी रेटिंग करके अवश्य बताइएगा।जिन्होंने पढ़ी,पसंद की उनका हृदयतल से आभार 🙏


यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (6)प्रस्तुत है।


एक दिन मैं बहुत ही उदास अपनी लाइब्रेरी में बैठी थी तभी पीछे से आकर किसी ने मेरी दोनों आँखें हाथों से बंद कर दी,मैंने हाथों से टटोलने के बाद जाना यह तो मेरी प्रिय सहेली नीति है।


मैं आज कॉलेज तो आई थी लेकिन कक्षा में नहीं गई थी।नीति मेरी कक्षा में नहीं पढ़तीं थी ,वह एक क्लास पीछे थीं।पहले हम दोनों एक ही क्लास में पढ़ाई करते थे,नीति की पढ़ाई ठीक से न होने के कारण वह पिछली कक्षा में ही रह गई थी।


हमारे पीरियड अलग थे,हमारा साथ छूट गया था लेकिन दोस्ती कम नहीं हुई।मेरी कक्षा में नीति की सहपाठी की बहिन पढ़ती थी,वह भी हमारे पास आ गई ।


नीति ने कक्षा में न जाने का कारण पूंछा-मैं उसकी बात को टालना चाहती थी इसलिए कुछ नहीं बताया और सिर दर्द का बहाना कर वहाँ से जाने लगी।नीति ने तो जैसे ठान ही लिया था कि मैं क्यों कक्षा में नहीं गई जानकर ही रहेगी।


मैंने नहीं बताया मेरी सहपाठी ने कक्षा में हुई एक दिन पहले की घटना नीति को बता दी।


हमारी हिन्दी की क्लास में शिक्षिका बहुत दिनों से पद्य और गद्य की पुस्तक लाने को कह रहीं थी,अन्य विषयों की शिक्षिका भी प्रतिदिन कहतीं थीं ।


हिन्दी की कक्षा में आज सजा मिलने वाली थी ,सजा में कक्षा से बाहर हाथ ऊपर करके खड़े होने का भय था।यह सजा कितनी ही बार कक्षा में ही मिल चुकी थी आज बाहर खड़े होने का नंबर था ।


घर पर मैंने कह दिया था पुस्तक और लेखन पुस्तिका लाने के लिए लेकिन व्यवस्था होने में पारिवारिक कारणों से देरी हो रही थी।


नीति को जब जानकारी हुई तो वह बहुत नाराज़ हुई और बोली-क्या तुम मुझे अपनी दोस्त नहीं मानती ,मुझे परेशानी क्यों नहीं बताई।


नीति की बात सुनकर मेरी ऑंखें भर आई और मैं ऑसू छिपाने की कोशिश करती हुई वहाँ से चली आई ।


घर जाने पर मैंने अल्पाहार लिया और थोड़ी देर आराम किया ।गृहकार्य करने के लिए बैठी तभी मेरी प्रिय सहेली नीति मेरी कक्षा का पूरा कोर्स लेकर आ गई ।उसका घर मेरे घर के नज़दीक ही था ,वह खेलने मेरे घर आती और मैं भी उसके घर जाती थी।


मैंने देखा तो कहा-यह सब तुम क्यों लाई हो ,तुम्हें तो इस कोर्स की कोई आवश्यकता नहीं,तुम इस कक्षा में अगले वर्ष पढ़ोगी । नीति ने मुझे गले लगा लिया और कहा-क्या हुआ मैं अगले वर्ष पढ़ लूँगी इस वर्ष यह तुम पढ़ लेना।मेरी चुटकी काटते हुए कहा—कभी-कभी अगले वर्ष तुम भी हमें पढ़ा देना बहिना ,हम अच्छे नंबर से पास हो जायेंगे;और हॉं इन किताबों को फाड मत देना मुझे भी पढ़नी है।


हम दोनों नई पुस्तकों पर कवर चढ़ाने लगे ।नेमचिट भी लगाई गई मेरे नाम की।


धन्य हो मेरी प्यारी नीति की दोस्ती,निश्छल,निःस्वार्थ प्रेम मेरे हृदय पटल पर अंकित है।🙏🙏🙏🙏🙏🙏

आशा सारस्वत