sita ki ramayan in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | सीता की रामायण

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सीता की रामायण

बधाई हों जमींदार साहब! बेटी हुई है...

शहर से आई डाक्टरनी ने बेटी का जन्म कराकर प्रसूति गृह से बाहर निकलते ही कहा।।
फिर से लड़की, जमींदार साहब ने उतरे हुए चेहरे के साथ जवाब दिया।।
लेकिन जमींदार साहब ये तो आपकी पहली संतान है, फिर से कहां,डाक्टरनी बोली।।
अरे मंझले भइया को हैं ना तीन तीन बेटियां,ये चौथी भी आ गई, जमींदार साहब बोले।।
जमींदार साहब! वो तो सोच सोच की बात है, आजकल लड़कियाँ भी तो कम नहीं हैं, मुझे ही देख लीजिए, मैं भी तो एक लड़की ही थी,माँ बाप ने साथ दिया तो यहाँ तक पहुँच गई, डाक्टरनी साहिबा बोलीं।।
डाक्टरनी जी,आप शहर में रहने वालीं हैं और ये गाँव हैं,शहर के लोगों की सोच और गाँव के लोंगो की सोच में बहुत अन्तर होता हैं,जमींदार कालीप्रसाद बोले।।
ये थे उसके जमींदार पिता के बोल,उस दिन हवेली में मनहूसियत छा गई, जिस दिन उसका जन्म हुआ,लेकिन माँ तो माँ होतीं हैं, उसके लिए तो उसकी सभी सन्तानें बराबर होतीं हैं तो वो कैसे भेदभाव रख सकती थीं, उसने प्यार से उसे अपनी गोद में उठाया और बोली___
डर मत मेरी नन्ही परी,अभी तेरी माँ सौभाग्यवती जिंदा हैं, तू तो मेरे लिए कुदरत का सबसे अनमोल तोहफा हैं,किसी को ना होने दे खुशी तेरे पैदा होने पर,मुझे तो हुई हैं, मेरी लाडो।।
उस दिन कोई खुश हो चाहें ना हो लेकिन सौभाग्यवती खुश थी,नाम जरूर उसका सौभाग्यवती था लेकिन शायद उसने कभी सौभाग्य देखा हो,उसे तो आदत थी चारदीवारी में बंद रहने की,बड़े घर की और प्रतिष्ठित परिवार की जो बेटी थी वो ,जहाँ बेटियों को घर से निकलने की मनाही होती है, पढ़ने लिखने की मनाही होती है, रूढ़िवादी और झूठी शानशौकत से बनी एक ऐसी दुनिया जहाँ पुरूषों को तो सब हासिल था लेकिन बहु बेटियाँ तो ताजी हवा को भी तरस जातीं थीं, ऐसे ही माहौल में पली पढ़ी सौभाग्यवती, माँ ने समझाया कि जो घर के पुरूष कहते हैं हमेशा वहीं सही होता हैं और ये वर्षों से होता आया है और यही होता रहेगा, उसे भी यही लगने लगा कि शायद ये दुनिया पुरूषों ने ही बनाई हैं इसलिए सारे नियम कायदे भी उन्हीं लोगों के अनुसार ही होगें।।
बारह साल की होतें होतें सौभाग्यवती का ब्याह कालीप्रसाद से हो गया,तब कालीप्रसाद बीस साल के रहें होगें,लड़के लड़की में उम्र का इतना अन्तर,बिल्कुल भी अन्तर नहीं कहा जाता था,सोलह की होते होतें गौना हो गया और विदा होकर ससुराल चली आई ,यहाँ आई तो देखा कि पति तो जब देखों तब किसी नाचने वाली सितारा बाई के यहाँ पड़े रहतें हैं, कभीकभार आ जा जाते थे उसके भी पास,ऐसे ही समय बीतता रहा और अठारह की हुई ही थीं कि आज एक बच्चीं की माँ भी बन गई, उसने उसका नाम भूमिजा रखा,जिसका अर्थ होता है सीता।।
मँझली जेठानी तो मुँह बनाकर चली गई और नौकरानी कह दिया कि छोटी बहु के लिए मूँग की दाल और दलिया बना लेना क्योंकि पन्द्रह दिन तक छोटी बहु प्रसूति गृह में रहेंगी तो बस यहीँ खाएंगी,
प्रसूति गृह के नाम हवेली के आँगन में एक छप्पर वाली अँधेरी कोठरी थीं,जहाँ एक भी खिड़की नहीं थी,बस एक दरवाजा था आने जाने के लिए, जो वो वहाँ रहें तो उसका दम घुट जाएं लेकिन जैसे तैसे सौभाग्यवती ने वहाँ पन्द्रह दिन काटे।।
बड़ी जेठानी बेचारी विधवा थीं तो रसोईघर छूने की मनाही थीं,अच्छा खाने और पहनने की मनाही थीं और मँझली बहु उस पर हमेशा नजर रखती लेकिन बड़ी बहु का पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार था इसलिए जब भी सौभाग्यवती का कुछ खाने को मन करता तो पड़ोसियों के यहाँ से चुपचाप मँगाकर खिला देती,वो सौभाग्यवती को बहुत प्यार करतीं थीं लेकिन मजबूर थी बेचारी, वो जवानी में विधवा हो गई तो उसे अभागिन का दर्जा मिल गया,उसको भी एक बेटा था जो अब जवान हो चला था और वो भी अपने चाचाओं की तरह अय्याशियाँ करना सीख गया था।।
मँझली की दो बेटियाँ तो ब्याह गई थीं,बड़ी का तो गौना भी हो चुका था लेकिन अभी दूसरी वाली का गौना नहीं हुआ था और दूसरी वाली ब्याहता होकर भी एक गल्ती कर बैठी कि वो नौकर के बेटे से प्यार कर बैठी,मँझले जमींदार जगदेव प्रसाद को पता चल गया,रातों रात नौकर के बेटों को मरवाकर उसकी लाश नहर के किनारे फिकवा दी और ये कहलवा दिया कि नहर मे डूबकर मर गया और उसके एक दो दिन बाद ही दूसरी बेटी का गौना भी कर दिया गया।।
हाँ तो भूमिजा भी हवेली के इन्हीं नियम और कायदों के साथ बड़ी हो रही थीं,इसी बीच मँझले जमींदार जगदेव प्रसाद की सबसे छोटी बेटी अब गौने लायक हो गई थीं, उसके गौने की घड़ी भी आ गई और वो विदा होकर चली भी गई लेकिन जब मायकेँ वापस आई तो उसने ससुराल जाने से साफ साफ इनकार कर दिया, कारण वहीं कि बिना प्रेम और बिना भावों का शुष्क मिलन वह नहीं चाहती,देर रात उसका पति नशे में धुत्त लौटता है और जानवरों वाला व्यवहार करता हैं।।
वो रोई ,चीखीं ,चिल्लाई और सबके पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाई लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी सिवाय भूमिजा के,वो बोली___
जब सुकन्या दीदी को इतनी तकलीफ़ हैं वहाँ, तो क्यों भेजा रहा हैं, हमारे यहां क्या इतनी भी जगह नहीं सुकन्या दीदी के लिए,आखिर उसका भी इस घर पर बराबर का अधिकार हैं, आप लोगों को जरा भी दया नहीं आती,सुकन्या दीदी कहीं नहीं जाएंगी, वो इसी घर में रहेंगी,ये था भूमिजा का पहला विद्रोह।।
बड़े भाई ने उल्टे हाथ का थप्पड़ दिया,भूमिजा को और बोला___
तेरी इतनी हिम्मत, कल की छोकरी बड़ो से जुबान लड़ाती हैं, अब तू इस घर के फैसले तय करेंगी,हम मर्दों ने तो जैसे चूड़ियाँ पहन रखीं हैं, सौभाग्यवती ये देखकर सन्न हो गई और चुपचाप भूमिजा का हाथ पकड़कर वहाँ से ले गई।
और सबने मिलकर भूमिजा की दीदी को फिर से ससुराल विदा कर दिया और हफ्ते बाद खबर आई की सुकन्या ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर लीं हैं, भूमिजा बहुत रोई अपने माँ से लिपटकर कि किसी ने मेरी बात नहीं मानी और अगर मानी होती तो सुकन्या दीदी आज जिन्दा होती।।
ऐसे छोटे मोटे घाव रोजाना ही भूमिजा झेलकर बड़ी हो रही थी,अब भाभी भी आ गई थी मतलब बड़े भाई सदाशिव की अब शादी हो गई थीं, लेकिन भाभी का जीवन भी उसकी माँ और ताइयों की तरह ही चल रहा था,रागिनी भी अपने पति का इंतज़ार करती रहती और वो भी नशे मे धुत्त लौटता,भूमिजा ये सब देखती तो उसे सारे बंधन सारी दीवारें तोड़ने का मन करता,वो सोचती क्या सारी औरतों की यही कहानी होती हैं, क्या मेरे साथ भी यही सब होगा।।
सुकन्या के आत्महत्या करने के कारण भूमिजा के ब्याह में जल्दबाजी नहीं की गई,सबके मन में डर सा बैठ गया था कि कहीं इसके साथ भी कुछ गलत ना हो जाएं, लेकिन ब्याह तो हुआ वो भी अठारह की उम्र में भगवान की दया से भूमिजा को पति भी अच्छा ही मिला,उसके कोई भी जमींदारों वाले शौक नहीं थे,भूमिजा को लगा कि चलो उसकी किस्मत तो उसकी माँ और ताइयों जैसी नहीं है, बस एक कमी थी उसके पति जयराम में वो थोड़ा शक़ी मिज़ाज का था,अगर कोई पुरूष कभी भी किसी काम के लिए भूमिजा से बात करता तो वो भूमिजा से हजारों सवाल पूछ डालता।।
भूमिजा को कभी कभी इस बात उकताहट होती,लेकिन फिर भी धैर्य से काम लेती और ये सोचती चलो इसके अलावा तो और कोई बुरी आदत तो नहीं है मेरे पति,क्योंकि हम औरतों में समझौते करने की आदत होती है क्योंकि बचपन से हमें सिखाया भी यही जाता है।।
दिन बीत रहे थे,अब भूमिजा एक प्यारी सी बेटी की माँ भी बन गई, उसनके पति ने भी बेटी को खुशी खुशी स्वीकार कर लिया और उसके ससुराल को भी बेटी के जन्म का बुरा नहीं लगा,धीरे धीरे उसके पति ने उसे पढ़ना लिखना भी सिखा दिया।।
लेकिन बंधन तो अभी भी थें, जिस आजादी को बचपन से महसूस करना चाहती थीं, वो आजादी अब भी उसे नहीं मिली थी लेकिन उसने तब भी संतोष कर लिया था कि मेरी माँ और ताइयों को तो ये भी नसीब नहीं हुआ था,कम से कम मुझे तो ये मिला हैं।।
एक रोज भूमिजा के ननद का पति प्रकाश उनकें घर आया,उसके इरादें नेक नहीं थे,उसकी गंदी नज़रें तो भूमिजा पर थी क्योंकि उसने भूमिजा की शादी में उसे पहली बार देखा था तब से वो कोई ना कोई रास्ता ढू़ढ़ रहा था लेकिन सफल नहीं हो पाया था लेकिन इस बार उसने बिमारी का बहाना बनाकर कुछ दिन वहीं रहने की सोची,जयराम और भूमिजा उसके गंदे इरादों को नहीं समझ पाएं।।
एक दिन भूमिजा को एकांत में पाकर प्रकाश ने भूमिजा का हाथ पकड़कर कहा कि जो तुम मुझे स्वीकार कर लो तो जो चाहोगी मैं तुम्हें वो दूँगा।।
भूमिजा ने आव देखा ना ताव और प्रकाश के दोनों गाल लाल करके घर से निकल जाने को कहा,ये अपमान प्रकाश कभी भी बरदाश्त ना कर सका और कुछ दिनों बाद फिर भूमिजा के घर में बसेरा बना लिया, वो जयराम के शक़ी स्वभाव से अच्छी तरह वाक़िफ़ था और एक दिन उसने खिड़की से देखा कि जयराम आ रहा है, उसने धीरे से दरवाजा खोल दिया,भूमिजा अपना काम कर रही थीं और प्रकाश के गंदे इरादों का उसे पता नहीं चला।।
प्रकाश ने भूमिजा के कमर में हाथ डाल दिया, भूमिजा अचानक से डर गई और बोली ये क्या कर रहे हो?
तब तक जयराम भी भीतर आ चुका था,जयराम को देखकर प्रकाश बोला___
ये क्या कर रहीं हैं आप?भगवान के लिए ऐसा मत कीजिए,ये सब भले घर की औरतों को शोभा नहीं देता।
जयराम ने ना कुछ सोचा और ना कुछ पूछा और भूमिजा को मारना पीटना शुरु कर दिया।।
भूमिजा चिल्लातीं रही कि मैने कुछ नहीं किया लेकिन जयराम ने एक ना सुनीं,जयराम ने भूमिजा के मायके भेजकर भाई और पिता को बुलाकर कहा कि देखिए आपकी बेटी की करतूत अब तो पंचायत बैठेगी और भरी पंचायत में इसे बेइज्जत किया जाएगा ताकि आगे से कोई भी औरत ये ना कर सकें।।
भूमिजा रोती रही गिड़गिड़ाती रही लेकिन उसकी किसी ने ना सुनी,पंचायत बैठी,सबने अपना अपना मत रखा लेकिन भूमिजा से किसी ने कुछ नहीं पूछा और ये निष्कर्ष निकला कि वो गलत है और भूमिजा अब इस गांव में नहीं रहेंगीं, पिता और भाई ने भी मना कर दिया कि वो भी नहीं रखेगें भूमिजा को क्योंकि ऐसी बेटी की उन्हें कोई जरूरत नहीं है।।
लोगों ने भूमिजा का हाथ पकड़कर उसे गाँव से निकालना चाहा लेकिन उस समय भूमिजा के अंदर ना जाने कौन सी शक्ति आ गई उसने किसी की लाठी छीनी और बोली___
खबऱदार! जो मुझे किसी ने हाथ लगाया, जब मैं पवित्र हूँ तो क्यों दूँ अग्नि परीक्षा, मैने कोई अपराध नहीं किया, जो अपराधी है उसे छोड़ दिया तुम लोगों ने क्योंकि वो एक पुरूष हैं, उसने कहा और सबने उसकी बात मानकर मेरे चरित्र पर ऊँगली उठा दी और मैं सतयुगी सीता नहीं हूँ जो चुपचाप नियति मानकर सब सहन कर लूँगी, मैं कलयुगी सीता हूँ और ये रामायण मेरी है और इस रामायण में जो मैं चाहूँगी वहीं होगा,नहीं मानती मैं तुम पुरूषों के बनाएं नियम कायदे,ये मेरी जिन्दगी हैं और अबसे मेरी जिन्दगी में वहीं होगा जो मैं चाहूँगी जो मैं लिखूँगी।।
इतना कहकर हाथ मे लाठी लिए हुए भूमिजा ने बेटी को पति की गोद से छीना और ना जाने कहाँ चली अपनी अलग रामायण लिखने।।

समाप्त___
सरोज वर्मा___