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नमक सत्याग्रह
सन् 1930 में गांधीजी ने अंग्रेजी शासन को चुनौती देने के लिऐ नमक सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की । उन्हे गुजरात में समुद्र किनारे नमक बनाकर अंग्रेजी सरकार के कानुन को तोड़ना था । इसके लिऐ उन्होंने अपने सत्याग्रही कार्यकर्ताओं के साथ समुद्र की ओर कूच किया । समय के साथ इस में पूरे देश से उत्साही लोग जुड़ते गऐ । कुछ समय बाद ही यह जुलूस हजारों कर्यकर्ताओं के ऐक विशाल जनसैलाब में तब्दील हो गया । जिस जिस रास्ते से यह जुलूस निकलता देखने वालों का जमघट लग जाता । इस जुलूस पर दर्शनार्थी फूल बरसाते । लोग गांधीजी व कार्यकर्ताओं को जगह जगह फूलमालाओं से लाद देते । रैली मे शामिल कार्यकर्ता नारे लगा रहे थे :
‘ गांधीजी की जय’,‘ भारतमाता की जय’,‘अंग्रजों भारत छोउ़ो ’ आदि अनेक गगनभेदी नारे लगाये जा रहे थे।
अंत मे यह जुलूस समुद्र किनारे स्थित ग्राम डांडी पहुंचा । यहां ऐक अंग्रेज अफसर अनेक हथियारबंद घुड़सवार सैनिकों के साथ उनसे निपटने के लिऐ तैयार खड़ा था ।
उसने कड़क आवाज में सत्याग्रहियों को चेतावनी दी, ‘ अपनी जान की खैर चाहते हो तो वापस लौट जाओ अन्यथा ऐक कदम भी आगे बढ़ाने पर तुममे से कोई्र भी जिंदा नहीं बचेगा ।’
सब लोग भय के मारे वहीं ठिठक गऐ व पीछे हटने लगे । इस पर गांधीजी ने द्रढ़ता से कहा, ‘ भाइयों अपने स्थान पर डटे रहो । ये अंग्रेज हमारा कुछ नही बिगाड़ सकते । जीत सदा सत्य की होती है । आप लोग चार चार के समूह में आगे बढ़ते रहें । कुछ बहनें नर्स का कार्य करें । सैनिक हमें मार तो सकते हैं किन्तु हमारे बुलंद इरादों को नहीं कुचल सकते । यह देश के लिऐ अग्निपरीक्षा का समय हे । हमें देश के लिऐ अपने प्राण न्यौछावर करना है ।’
गांधीजी की बातों से सब लोग जोष से भर गऐ और प्रत्येक व्यक्ति सबसे पहले अपने प्राण न्यौछावर करने हेतु तैयार होगया । वहां उपस्थित कार्यकर्ताओं को चार चार के ग्रुप में बांट दिया गया । कुछ बहनें नर्स का कार्य करने के लिऐ तैयार हो गई । सबसे पहले गांधीजी आगे बढ़ने को तैयार हुऐ लेकिन उन्हें स्वयंसेवकों ने रोक दिया । उन्हें आन्दोलन के अंत में नमक बनाने का कार्य सौंपा गया ।
अब पहला जत्था आगे बढ़ा । उन पर ब्रिटिश सैनिक डंडे बरसIते हुऐ टुट पड़े । घायलों की चीत्कारों से समूचा वातावरण गूंज उठा । धरती पर सत्याग्रहियों के खून का रेला बह चला । महिला नर्सो की टोली घायलों को ऐक ओर ले जाकर उनकी सेवा सुश्रुषा में जुट गई । तब अगला ग्रुप आगे बढ़ा और उसका भी वही हश्र हुआ । देर रात तक यह सिलसिला चलता रहा । अंत में ब्रिटिश शासन को गांधीजी की द्रढ़ता के आगे झुकना पड़ा और उन्होंने समुद्र किनारे नमक बनाकर अपना आंदोलन पूरा किया ।
हरिजन उत्थान
गांधीजी ने हरिजन उत्थान हेतु अनेक कार्यक्रम चला रक्खे थे। कार्यकर्ताओं को बापू द्वारा निर्देशित योजना से कार्य करने की हिदायत दी गई थी।
हरिजनो का अशिक्षित होना सबसे बड़ी समस्या थी।
उच्च जाति के लोग उन्हे अपने विद्यालयों मे प्रवेश नही करने देते थे।
हरिजनों के घर गांव से बाहर बहुत दूरी पर होते थे।
पंडितजी ने वहां ऐक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे हरजिनो के लिऐ ऐक विशेष विद्यालय आरम्भ किया।
उन्होने कच्ची मिटृी से ऐक ऊंचे चबूतरे का निर्माण करवाया। उस पर ब्लेकबोर्ड रखकर वे छात्रों को पढ़ाने लगे। इसके पूर्व ऐक सप्ताह तक उन्होंने अपने विद्यालय व विद्याध्ययन के महत्व के विषय मे बस्ती मे प्रचार किया था। उनकी क्लास में छोटे बड़े आबाल वृद्ध सभी आने लगे।
हरिजन विद्यालय शुरू हुऐ ऐक सप्ताह व्यतीत हो चुका था। गांव का हर व्यक्ति पंडितजी के इस धर्म विरूद्ध कार्य की निंदा कर रहा था, उन्हे धिक्कार रहा था। उस शाम सूरज डूब रहा था । क्षितिज पर लालिमा छाई हुई थी। शिव अध्यापन के बाद अपने घर लौट रहे थे। वे गांव से कुछ दूर पर थे । शाम के धुंधलके मे घरों से धुंआ उठ रहा था। रास्ते मे ऐक पेड़ के नीचे चार ग्रामीण बैठे चिलम पी रहे थे। वे गंभीर चर्चा मे लीन दिखाई दिखे। शिवा उनके नजदीक से निकले।
उन्हें देखते ही ऐक वृद्ध ने पूछा,
‘ कां से चले आइरा पंडितजी ?’
पंडित ने जबाब दिया, ‘ हरिजन विद्यालय मे पढ़ाकर लौट रहा हू, भैय्या ’
इस पर दूसरा ग्रामीण बोला, ‘ शिवजी आप पंडित हुईने अधरम करी रया हो I हरिजन होण को कम सफाई करनो है न कि पढी लिखी ने हमारी बराबरी करनों है I
तीसरा ग्रामीण धुआं छोड़ते हुऐ बोला, ‘ पंडितजी सुना है आप हरिजनों का छुआ खाते पीते हो, राम राम पंडित के हाथों धर्म का नाश हो रहा है।
चौथा हिकारत भरे लहजे मे बोला, ‘ ऐसा घोर अधर्म हमारे बाप दादाओं ने भी कहीं देखा न सुना था। ’
पंडितजी ने बड़ी शंIति व ध्यान से उनकी बातें सुनी ।
वे बड़ी धीर गंभीर वाणी मे बोले,
‘ प्यारे रामू मैं जो कर रहा हूं, वही सच्चा धर्म है ।
धर्म का तात्पर्य मंदिर मे जाकर ठाकुरजी के दर्शन करना भर नहीं है।
दीन दुखियों की सेवा करना,उनमे भगवान का दर्शन करना, अछूतों को गले लगानाऐ उतकी सेवा अैर इज्जत करना, ये सच्चे धर्म के सार तत्व हैं। गांधीजी ने हमे इस विषय मे विस्तार से से समझा रखा है। हमे बापू के बताये रास्ते पर चलना है।
पंडित को टोकते हुऐ ऐक ग्रामीण बोला :
‘ गांधी तो पागल हे। वह हमारा रीति रिवाजों को क्या जाने? उन्होने विदेश मे रह कर पढ़ाई की है।’
पंडित ने अपना वक्तव्य जारी रखते हुऐ कहा,
राम ने अछूत स्त्री शबरी के झूठे फल बड़े प्रेम से खाये। उन्होने निम्न जाति के केवट को प्रेम से गले लगाया। इंसान तो इंसान प्रभु ने बंदरों,भालू,गिलहरी व गिद्ध तक से स्नेह किया । पुरातन काल से चली आ रही छूआछूत की प्रथा मनुष्यता पर कलंक है। हमें महात्माजी के निर्देषों का पालन करना चाहिये ’
अभी पंडित बात कर ही रहे थे कि कहीं से ऐक पत्थर आकर जोरों से उनके सिर पर आ लगा। उनके मुंह से आह निकल गईं । उनके सिर से खून बह निकला। पंडित ने मुड़कर सभी दिशाओं में देखा किन्तु कोई दिखाई नही दिया। मूर्ख लोग मुंह दबाऐ हंस रहे थे।
गांधीजी ने कहा था, ‘सत्य की खातिर हंसते हंसते कष्ट सहना अत्यंत आवश्यक है। अंतिम विजय सत्य की ही होती है। ’