Freedom struggle in villages of India - 7 in Hindi Moral Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 7

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भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 7

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स्वतंत्र भारत
अंग्रेज सरकार पिछले अनेक सालो से भारत को स्वायत्तता देने की बात कर रही थी किन्तु मोहम्मद अली जिन्ना मुस्लिमो के लिऐ ऐक अलग देश की मांग रखकर उसके मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर रहा था I अंत में जिन्ना ऐक अलग मुस्लिम देश की मांग पर अड़ गया I मुस्लिम लीडरो ने सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान व पूर्वी बंगाल सहित अनेक प्रान्तों को मिलIकर ऐक अलग देश की मांग रख दी I वे अलग देश से कुछ कम पर तैयार नहीं हुऐ I गांधीजी के बहुत समझाने के बाद भी जिन्ना नहीं माने व

अपनी मांग पर अड़े रहे I २० मार्च १९४७ को लार्ड मौन्त्बेतन भारत के वाइसराय नियुक्त हुऐ I उन्होंने १५ अगस्त १९४७ को भारत को ऐक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया किन्तु साथ ही उसके दो टुकड़े करके मुस्लिम बहुल पाकिस्तान की घोषणा भी कर दी I इस बटवारे के फलस्वरूप लाखो निर्दोष लोंगो को अपनी जन से हाथ धोना पड़ा I

इस विभाजन ने स्वतंत्रता के नहोत्सव को बहुत फीका कर दिया I

 


माता की म्रत्यु
शिव की माता का स्वास्थ्य बहुत समय से खराब चल रहा था। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उसे जाति वाले अपमानित कर रहे थे I उन दिनों स्वतंत्रता सेनानी को लोग हिकारत भरी नजर से देखते थे।

माता की आयु अधिक थी। वे पिच्यासी वर्ष की वृद्धा थी। उन्हे टी़ बी की बीमारी थी। शिव उन्हे कई बढ़िया दवाएं दे चुके थे । शहर के अस्पतालों मे उनका इलाज करवाया किन्तु कोइ फायदा नही हुआ था। उस रात मां की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी ा वे लगातार खांसे जा रही थी।

उन्हे सांस चल रहा था। आधी रात का समय था। शिव उन्हे लगातार दवाएं देकर ठीक करने का प्रयास कर रहे थे किनतु व्रद्धा ने दवा लेने से मना करते हुऐ कहा-

‘ बेटा अब मेरा अंतिम समय आ चुका है। मुझे गीता के श्लोक सुना। मेरे मुंह मे गंगाजल ओैर तुलसी डाल। ’ शिव ने वेसा ही किया। कुछ देर मे माता के प्राण पखेरू उड़ चुके थे। सुबह होने तक उस घर से जोर जोर से रोने की आवाजे आ रही थीं।

जाति से अघोषित बहिष्कार होने के कारण मोहन की जाति का कोई व्यक्ति उसकी मदद अथवा सांत्वना तक देने नहीं आया। उस समय मृत्यु के समय जाति से बहिष्कृत व्यक्ति से बदला लिया जाता था। जाति से बहिष्क्रत व्यक्ति को सबक सिखाने का वह बड़ा उपयुक्त समय समझा जाता था।

जातिवाद की बेबस लोगों को जाती से निष्कासित कने, उनकी घोर उपेक्षा व अपमान करने से लाखो हिन्दुओं को मुस्लिम व इसाई धर्म अपनाने को मजबूर होना पड़ा I

शिव उस बात को समझ चुके थे। उन्हे मित्र के साथ मिलकर मृत माता के सभी कार्य सम्पन्न करने थे। उन्हे माता के शव् को नहलाना थां। उसे नये कपड़े पहनाने थे, फिर हार फूल,घांस आदि तरह तरह का सामान जुटाना और अनेक तरह के संस्कारों की तैयारी करना थी जो ऐक दो व्यक्ति के बस के कार्य नही थे।

शिव को याद आया कि महान् स्वामी शंकराचार्य को भी अपनी माता की मृत्यु पर लोगो के बहिष्कार का सामना करना पड़ा था। संन्यासी होने के बावजूद वे माता को दिये वचन के अनुसार उनके मृत्यु संस्कार हेतु गांव लौट आऐ थे। किन्तु संन्यासी को अपने घर लौटने या रिश्तेदार की म्रत्यु में भाग लेने का निषेध है। अतः गांव वालों ने उनकी माता के अंतिम संस्कार का बहिष्कार कर दिया। स्वामीजी को अकेले ही माता का मृत्यु संस्कार सम्पन्न करना पड़ा। वही स्थिति आज शिव की थी।ं वह बड़ी विकट स्थिति थी। धीरे धीरे यह खबर दूर तक फैल गई। शिव की ब्रिगेड के ऐक युवक को उस घटना के मालूम होते ही पूरी टोली वहां आ पहुंची। फटाफट सारे आवश्यक कार्य निपटा लिऐ गऐ।

टोली को देखकर जाति वालों की शिव के मित्र को सबक सिखाने की सारी प्लान धरी रह गई्र।

मां की अर्थी निकल पड़ी। ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोले गत्य हे ’

इसे दोहराते हुऐ मा की अर्थी् उठाये लोग निकल पड़े।

शमसान मे चिता धू धू कर जल उठी।

इस जीवन के अंत मे सिर्फ राख ही शेष रह जाती है।

धर्म कहता है इंसान की मृत्यु के बाद उसके साथ कमाया हुआ कोई्र धन, नाम ख्याति कुछ साथ नही जाता। सिर्फ सद्कर्म ही उसके साथ जाते हैं ।

मनुष्य को सर्वदा सदकर्म ही करते रहना चाहिऐ। साथ ही ईश्वर का सर्वदा स्मरण करना चाहिऐ।