Grandma's Sewing Machine - 6 in Hindi Motivational Stories by S Sinha books and stories PDF | दादी की सिलाई मशीन - 6

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दादी की सिलाई मशीन - 6

भाग 6

कमला के अंतिम दर्शन के लिए उसका पूरा परिवार बेटा, बेटी, दामाद, पोती रीता और गीता अपने अपने पति के साथ आये थे और साथ में उसका परपोता रीता का बेटा भी और सभी नजदीकी रिश्तेदार अंतिम संस्कार तक रुके थे. उसके अंतिम संस्कार के दिन जज साहब भी आये थे. उन्होंने मोहन से कहा “ तुमलोग बड़े भाग्यशाली हो जो ऐसी माँ मिली. “ फिर उन्होंने मोहन की बड़ी बहनों की तरफ देख कर कहा “ मोहन जैसा भाई बड़े सौभाग्य से मिलता है. अपनी बड़ी बहनों के लिए पिता के सामान फ़र्ज़ निभाया है. “

सभी ने जज साहब की बात सुन कर स्वीकृति में हाँ कहा. रीता ने कहा “ आप जैसे सज्जन पुरुष का आशीर्वाद भी बड़े भाग्य से मिलता है. दादी ने हमें सब कुछ बताया था. हम सभी आपके ऋणी हैं, मुसीबत में जब अपनों ने मुंह मोड़ लिया था आपने ही सहारा दिया था परिवार को. “

“ अरे नहीं बेटा, तुम बात को कहाँ से कहाँ ले गयी. “

चार पांच महीने बाद मोहन जब रिटायर हुआ तब उसे उड़ीसा छोड़ कर अपने गाँव जाना था. एक बार फिर सभी सामान की पैकिंग हो रही थी. रीता भी आई हुई थी. मोहन ने कहा “ अब इस सिलाई मशीन को यहाँ से ढो कर गाँव ले जाना बेकार है. यहीं किसी कबाड़ी को दे देते हैं. “

रीता ने तुरंत कहा “ पापा कम से कम आप तो इसे कबाड़ नहीं कहें. यही मशीन इस परिवार की जीवन रेखा रही है, ये हम कैसे भूल सकते हैं. मैं तो आजीवन इसे परिवार के बाहर नहीं जाने दूँगी. ”

“ नहीं बेटा मेरा मतलब इसे कबाड़ कहने का कतई नहीं था. इतनी भारी मशीन और हम में से किसी को चलाना भी नहीं आता है. इसलिए कबाड़ वाले या किसी को दे देना बेहतर होता जिसके कुछ काम आती यह मशीन. “

नहीं पापा, यह मशीन हमारे परिवार से बाहर नहीं जा सकती है. यह सिर्फ दादी की निशानी ही नहीं है, इसे मैं अपने परिवार की धरोहर समझती हूँ. इसे मैं अपने साथ ले जा रही हूँ. अब यह मेरी चिंता है, आप इसे ले कर परेशान न हों, आज से यह मेरी हुई. आपलोग को कोई एतराज तो नहीं है ? “

“ नहीं, नहीं. हमें क्यों एतराज होगा ? “ मोहन ने कहा

रीता ने पैकर को बोल कर अपने सामने ही मशीन की अच्छी तरह पैकिंग कराई और उसे अपने साथ ले कर रांची आई. उसने पुरानी सिलाई मशीन के लिए नया कवर बनवाया. बीच बीच में उसकी झाड़ पोछ करते रहती और तेल डाल कर चला कर भी देख लेती थी. उसे कोई खास सिलाई आती नहीं थी फिर भी कभी खुद ही उस पर अपने लिए रूमाल सिल कर बहुत ख़ुशी और संतोष महसूस करती.

कुछ मास बाद गीता को बेटा हुआ, उसके बेटे के लिए भी कमला ने कपड़े पहले ही सिल रखे थे. गीता के बच्चे ने भी छठ्ठी के दिन परदादी का सिला नया पहना था. मोहन का छोटा बेटा अशोक भी ग्रेजुएशन कर चुका था. उसने राज्य की प्रशासनिक सेवा के लिए दो बार परीक्षा दी पर सफल न हुआ. वह उदास था. इत्तफाक से पोस्ट ऑफिस में क्लर्क की वैकेंसी निकली और अशोक को नौकरी मिल गयी. अंदर से वह खुश नहीं था क्योंकि वह बी डी ओ या कोई अन्य सरकारी पदाधिकारी बनना चाहता था

उसकी माँ मीरा ने उसका साहस बढ़ाते हुए कहा “ बेटा, कोई भी नौकरी छोटी नहीं होती है.आजकल सरकारी नौकरी कितने लोगों को मिलती है ? तुम्हें तो खुश होना चाहिए. वैसे भी अपने पापा को देखो, उन्होंने भी क्लर्क से नौकरी शुरू की थी और बड़ा साहब बन कर रिटायर किये थे. जो भी काम है उसे मेहनत और ईमानदारी से पूरी करो.तुम्हें तरक्की मिलेगी और तुम्हारी इच्छा भी भगवान् पूरी करेगा. मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है. तुम्हें अपनी दादी की याद है न. एक अकेली बेसहारा औरत होते हुए भी सिर्फ मेहनत के बल पर कितना कुछ कर दिखाया उन्होंने. ”

समय की चिड़िया इस डाल से उस डाल फुदकती गयी, देखते देखते लगभग पच्चीस वर्ष बीत चुके थे. मोहन की बड़ी बेटी रीता को एक बेटी भी हुई थी, उसका नाम मैथिली था. वह अब बड़ी हो चली थी. वह प्लस टू में पढ़ रही थी. इस बीच मोहन और मीरा दोनों परलोक सिधार चुके थे. रीता के पति भी कुछ माह पूर्व हार्ट अटैक से चल बसे थे. अभी उनके रिटायरमेंट में दो साल शेष रह गए थे. रीता का बेटा रमेश भी बड़ा हो गया था और वह रांची में ही नौकरी करने लगा था. अनुकंपा के आधार पर रमेश को अपने पिता की फैक्ट्री में नौकरी मिल गयी थी. हाल ही में उसकी शादी हुई थी. उसकी बहू का नाम रमा था.

रीता अपनी दादी की सिलाई मशीन का पूरा ध्यान रखती. मैथिली सिलाई और कटाई आदि की ट्रेनिंग ले रही थी.इसके लिए उसने एक ट्रेनिंग सेंटर ज्वाइन किया था. घर में आ कर वह कमला दादी की पुरानी मशीन पर कुछ सिल भी लेती थी. उसकी देखा देखी रीता ने भी कुछ कटिंग और सिलाई का काम सीख लिया. मशीन के पुर्जे पुराने हो चुके थे, बेल्ट टूट रहा था और बॉबिन भी ख़राब हो रहा था. इसी बीच उसे पता चला कि उसकी बहू गर्भवती है. उसने सोचा अपने पोता या पोती के लिए कपड़े सिलने होंगे, आखिर परम्परा तो निभानी थी. मैथिली को भी सीखने के लिए मशीन चाहिए थी. मशीन को अच्छे रनिंग कंडीशन में रखना जरूरी हो गया था. उसे ठीक कराने के लिए रांची में सिलाई मशीन के डीलर के पास पुर्जे खोजने गयी.

वह बोला “ इतनी पुरानी मॉडल के मशीन के स्पेयर्स आपको रांची में नहीं मिलेंगे. यह कलकत्ता ( अब कोलकाता ) में मिल सकता है, वह भी एक ही ऐसा डीलर है जहाँ यह मिल सकता है. आप मशीन का मॉडल और पार्ट नंबर या ख़राब पार्ट का सैंपल मुझे दें. मैं उसे कलकत्ता भेज कर मंगवाने की कोशिश करूँगा. पर इसमें कुछ समय लग जायेगा. “

“ समय की कोई बात नहीं है. मैं पुर्जे की डिटेल्स ले कर आती हूँ. “

इत्तफाक से सिलाई मशीन के साथ जो किताब मिली वह अभी तक सलामत थी. उसने बेटे से कह कर जो जो जो पार्ट चाहिए थे उनके पार्ट नंबर नोट किया. फिर मशीन का मॉडल और पार्ट नंबर ले कर रीता रांची वाली दुकान में गयी. डीलर ने कहा “ हाँ, इतने डीटेल्स से आपके पुर्जे मिल जाने चाहिए बशर्ते कि कलकत्ता वाली दुकान में हो. मैं कोशिश करता हूँ कि आपका काम जल्द से जल्द हो जाये.“

“ कितने दिन में मिल सकते हैं पुर्जे ? “

“ मैडम, मैंने कहा था न कि कुछ समय लगेगा. कलकत्ता तो रोज आना जाना नहीं होता है, पंद्रह बीस दिन में एक बार जाता हूँ. सिर्फ इस छोटे पुर्जे के लिए कलकत्ता जाना बहुत महंगा पड़ेगा. वैसे आपको बहुत जल्दी है तो मैं कलकत्ता डीलर का पता आपको दे देता हूँ. आप खुद जा कर या किसी को भेज कर मंगवा सकती हैं, तभी दो दिन के अंदर पुर्जे आपको मिल सकते हैं. “

रीता ने सोचा कि कलकत्ता जाना उसके लिए सम्भव नहीं था और मशीन की कोई इमरजेंसी भी नहीं है. इसलिए उसने कहा “ नहीं मैं पार्ट्स के डिटेल्स आपके पास छोड़ जाती हूँ, आप जितनी जल्द बन सके इन्हें मंगवा दीजिये प्लीज. “

इधर रीता कुछ दिनों से बीमार रहा करती थी, घर का काम उस से नहीं हो पाता था. फिर भी जितना उस से बन पड़ता वह बहू रमा को घर के कामों में मदद करती. इसी बीच रीता की बहू रमा के पीहर से कुछ सामान आये जिन्हें रखने के लिए घर में जगह की जरूरत थी. रीता के पति ने मरने से पहले एक घर बनवा लिया था. घर छोटा था. रमा ने कहा “ माँ जी, यह मशीन तो बेकार में इतना जगह घेरे हुए है. वैसे भी इसका कोई काम है नहीं और न ही यह ठीक से चलती है. मैं इसे छत पर फेंकवा देती हूँ, बाद में कबाड़ को दे देंगे हमलोग. “

रीता ने नाराज़ हो कर कहा “ ऐसी बात दोबारा नहीं कहना बहू. तुम नहीं जानती हो इस मशीन की कीमत. यह हमारे परिवार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण चीज है. “

“ माफ़ करें माँ जी, मुझे किसी ने इस मशीन के बारे में आजतक कुछ बताया ही नहीं है, मैं क्या जानूं ? मुझे लगा पुरानी चीज है जिसकी जरूरत नहीं है तो इसे हटाने से कुछ जगह खाली हो जाएगी और नए सामान रखने में सुविधा होगी. “

“ यह सिलाई मशीन हमारे दादी के ज़माने की है और पूरे परिवार की जीवन रेखा रही है. जब तक हमारे पिता जी को नौकरी नहीं मिली थी तब यही मशीन परिवार का अन्नदाता था. “ इतना बोल कर रीता ने बहू को पूरी कहानी संक्षेप में सुना डाली.

फिर आगे कहा “ यह मशीन हमारे लिए पूजनीय है, इसे परिवार की एक धरोहर समझ कर आज तक संभाल कर रखा है मैंने. और आगे भी तुम लोगों से यही उम्मीद है. “