Anmol Saugat - 5 in Hindi Moral Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | अनमोल सौगात - 5

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अनमोल सौगात - 5

भाग ५

जैसे ही नीता ने घर में प्रवेश किया तो देखा कि शशिकांतजी बैचेनी से टहल रहे थे और उर्मिला भी चिंतित नजर आ रही थी।

नीता से शशिकांतजी ने पूछा, "क्यों? कॉलेज का प्रोग्राम कैसा रहा?" नीता उनके भावों को समझ नहीं पायी और बड़ी सहजता से जवाब दिया, "बहुत अच्छा था पापा। बस थोड़ी थकान हो गयी। मैं कमरे में जाकर आराम कर लेती हूँ।" वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी।

 

शशिकांतजी ने पीछे से व्यंगात्मक लहजे में कहा, "हाँ, कॉलेज बंक करके पिक्चर देखना और रेस्टॉरेंट में खाना पीना अच्छा ही होता है और इन सब में थकान होना तो लाजमी है।"

 

नीता को इस बात की अपेक्षा नहीं थी, इसलिए वह अचानक यह सब सुनकर चौंक पड़ी। वह धीरे से पलटी और अपने पापा की तरफ देखने लगी।

 

शशिकांतजी ने बोलना जारी रखा, "क्यों क्या हो गया? अब कुछ और बोलने को है तुम्हारे पास? हमने तुम्हें इतनी छूट दी ये हमारी गलती थी। हमारी इज्जत का ध्यान रखना भी तुमने जरूरी नहीं समझा। कॉलेज से पिक्चर देखने जाना और वह भी एक अजनबी लड़के के साथ। अगर मैं सब कुछ अपनी आँखों से नहीं देखता तो शायद कभी विश्वास ही नहीं करता। पता नहीं यह सब कब से चल रहा है।"

 

नीता कुछ कहती उसके पहले ही शशिकांत जी का आदेश हुआ, "सुनो उर्मिला! कल से इसका कॉलेज जाना बंद। और हाँ मेरी इजाज़त के बिना इसका घर से निकलना भी बंद। पूरे समाज में ये चर्चा का विषय बने उसके पहले एक अच्छे लड़के को ढूंढकर इसकी शादी करा दूंगा।"

 

नीता ने रोते हुए कहा, "पापा! मेरी बात तो सुनिए। रवि बहुत अच्छा लड़का है। हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं। एक बार आप उससे और उसके परिवार से मिल लीजिये।"

 

शादी की बात सुनते ही शशिकांतजी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, "तुमने ये सोचा भी कैसे कि मैं इस प्रेम विवाह के लिए तैयार हो जाऊंगा? और तो और वो लड़के के बारे में मैंने पता किया है। वो दूसरी जाति का है और हमारे परिवार और उनके परिवार के स्तर में बहुत अंतर है। तुम्हारे भविष्य के लिए यही उचित है कि तुम उस लड़के को भूल जाओ।" यह कहकर शशिकांतजी वहां से चले गए।

 

"पापा प्लीज, पापा मेरी बात तो सुनिए। मम्मी आप तो मेरी बात सुनिए। प्लीज आप पापा को समझाइये ना।" नीता ने अनुरोध भरे स्वर में कहा।

 

"नीता तुम जानती तो हो अपने पापा को। वो कभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगे। सबकी भलाई इसमें है कि तुम ये सब बातें यही खत्म कर दो।" उर्मिला ने समझाते हुए कहा। निराश नीता अपने कमरे में आकर फूट फूट कर रो पड़ी।

 

उधर रवि नीता के घर पर हुई इन सब बातों से अंजान अगले दिन कुछ जल्दी ही उठ गया। कल्पना किचन में चाय बना रही थी।

 

"मम्मी! आज मुझे आपसे और पापा से एक जरुरी बात करनी है।" रवि ने कहा।

 

"क्या बात है बेटा? कोई समस्या है क्या?" कल्पना ने चिंतित स्वर में पूछा।

 

"नहीं माँ! चिंता वाली कोई बात नहीं है। बस आप लोगों से कुछ बात करनी है।" रवि ने आश्वस्त करते हुए कहा।

 

तीनों जब साथ में बैठ चाय पी रहे थे रवि ने हिम्मत जुटाते हुए कहा, "मम्मी पापा! मुझे एक लड़की पसंद है। उसका नाम नीता पांडे है और वो इसी कॉलोनी में रहती है। मैं उससे शादी ---- "

 

कल्पना रवि की बात बीच में ही काटते हुए बिफर पड़ी," ये क्या बोल रहे हो तुम? हर काम मेरी पसंद से करने वाले मेरे बेटे ने मेरे लिए बहु पसंद कर ली और वो भी दूसरी जाति की। और इतनी बड़ी बात हमें बस आकर यूँ हीं बता रहे हो।"

 

रवि ने अनुरोध भरे स्वर में कहा,"माँ आप मेरी बात तो सुनो, ऐसा नहीं है। मैं आप लोगों के आशीर्वाद से ही शादी करना चाहता हूँ। नीता बहुत ही अच्छी लड़की है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वो हमारी जाति की नहीं। आप लोग एक बार नीता और उसके माता पिता से मिल तो लीजिये।"

 

"वाह! तुम तो अभी से उस लड़की के लिए हम से बहस कर रहे हो। आगे चलकर पता नहीं क्या होगा?" कल्पना ने क्रोधित स्वर में कहा।

 

"माँ, ऐसा कुछ नहीं है। आप उससे बिना मिले ऐसा सब क्यों कह रही हो? पापा, आप मम्मी को समझाइये ना।" रवि ने बृजभूषणजी की तरफ देखते हुए कहा।

 

बृजभूषणजी जो इतनी देर से सब कुछ चुपचाप सुन रहे थे, उन्होंने गंभीर आवाज़ में रवि की तरफ देखते हुए पूछा, "क्या उसके माता पिता इस रिश्ते के लिए तैयार है?"

 

"मुझे नहीं पता किन्तु एक बार हम सब मिलकर इसके बारे में बात कर ले, मैं सिर्फ यही चाहता हूँ।" रवि के स्वर में आशा की किरण थी।

 

"देखो रवि, जब तुमने बताया कि वह हमारी कॉलोनी के पांडेजी की बेटी है तभी मैं समझ गया की वो शशिकांत पांडे ही होंगे जो मेरे डिपार्टमेंट में मेरे सीनियर हैं। मैं उन्हें रोज मिलता हूँ और अच्छी तरह जानता हूँ। वह अपनी जाति, धर्म, पद, प्रतिष्ठा के प्रति बहुत एकनिष्ठ हैं। वो इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे। तुम्हारे लिए यही अच्छा है कि उस लड़की को भूल जाओ।" बृजभूषणजी ने रवि को समझाते हुए कहा।

 

"पापा, मैं नीता को नहीं भूल सकता। मैं अपने प्यार के लिए कुछ भी करूँगा। मैं उसके पापा से बात करूँगा और उन्हें समझाऊंगा। बस मुझे आप लोगों का साथ चाहिए।" रवि को अपने प्यार पर पूरा विश्वास था।

 

"देखो बेटा, हम लोग भी तुम्हारी खुशी ही चाहते हैं लेकिन शादी के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं होता। हम लोग एक समाज में रहते हैं जहाँ के अपने कायदे कानून होते हैं। उनके और हमारे आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी स्तर बहुत अलग हैं।" बृजभूषणजी को अब रवि की चिंता हो रही थी। उन्हें पता था कि इस रिश्ते से उसे निराशा ही हाथ लगने वाली है।

 

"बस बहुत हो गया। अब इस बारे में और कुछ कहने सुनने की जरूरत नहीं है। इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। हम तुम्हारी शादी अपनी ही बिरादरी की अच्छी लड़की देख कर शीघ्र ही कर देंगे और कुछ ही दिनों में तुम उस लड़की को भूल जाओगे।" कल्पना ने आवाज़ ऊँची करते हुए अपना फैसला सुना दिया।

 

रवि गुस्से में उठा और घर से बाहर निकल गया। उसका  दम घुट रहा था। उसे कैसे भी करके नीता से मिलना था। वो सीधा नीता के कॉलेज पहुँच गया और दरवाजे के बाहर उसका इंतज़ार करने लगा।