Corona - A Love Story - 3 in Hindi Love Stories by Neha Sharma books and stories PDF | कोरोना - एक प्रेम कहानी - 3

Featured Books
  • શ્રાપિત પ્રેમ - 18

    વિભા એ એક બાળકને જન્મ આપ્યો છે અને તેનો જન્મ ઓપરેશનથી થયો છે...

  • ખજાનો - 84

    જોનીની હિંમત અને બહાદુરીની દાદ આપતા સૌ કોઈ તેને થંબ બતાવી વે...

  • લવ યુ યાર - ભાગ 69

    સાંવરીએ મનોમન નક્કી કરી લીધું કે, હું મારા મીતને એકલો નહીં પ...

  • નિતુ - પ્રકરણ 51

    નિતુ : ૫૧ (ધ ગેમ ઇજ ઓન) નિતુ અને કરુણા બીજા દિવસથી જાણે કશું...

  • હું અને મારા અહસાસ - 108

    બ્રહ્માંડના હૃદયમાંથી નફરતને નાબૂદ કરતા રહો. ચાલો પ્રેમની જ્...

Categories
Share

कोरोना - एक प्रेम कहानी - 3

भाग-3

 

"भाई शेखर कुमार बेटी लिली की देखभाल ने बहुत अच्छा असर दिखाया है। तुम्हारी सारी रिपोर्टस पहले से बहुत बेहतर है" - डॉक्टर त्रिपाठी फाइल में एक नजर डालते हुए बोलते है।

 

"अरे वाह त्रिपाठी यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने। चलो अब उन रोज की कड़वी दवाइयों से छुटकारा मिलेगा" - शेखर कुमार एक लंबी सांस छोड़ते हुए बोलते है।

 

" अरे यह क्या बात हुई भला शेखर कुमार तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे दवाई, दवाई ना हुई कोई गले का फंदा हो गई। रिपोर्ट नॉर्मल आई तो क्या दवाई लेना छोड़ दोगे।"

"हाँ यह बिल्कुल ठीक कहा आपने त्रिपाठी अंकल। भला दवाईयों से भी कोई इस तरह डरता है पापा।" -लिली पिता को शिकयती अंदाज में कहती है।

 

"मैं भी कहाँ इन दोनों के बीच में फँस गया" - शेखर कुमार मन ही मन बड़बड़ाते है।

 

"ये लो बेटा लिली मैंने सारी दवाइयां लिख दी है। तुम जाते वक्त मेडिकल स्टोर से खरीद लेना" - कहते हुए डॉक्टर त्रिपाठी पर्ची लिली की तरफ बढ़ाते है।

 

"शेखर कुमार मैंने कुछ देर पहले तुमसे क्या कहा था याद है या नहीं। आज का लंच मैं तुम्हारे साथ करने वाला हूँ। हाँ त्रिपाठी नेकी और पुच- पुच। मुझे भी बहुत भूख लग रही है। मैंने इन चेकअपस के चक्कर में सुबह का नाश्ता भी नहीं लिया।"

 

"तो फिर ठीक है शेखर कुमार पास ही एक बहुत अच्छा रेस्टोरेंट है। मैं अक्सर वहाँ जाता हूँ। वही चलते है।"

"हाँ तो फिर जल्दी चलते हैं त्रिपाठी, चलो बेटा लिली।"

 

सभी सम्मिलित होकर रेस्टोरेंट की ओर बढ़ते है। हॉस्पिटल से सात या आठ मिनट की दूरी तय करने के बाद तीनों रेस्टोरेंट के अंदर दाखिल होते है। पास ही में डली डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठ जाते हैं। और दो मिनट तक मेनू लिस्ट में आंखें गड़ाने के बाद तीनों अपने लिए अपना मनपसंद भोजन आर्डर करते है।

 

" एक बात तो कहनी पड़ेगी त्रिपाठी तुम्हारी चॉइस बड़ी अच्छी है। रेस्टोरेंट दिखने में एकदम बिंदास है। बस खाना भी लजीज हो, तो सोने पे सुहागा हो जाए।"

 

"शेखर कुमार खाने की तो बस पूछो ही मत एक बार खाने बैठोगे, तो उंगलियां ही चाटते रह जाओगे।" - कहते हुए डॉक्टर त्रिपाठी जोरदार ठहाका लगाते है।

 

इतने में वेटर सभी के आर्डर टेबल पर रख देता है।

 

प्लेट देखते ही लिली प्योरिया चढ़ाते हुए बोलती है-

" यह जलेबी किसने आर्डर की है। एम श्योर पापा यह आपने ही किया होगा।"

 

" यश बेटा लिली यह मैंने ही आर्डर किया है। घर पर तो तुम्हारी मम्मी मुझे कुछ मीठा बना कर खिलाती नहीं है और यहाँ तुम मुझ पर गुस्सा हो रही हो।"

 

शेखर कुमार चेहरे के भाव भंगिमाओ को थोड़ा बदलते हुए बोलते है।

 

"पापा आपको पता है ना आपको शुगर की प्रॉब्लम है। देखिये ना त्रिपाठी अंकल पापा कैसे बच्चों की तरह कर रहे है।"

 

"यू आर राइट लिली। शेखर कुमार तुम मीठा नहीं खा सकते और एक डॉक्टर के सामने तो बिल्कुल नहीं।"

" लेकिन मैंने तो ऑर्डर कर ली अब तो खाना ही पड़ेगा" - शेखर कुमार प्लेट अपनी और सरकाते हुए बोल पड़ते है।

"यू डोंट वरी, शेखर कुमार तुम्हारी यह स्वादिष्ट जलेबियाँ हम बिल्कुल भी वेस्ट नहीं जाने देंगे। लो बेटा लिली हम दोनों इसे शेयर करते है।"

 

कहते हुए लिली और डॉक्टर त्रिपाठी जलेबी का आनंद उठाने लगते है और शेखर कुमार को सादा भोजन में ही संतुष्ट होना पड़ता है।

 

तभी डॉ त्रिपाठी मुंह में निवाला डालते हुए बोल पड़ते है- " वैसे मैं बातों-बातों में भी तुम लोगों को एक बहुत जरूरी बात तो बताना ही भूल गया।"

 

"वह क्या त्रिपाठी अंकल बताइए ना" - लिली पूछती है।

 

"बेटा लिली मेरी यह बात केवल सुनने भर की नहीं है बल्कि आप सभी को इस पर अमल भी करना है।"

 

"जी हां त्रिपाठी अंकल बताइए तो।"

 

"बेटा लिली तुमने न्यूज़ चैनल पर देखा होगा कि चीन में

एक बीमारी बहुत जोर पकड़ रही है। जिसके शुरुआती लक्षण जुखाम, गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ जैसे आम लगते है। लेकिन सही वक्त पर इलाज नहीं मिलने के कारण यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।"

 

"लेकिन अंकल क्या वास्तव में यह बहुत गंभीर है। यह भी तो हो सकता है कि न्यूज़ चैनल इसे भी बाकी न्यूज़ की तरह बढ़ा- चढ़ा कर दिखा रहे हो" लिली शंका भरी दृष्टि से डॉक्टर त्रिपाठी से पूछती है।

 

"नहीं बेटा लिली, दिस इज वेरी सीरियस डिजीज और यह एक- दूसरे के संपर्क में आने से अधिक तेजी से फैलती है।"

 

"वह कैसे भला त्रिपाठी" - शेखर कुमार पूछते है।

 

"शेखर कुमार किसी रोगी व्यक्ति से हाथ मिलाने और गले लगने से कोरोना से ग्रसित व्यक्ति के वायरस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और स्वस्थ व्यक्ति भी उस बीमारी से ग्रस्त हो जाता है।"

"पर यार त्रिपाठी जब हमें पता है कि सामने वाला कोरोना से पीडित है, तो हम उस से उचित दूरी बनाकर रखेंगे" - शेखर कुमार गंभीर मुद्रा में बोल पड़ते है।

 

" शेखर कुमार इस रोग के लक्षण लगभग चौदह दिनों के अंतराल में दिखाई पड़ते है और इस दरमियान हम यदि कोरोना पीडित व्यक्ति के संपर्क में आते है, तो हम भी इस जानलेवा बीमारी के शिकार बन सकते है। इसी कारण तो चीन में सब कुछ बंद कर- कर वहाँ लॉकडाउन घोषित कर दिया है।"

 

"हाँ पर लेकिन अंकल यह महामारी तो चीन में फैल रही है ना, तो हम यहां इंडिया में क्यों डरे भला" - लिली डॉक्टर त्रिपाठी के समक्ष एक और प्रश्न रखती है।

 

"बेटा लिली तुम्हें मालूम होना चाहिए कि यह बीमारी इंडिया के कुछ इलाके में भी फैल चुकी है और यदि सतर्कता नहीं बरती गई, तो यह इंडिया के हर भाग में फैल सकती है। अब कुछ समझी बेटा लिली।"

 

"हाँ त्रिपाठी अंकल लेकिन हम इससे कैसे बच सकते है।" लिली पुनः डॉक्टर त्रिपाठी से पूँछती है ।

 

"बेटा लिली सबसे पहले तो अनावश्यक बाहर जाने से बचे, समय-समय पर अपने हाथ धोते रहें और कहीं भी बाहर जाएं तो मास्क अवश्य पहने। ये सभी सावधानियां बरतने से हम इस कोरोनावायरस महामारी से बच सकते है।"

 

"हाँ भाई त्रिपाठी यह तो बहुत अच्छी जानकारी दी तुमने हमें इसके लिए तो हम तुम्हारे शुक्रगुजार रहेंगे" - शेखर कुमार डॉक्टर त्रिपाठी से कहते है।

 

" इसमें शुक्रिया किस बात का त्रिपाठी यह तो एक डॉक्टर होने के नाते मेरा फर्ज था। और तुम तो मेरे जिगरी यार हो तुम लोगों की फिक्र तो होगी ही ना।"

 

"ठीक है भाई त्रिपाठी। बेटा लिली मेडिकल स्टोर से दवाइयां खरीदते हुए हम सभी के लिए मास्क और सेनिटराइजर भी ले ही लेना, ताकि आने वाली बला से कुछ तो राहत मिले।"- शेखर कुमार जिम्मेदाराना अंदाज में बोल पड़ते है।

 

"ओके पापा श्योर "

 

"अच्छा तो शेखर कुमार अब हमें चलना चाहिए हॉस्पिटल में पेशेंट मेरी राह देख रहे होगे।" - डॉ त्रिपाठी शेखर कुमार से कहते है।

 

"ठीक है फिर त्रिपाठी अंकल हम आपको हॉस्पिटल तक ड्रॉप कर देते है।"

 

"चलिए पापा, चलिए चलते है।"

 

●●●