Anmol Saugat - 8 in Hindi Moral Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | अनमोल सौगात - 8

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अनमोल सौगात - 8

भाग ८

६ माह बाद ---

लाल साड़ी, माथे पर लाल बिंदी, माँग में सिन्दूर और कलाई भर चूड़ियाँ पहने हुए नीता किचन में नाश्ता बना रही थी।

"अभी तक नाश्ता बना नहीं क्या? कितनी देर हो रही है? मुकेश ने झल्लाते हुए बाहर से आवाज़ दी।

नीता झटपट प्लेट में पोहा और चाय का कप ट्रे में रखकर टेबल पर देने आयी।

"समय का थोड़ा ध्यान रखा करो।" मुकेश ने मुँह बिगाड़ते हुए कहा।

नीता ने बहस करना उचित नहीं समझा और लंच तैयार करने फिर से किचन में चली गयी।

नीता और मुकेश का चट मंगनी पट ब्याह था। मुकेश वही लड़का था जिसे शशिकांतजी ने नीता के लिए चुना था। उन्होंने जल्दबाज़ी में, नीता की अनिच्छा से यह रिश्ता तय कर दिया। दोनों को एक दूसरे को समझने का मौका भी नहीं दिया गया। मुकेश की पढ़ाई में कुछ खास रूचि नहीं थी। इसलिए किसी तरह ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद अपने पिता के साथ व्यापार में लग गया किन्तु वहाँ भी वह कोई काम ढंग से नहीं करता था। नीता भी पिछले एक माह से उसके रंग ढंग देख रही थी। नयी नयी शादी होने के बावजूद भी वह नीता से कभी प्यार से बात नहीं करता था।

नीता के दिल में रवि की ज़िंदादिल छवि बसी हुई थी पर फिर भी वह सब कुछ भुलाकर मुकेश के साथ ताल मेल बिठाने का प्रयास कर रही थी। लेकिन उसका गुस्सैल और चिड़चिड़ा स्वभाव नीता को रवि को भूलने ही नहीं दे रहा था। एक साल बाद पवित्रा और फिर कुछ साल बाद पुलक का जन्म हुआ। नीता ने सोचा, शायद बच्चों की वजह से मुकेश में बदलाव आये लेकिन वह जैसा था, वैसा ही रहा।

 

नीता की जिम्मेदारियाँ और व्यस्तता जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी वैसे वैसे उदासी और परेशानियाँ भी बढ़ रही थी। इस तरह की ज़िन्दगी को उसने नियति मानकर स्वीकार कर लिया था, इसलिए उर्मिला के पूछ्ने पर भी अपना दुःख साझा नहीं करती थी।

 

मुकेश के पिता के देहांत के बाद दुकान की जिम्मेदारी उस पर आ गयी थी किन्तु उसके गुस्सैल स्वभाव के कारण ग्राहक कन्नी काटने लगे। घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। बढ़ते बच्चों के खर्चे भी बढ़ रहे थे। इन सबके परिणाम स्वरुप रोज की तू तू मैं मैं होने लगी।

 

आखिरकार नीता को मोर्चा संभालना पड़ा। किस्मत और मेहनत दोनों रंग लायी। धीरे धीरे आर्थिक स्थिति सुधरने के कारण बच्चों की पढ़ाई भी ठीक से होने लगी। पवित्रा ने एम.बी.ए. और पुलक ने सी.ए. एंट्रेंस की exam दी।

 

शशिकांतजी को नीता की हालत देखकर अपने निर्णय पर पछतावा होता था। कुछ वर्षों बाद उर्मिला का भी देहांत हो गया। उनके अकेले होने के कारण नीता हफ्ते में एक बार जाकर घर की व्यवस्था तथा स्टॉफ को सब काम समझाकर आ जाती थी। बड़ी बहन रीता भी कभी कभी आकर उनके साथ रहती थी।

 

महंगाई बढ़ने के साथ आर्थिक समस्यायें भी बढ़ रही थी। अतः नीता ने दुकान के अलावा कुछ और काम करने का निश्चय किया। कुछ रिश्तेदारों की मदद से उसे एल.आई.सी. एजेंट का काम मिल गया। इस सिलसिले में  उसे एक बार अहमदाबाद से बड़ौदा जाने का मौका मिला। पवित्रा ने उसे आश्वस्त किया कि वह दो दिन सब संभाल लेगी। वह अपने सहकर्मी के साथ बड़ौदा रवाना हुई। दिन भर वो लोग अपना काम करते रहे।सहकर्मी चाह रहा था कि बाकी की मीटिंग्स अगले दिन की जाए किन्तु नीता की इच्छा थी कि एक क्लाइंट से आज शाम मिल ले ताकि दूसरे दिन जल्दी वापस लौट सके। उसने अपने सहकर्मी से कहा, "अब आप आराम कर लीजिये। अगले क्लाइंट से मैं अकेले ही मीटिंग कर लेती हूँ। आप उनका पता दे दीजिये।"

 

पता किसी प्रिंटिंग प्रेस का था और क्लाइंट का नाम मि. मैनी था।

 

नीता दिए हुए पते पर पहुँची। इधर उधर देख ही रही थी कि एक चाय वाले छोटे बच्चे ने पूछा, "क्या हुआ मैडमजी? आप किसी को ढूँढ रही हैं?"

 

"हाँ, मुझे मि. मैनी से मिलना है।" नीता ने कहा।

 

"ओह अच्छा! आपको साहबजी से मिलना है। चलिए मैं आपको उनका कैबिन दिखाता हूँ।" बच्चे ने कहा। दोनों कैबिन की और बढ़े।

 

"साहबजी, कोई मैडम आयी हैं, आपसे मिलने।" बच्चे ने कैबिन का दरवाजा खोलते हुए कहा।

"कौन है छोटू?"  मि. मैनी ने अपनी कुर्सी घुमाकर ऊपर देखा तो उनकी आँखें आश्चर्य से फटी रह गयी।

 

नीता भी मूर्तिवत देखती रह गयी कि मि. मैनी कोई और नहीं बल्कि रवि है, रवि मैनी।

 

"साहबजी, मैडमजी! क्या हुआ? आप लोग ठीक तो हैं? मैं चाय ले आऊँ?" छोटू की आवाज़ से दोनों सहज हुए।

 

"अभी नहीं छोटू। तुम जाओ।" रवि ने उसको जाने के लिए कहा।

 

"नीता? तुम यहाँ? मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं इतने सालों बाद तुम्हें अपने सामने देख रहा हूँ।कैसी हो तुम?" आश्चर्यमिश्रित खुशी से रवि ने पूछा।

 

नीता ने खुद को सँभालते हुए जवाब दिया, "मैं ठीक हूँ। तुम कैसे हो?"

 

"बस मैं भी ठीक हूँ।" रवि ने जवाब दिया। इतने सालों बाद अचानक एक दूसरे के सामने आ जाने से दोनों के बीच एक अजीब सी हिचकिचाहट थी।

 

"अरे तुम बैठो ना।" रवि ने कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा।

 

नीता ने कहा, "मैं एल.आई.सी. की तरफ से आयी हूँ।"

 

"ओह अच्छा! हाँ आज मेरी मीटिंग तो थी पर मैं किसी और के आने की उम्मीद कर रहा था।" रवि को समझ आया।

"हाँ वो मेरे सहकर्मी हैं। उन्हें थोड़ी थकान हो गयी थी तो मैंने कहा ये मीटिंग मैं ही कर लेती हूँ। मुझे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि मि. मैनी तुम हो।" नीता ने पूरी बात सविस्तार बताई।

 

"चलो अच्छा ही हुआ। अन्यथा हम यूँ नहीं मिल पाते।" रवि ने कहा।

 

दोनों ने विगत वर्षों के गुजरे दिन, अपने अपने परिवार, व्यापार और बहुत सी बातें साझा की। रवि ने बताया कि उसकी पत्नी शालिनी बड़ौदा की है और उसके दो पुत्र हैं।

 

"अब तो तुम बहुत बड़े बिज़नेसमैन बन गए हो।" नीता ने उसके प्रेस की ओर देखते हुए कहा।

 

"अरे नहीं! बस पेट थोड़ा बड़ा हो गया है।" रवि ने हँसते हुए कहा। नीता भी मुस्कुरा दी।

 

"लेकिन तुम बहुत कमजोर हो गयी हो, नीता।" रवि ने ध्यान से उसकी और देखते हुए कहा। उसे महसूस हुआ की अपनी मुस्कराहट के पीछे नीता शायद कई दर्द छिपाये हुए है।

 

"ऐसा कुछ नहीं है। बस इन दिनों व्यस्तता कुछ ज्यादा बढ़ गयी है।" नीता ने बात को टालना चाहा लेकिन रवि उसके शब्दों में छुपे भावों को पढ़ पा रहा था। कुछ तो था जो नीता छुपा रही थी।

 

"अब मैं चलती हूँ। बातों में समय का पता ही नहीं चला।" नीता ने अपनी घड़ी की ओर देखते हुए कहा।

"काफी रात हो गयी है। मैं तुम्हें होटल तक छोड़ देता हूँ।" रवि ने कहा और दोनों रवि की कार में बैठकर हॉटेल के लिए निकल गए।