Anmol Sougaat - 1 in Hindi Moral Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | अनमोल सौगात - 1

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अनमोल सौगात - 1

भाग १

"मम्मी मम्मी!" पवित्रा ने घर में घुसते हुए उत्साह से आवाज़ लगायी। किन्तु उसे घर का वातावरण कुछ बोझिल सा महसूस हुआ। मुकेश हमेशा की तरह टी.वी. पर घटिया और साजिशों से भरे पारिवारिक सीरियल देखने में व्यस्त था। पवित्रा इन सब का असर अपने घर पर भी देख रही थी लेकिन अब वह इन्हें नज़रअंदाज़ करने लगी थी। अपना बैग एक तरफ रखते हुए वह सीधे कमरे की तरफ गयी।

नीता अपने कमरे में ही थी। रो रोकर उसकी आँखें सूज गई थी। पवित्रा समझ गई कि ये पैसों को लेकर हुई लड़ाई का असर है। अपने मम्मी-पापा और घर का ऐसा माहौल देखकर पवित्रा का उत्साह फीका पड़ गया। मुकेश एक बेहद गैर जिम्मेदार, गुस्सैल और अहंकारी इंसान था। किसी से भी सीधे मुँह बात करना तो उसे आता ही नहीं था। जबसे पवित्रा ने होश संभाला था, उसने अपनी माँ के आँसू और पिता की बेपरवाही ही देखी थी। नीता के पिताजी ने मुकेश के संभ्रांत परिवार और बड़े व्यवसाय को देखकर आनन फानन में दोनों का विवाह करा दिया। नीता को ना मुकेश को जानने, ना ही समझने का मौका मिला।

मुकेश के पिताजी एक ज़माने में बड़े व्यापारी हुआ करते थे। लेकिन मुकेश की शादी के एक साल बाद ही व्यापार में ऐसा घाटा लगा की उबर पाना मुश्किल हो गया।मुकेश की माताजी का स्वर्गवास तो पहले ही हो चुका था और इस घाटे के कारण ह्रदय आघात होने की वजह से पिताजी भी चल बसे। मुकेश का स्वभाव पहले से ही थोड़ा चिड़चिड़ा था लेकिन व्यापार में असफलता के कारण वो और भी बुरा होता गया। मुकेश और नीता के दोनों बच्चे पवित्रा और पुलक छोटे थे तो किसी तरह एक छोटी सी परचूनी की दुकान से खींचतान कर गुजर हो जाती थी किन्तु बढ़ते बच्चों की जरूरतें और पढ़ाई आदि के खर्चे को लेकर दोनों के बीच झगड़े रोज बढ़ने लगे। इसका असर नीता की सेहत पर भी पड़ने लगा। बच्चे भी इससे अछूते नहीं रह पाते। रोज रोज की नोक झोंक का असर उनकी पढ़ाई पर भी होने लगा था।

अब तो नीता को भी मुकेश से कोई उम्मीद नहीं थी। वह समझ गयी थी कि जो कुछ भी करना है उसे ही करना है। नीता ने अपने पिता और बहन की मदद से उस दुकान में कुछ स्टेशनरी और कॉस्मेटिक्स का सामान रखकर उसे व्यवस्थित किया और खुद दुकान पर बैठने लगी। कई महीनों की मेहनत और उसके मृदु व्यवहार के कारण धीरे धीरे  ग्राहक बढ़ने लगे और दुकान अच्छे से चलने लगी। मुकेश सहयोग देने के बजाय और आलसी होता जा रहा था तथा अपनी हीन भावना और निराशा को अक्सर नीता पर निकालकर ही दम लेता था।

 

पर वो कहते हैं ना जब हर तरफ से निराशाएं घेर लेती है तब एक आशा की किरण भी जीवन जीने की हिम्मत दे देती है। नीता के लिए वो किरण उसके बच्चे थे। बहुत ही सुलझे और समझदार होने के साथ ही साथ पढ़ाई में भी बहुत अच्छे थे। अपनी मेहनत और लगन से पवित्रा ने एम.बी.ए. की पढ़ाई पूरी की और पुलक ने सी.ए. एंट्रेंस की परीक्षा उत्तीर्ण की।

 

आज पवित्रा बहुत खुश थी क्योंकि एक बड़ी कंपनी में उसका चयन हो गया था। अब वो भी अपनी माँ को आर्थिक रूप से मदद कर पायेगी यह सोचकर उसकी ख़ुशी दोगुनी हो गयी थी। इसके अलावा आज वह एक ऐसी बात नीता को बताने जा रही थी जिसको बताने का साहस वह मुकेश के उग्र स्वभाव के कारण नहीं जुटा पा रही थी। पुलक ने उसकी नौकरी लग जाने की खुशी को लेकर आइसक्रीम पार्टी द्वारा बोझिल वातावरण को हल्का बनाने का प्रयास किया। आइसक्रीम खाने के बाद मुकेश अपने कमरे में चला गया। पुलक भी अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया।

 

पवित्रा के बहुत बोलने पर नीता उसके साथ वॉक करने घर के पास वाले पार्क में गयी। पवित्रा ने नीता को अपनी नयी कंपनी और ऑफिस के बारे में बताया। उसने ये भी बताया कि उसके कई और दोस्तों की नौकरी भी इसी कंपनी में लगी है जिसमें से एक अनिमेष भी था। नीता अनिमेष को जानती थी। पवित्रा के और दोस्तों के साथ अनिमेष भी कई बार उनके घर आया हुआ था। स्वभाव से बहुत ही हंसमुख और विनम्र था। पर रास्ते में पवित्रा ने अनिमेष के बारे में कुछ ऐसा भी बताया जिसे सुनकर नीता को सिर्फ आश्चर्य ही नहीं हुआ बल्कि एक अजीब सा डर भी घर कर गया। पवित्रा और अनिमेष की दोस्ती कब पसंद, और फिर पसंद से प्यार में बदल गयी थी इसका अंदाजा नीता को बिलकुल नहीं था। और जब पवित्रा ने ये बताया कि अनिमेष ने उसे शादी के लिए प्रपोज़ किया है तो नीता के मन में कई सवाल उठने लगे।

 

नीता ने कहा, "देखो पवित्रा, अनिमेष वाकई में एक अच्छा लड़का है। मैं भी खुले विचारों की हूँ। लेकिन दूसरे जाति और धर्म का होने के कारण सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है।"

 

पवित्रा ने कहा, "मम्मी! मैं समझ रही हूँ कि आप क्या कहना चाह रही हैं। मैं मानती हूँ की ये सब अपनी जगह पर मायने रखते हैं लेकिन क्या आपको सच में लगता है कि खुश रहने के लिए बस इतना ही काफी है? आप और पापा भी तो एक ही जाति और धर्म के हो।"

 

यह प्रश्न नीता को अंदर तक झकझोर गया। खुद को सँभालते हुए कहा, "और तुम्हारे पापा, उन्हें तो तुम जानती ही हो। पता नहीं यह सब सुनकर उनकी क्या प्रतिक्रिया रहेगी। उनकी रजामंदी मिलना मुश्किल है।"

 

"उन्हें मनाना मेरी जिम्मेदारी है। मैं उनसे बात करुँगी पर उसके पहले मैं आपका फैसला जानना चाहती हूँ।मैं और अनिमेष इस रिश्ते में आप सबकी रजामंदी चाहते हैं।" पवित्रा ने उत्तर दिया।

 

"ठीक है। मुझे थोड़ा सा समय दो।हम कल इस बारे में बात करते हैं।" नीता ने धीमे स्वर में कहा और दोनों घर की तरफ लौट गए।

 

पवित्रा और नीता दोनों की आँखों में आज नींद नहीं थी। एक अपने भविष्य के सपनों में खोयी हुई थी और दूसरी अपनी अतीत की यादों में। नीता की ज़िन्दगी के वो पन्ने जिसे उसने इतने सालों से कहीं बंद करके रख दिया था वो उसके सामने एक एक करके खुलने लगे।